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अपने-अपने रामः भगवानसिंह By राज बोहरे

उपन्यास अपने-अपने रामः भगवानसिंह कुछ और परिश्रम की जरूरत थी कुछ मिथक और चरित्र किसी जाति, कौम और धर्म की मिल्कियत बन जाते हैं, जबकि कुछ मिथक, चरित्र और धर्म सार्वजनिक होने क...

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माउथ ऑर्गन - सुशोभित By राजीव तनेजा

कई बार कुछ किताबों में समाए ज्ञान(?) को पढ़ कर तो कई बार कुछ लेखकों का लिखा पढ़ कर आप उनका इम्तिहान लेते हैं या लेने की सोचते हैं कि बंदे ने आखिर इसमें क्या और कैसा लिखा है? मगर कई ब...

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मेरी प्रिय कथाएं-राजबोहरे का कहानी संग्रह By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

राजनारायण बोहरे का कहानी संग्रह मेरी प्रिय कथाएं ज्योति प्रकाशन पर्व से प्रकाशित हुआ है, इसमें बौहरे जी की 10 कहानियां शामिल हैं ! दसवीं कहानी मुहिम एक लंबी कहानी है , जो बौहरे जी...

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पुस्तक समीक्षा 13 - भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता By Yashvant Kothari

Hkkjr esa LokLF; & i=dkfjrk ‘पहला सुख निरोगी काया’ और काया को निरोग रखने के लिए स्वास्थ्य के नियमों की जानकारी देने की जिम्मेदारी है स्वास्थ्य-पत्रकारिता की । पिछले लगभग 100 व...

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सुनील चतुर्वेदी - उपन्यास- ‘गाफिल’ By राज बोहरे

सुनील चतुर्वेदी का उपन्यास ‘गाफिल’ राजनारायण बोहरे उपन्यास-गाफिल लेखक-सुनील चतुर्वेदी प्रकाशक-अन्तिका प्रकाशन दिल्ली सुनील चतुर्वेदी जब भी नया उपन्यास लेकर आते हैं उनके पास सर्वथा...

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अगन पाखी (उपन्यास) मैत्रेयी पुष्पा By राजनारायण बोहरे

पुस्तक समीक्षा- ग्रामीण स्त्री की महागाथा - अगनपाखी समीक्षक - राजनारायण बोहरे अगनपाखी उपन्यास कथा लेखिका का मैत्रैयी पुष्पा का नया उपन्यास है और इस उपन्यास को लेखिका के रचना...

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विरहिणी राधा-. राजा मीरेन्द सिंह By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

विरहिणी राधा-. राजा मीरेन्द सिंह ;मगरौरा. ग्वालियर चिंतन झरोखे से एक दृश्य वेदराम प्रजापति मनमस्त पृष्ठांकन सहित अस्सी पृ...

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बाजार में रामधन - कैलाश बनवासी By राज बोहरे

कैलाश वनवासी का कथा संग्रह भौंचक खडे रामधन और बाजार में बदलता समाज प...

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केशर कसूरी:शिवमूर्ति By राज बोहरे

कहानी संग्रह केशर कसूरी:शिवमूर्ति स्त्री विमर्श और आमजन की सशक्त कहानियां अपनी कम कहानियों के बूते पर ही आठवें दशक के कहानीकारों की पहली पंक्...

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आलोचना की अदालत-राजनारायण बोहरे By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

कृति आलोचना की अदालत कथाकार श्री राजनारायण बोहरे जी सम्ंपादक के.बी.एल पाण्डेय जी उदीप्त प्रकाशन लखमीपुरा खीरी उ.प्र. समीक्षक वेदराम...

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अटकन चटकन- वंदना अवस्थी दुबे By राजीव तनेजा

क़ुदरती तौर पर कुछ चीज़ें..कुछ बातें...कुछ रिश्ते केवल और केवल ऊपरवाले की मर्ज़ी से ही संतुलित एवं नियंत्रित होते हैं। उनमें चाह कर भी अपनी मर्ज़ी से हम कुछ भी फेरबदल नहीं कर सकते जैसे...

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स्वतंत्र सक्सेना-सरल नहीं था यह काम By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

समीक्षा के आईने में ’’सरल नहीं था यह काम और अन्य कविताएं’’ समीक्षक - वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’तटस्थ नीति के अध्येता ,चिंतन के सहपाठी और ईमानदारी की जमीन को तराशने में हमेशा निरत ,स्...

