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भवानी प्रसाद मिश्र की काव्य संवेदना By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

भवानी प्रसाद मिश्र की काव्य संवेदना ये कोहरे मेरे हैं भवानी प्रसाद मिश्र ’’गीत फरोश’’ जैसी कालजयी कविता के रचयिता भवानीप्रसाद मिश्र की काव्य संवेदना जीवन के सरोकारों की दृष्...

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मुक्तिबोध और उनकी साहित्यिक सैद्धान्तिकी By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

मुक्तिबोध और उनकी साहित्यिक सैद्धान्तिकी ‘साहित्यिक की डायरी’ मुक्तिबोध मुक्तिबोध का रचना-व्यक्तित्त्व उनके जीवन की ही तरह विरल विशिष्टताओं से निर्मित ह...

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नरेश सक्सेना: समकालीन कवि By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरेश सक्सेना: पदार्थ ओर संवेदना के विरल संयोग के कवि विगत कुछ दशकों की हिन्दी कविता ने जीवन के महाद्वीपीय विस्तार की जैसी विविध यात्रा की है उससे उसकी रचनात्मक उत्सुकत...

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समीक्षा - वह जो नहीं कहा By Sneh Goswami

सीख नसीहत और प्रेरणा से भरपूर है – वह जो नहीं कहा लघुकथा संग्रह श्रीमती स्नेह गोस्वामी का लघुकथा संग्रह वह जो नहीं कहा अभी अभी 2018 में प्रकाशित हुआ है। सबसे बङी बात यह है कि य...

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समकालीन कहानी का यथार्थ By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

समकालीन कहानी का यथार्थ साहित्य के संदर्भ में अनेक अन्तों और संकट की चिन्ताजनक घोषणाओं के बाद भी आज रचना-परिमाण की विपुलता ही नहीं विशदता भी बढ़ी है। इतने अधिक के...

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चन्द्रकान्त देवताले का काव्यसंग्रह -लकड़बग्घा हँस रहा है By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

लकड़बग्घा हँस रहा है - समयगत सच्चाईयों का दस्तावेज- चन्द्रकान्त देवताले का तीसरा काव्यसंग्रह हड्डियों में छिपा ज्वर और दीवारों पर खून से के बाद च...

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पुस्तक समीक्षा - 12 By Yashvant Kothari

प्राइड एंड प्रिजुडिसयह उपन्यास १८१३ में लिखा गया जो सबसे पहले इंगलेंड में छपा jane Austen उस जमाने कीमशहूर लेखिका थीं उनके लिखे उपन्यास। आज भी क्लासिक माने जा ते हैंयह उपन्यास ऑस्ट...

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ग़लत पते की चिट्ठियाँ- योगिता यादव By राजीव तनेजा

आज के इस अंतर्जालीय युग में जब कोई चिट्ठी पत्री की बात करे तो सहज ही मन में उत्सुकता सी जाग उठती है कि आज के इस व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर के ज़माने लिखी गयी इन चिट्ठियों में आखिर...

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राज बोहरे की कहानी का गुलदस्ता: डॉ. पद्मा शर्मा By राज बोहरे

कहानी का गुलदस्ता: मेरी प्रिय कथाएं डॉ. पद्मा शर्मा मेरी प्रिय कथाएं लेखक राजनारायण बोहरे - पिछले दिनों प्रकाशित...

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मैत्रेयी पुष्पा का ‘‘चाक’’ उपन्यास By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

मूल्यांकनµ कृष्ण बिहारी पाण्डेय अधुनातन साहित्य के सूक्ष्मदर्शी आलोचक द्वारा मैत्रेयी पुष्पा के बहुचर्चित उपन्याय ‘‘चाक’’ का आकलन चाकः प्रजापतित्व का अभिनव पाठ यह रचनात्मकता...

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दुलदुल घोड़ी राजनारायण बोहरे By ramgopal bhavuk

दुलदुल घोड़ी एक पाठकीय प्रक्रिया राजनारायण बोहरे पुस्तक समीक्षा पुस्तक का नाम दुलदुल घोड़ी लेखक रामगोपाल भावुक प्रकाशक ममता प्रकाशन दिल्ली मूल्य ₹125 समीक्षक राजनारायण वोहरे...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ’’मधु’’ बीसवीं शताब्दी के बुन्देलखण्ड के कवि By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरोत्तमदास पाण्डेय ’’मधु’’ बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बुन्देलखण्ड के ऐसे कृती कवि हुए हैं जिन्होंने प्रभूत परिमाण में उत्कृष्ट काव्य-रचना की है किन्तु उनकी ओर हिन्दी जगत का...

