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@sangeetagandhi171803
नयी दिल्ली
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शब्दों के माध्यम से भावों की अभिव्यक्ति मेरा कर्म है ।लेखक की संवेदनशीलता बहुत गहन होती है ।उस सम्वेदनशीलता में यथार्थ के साथ आदर्श का पुट होना बहुत आवश्यक है ।हम किसी घटना ,विचार को मात्र यथार्थ बना कर लिख दें ! वह सनसनी बन जायेगा ।उसके भीतर सामाजिकता अंतर्निहित हो तभी उसकी सार्थकता है ।वर्तमान में लेखक एक सनसनी लेखन को महत्व दे रहे हैं । यह कालजयी नहीं हो सकता ।बाजारवाद के प्रभाव से ऐसा लेखन कुछ समय तक सक्रिय व लोकप्रिय टोबो सकता है पर समाज संचालक नहीं बन सकता ।स्वयं के भोगे यथार्थ ज्यों के त्यों प्रस्तुत करने के स्थान पर उनके कारण ,निदान व समाधान के रास्ते भी लेखन प्रक्रिया का अंग बनें ।ऐसा लेखन ही सार्थक हो सकता है ।लेखन की ऐसी ही अंतर्चेतना मुझे प्रेरित करती है । अपने आस-पास की घटनाएं आंदोलित करती हैं ।मेरे पात्र कुछ देखे भाले ,कुछ काल्पनिक होते हैं पर उनकी सम्वेदनाएँ वास्तविक होती हैं । लेखन में गद्य में मेरी कलम अधिक सहज रहती है ।कविताएँ भी लिखती हूँ । कविताओं में भी सामाजिकता का ही पुट हावी रहता है ।श्रृंगार ,सौंदर्य ये मेरे विषय नहीं बन पाते ।यही कारण है कि लघुकथाओं के रूप में भावनाएं अधिक स
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