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उपन्यास महाकवि भवभूति- रामगोपाल भावुक By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

उपन्यास महाकवि भवभूति - समीक्षात्मक अध्ययन वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ पद्मावती, पवाया पंचमहल डबरा भवभूति नगर का ए...

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भावुक’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समीक्षात्मक अध्ययन By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

शोधग्रंथ रामगोपाल तिवारी‘ भावुक’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समीक्षात्मक अध्ययन समीक्षक वेदराम प्रजापति ’बरिष्ठ कवि जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर...

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यूपी 65- निखिल सचान By राजीव तनेजा

कई बार पढ़ते वक्त कुछ किताबें आपके हाथ ऐसी लग जाती हैं कि पहले दो चार पन्नों को पढ़ते ही आपके मुँह से बस..."वाह" निकलता है और आपको लेखक की लेखनी से इश्क हो जाता है। यकीनन कुछ ना कुछ...

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रत्नावली रामगोपाल भावुक समीक्षा By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

रत्नावली रामगोपाल भावुक समीक्षा के आइने में- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ कभी- कभी, विनोद के लहजे में कही गई अटल सत्...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ’’मधु’’ -भाषा और शिल्प By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

भाषा और शिल्प भाषा अभिव्यक्ति का सहज और प्रमुख माध्यम है। साहित्य के क्षेत्र में अनुभूति के रूप-विधान की सभी पद्धतियाँ भाषा पर ही आश्रित होती हैं। व...

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रावण-आर्यवर्त का शत्रु- अमीश त्रिपाठी By राजीव तनेजा

किसी को उनकी लेखनी दिलचस्प, बाँध लेने वाली तथा जानकारी से भरपूर नज़र आती है। तो कोई उन्हें भारत के महान कथाकारों में शुमार करता है। कोई उन्हें भारत का पहला साहित्यिक पॉपस्टार कहता ह...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ‘मधु’ की वैचारिकता By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरोत्तमदास पाण्डेय ‘मधु’ की वैचारिकता काव्य में भाव-तत्त्व के साथ ही विचार-तत्त्व का भी काव्य में बहुत महत्त्व है। जीवन में अनेक स्थितियों का प्रभाव केवल हार्दिक उद्...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ‘मधु’ का स्फुट काव्य By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरोत्तमदास पाण्डेय ‘मधु’ का स्फुट काव्य उपर्युक्त प्रबन्ध रचनाओं और मुक्तक कृतियों के अतिरिक्त ‘मधु’का प्रभूत काव्य स्फुट रूप में है। स्फुट काव्य में कहीं-कहीं क...

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पिघली हुई लड़की- आकांक्षा पारे By राजीव तनेजा

आम कहानियों की अपेक्षा अगर किसी कहानी में प्रभावी ढंग से समाज में पनप रही विद्रूपताओं का जिक्र हो तो मेरे ख्याल से उस कहानी की उम्र आम कहानियों की अपेक्षा ज़्यादा लंबी हो जाती है। अ...

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नरोत्तम दास पाणेय ‘‘मधु’’ की मुक्त कृतियां By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरोत्तम दास पाणेय ‘‘मधु’’ की मुक्त कृतियां काव्य के निर्बन्ध स्वरूप को मुक्तक कहा जाता है। ‘अग्निपुराण’ में ऐसे श्लोक को मुक्तक कहा गया है जो स्वयं में ही चमत्कारक्षम हो-...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ‘‘मधु’’ की प्रबंध कृतियां By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरोत्तमदास पाण्डेय ‘‘मधु’’ की प्रबंध कृतियां ‘‘मधु’’ की प्रबंध कृतियाँ काव्य रूपों की दृष्टि से दो प्रकार की हैं। कुछ कृतियाँ खण्डकाव्य की कोटि की हैं...

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प्रकाशकान्त: मकतल By राज बोहरे

समीक्षा- मकतल: प्रकाशकान्त साजिशन सजा की दर्दगाथा अपनी सोच साफगोई और सकारात्मक दृष्टि के लिए मशहूर कथाकार प्रकाश कान्त का उ...

