मेरे अध्यापक के लिए एक पाठ मैं रामे·ारम में मस्जिद गली में रहता था। रामे·ारम अपने शिव मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। रोज़ शाम को मस्जिद से घर लौटते हुए मैं मन्दिर के पास रुकता। यहां मुझे कुछ अजीब सा महसूस होता था क्योंकि मन्दिर जानेवाले लोग मुझे शक की निगाह से देखते थे। शायद वे हैरान होते थे कि एक मुसलमान लड़का मन्दिर के सामने क्या कर रहा है। सच्चाई ये थी कि मुझे मंत्रों का लयबद्ध पाठ सुनना अच्छा लगता था। मुझे उनका एक भी शब्द समझ नहीं आता था, लेकिन उनमें एक अजीब सा जादू था। और दूसरा कारण था मेरा दोस्त रामनाथ शास्त्री। वो मुख्य पुरोहित का बेटा था। शाम के समय वो अपने पिता के साथ बैठकर स्तोत्रों का पाठ करता था। बीच-बीच में वो मेरी ओर देखकर मुस्कुरा भी देता था। विद्यालय में मैं और राम कक्षा में पहली बैंच पर एक साथ बैठते थे। हम भाइयों जैसे थे — बस, वो यज्ञोपवीत पहनता था और हिन्दू था, जब कि मुसलमान होने के नाते मैं सफ़ेद टोपी पहनता था। जब हम पांचवीं कक्षा में थे तब एक दिन एक नए अध्यापक हमारी कक्षा में आए। वे काफ़ी सख्त-मिजाज़ दिख रहे थे। अपनी हथेली पर बेंत ठकठकाते हुए उन्होंने पूरी कक्षा का चक्कर लगाया। आखिर वे हमारे सामने आ कर खड़े हो गए और चिल्लाकर बोले, ए! सफ़ेद टोपीवाले, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई पुरोहित के बेटे के पास बैठने की! चलो, फ़ौरन सबसे पिछली बैंच पर जाओ।'' मुझे बहुत बुरा लगा। रोनी सूरत लिए मैं अपनी किताबें ले कर सबसे पिछली बैंच पर जा बैठा। छुट्टी के बाद राम और मैं, दोनों ही चुपचाप खूब रोए। हमें लगा कि हम कभी दोस्त नहीं रह पाएंगे। उस दिन जब मैं घर लौटा तो मेरी सूरत देखकर पिताजी बोले, तुम रो रहे थे?... क्या हुआ बेटा?'' मैंने पूरी बात उन्हें बताई। उधर राम ने भी अपने घर में यह बात बताई। अगली सुबह राम दौड़ता हुआ हमारे घर आया और बोला, पिताजी ने तुम्हें फ़ौरन हमारे घर बुलाया है।'' मैं बहुत डर गया। मुझे लगा कि अब मुझे और डांट पड़ेगी। राम के घर हमारे नए अध्यापक को देखकर तो मेरी जान ही निकल गई। राम के पिताजी ने सख्ती से अध्यापकजी से कहा, जो कुछ भी हुआ उसके लिए आप को कलाम से माफ़ी मांगनी होगी।'' मुझे वि·ाास ही नहीं हो रहा था कि मुख्य पुरोहित अध्यापकजी को मुझसे माफ़ी मांगने को कह रहे थे। वे कह रहे थे, ई·ार की दृष्टि में कोई बच्चा किसी से कम नहीं है। अध्यापक होने के नाते आपका कर्तव्य है कि आप अपने छात्रों को उनकी अलग-अलग पृष्ठभूमियों के बावजूद मिलजुल कर रहना सिखाएं। अब से आप इस विद्यालय में नहीं पढ़ाएंगे।'' अध्यापकजी ने तुरन्त उन से क्षमा मांगी और मुझे गले लगाते हुए कहा, कलाम, मुझे बहुत अफसोस है कि मैंने तुम्हारा दिल दुखाया। आज मैंने जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण सबक सीखा है।'' राम के पिताजी ने जब देखा कि अध्यापकजी को सचमुच अपने किए पर खेद है तो उन्होंने उन्हें विद्यालय में पढ़ाना जारी रखने को कहा। राम और मैं फिर से पहली बैंच पर बैठने लगे। हमारी दोस्ती आज भी बरकरार है। Story: APJ Abdul Kalam with Arun Tiwari Story Adaptation: Ananya Parthibhan Illustrations: Deepta Nangia Music: Acoustrics (Students of AR Rahaman) Translation: Madhu B Joshi Narration: Babla Kochhar Animation: BookBox
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