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खेल ----आखिर कब तक ? By Vandana Gupta

खेल ----आखिर कब तक ? (1) मन की उद्वेलना हमेशा शब्दों की मोहताज नहीं होती । होती है कोई कोई ऐसी उद्वेलना जिसके बीज मिट्टी में डले तो होते हैं मगर अंकुरित होने के मौसम शायद बने ही नह...

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आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) By DILIP UTTAM

"अर्धांगिनी"----- कहने को अर्धांगिनी कहा जाता है परंतु आधा हिस्सा दिया किसने, आधा हक दिया किसने, और आधा अधिकार/मान-सम्मान दिया किसने, आधा तो क्या उसे हर मोड़ पर छला जाता...

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साक्षात्कार By Neelam Kulshreshtha

साक्षात्कार नीलम कुलश्रेष्ठ (1) मन में वही तड़प उठ खड़ी हुई है, उसकी कलम की रगें फड़कने लगीं है -उस अनूठे कलात्मक सौंदर्य को समेटने के लिए. शायद इसे ही किसी लेखक के मन का` क्लिक` कर...

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नीला आकाश By Niraj Sharma

नीला आकाश (1) सारी धुंध छँट गयी थी। खुशी का ओर छोर नहीं था। दोनों हाथ पैफलाये चक्राकार घूमते हुए वह पूरे आसमान को समेट लेना चाहती थी अपने अंक में। गहरी साँस लेकर पी लेना चाहती थी उ...

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यादें - (पुरानी यादों का दर्द) By Uday Veer

ये कहानी है कुछ दोस्तों की जिनके साथ एक दर्दनाक घटना घटित होती है.........

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वो लडकी By Uday Veer

एक गांव में अपनी मां के साथ एक लड़की रहती थी, लड़की का पिता एक बार काम की तलाश में कई वर्ष पूर्व शहर गया, और फिर वापस लौट कर ना आया, लड़की अपनी मां के साथ रहती, लड़की हमेशा और हमेश...

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नारीयोत्तम नैना By Jitendra Shivhare

"क्या मैं जान सकता हूं आपको पोलिटीशियन से क्या परेशानी है? आपको उनसे दिक्कत क्या है?" एमएलए जितेंद्र ठाकुर ने नैना से पुछा। "पोलिटीशियन झुठ बहुत बोलते है?" नैना ने...

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हैवनली हैल By Neelam Kulshreshtha

वह रिसेप्शन में सोफ़े पर देखती है सारे हॉल में मैरून सफेद फूलों वाला ग्रे कलर का गुदगुदा कालीन बिछा हुआ है.एल के आकर के रिसेप्शन काउंटर पर रिसेप्शनिस्ट का गहरी लाल लिपस्टिक लगा मुस्...

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हूँ तो ढिंगली, नानी ढिंगली By Neelam Kulshreshtha

हूँ तो ढिंगली, नानी ढिंगली (1) शुभम अपार्टमेंट्स के कम्पाउण्ड में हमेशा कोई ना कोई रहता है और कुछ नहीं तो ऊँघता सा चौकीदार ही अपने केबिन में बैठा बाहर झांकता रहता है. उस दिन तो बिल...

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फ़ैसला By Rajesh Shukla

जून का महीना। उफ! ऊपर से ये गरमी। रात हो या दिन दोनों में उमस जो कम होने का नाम नहीं ले रही थी। दिन की चिलचिलाती धूप की तपिस से रात को घर की दीवारें चूल्हें पर रखे हुए तवे की तरह म...

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खेल ----आखिर कब तक ? By Vandana Gupta

खेल ----आखिर कब तक ? (1) मन की उद्वेलना हमेशा शब्दों की मोहताज नहीं होती । होती है कोई कोई ऐसी उद्वेलना जिसके बीज मिट्टी में डले तो होते हैं मगर अंकुरित होने के मौसम शायद बने ही नह...

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आधा मुद्दा (सबसे बड़ा मुद्दा) By DILIP UTTAM

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साक्षात्कार By Neelam Kulshreshtha

साक्षात्कार नीलम कुलश्रेष्ठ (1) मन में वही तड़प उठ खड़ी हुई है, उसकी कलम की रगें फड़कने लगीं है -उस अनूठे कलात्मक सौंदर्य को समेटने के लिए. शायद इसे ही किसी लेखक के मन का` क्लिक` कर...

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नीला आकाश By Niraj Sharma

नीला आकाश (1) सारी धुंध छँट गयी थी। खुशी का ओर छोर नहीं था। दोनों हाथ पैफलाये चक्राकार घूमते हुए वह पूरे आसमान को समेट लेना चाहती थी अपने अंक में। गहरी साँस लेकर पी लेना चाहती थी उ...

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वो लडकी By Uday Veer

एक गांव में अपनी मां के साथ एक लड़की रहती थी, लड़की का पिता एक बार काम की तलाश में कई वर्ष पूर्व शहर गया, और फिर वापस लौट कर ना आया, लड़की अपनी मां के साथ रहती, लड़की हमेशा और हमेश...

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नारीयोत्तम नैना By Jitendra Shivhare

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हैवनली हैल By Neelam Kulshreshtha

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हूँ तो ढिंगली, नानी ढिंगली By Neelam Kulshreshtha

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