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The चिरकुट्स- आलोक कुमार By राजीव तनेजा

अगर अपवादों की बात ना करें तो आमतौर पर कॉलेज की दोस्ती ...कॉलेज के बाद भी किसी ना किसी माध्यम से हम सबके बीच, तब भी ज़िंदा एवं सक्रिय रहती है जब हम सब उज्ज्वल भविष्य की चाह में अलग...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ‘‘मधु’ और छायावाद By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

ऽ सम सामयिक परिवेश ऽ उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों और बीसवीं शताब्दी के प्रथमार्द्ध की परिस्थितियाँ भारतीय जिजीविषा का इतिहास हैं। राजनीतिक आकाश में राष्ट्रीयता की भावना के ऐसे...

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किस्सा लोकतंत्र: विभूतिनारायण राय By राज बोहरे

उपन्यास किस्सा लोकतंत्र: विभूतिनारायण राय लोकतंत्र का कच्चा चिट्ठा बताती एक उम्दा कहानी हिन्दी उपन्यास का वर्तमान काल उपन्या...

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पिताजी चुप रहते हैं: ज्ञानप्रकाश विवेक By राज बोहरे

कहानी संग्रह पिताजी चुप रहते हैं: ज्ञानप्रकाश विवेक कविता का मजा देती कहानियाँ कुछ आलोचक जो कविता और कहानी में गलत फहमिया पैदा करके दोनों की भाषा ,...

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गूंगे नहीं हैं शब्द हमारे-संपादन- सुभाष नीरव, डॉ. नीरज सुघांशु By राजीव तनेजा

पुरुषसत्तात्मक समाज होने के कारण आमतौर पर हमारे देश मे स्त्रियों की बात को..उनके विचारों..उनके जज़्बातों को..कभी अहमियत नहीं दी गयी। एक तरफ पुरुष को जहाँ स्वछंद प्रवृति का आज़ाद परिं...

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लोकाख्यान में जीवन की खोज: कही ईसुरी फाग By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

लोकाख्यान में जीवन की खोज: कही ईसुरी फाग इतिहास अथवा लोक प्रचलित आख्यान से किसी साहित्यिक कृति को यदि कथानक उपलब्ध हो जाने की सुविधा मिल जाती है तो वहाँ इ...

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अर्थतंत्र तथा अन्य कहानियां - रमेश उपाध्याय By राजनारायण बोहरे

अर्थतंत्र तथा अन्य कहानियां श्री रमेश उपाध्याय का कहानी संग्रह राजनारायण बोहरे श्री रमेश उपाध्याय का कहानी संग्रह “अर्थतंत्र तथा अन्य कहानियां “ उनका ग्यारहवां कहानी संग्रह हैं । व...

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सूर: वात्सल्य के विविध आयाम By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

सूर: वात्सल्य के विविध आयाम भक्ति की दार्शनिकता से पुष्ट और अलौकिक अनुग्रह की प्रार्थना के रूप में निर्वदित होते हुए भी सूर की कविता का परिवेश अधिक प्रत्यक्ष, लौकिक...

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सन्त कवियों की कविता में लोक एवं लोकोत्तर दर्शन By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

सन्त कवियों की कविता में लोक एवं लोकोत्तर दर्शन सन्त काव्य अथवा व्यापक भक्ति काव्य के सम्बन्ध में यह स्थापना आध्यात्मिक दर्शन के रूप में काफी समय तक सरलीकरण की तरह प्रचलित...

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छबीला रंगबाज़ का शहर By Amit Singh

"छबीला_रंगबाज़_का_शहर" : "जो है, वो नहीं है...और जो नहीं है, वही है।"*********************************छोटे शहर का एक बड़ा रंगबाज़ और हौव्वा है - छबीला सिंह। लेकिन असल में...

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क्रांति चेतना के कवि कबीर By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

क्रांति चेतना के कवि कबीर कबीर के अप्रतिम व्यक्तित्व और मूल्यप्रेरित काव्य का समग्र और सही विश्लेषण करने वाले विद्वान् हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि हिन्दी साहित्य क...

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शहरीकरण के धब्बे By Neelam Kulshreshtha

शहरीकरण के धब्बे मैं कहानी का बहुत अच्छा पाठक नहीं हूं।कारण ये है कि हिन्दी कहाँनियों में संवेदना का समावेश बहुत ज्यादा रहता है विषय भी अक्सर वही वही रहते हैं।आज के बदले हुए युग मे...

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लिखी हुई इबारतें By Vinay Panwar

मेरी नज़र से ज्योत्स्ना कपिल साहित्य के क्षेत्र में एक सुपरिचित नाम है। इनके कहानी संग्रह, लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं साथ ही अनेकों संग्...