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फुगाटी का जूता- मनीष वैद्य By राजीव तनेजा

जब कभी ज़माने की विद्रूपताएं एवं विसंगतियां हमारे मन मस्तिष्क को उद्वेलित कर उसमें अपना घर बनाने लगती हैं तो हताशा और अवसाद में जीते हुए हम में से बहुत से लोग अपने मन की भड़ास को कभी...

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उपन्यास-गूंगा गांव -राज वोहरे By ramgopal bhavuk

भारत के हरगांव की कथा है गूंगा गांव । पुस्तक समीक्षा पुस्तक का नाम उपन्यास गूंगा गांव लेखक रामगोपाल भावुक प्रकाशक मम...

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समीक्षा By Madhu Sosi

उपन्यास लिखना किसी भी प्रकार सरल हैं ,न सहज , मात्र कुछ पृष्ठों में किसी कहानी को बुनना , शब्दों में पिरोना , उसको आदि से अंत तक पाठक को बांधे रखना , लेखक की लेखन मंजा पर निर्भर...

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अमेरिका में 45 दिन - सोनरूपा विशाल By राजीव तनेजा

किसी भी देश, उसकी सभ्यता, उसके रहन सहन..वहाँ के जनजीवन के बारे में जब आप जानना चाहते हैं तो आपके सामने दो ऑप्शन होते हैं। पहला ऑप्शन यह कि आप खुद वहाँ जा कर रहें और अपनी आँखों से.....

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प्रेमचंद शैली में राज बोहरे - रूपेंद्र राज By राज बोहरे

गद्य साहित्य में कहानियों का इतिहास लगभग सौ वर्ष पुराना है.हिंदी साहित्य में जो स्थान मुंशी प्रेमचंद को मिला वहां तक का सफर अभी तक किसी कहानीकार द्वारा तय न...

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अक्कड़ बक्कड़- सुभाष चन्दर By राजीव तनेजा

आम तौर पर हमारे तथाकथित सभ्य समाज दो तरह की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। एक कामकाजी लोगों की और दूसरी निठल्लों की। हमारे यहाँ कामकाजी होने से ये तात्पर्य नहीं है कि...बंदा कोई ना कोई क...

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रत्नावली-रामगोपाल भावुक By ramgopal bhavuk

रत्नावली-रामगोपाल भावुक आदरणीय सडैया जी, सादर प्रणाम। आपके आदेशानुसार मैंने रत्नावली उपन्यास का अध्ययन किया । इसे मैने पूरी गंभीरता से पढा यद्वपि इस मेंरेप ास पढने क लिए चर्चीत पु...

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डॉर्क हॉर्स By Amit Singh

"नौजवानी के इंच-इंच जूझ की कहानी है डार्क हॉर्स"************************ पूर्वी उत्तर प्रदेश और लगभग पूरा बिहार का क्षेत्र अपनी विविध प्रकार की समस्याओं के कारण अक्सर स...

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अंधेरे कोने@फेसबुक डॉट कॉम By राजीव तनेजा

जिस तरह एक सामाजिक प्राणी होने के नाते हम लोग अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए आपस में बातचीत का सहारा लेते हैं। उसी तरह अपनी भावनाओं को व्यक्त करने एवं उनका अधिक से अधिक लोगो त...

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पुस्तक समीक्षा- दमयन्ती: रामगोपाल भावुक By ramgopal bhavuk

पुस्तक समीक्षा- दमयन्ती: रामगोपाल भावुक पंचमहल इलाके की ग्रामीण नायिका दमयन्ती नामक उपन्यास आज हम सबके सामने है, जिससे एक बार तो हम सबको यह भ्रम पैदा होता ह...

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थोड़ा हँस ले यार- सुभाष चन्दर By राजीव तनेजा

आमतौर पर किसी व्यंग्य को पढ़ते वक्त हमारे ज़हन में उस व्यंग्य से जुड़े पात्रों को लेकर मन में कभी त्रासद परिस्थितियों की वजह से करुणा तो कभी क्षोभ वश कटुता उपजती है। ज़्यादा हुआ तो एक...

