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कलयुगी सीता By Saroj Verma

बात उस समय की है, जब मैं छै-सात साल का रहा हूंगा,अब मेरी उर्म करीब चालीस साल है,वो उस समय का माहौल था,जब लोगों को शहर की हवा नहीं लगी थी,जब लोग कहीं से अगर दूर की रिश्तेदारी निकल आ...

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मुखौटा By S Bhagyam Sharma

यह उपन्यास प्रसिद्ध लेखिका वासंती की लिखी हुई है। इस उपन्यास में यह बताया गया है कि हम सब अपने चेहरों को वैसे का वैसा दूसरों के सामने नहीं दिखाते पर उसके ऊपर एक मुखौटा लाल लेते हैं...

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न्याय By Kishanlal Sharma

" अरी उठना नही है क्या?कब तक खाट मे पड़ी रहेगी।चाय बन गई।अब तो उठ जा"।छमिया के बार बार आवाज देने पर कमली उठी तो थी,लेकिन माँ के पास न आकर सीधी नाली की तरफ भागी थी।नाली पर...

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वो भूली दास्तां By Saroj Prajapati

अरे, बिट्टू कब तक सोती रहेगी। 5:00 बज गए हैं शाम के। रश्मि के घर से कई बार तेरे लिए बुलावा आ चुका है। जाना नहीं है उसके मेहंदी पर!" यह सुनते ही बिट्टू झटपट उठ बैठी। " क्या...

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पराये स्पर्श का एहसास By Kishanlal Sharma

सब सहकर्मियों के जाने के बाद सुमित्रा ने राहत की सांस ली थी।वह अभी भी अपने को यहाँ के वातावरण के अनुसार नही ढाल पायी थी।सब लोगो की उपस्थिति में उसे आफिस का माहौल बोझिल सा लगता था।म...

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1934 के न्यूरेम्बर्ग में एक जवान होती हुयी लड़की By Priyamvad

1934 के न्यूरेम्बर्ग में एक जवान होती हुयी लड़की प्रियंवद (1) ‘‘तुम्हें कैसे पता ‘‘ ? ‘‘ क्या ‘‘ ? ‘‘ कि वह मर गए हैं ‘‘ ? अभी सर्दियाँ शुरु हुयी थीं पर ठंड बहुत थी। बूढ़ी हडिड्‌यों...

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जीने के लिए By Rama Sharma Manavi

प्रथम अध्याय----------- शोक संवेदना की औपचारिकता के निर्वहन हेतु आसपास के परिचित एवं रिश्तेदार आ-जा रहे थे।सामाजिक रूप से कल रात्रि आरती के पति विक्रम जी का देहावसान हो गया था...

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घर की मुर्गी By AKANKSHA SRIVASTAVA

अक्सर ससुराल में नई बहू के आते ही उसे जिम्मेदारी के नाम पर अकेले ही हजारों कामो के लिए सौप दिया जाता हैं। बिना यह सोचें कि वह अभी इस घर मे नयी है। हर लड़की को मायके की आजादी से निकल...

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औरतें रोती नहीं By Jayanti Ranganathan

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन एक जिंदगी और तीन औरतें मैं हूं उज्ज्वला: जनवरी, 2006 1 मामूली औरतें जिंदगी... कल तक अगर मुझसे बयां करने को कहा जाता, तो कहती- ऊंची-ऊंची राहों पर चलकर...

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फैसला By Sunita Agarwal

आज अनन्या की फुफेरी बहिन शालिनी की शादी है।दुल्हन की पोशाक में सजी सँवरी शालिनी बेहद खूबसूरत लग रही है।अनन्या भी दौड़ दौड़कर घर के काम काज में अपनी बुआ का हाथ बंटा रही है।तभी बैंड बा...

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कलयुगी सीता By Saroj Verma

बात उस समय की है, जब मैं छै-सात साल का रहा हूंगा,अब मेरी उर्म करीब चालीस साल है,वो उस समय का माहौल था,जब लोगों को शहर की हवा नहीं लगी थी,जब लोग कहीं से अगर दूर की रिश्तेदारी निकल आ...

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मुखौटा By S Bhagyam Sharma

यह उपन्यास प्रसिद्ध लेखिका वासंती की लिखी हुई है। इस उपन्यास में यह बताया गया है कि हम सब अपने चेहरों को वैसे का वैसा दूसरों के सामने नहीं दिखाते पर उसके ऊपर एक मुखौटा लाल लेते हैं...

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न्याय By Kishanlal Sharma

" अरी उठना नही है क्या?कब तक खाट मे पड़ी रहेगी।चाय बन गई।अब तो उठ जा"।छमिया के बार बार आवाज देने पर कमली उठी तो थी,लेकिन माँ के पास न आकर सीधी नाली की तरफ भागी थी।नाली पर...

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वो भूली दास्तां By Saroj Prajapati

अरे, बिट्टू कब तक सोती रहेगी। 5:00 बज गए हैं शाम के। रश्मि के घर से कई बार तेरे लिए बुलावा आ चुका है। जाना नहीं है उसके मेहंदी पर!" यह सुनते ही बिट्टू झटपट उठ बैठी। " क्या...

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पराये स्पर्श का एहसास By Kishanlal Sharma

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1934 के न्यूरेम्बर्ग में एक जवान होती हुयी लड़की By Priyamvad

1934 के न्यूरेम्बर्ग में एक जवान होती हुयी लड़की प्रियंवद (1) ‘‘तुम्हें कैसे पता ‘‘ ? ‘‘ क्या ‘‘ ? ‘‘ कि वह मर गए हैं ‘‘ ? अभी सर्दियाँ शुरु हुयी थीं पर ठंड बहुत थी। बूढ़ी हडिड्‌यों...

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घर की मुर्गी By AKANKSHA SRIVASTAVA

अक्सर ससुराल में नई बहू के आते ही उसे जिम्मेदारी के नाम पर अकेले ही हजारों कामो के लिए सौप दिया जाता हैं। बिना यह सोचें कि वह अभी इस घर मे नयी है। हर लड़की को मायके की आजादी से निकल...

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औरतें रोती नहीं By Jayanti Ranganathan

औरतें रोती नहीं जयंती रंगनाथन एक जिंदगी और तीन औरतें मैं हूं उज्ज्वला: जनवरी, 2006 1 मामूली औरतें जिंदगी... कल तक अगर मुझसे बयां करने को कहा जाता, तो कहती- ऊंची-ऊंची राहों पर चलकर...

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फैसला By Sunita Agarwal

आज अनन्या की फुफेरी बहिन शालिनी की शादी है।दुल्हन की पोशाक में सजी सँवरी शालिनी बेहद खूबसूरत लग रही है।अनन्या भी दौड़ दौड़कर घर के काम काज में अपनी बुआ का हाथ बंटा रही है।तभी बैंड बा...

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