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जीवन में महाद्वीपीय विस्तार की कविता By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

जीवन में महाद्वीपीय विस्तार की कविता समकालीन, वर्तमान अथवा आज जैसे काल विभाजक शब्दों से समय की एक अवधि का बोध तो होता है पर ये शब्द समयके निश्चित...

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राजनारायण बोहरे के साहित्य में सामाजिक समरसता By padma sharma

शोध आलेख राजनारायण बोहरे के साहित्य में सामाजिक समरसता डॉ पद्मा शर्मा एको द...

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राजनारायण बोहरे और कहानी की दुनिया By padma sharma

राजनारायण बोहरे और कहानी की दुनिया -डॉ. पद्मा शर्मा हिन्दी कहानी के आठवें दशक में अनेक महत्वपूर्ण कहानी कार उभर के आये। यह ऐसा समय था जब कई पीड़ियाँ एक साथ साहित्य रच...

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धर्मपुर लॉज- प्रज्ञा रोहिणी By राजीव तनेजा

किसी बीत चुकी घटना पर जब तथ्यात्मक ढंग से कुछ लिखा जाता है तो उसके प्रभावी लेखन के लिए यह बेहद ज़रूरी हो जाता है कि पहले उस पर सही एवं संतुलित तरीके से प्रॉपर शोध किया जाए। दोस्तों....

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पदमा की कहानियां: महिला लेखन के नजरिए से By padma sharma

पदमा की कहानियां: महिला लेखन के नजरिए से राजनारायण बोहरे हिन्दी कहानी का यह सबसे अच्छा समय कहा जा सकता है जबकि किसी एक आन्दोलन के बगैर लगभग पांच सौ कहानीकार एक साथ अपने निहायत निजी...

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’’कठघरे’’ इतिहास का प्रतिफलन और जिजीविषा का संकट By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

’’कठघरे’’ इतिहास का प्रतिफलन और जिजीविषा का संकट ’’अगर आप इतिहास और भूख की सापेक्षता में आदमी की नैतिकता का विवेचन करें तो चौंकाने वाले नतीजों पर पहुँचेगे।- ’’कठघरे’’...

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बन्द दरवाज़ों का शहर - रश्मि रविजा By राजीव तनेजा

अंतर्जाल पर जब हिंदी में लिखना और पढ़ना संभव हुआ तो सबसे पहले लिखने की सुविधा हमें ब्लॉग के ज़रिए मिली। ब्लॉग के प्लेटफार्म पर ही मेरी और मुझ जैसे कइयों की लेखन यात्रा शुरू हुई। ब्लॉ...

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घर की देहरी लाँघती स्त्री कलम- समीक्षा By Archana Anupriya

"घर की देहरी लांघती स्त्री कलम" ( एक समीक्षा) - अर्चना अनुप्रिया नारीवादी साहित...

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पुस्तक समीक्षा-राजेन्द्र लहरिया By राज बोहरे

पुस्तक समीक्षा- आलाप-विलाप: समझदारी और गहराई भरा कथ्य राजनारायण बोहरे आलाप-विलाप उपन्यास राजेन्द्र लहरिया का आकार में एक लघु उपन्यास है ल...

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आस्था का ताप और अपने समय से संवाद By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

आस्था का ताप और अपने समय से संवाद ब्लैक आउट-वल्लभ सिद्धार्थ की कहानियाँ ‘‘महापुरूषों की वापसी’’, ’’नित्य प्रलय’’ ‘‘व्यवस्था’’ ’’ब्लैक आउट’’ जैसी चर्चित कहानियाँ और ‘कठ...

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अभ्युदय - 1 - नरेंद्र कोहली By राजीव तनेजा

मिथकीय चरित्रों की जब भी कभी बात आती है तो सनातन धर्म में आस्था रखने वालों के बीच भगवान श्री राम, पहली पंक्ति में प्रमुखता से खड़े दिखाई देते हैं। बदलते समय के साथ अनेक लेखकों ने इस...

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पुस्तक समीक्षा- आसाम की जनता का सच- लाल नदी By राज बोहरे

पुस्तक समीक्षा- आसाम की जनता का सच: लाल नदी समीक्षक- राजनारायण बोहरे हमारे देश का पूर्वी भाग सदा से अल्पज्ञात और उपेक्षित सा रहा है। उपेक्षित इस मायने में कि बाकी देश वासियों ने इस...