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खिड़कियों से झाँकती आँखें- सुधा ओम ढींगरा By राजीव तनेजा

आमतौर पर जब हम किसी फ़िल्म को देखते हैं तो पाते हैं कि उसमें कुछ सीन तो हर तरह से बढ़िया लिखे एवं शूट किए गए हैं लेकिन कुछ माल औसत या फिर उससे भी नीचे के दर्ज़े का निकल आया है। ऐसे ब...

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अंजू शर्मा का महत्वाकांक्षी कहानी संग्रह-पुस्तक समीक्षा By राज बोहरे

अंजू शर्मा का दूसरा कहानी संग्रह सुबह ऐसे आती है पुस्तक मेला 2020 में दिल्ली में विमोचन हुआ। भावना प्रकाशन से प्रकाशित इस कहानी संग्र...

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बहुत दूर गुलमोहर- शोभा रस्तोगी By राजीव तनेजा

जब कभी भी हम अपने समकालीन कथाकारों के बारे में सोचते हैं तो हमारे ज़हन में बिना किसी दुविधा के एक नाम शोभा रस्तोगी जी का भी आता है जो आज की तारीख में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। ल...

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स्वप्नपाश- मनीषा कुलश्रेष्ठ By राजीव तनेजा

कई बार हमें पढ़ने के लिए कुछ ऐसा मिल जाता है कि तमाम तरह की आड़ी तिरछी चिंताओं से मुक्त हो, हमारा मन प्रफुल्लित हो कर हल्का सा महसूस करने लगता है मगर कई बार हमारे सामने पढ़ने के लिए क...

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ब्रज श्रीवास्तव -पुस्तक समीक्षा By राज बोहरे

सृजन के असली क्षण है यह जब वह श्रमिक कला के आनंद में भी डूबा है। ऐसे दिन का इंतजार कवि बृज श्रीवास्तव का कविता संग्रह है जो बोधि प्रकाशन जयपुर से...

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स्वाभिमान By राजीव तनेजा

कई बार हम लेखकों के आगे कुछ ऐसा घटता है या फिर कोई खबर अथवा कोई विचार हमारे मन मस्तिष्क को इस प्रकार उद्वेलित कर देता है कि हम उस पर लिखे बिना नहीं रह पाते। कई बार इसमें निरंतर वि...

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निशां चुनते चुनते - विवेक मिश्र By राजीव तनेजा

कई बार कुछ कहानियाँ आपको इस कदर भीतर तक हिला जाती हैं कि आप अपने लाख चाहने के बाद भी उनकी याद को अपने स्मृतिपटल से ओझल नहीं कर पाते हैं। ऐसी कहानियाँ सालों बाद भी आपके ज़हन में आ,...

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खट्टर काका - हरिमोहन झा By राजीव तनेजा

कहते हैं कि समय से पहले और किस्मत से ज़्यादा कभी कुछ नहीं मिलता। हम कितना भी प्रयास...कितना भी उद्यम कर लें लेकिन होनी...हो कर ही रहती है। ऐसा ही इस बार मेरे साथ हुआ जब मुझे प्रसिद्...

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लक्ष्मी प्रसाद की अमर दास्तान - ट्विंकल खन्ना By राजीव तनेजा

कई बार कुछ किताबें हम खरीद तो लेते हैं मगर हर बार पढ़ने की बारी आने पर उनका वरीयता क्रम बाद में खरीदी गयी पुस्तकों के मामले पिछड़ता जाता है। ऐसा हम जानबूझ कर नहीं करते बल्कि अनायास ह...

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मुकम्मल अधूरेपन की एक अतृप्त सच्ची झूठी गाथा। By Keshav Patel

कहने को तो समय के साथ कई कहानियां कही जाती हैं, लेकिन कई कहानियों का अधूरापन समय की तमाम कोशिशों के बाद भी खाली ही रह जाता है। प्रमित किसी कहानी का एक बिम्ब मात्र नहीं है। वह जीवन...

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शान्तिपुरा - अंजू शर्मा By राजीव तनेजा

अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हम सब अपनी रुचिनुसार कोई ना कोई माध्यम चुनते हैं जैसे कोई चित्रकारी के माध्यम से अपनी बात कहता है तो अपनी वाकपटुता के ज़रिए अपने मन की भावनाओं व्य...

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कुछ तो बाकी है - रजनी मोरवाल By राजीव तनेजा

कई बार जब कभी हम लिखने बैठते हैं तो अमूमन ये सोच के लिखने बैठते हैं कि हमें आरंभ कहाँ से करना है और किस मोड़ पर ले जा कर हमें अपनी कहानी या उपन्यास का अंत करना है मगर कई बार ऐसा होत...

