Kalam's family made great sacrifices to admit him in a good school. But then he got into trouble with his math teacher. Will Kalam still be able to make his family proud of him? मैं प्रथम आया दूसरा वि·ायुद्ध बस खत्म ही हुआ था और भारत उत्सुकता से अपनी आज़ादी का इन्तज़ार कर रहा था। रेडियो पर अकसर सुनाई देता था की गांधीजी ने घोषणा की है, भारतवासी अपने भारत का निर्माण खुद करेंगे।'' देश अभूतपूर्व आशा से भरा था। मैं मन ही मन अपने देश के लिए कुछ करना चाहता था। इसके लिए किसी अच्छे विद्यालय में पढ़ना ज़रूरी था। लेकिन मैं अपने माता-पिता से ये बात कहने का साहस नहीं जुटा पाता था, क्योंकि मैं जानता था कि वे मुझे अच्छे विद्यालय में नहीं पढ़ा पाएंगे। एक दिन मुझे अचरज में डालते हुए मेरे पिताजी ने मुझसे कहा, अब्दुल, मैं जानता हूं कि तुम्हारे मन में आगे पढ़ने की कितने इच्छा है। हम अनपढ़ लोग हैं, लेकिन मैंने और तुम्हारी मां ने तुम्हें लेकर बहुत ऊंचे सपने देखे हैं। तुम फ़िक्र मत करो, जैसे भी हो, हम पैसों का इन्तज़ाम करेंगे ताकी तुम अच्छे विद्यालय में पढ़ सको।'' रामे·ारम से दूर, समुद्र पार, चहल-पहल भरे रामनाथपुरम शहर में था द ·ाात्र्ज़ स्कूल। मेरे भैया मुझे वहां ले गए और मेरा दाखिला करवा दिया। वो बहुत अच्छा विद्यालय था। उन दिनों आजकल की तरह बिजली के पंखे नहीं होते थे। मौसम गर्म और उमसभरा होता तो छात्रों को पेड़ों के नीचे बैठाकर पढ़ाया जाता। दूसरे विषय की कक्षा में जाने का मतलब होता था, दौड़कर दूसरे पेड़ के नीचे जाना। एक दिन मैं जल्दी में गलत कक्षा में चला गया। वहां हमारे गणित के अध्यापक पढ़ा रहे थे। वे चश्मे में से मुझे घूरते हुए बोले, अगर तुम सही कक्षा नहीं ढ़ूढ़ सकते तो तुम इस विद्यालय में क्या कर रहे हो? तुम्हें तो अपने गांव लौट जाना चाहिए जहां से तुम आए हो।'' फिर उन्होंने मेरी गर्दन पकड़ी और पूरी कक्षा के सामने मुझे बेंत लगाए। मेरा दिल टूट गया। मुझे इस विद्यालय में भेजने के लिए मेरे परिवार ने बहुत त्याग किया था। कभी-कभी मुझे घर की बहुत याद आती थी, लेकिन मैंने ठान लिया था कि मैं अपने परिवार का नाम जरूर रौशन करूंगा। उस दिन मैंने निश्चय कर लिया कि मैं सिर्फ़ अच्छा छात्र ही नहीं बनूंगा बल्कि सबसे अच्छा छात्र बनूंगा। मैं दिन-रात पढ़ाई में जुट गया। कुछ महीनों बाद जब परीक्षा का परिणाम आया तो मुझे गणित में पूरे अंक मिले थे। मैं उत्साह से भर उठा! अगली सुबह प्रार्थना के बाद, मुझे दण्डित करनेवाले गणित के अध्यापकजी खड़े हुए और मुस्कुराकर बोले, मैं जिसे भी बेंत लगाता हूं वो महान् बन जाता है!'' उन की बात सुन कर सब लोग हंसने लगे। फिर अध्यापकजी ने पूरी बात बताई और मेरी ओर इशारा करते हुए बोले, मेरी बात याद रखना; एक दिन ये लड़का इस विद्यालय और अध्यापकों का मान जरूर बढ़ाएगा।'' अध्यापकजी की बात सुनकर मैं पहले हुए अपने अपमान की कड़वाहट भूल गया। उस सत्र के खत्म होने पर जब मैं अपने घर लौटा तो हमारे परिवार ने बहुत खुशियां मनार्इं। मेरी मां ने घर पर ही मिठाई बनाई और पिताजी ने पूरे रामे·ारम में मिठाई बांटी। और उस दिन मुझे लगा कि मैं भी किसी लायक हूं, लेकिन अभी बहुत कुछ पाना बाकी था। Story: APJ Abdul Kalam with Arun Tiwari Story Adaptation: Ananya Parthibhan Illustrations: Deepta Nangia Music: Acoustrics (Students of AR Rahaman) Translation: Madhu B Joshi Narration: Babla Kochhar Animation: BookBox
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