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अपने-अपने रामः भगवानसिंह By राज बोहरे

उपन्यास अपने-अपने रामः भगवानसिंह कुछ और परिश्रम की जरूरत थी कुछ मिथक और चरित्र किसी जाति, कौम और धर्म की मिल्कियत बन जाते हैं, जबकि कुछ मिथक, चरित्र और धर्म सार्वजनिक होने क...

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माउथ ऑर्गन - सुशोभित By राजीव तनेजा

कई बार कुछ किताबों में समाए ज्ञान(?) को पढ़ कर तो कई बार कुछ लेखकों का लिखा पढ़ कर आप उनका इम्तिहान लेते हैं या लेने की सोचते हैं कि बंदे ने आखिर इसमें क्या और कैसा लिखा है? मगर कई ब...

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मेरी प्रिय कथाएं-राजबोहरे का कहानी संग्रह By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

राजनारायण बोहरे का कहानी संग्रह मेरी प्रिय कथाएं ज्योति प्रकाशन पर्व से प्रकाशित हुआ है, इसमें बौहरे जी की 10 कहानियां शामिल हैं ! दसवीं कहानी मुहिम एक लंबी कहानी है , जो बौहरे जी...

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पुस्तक समीक्षा 13 - भारत में स्वास्थ्य पत्रकारिता By Yashvant Kothari

Hkkjr esa LokLF; & i=dkfjrk ‘पहला सुख निरोगी काया’ और काया को निरोग रखने के लिए स्वास्थ्य के नियमों की जानकारी देने की जिम्मेदारी है स्वास्थ्य-पत्रकारिता की । पिछले लगभग 100 व...

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सुनील चतुर्वेदी - उपन्यास- ‘गाफिल’ By राज बोहरे

सुनील चतुर्वेदी का उपन्यास ‘गाफिल’ राजनारायण बोहरे उपन्यास-गाफिल लेखक-सुनील चतुर्वेदी प्रकाशक-अन्तिका प्रकाशन दिल्ली सुनील चतुर्वेदी जब भी नया उपन्यास लेकर आते हैं उनके पास सर्वथा...

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अगन पाखी (उपन्यास) मैत्रेयी पुष्पा By राजनारायण बोहरे

पुस्तक समीक्षा- ग्रामीण स्त्री की महागाथा - अगनपाखी समीक्षक - राजनारायण बोहरे अगनपाखी उपन्यास कथा लेखिका का मैत्रैयी पुष्पा का नया उपन्यास है और इस उपन्यास को लेखिका के रचना...

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विरहिणी राधा-. राजा मीरेन्द सिंह By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

विरहिणी राधा-. राजा मीरेन्द सिंह ;मगरौरा. ग्वालियर चिंतन झरोखे से एक दृश्य वेदराम प्रजापति मनमस्त पृष्ठांकन सहित अस्सी पृ...

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बाजार में रामधन - कैलाश बनवासी By राज बोहरे

कैलाश वनवासी का कथा संग्रह भौंचक खडे रामधन और बाजार में बदलता समाज प...

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केशर कसूरी:शिवमूर्ति By राज बोहरे

कहानी संग्रह केशर कसूरी:शिवमूर्ति स्त्री विमर्श और आमजन की सशक्त कहानियां अपनी कम कहानियों के बूते पर ही आठवें दशक के कहानीकारों की पहली पंक्...

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आलोचना की अदालत-राजनारायण बोहरे By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

कृति आलोचना की अदालत कथाकार श्री राजनारायण बोहरे जी सम्ंपादक के.बी.एल पाण्डेय जी उदीप्त प्रकाशन लखमीपुरा खीरी उ.प्र. समीक्षक वेदराम...

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अटकन चटकन- वंदना अवस्थी दुबे By राजीव तनेजा

क़ुदरती तौर पर कुछ चीज़ें..कुछ बातें...कुछ रिश्ते केवल और केवल ऊपरवाले की मर्ज़ी से ही संतुलित एवं नियंत्रित होते हैं। उनमें चाह कर भी अपनी मर्ज़ी से हम कुछ भी फेरबदल नहीं कर सकते जैसे...

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स्वतंत्र सक्सेना-सरल नहीं था यह काम By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

समीक्षा के आईने में ’’सरल नहीं था यह काम और अन्य कविताएं’’ समीक्षक - वेदराम प्रजापति‘ मनमस्त’तटस्थ नीति के अध्येता ,चिंतन के सहपाठी और ईमानदारी की जमीन को तराशने में हमेशा निरत ,स्...