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कश्मीरियत के सौ सालों की दास्तां “रिफ्यूजी कैंप” By Keshav Patel

आशीष कौल व्हाइट शर्ट में ब्लैक टाई लगाए कोई मार्केटिंग या पीआर एजेंसी का हिस्सा नहीं हैं, जो दावा करें कि हमने नई किस्म की खुशबूदार बोतल या फिर कोई मौजे या टूथपेस्ट, बाजार में उतार...

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अकाल में उत्सव - पंकज सुबीर By राजीव तनेजा

कई बार कुछ ऐसा मिल जाता है पढ़ने को जो आपके अंतर्मन तक को अपने पाश में जकड़ लेता है। आप चाह कर भी उसके सम्मोहन से मुक्त नहीं हो पाते। रह रह कर आपका मन, आपको उसी तरफ धकेलता है और आप फ...

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डार्क मैन स बैड - गीता पंडित By राजीव तनेजा

कवि मन जब कभी भी कुछ रचता है बेशक वो गद्य या फिर पद्य में हो, उस पर किसी ना किसी रूप में कविता का प्रभाव होना लगभग अवश्यंभावी है। ऐसा वो जानबूझ कर नहीं करता बल्कि स्वत: ही कुदरती त...

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वक़्त के होंठों पर प्रेमगीत By Neelima Sharrma Nivia

कवि दीपक अरोरा जी का कविता संग्रह " वक़्त के होंठो पर एक प्रेम गीत " मेरे हाथो मैं हैं इसको पढना अपने आप में सुखद अनुभूति हैं प्रेम के भिन्न रूपों पर कविता लिखना और कविता को भीतर...

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लिट्टी चोखा - गीताश्री By राजीव तनेजा

कुछ का लिखा कभी आपको चकित तो कभी आपको विस्मृत करता है। कभी किसी की लेखनशैली तो कभी किसी की धाराप्रवाह भाषा आपको अपनी तरफ खींचती है। किसी की किस्सागोई पर पकड़ से आप प्रभावित होते हैं...

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जो रंग दे वो रंगरेज़ - रोचिका अरुण शर्मा By राजीव तनेजा

ये बात 1978-80 के आसपास की है। तब हमारे घर में सरिता, मुक्ता जैसी पत्रिकाऐं आया करती थी। बाद में इनमें गृहशोभा और गृहलक्ष्मी जैसी पत्रिकाओं का नाम भी इसी फेहरिस्त में जुड़ गया। तब उ...

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नया भारत By Jyoti Prakash Rai

आज की दुनिया एक नये युग का संचार कर रही है, आज का मानव प्रतिदिन एक नई खोज के साथ आगे बढ़ रहा है। और आगे के आने वाले दिनों में, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हर मनुष्य अपने आप में व्यस्त...

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जल By Jyoti Prakash Rai

जल की जीवन है इस बात में कोई शक नहीं है। क्योंकी धरती पर सभी जीवित प्राणियों को बिना जल के जीवित रह पाना यहां संभव नहीं है। सभी प्राणियों के लिए जल अमृत के समान है। वैसे तो धरती के...

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प्रेम की उम्र के चार पढ़ाव - काव्यसंग्रह मनीषा कुलश्रेष्ठ By Neelima Sharrma Nivia

"प्रेम की उम्र के चार पढाव"मनीषा कुलश्रेष्ठ प्यार ढाई अक्षर का शब्द हैं लेकिन इसकी अनुभूति सबको भिन्न भिन्न होती हैं | सुबह की ओस का चुम्बन करती किशोर उम्र जब इस छुवन को महसूस...

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अहल्या - नरेन्द्र कोहली By राजीव तनेजा

अगर आप मिथकीय गाथाओं और उनके चरित्रों में गहन रुचि रखते हैं तो इस तरह की कहानियों से आपका लगाव स्वाभविक है। ये सही है कि इस तरह की कथाएँ हमें रोमांचित करती हैं मगर कई बार उनमें घट...

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ग़ौरतलब कहानियां - सुभाष नीरव By राजीव तनेजा

किसी कहानी या उपन्यास को पढ़ते वक्त मेरा मकसद कभी भी महज़ टाइम पास वाला नहीं रहा। जब भी हम किसी का अच्छा, बुरा या फिर औसत लिखा हुआ पढ़ते है तो भी वह कहीं ना कहीं हमारे अंतर्मन के किसी...

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बग़ावती कोरस - संपादक सुघांशु गुप्त By राजीव तनेजा

आमतौर पर चली आ रही व्यवस्था के खिलाफ जाना, विद्रोह करना बगावत कहलाता है। बगावत पुरानी हो, जंग खा चुकी बेड़ियों को नकारने का आह्ववान है, दकियानूसी विचारधाराओं को तिलांजलि देने का माध...

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भवानी प्रसाद मिश्र की काव्य संवेदना By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

भवानी प्रसाद मिश्र की काव्य संवेदना ये कोहरे मेरे हैं भवानी प्रसाद मिश्र ’’गीत फरोश’’ जैसी कालजयी कविता के रचयिता भवानीप्रसाद मिश्र की काव्य संवेदना जीवन के सरोकारों की दृष्...

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मुक्तिबोध और उनकी साहित्यिक सैद्धान्तिकी By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

मुक्तिबोध और उनकी साहित्यिक सैद्धान्तिकी ‘साहित्यिक की डायरी’ मुक्तिबोध मुक्तिबोध का रचना-व्यक्तित्त्व उनके जीवन की ही तरह विरल विशिष्टताओं से निर्मित ह...

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नरेश सक्सेना: समकालीन कवि By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरेश सक्सेना: पदार्थ ओर संवेदना के विरल संयोग के कवि विगत कुछ दशकों की हिन्दी कविता ने जीवन के महाद्वीपीय विस्तार की जैसी विविध यात्रा की है उससे उसकी रचनात्मक उत्सुकत...

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समीक्षा - वह जो नहीं कहा By Sneh Goswami

सीख नसीहत और प्रेरणा से भरपूर है – वह जो नहीं कहा लघुकथा संग्रह श्रीमती स्नेह गोस्वामी का लघुकथा संग्रह वह जो नहीं कहा अभी अभी 2018 में प्रकाशित हुआ है। सबसे बङी बात यह है कि य...

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समकालीन कहानी का यथार्थ By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

समकालीन कहानी का यथार्थ साहित्य के संदर्भ में अनेक अन्तों और संकट की चिन्ताजनक घोषणाओं के बाद भी आज रचना-परिमाण की विपुलता ही नहीं विशदता भी बढ़ी है। इतने अधिक के...

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चन्द्रकान्त देवताले का काव्यसंग्रह -लकड़बग्घा हँस रहा है By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

लकड़बग्घा हँस रहा है - समयगत सच्चाईयों का दस्तावेज- चन्द्रकान्त देवताले का तीसरा काव्यसंग्रह हड्डियों में छिपा ज्वर और दीवारों पर खून से के बाद च...

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पुस्तक समीक्षा - 12 By Yashvant Kothari

प्राइड एंड प्रिजुडिसयह उपन्यास १८१३ में लिखा गया जो सबसे पहले इंगलेंड में छपा jane Austen उस जमाने कीमशहूर लेखिका थीं उनके लिखे उपन्यास। आज भी क्लासिक माने जा ते हैंयह उपन्यास ऑस्ट...

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ग़लत पते की चिट्ठियाँ- योगिता यादव By राजीव तनेजा

आज के इस अंतर्जालीय युग में जब कोई चिट्ठी पत्री की बात करे तो सहज ही मन में उत्सुकता सी जाग उठती है कि आज के इस व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर के ज़माने लिखी गयी इन चिट्ठियों में आखिर...

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राज बोहरे की कहानी का गुलदस्ता: डॉ. पद्मा शर्मा By राज बोहरे

कहानी का गुलदस्ता: मेरी प्रिय कथाएं डॉ. पद्मा शर्मा मेरी प्रिय कथाएं लेखक राजनारायण बोहरे - पिछले दिनों प्रकाशित...

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मैत्रेयी पुष्पा का ‘‘चाक’’ उपन्यास By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

मूल्यांकनµ कृष्ण बिहारी पाण्डेय अधुनातन साहित्य के सूक्ष्मदर्शी आलोचक द्वारा मैत्रेयी पुष्पा के बहुचर्चित उपन्याय ‘‘चाक’’ का आकलन चाकः प्रजापतित्व का अभिनव पाठ यह रचनात्मकता...