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उपन्यास महाकवि भवभूति- रामगोपाल भावुक By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

उपन्यास महाकवि भवभूति - समीक्षात्मक अध्ययन वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ पद्मावती, पवाया पंचमहल डबरा भवभूति नगर का ए...

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भावुक’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समीक्षात्मक अध्ययन By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

शोधग्रंथ रामगोपाल तिवारी‘ भावुक’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समीक्षात्मक अध्ययन समीक्षक वेदराम प्रजापति ’बरिष्ठ कवि जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर...

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यूपी 65- निखिल सचान By राजीव तनेजा

कई बार पढ़ते वक्त कुछ किताबें आपके हाथ ऐसी लग जाती हैं कि पहले दो चार पन्नों को पढ़ते ही आपके मुँह से बस..."वाह" निकलता है और आपको लेखक की लेखनी से इश्क हो जाता है। यकीनन कुछ ना कुछ...

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रत्नावली रामगोपाल भावुक समीक्षा By बेदराम प्रजापति "मनमस्त"

रत्नावली रामगोपाल भावुक समीक्षा के आइने में- वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ कभी- कभी, विनोद के लहजे में कही गई अटल सत्...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ’’मधु’’ -भाषा और शिल्प By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

भाषा और शिल्प भाषा अभिव्यक्ति का सहज और प्रमुख माध्यम है। साहित्य के क्षेत्र में अनुभूति के रूप-विधान की सभी पद्धतियाँ भाषा पर ही आश्रित होती हैं। व...

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रावण-आर्यवर्त का शत्रु- अमीश त्रिपाठी By राजीव तनेजा

किसी को उनकी लेखनी दिलचस्प, बाँध लेने वाली तथा जानकारी से भरपूर नज़र आती है। तो कोई उन्हें भारत के महान कथाकारों में शुमार करता है। कोई उन्हें भारत का पहला साहित्यिक पॉपस्टार कहता ह...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ‘मधु’ की वैचारिकता By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरोत्तमदास पाण्डेय ‘मधु’ की वैचारिकता काव्य में भाव-तत्त्व के साथ ही विचार-तत्त्व का भी काव्य में बहुत महत्त्व है। जीवन में अनेक स्थितियों का प्रभाव केवल हार्दिक उद्...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ‘मधु’ का स्फुट काव्य By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरोत्तमदास पाण्डेय ‘मधु’ का स्फुट काव्य उपर्युक्त प्रबन्ध रचनाओं और मुक्तक कृतियों के अतिरिक्त ‘मधु’का प्रभूत काव्य स्फुट रूप में है। स्फुट काव्य में कहीं-कहीं क...

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पिघली हुई लड़की- आकांक्षा पारे By राजीव तनेजा

आम कहानियों की अपेक्षा अगर किसी कहानी में प्रभावी ढंग से समाज में पनप रही विद्रूपताओं का जिक्र हो तो मेरे ख्याल से उस कहानी की उम्र आम कहानियों की अपेक्षा ज़्यादा लंबी हो जाती है। अ...

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नरोत्तम दास पाणेय ‘‘मधु’’ की मुक्त कृतियां By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरोत्तम दास पाणेय ‘‘मधु’’ की मुक्त कृतियां काव्य के निर्बन्ध स्वरूप को मुक्तक कहा जाता है। ‘अग्निपुराण’ में ऐसे श्लोक को मुक्तक कहा गया है जो स्वयं में ही चमत्कारक्षम हो-...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ‘‘मधु’’ की प्रबंध कृतियां By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

नरोत्तमदास पाण्डेय ‘‘मधु’’ की प्रबंध कृतियां ‘‘मधु’’ की प्रबंध कृतियाँ काव्य रूपों की दृष्टि से दो प्रकार की हैं। कुछ कृतियाँ खण्डकाव्य की कोटि की हैं...

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प्रकाशकान्त: मकतल By राज बोहरे

समीक्षा- मकतल: प्रकाशकान्त साजिशन सजा की दर्दगाथा अपनी सोच साफगोई और सकारात्मक दृष्टि के लिए मशहूर कथाकार प्रकाश कान्त का उ...

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The चिरकुट्स- आलोक कुमार By राजीव तनेजा

अगर अपवादों की बात ना करें तो आमतौर पर कॉलेज की दोस्ती ...कॉलेज के बाद भी किसी ना किसी माध्यम से हम सबके बीच, तब भी ज़िंदा एवं सक्रिय रहती है जब हम सब उज्ज्वल भविष्य की चाह में अलग...