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दुलदुल घोड़ी राजनारायण बोहरे By ramgopal bhavuk

दुलदुल घोड़ी एक पाठकीय प्रक्रिया राजनारायण बोहरे पुस्तक समीक्षा पुस्तक का नाम दुलदुल घोड़ी लेखक रामगोपाल भावुक प्रकाशक ममता प्रकाशन दिल्ली मूल्य ₹125 समीक्षक राजनारायण वोहरे...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ’’मधु’’ बीसवीं शताब्दी के बुन्देलखण्ड के कवि By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरोत्तमदास पाण्डेय ’’मधु’’ बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में बुन्देलखण्ड के ऐसे कृती कवि हुए हैं जिन्होंने प्रभूत परिमाण में उत्कृष्ट काव्य-रचना की है किन्तु उनकी ओर हिन्दी जगत का...

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फुगाटी का जूता- मनीष वैद्य By राजीव तनेजा

जब कभी ज़माने की विद्रूपताएं एवं विसंगतियां हमारे मन मस्तिष्क को उद्वेलित कर उसमें अपना घर बनाने लगती हैं तो हताशा और अवसाद में जीते हुए हम में से बहुत से लोग अपने मन की भड़ास को कभी...

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उपन्यास-गूंगा गांव -राज वोहरे By ramgopal bhavuk

भारत के हरगांव की कथा है गूंगा गांव । पुस्तक समीक्षा पुस्तक का नाम उपन्यास गूंगा गांव लेखक रामगोपाल भावुक प्रकाशक मम...

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समीक्षा By Madhu Sosi

उपन्यास लिखना किसी भी प्रकार सरल हैं ,न सहज , मात्र कुछ पृष्ठों में किसी कहानी को बुनना , शब्दों में पिरोना , उसको आदि से अंत तक पाठक को बांधे रखना , लेखक की लेखन मंजा पर निर्भर...

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अमेरिका में 45 दिन - सोनरूपा विशाल By राजीव तनेजा

किसी भी देश, उसकी सभ्यता, उसके रहन सहन..वहाँ के जनजीवन के बारे में जब आप जानना चाहते हैं तो आपके सामने दो ऑप्शन होते हैं। पहला ऑप्शन यह कि आप खुद वहाँ जा कर रहें और अपनी आँखों से.....

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प्रेमचंद शैली में राज बोहरे - रूपेंद्र राज By राज बोहरे

गद्य साहित्य में कहानियों का इतिहास लगभग सौ वर्ष पुराना है.हिंदी साहित्य में जो स्थान मुंशी प्रेमचंद को मिला वहां तक का सफर अभी तक किसी कहानीकार द्वारा तय न...

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अक्कड़ बक्कड़- सुभाष चन्दर By राजीव तनेजा

आम तौर पर हमारे तथाकथित सभ्य समाज दो तरह की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। एक कामकाजी लोगों की और दूसरी निठल्लों की। हमारे यहाँ कामकाजी होने से ये तात्पर्य नहीं है कि...बंदा कोई ना कोई क...

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रत्नावली-रामगोपाल भावुक By ramgopal bhavuk

रत्नावली-रामगोपाल भावुक आदरणीय सडैया जी, सादर प्रणाम। आपके आदेशानुसार मैंने रत्नावली उपन्यास का अध्ययन किया । इसे मैने पूरी गंभीरता से पढा यद्वपि इस मेंरेप ास पढने क लिए चर्चीत पु...

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डॉर्क हॉर्स By Amit Singh

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अंधेरे कोने@फेसबुक डॉट कॉम By राजीव तनेजा

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पुस्तक समीक्षा- दमयन्ती: रामगोपाल भावुक By ramgopal bhavuk

पुस्तक समीक्षा- दमयन्ती: रामगोपाल भावुक पंचमहल इलाके की ग्रामीण नायिका दमयन्ती नामक उपन्यास आज हम सबके सामने है, जिससे एक बार तो हम सबको यह भ्रम पैदा होता ह...

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थोड़ा हँस ले यार- सुभाष चन्दर By राजीव तनेजा

आमतौर पर किसी व्यंग्य को पढ़ते वक्त हमारे ज़हन में उस व्यंग्य से जुड़े पात्रों को लेकर मन में कभी त्रासद परिस्थितियों की वजह से करुणा तो कभी क्षोभ वश कटुता उपजती है। ज़्यादा हुआ तो एक...

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खिड़कियों से झाँकती आँखें- सुधा ओम ढींगरा By राजीव तनेजा

आमतौर पर जब हम किसी फ़िल्म को देखते हैं तो पाते हैं कि उसमें कुछ सीन तो हर तरह से बढ़िया लिखे एवं शूट किए गए हैं लेकिन कुछ माल औसत या फिर उससे भी नीचे के दर्ज़े का निकल आया है। ऐसे ब...