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नरोत्तमदास पाण्डेय ‘‘मधु’ और छायावाद By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

ऽ सम सामयिक परिवेश ऽ उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशकों और बीसवीं शताब्दी के प्रथमार्द्ध की परिस्थितियाँ भारतीय जिजीविषा का इतिहास हैं। राजनीतिक आकाश में राष्ट्रीयता की भावना के ऐसे...

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किस्सा लोकतंत्र: विभूतिनारायण राय By राज बोहरे

उपन्यास किस्सा लोकतंत्र: विभूतिनारायण राय लोकतंत्र का कच्चा चिट्ठा बताती एक उम्दा कहानी हिन्दी उपन्यास का वर्तमान काल उपन्या...

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पिताजी चुप रहते हैं: ज्ञानप्रकाश विवेक By राज बोहरे

कहानी संग्रह पिताजी चुप रहते हैं: ज्ञानप्रकाश विवेक कविता का मजा देती कहानियाँ कुछ आलोचक जो कविता और कहानी में गलत फहमिया पैदा करके दोनों की भाषा ,...

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गूंगे नहीं हैं शब्द हमारे-संपादन- सुभाष नीरव, डॉ. नीरज सुघांशु By राजीव तनेजा

पुरुषसत्तात्मक समाज होने के कारण आमतौर पर हमारे देश मे स्त्रियों की बात को..उनके विचारों..उनके जज़्बातों को..कभी अहमियत नहीं दी गयी। एक तरफ पुरुष को जहाँ स्वछंद प्रवृति का आज़ाद परिं...

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लोकाख्यान में जीवन की खोज: कही ईसुरी फाग By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

लोकाख्यान में जीवन की खोज: कही ईसुरी फाग इतिहास अथवा लोक प्रचलित आख्यान से किसी साहित्यिक कृति को यदि कथानक उपलब्ध हो जाने की सुविधा मिल जाती है तो वहाँ इ...

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अर्थतंत्र तथा अन्य कहानियां - रमेश उपाध्याय By राजनारायण बोहरे

अर्थतंत्र तथा अन्य कहानियां श्री रमेश उपाध्याय का कहानी संग्रह राजनारायण बोहरे श्री रमेश उपाध्याय का कहानी संग्रह “अर्थतंत्र तथा अन्य कहानियां “ उनका ग्यारहवां कहानी संग्रह हैं । व...

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सूर: वात्सल्य के विविध आयाम By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

सूर: वात्सल्य के विविध आयाम भक्ति की दार्शनिकता से पुष्ट और अलौकिक अनुग्रह की प्रार्थना के रूप में निर्वदित होते हुए भी सूर की कविता का परिवेश अधिक प्रत्यक्ष, लौकिक...

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सन्त कवियों की कविता में लोक एवं लोकोत्तर दर्शन By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

सन्त कवियों की कविता में लोक एवं लोकोत्तर दर्शन सन्त काव्य अथवा व्यापक भक्ति काव्य के सम्बन्ध में यह स्थापना आध्यात्मिक दर्शन के रूप में काफी समय तक सरलीकरण की तरह प्रचलित...

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छबीला रंगबाज़ का शहर By Amit Singh

"छबीला_रंगबाज़_का_शहर" : "जो है, वो नहीं है...और जो नहीं है, वही है।"*********************************छोटे शहर का एक बड़ा रंगबाज़ और हौव्वा है - छबीला सिंह। लेकिन असल में...

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क्रांति चेतना के कवि कबीर By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

क्रांति चेतना के कवि कबीर कबीर के अप्रतिम व्यक्तित्व और मूल्यप्रेरित काव्य का समग्र और सही विश्लेषण करने वाले विद्वान् हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि हिन्दी साहित्य क...

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शहरीकरण के धब्बे By Neelam Kulshreshtha

शहरीकरण के धब्बे मैं कहानी का बहुत अच्छा पाठक नहीं हूं।कारण ये है कि हिन्दी कहाँनियों में संवेदना का समावेश बहुत ज्यादा रहता है विषय भी अक्सर वही वही रहते हैं।आज के बदले हुए युग मे...

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लिखी हुई इबारतें By Vinay Panwar

मेरी नज़र से ज्योत्स्ना कपिल साहित्य के क्षेत्र में एक सुपरिचित नाम है। इनके कहानी संग्रह, लघुकथा संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं साथ ही अनेकों संग्...