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अंजू शर्मा का महत्वाकांक्षी कहानी संग्रह-पुस्तक समीक्षा By राज बोहरे

अंजू शर्मा का दूसरा कहानी संग्रह सुबह ऐसे आती है पुस्तक मेला 2020 में दिल्ली में विमोचन हुआ। भावना प्रकाशन से प्रकाशित इस कहानी संग्र...

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बहुत दूर गुलमोहर- शोभा रस्तोगी By राजीव तनेजा

जब कभी भी हम अपने समकालीन कथाकारों के बारे में सोचते हैं तो हमारे ज़हन में बिना किसी दुविधा के एक नाम शोभा रस्तोगी जी का भी आता है जो आज की तारीख में किसी परिचय का मोहताज नहीं है। ल...

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स्वप्नपाश- मनीषा कुलश्रेष्ठ By राजीव तनेजा

कई बार हमें पढ़ने के लिए कुछ ऐसा मिल जाता है कि तमाम तरह की आड़ी तिरछी चिंताओं से मुक्त हो, हमारा मन प्रफुल्लित हो कर हल्का सा महसूस करने लगता है मगर कई बार हमारे सामने पढ़ने के लिए क...

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ब्रज श्रीवास्तव -पुस्तक समीक्षा By राज बोहरे

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स्वाभिमान By राजीव तनेजा

कई बार हम लेखकों के आगे कुछ ऐसा घटता है या फिर कोई खबर अथवा कोई विचार हमारे मन मस्तिष्क को इस प्रकार उद्वेलित कर देता है कि हम उस पर लिखे बिना नहीं रह पाते। कई बार इसमें निरंतर वि...

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निशां चुनते चुनते - विवेक मिश्र By राजीव तनेजा

कई बार कुछ कहानियाँ आपको इस कदर भीतर तक हिला जाती हैं कि आप अपने लाख चाहने के बाद भी उनकी याद को अपने स्मृतिपटल से ओझल नहीं कर पाते हैं। ऐसी कहानियाँ सालों बाद भी आपके ज़हन में आ,...

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खट्टर काका - हरिमोहन झा By राजीव तनेजा

कहते हैं कि समय से पहले और किस्मत से ज़्यादा कभी कुछ नहीं मिलता। हम कितना भी प्रयास...कितना भी उद्यम कर लें लेकिन होनी...हो कर ही रहती है। ऐसा ही इस बार मेरे साथ हुआ जब मुझे प्रसिद्...

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लक्ष्मी प्रसाद की अमर दास्तान - ट्विंकल खन्ना By राजीव तनेजा

कई बार कुछ किताबें हम खरीद तो लेते हैं मगर हर बार पढ़ने की बारी आने पर उनका वरीयता क्रम बाद में खरीदी गयी पुस्तकों के मामले पिछड़ता जाता है। ऐसा हम जानबूझ कर नहीं करते बल्कि अनायास ह...

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मुकम्मल अधूरेपन की एक अतृप्त सच्ची झूठी गाथा। By Keshav Patel

कहने को तो समय के साथ कई कहानियां कही जाती हैं, लेकिन कई कहानियों का अधूरापन समय की तमाम कोशिशों के बाद भी खाली ही रह जाता है। प्रमित किसी कहानी का एक बिम्ब मात्र नहीं है। वह जीवन...

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शान्तिपुरा - अंजू शर्मा By राजीव तनेजा

अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हम सब अपनी रुचिनुसार कोई ना कोई माध्यम चुनते हैं जैसे कोई चित्रकारी के माध्यम से अपनी बात कहता है तो अपनी वाकपटुता के ज़रिए अपने मन की भावनाओं व्य...

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कुछ तो बाकी है - रजनी मोरवाल By राजीव तनेजा

कई बार जब कभी हम लिखने बैठते हैं तो अमूमन ये सोच के लिखने बैठते हैं कि हमें आरंभ कहाँ से करना है और किस मोड़ पर ले जा कर हमें अपनी कहानी या उपन्यास का अंत करना है मगर कई बार ऐसा होत...

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कश्मीरियत के सौ सालों की दास्तां “रिफ्यूजी कैंप” By Keshav Patel

आशीष कौल व्हाइट शर्ट में ब्लैक टाई लगाए कोई मार्केटिंग या पीआर एजेंसी का हिस्सा नहीं हैं, जो दावा करें कि हमने नई किस्म की खुशबूदार बोतल या फिर कोई मौजे या टूथपेस्ट, बाजार में उतार...

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अकाल में उत्सव - पंकज सुबीर By राजीव तनेजा

कई बार कुछ ऐसा मिल जाता है पढ़ने को जो आपके अंतर्मन तक को अपने पाश में जकड़ लेता है। आप चाह कर भी उसके सम्मोहन से मुक्त नहीं हो पाते। रह रह कर आपका मन, आपको उसी तरफ धकेलता है और आप फ...

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डार्क मैन स बैड - गीता पंडित By राजीव तनेजा

कवि मन जब कभी भी कुछ रचता है बेशक वो गद्य या फिर पद्य में हो, उस पर किसी ना किसी रूप में कविता का प्रभाव होना लगभग अवश्यंभावी है। ऐसा वो जानबूझ कर नहीं करता बल्कि स्वत: ही कुदरती त...

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वक़्त के होंठों पर प्रेमगीत By Neelima Sharrma Nivia

कवि दीपक अरोरा जी का कविता संग्रह " वक़्त के होंठो पर एक प्रेम गीत " मेरे हाथो मैं हैं इसको पढना अपने आप में सुखद अनुभूति हैं प्रेम के भिन्न रूपों पर कविता लिखना और कविता को भीतर...

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लिट्टी चोखा - गीताश्री By राजीव तनेजा

कुछ का लिखा कभी आपको चकित तो कभी आपको विस्मृत करता है। कभी किसी की लेखनशैली तो कभी किसी की धाराप्रवाह भाषा आपको अपनी तरफ खींचती है। किसी की किस्सागोई पर पकड़ से आप प्रभावित होते हैं...

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जो रंग दे वो रंगरेज़ - रोचिका अरुण शर्मा By राजीव तनेजा

ये बात 1978-80 के आसपास की है। तब हमारे घर में सरिता, मुक्ता जैसी पत्रिकाऐं आया करती थी। बाद में इनमें गृहशोभा और गृहलक्ष्मी जैसी पत्रिकाओं का नाम भी इसी फेहरिस्त में जुड़ गया। तब उ...

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नया भारत By Jyoti Prakash Rai

आज की दुनिया एक नये युग का संचार कर रही है, आज का मानव प्रतिदिन एक नई खोज के साथ आगे बढ़ रहा है। और आगे के आने वाले दिनों में, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि हर मनुष्य अपने आप में व्यस्त...

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जल By Jyoti Prakash Rai

जल की जीवन है इस बात में कोई शक नहीं है। क्योंकी धरती पर सभी जीवित प्राणियों को बिना जल के जीवित रह पाना यहां संभव नहीं है। सभी प्राणियों के लिए जल अमृत के समान है। वैसे तो धरती के...

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प्रेम की उम्र के चार पढ़ाव - काव्यसंग्रह मनीषा कुलश्रेष्ठ By Neelima Sharrma Nivia

"प्रेम की उम्र के चार पढाव"मनीषा कुलश्रेष्ठ प्यार ढाई अक्षर का शब्द हैं लेकिन इसकी अनुभूति सबको भिन्न भिन्न होती हैं | सुबह की ओस का चुम्बन करती किशोर उम्र जब इस छुवन को महसूस...

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अहल्या - नरेन्द्र कोहली By राजीव तनेजा

अगर आप मिथकीय गाथाओं और उनके चरित्रों में गहन रुचि रखते हैं तो इस तरह की कहानियों से आपका लगाव स्वाभविक है। ये सही है कि इस तरह की कथाएँ हमें रोमांचित करती हैं मगर कई बार उनमें घट...

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ग़ौरतलब कहानियां - सुभाष नीरव By राजीव तनेजा

किसी कहानी या उपन्यास को पढ़ते वक्त मेरा मकसद कभी भी महज़ टाइम पास वाला नहीं रहा। जब भी हम किसी का अच्छा, बुरा या फिर औसत लिखा हुआ पढ़ते है तो भी वह कहीं ना कहीं हमारे अंतर्मन के किसी...

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बग़ावती कोरस - संपादक सुघांशु गुप्त By राजीव तनेजा

आमतौर पर चली आ रही व्यवस्था के खिलाफ जाना, विद्रोह करना बगावत कहलाता है। बगावत पुरानी हो, जंग खा चुकी बेड़ियों को नकारने का आह्ववान है, दकियानूसी विचारधाराओं को तिलांजलि देने का माध...

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