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जीवन में महाद्वीपीय विस्तार की कविता By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

जीवन में महाद्वीपीय विस्तार की कविता समकालीन, वर्तमान अथवा आज जैसे काल विभाजक शब्दों से समय की एक अवधि का बोध तो होता है पर ये शब्द समयके निश्चित...

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राजनारायण बोहरे के साहित्य में सामाजिक समरसता By padma sharma

शोध आलेख राजनारायण बोहरे के साहित्य में सामाजिक समरसता डॉ पद्मा शर्मा एको द...

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राजनारायण बोहरे और कहानी की दुनिया By padma sharma

राजनारायण बोहरे और कहानी की दुनिया -डॉ. पद्मा शर्मा हिन्दी कहानी के आठवें दशक में अनेक महत्वपूर्ण कहानी कार उभर के आये। यह ऐसा समय था जब कई पीड़ियाँ एक साथ साहित्य रच...

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धर्मपुर लॉज- प्रज्ञा रोहिणी By राजीव तनेजा

किसी बीत चुकी घटना पर जब तथ्यात्मक ढंग से कुछ लिखा जाता है तो उसके प्रभावी लेखन के लिए यह बेहद ज़रूरी हो जाता है कि पहले उस पर सही एवं संतुलित तरीके से प्रॉपर शोध किया जाए। दोस्तों....

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पदमा की कहानियां: महिला लेखन के नजरिए से By padma sharma

पदमा की कहानियां: महिला लेखन के नजरिए से राजनारायण बोहरे हिन्दी कहानी का यह सबसे अच्छा समय कहा जा सकता है जबकि किसी एक आन्दोलन के बगैर लगभग पांच सौ कहानीकार एक साथ अपने निहायत निजी...

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’’कठघरे’’ इतिहास का प्रतिफलन और जिजीविषा का संकट By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

’’कठघरे’’ इतिहास का प्रतिफलन और जिजीविषा का संकट ’’अगर आप इतिहास और भूख की सापेक्षता में आदमी की नैतिकता का विवेचन करें तो चौंकाने वाले नतीजों पर पहुँचेगे।- ’’कठघरे’’...

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बन्द दरवाज़ों का शहर - रश्मि रविजा By राजीव तनेजा

अंतर्जाल पर जब हिंदी में लिखना और पढ़ना संभव हुआ तो सबसे पहले लिखने की सुविधा हमें ब्लॉग के ज़रिए मिली। ब्लॉग के प्लेटफार्म पर ही मेरी और मुझ जैसे कइयों की लेखन यात्रा शुरू हुई। ब्लॉ...

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घर की देहरी लाँघती स्त्री कलम- समीक्षा By Archana Anupriya

"घर की देहरी लांघती स्त्री कलम" ( एक समीक्षा) - अर्चना अनुप्रिया नारीवादी साहित...

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पुस्तक समीक्षा-राजेन्द्र लहरिया By राज बोहरे

पुस्तक समीक्षा- आलाप-विलाप: समझदारी और गहराई भरा कथ्य राजनारायण बोहरे आलाप-विलाप उपन्यास राजेन्द्र लहरिया का आकार में एक लघु उपन्यास है ल...

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आस्था का ताप और अपने समय से संवाद By कृष्ण विहारी लाल पांडेय

आस्था का ताप और अपने समय से संवाद ब्लैक आउट-वल्लभ सिद्धार्थ की कहानियाँ ‘‘महापुरूषों की वापसी’’, ’’नित्य प्रलय’’ ‘‘व्यवस्था’’ ’’ब्लैक आउट’’ जैसी चर्चित कहानियाँ और ‘कठ...

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अभ्युदय - 1 - नरेंद्र कोहली By राजीव तनेजा

मिथकीय चरित्रों की जब भी कभी बात आती है तो सनातन धर्म में आस्था रखने वालों के बीच भगवान श्री राम, पहली पंक्ति में प्रमुखता से खड़े दिखाई देते हैं। बदलते समय के साथ अनेक लेखकों ने इस...

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पुस्तक समीक्षा- आसाम की जनता का सच- लाल नदी By राज बोहरे

पुस्तक समीक्षा- आसाम की जनता का सच: लाल नदी समीक्षक- राजनारायण बोहरे हमारे देश का पूर्वी भाग सदा से अल्पज्ञात और उपेक्षित सा रहा है। उपेक्षित इस मायने में कि बाकी देश वासियों ने इस...

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