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"शुभम - कहीं दीप जले कहीं दिल"( पार्ट -३६)ज्योति जी,जो ऐन जी ओ की हेड है,वह शुभ...
तपस्या विराट के यादों में खोई हुई रिमोट उठा कर म्यूजिक सिस्टम ऑन कर खुद को मिरर...
'तेरी मेरी बने नहीं और तेरे बिना कटे नहीं' कुछ ऐसा ही है मनु और जागृति क...
लेख-सर्द हवाएं*******"" यूं तो सर्दियों के मौसम में जब सूर्य की पृथ्वी से...
यूवी गीतिका का हाथ पकड़ कर ले जा रहा होता है तभी गीतिका बोलती है, "तुम मुझे कहा...
गाँव के एक छोटे से कस्बे में रहते थे लल्लन जी। उनका नाम ही उनकी कहानी बयान करता...
क्रांति की हॉकी खेलने की चाह को महसूस करके और उसकी ज़िद को हद से ज़्यादा बढ़ता देखक...
बसंत बाबू, ये ही बोलते थे लोग, 23 साल का खूबसूरत युवक, 6 फिट लंबा, तगड़ा बदन, सां...
और नरेश,हिना और मीरा स्वामी नारायण मंदिर के लिये निकल लिये थे।मेट्रो में उसे आवा...
जिसे देख जानवी ,,,,एक पल के लिए डर जाती है ,,,,,क्योंकि इस वक्त आज की आंखें बिल्...
“ क्या बात है , मैं कुछ दिनों से देख रही हूँ कि आजकल मुझ से कटे कटे रहते हैं ? मुझसे नाराज़ हैं क्या ? “ सीमा ने करवट बदलते हुए अपने पति सुरेश से कहा जो दूसरी ओर मुँह घुमा कर सोया...
जी हां ये बात सौ फीसदी बिलकुल सही हैं..एक मोहल्ला ही हैं जहां ज़माने भर की चर्चाए तों होती हैं लेकिन वो कभी खबरों में शामिल नहीं हो पाती हैं.. क्योंकि जो भी खबर कनाफूसी से शुरू होकर...
नुक्कड़ व चौराहों पर चल रही राजनीतिक चर्चाओं को शब्द रूप देने का प्रयास करती 2017 में लिखी हुई एक धारावाहिक रचना !*********एक देहाती बाजार में नुक्कड़ पर एक चाय की दूकान पर रामू, क...
ये दुख बरसों पुराना था। ये न मेरा था और न तेरा। ये सबका था। हर दिन का था। हर गांव का था। हर शहर का था। नहीं- नहीं, ग़लती हो गई। शायद गांव का नहीं था, केवल शहर का था। जितना बड़ा शह...
कजरी झोपड़पट्टी में रहने वाली बहुत ही मासूम, सुंदर-सी कमसिन एक बंजारन थी। बचपन से अब वह नाता तोड़ कर जवानी से रिश्ता जोड़ रही थी। पन्द्रहवाँ साल पूरा होने ही वाला था। उसके बाद नारी...
समाज ने स्त्रियों के लिए कुछ ढांचे बना रखे हैं उनमें फिट न होने वाली स्त्रियों को बागी स्त्रियाँ कह दिया जाता है।ऐसी स्त्रियों को पारंपरिक समाज एक खतरे की तरह देखता है और उन्हें तो...
कहते है की सच्ची मोहब्बत किसी के रंग -रूप, वर्ग-धर्म, देखकर नही होती है। सच्ची मोहब्बत तो सीरत से होती है। इश्क़ इबादत होता है अगर एकबार हो जाये तो भूलना ना मुमकिन सा हो जाता है। च...
ये बात २००५ की तब हम लखनऊ इसी आलमबाग रेलवे क्वार्टर में रहते थे। हमारा परिवार तीसरे माले में रहता था। एक रात सोटे हुए अचानक मेरी आंख खुल गई। में बाथरूम की तरफ से बड़ा तो मुझे किसी...
"पश्चाताप " यह रचना मैने प्रतिलिपि पर वेवसीरीज के तौर पर लिखी थी जिसे अब बिना परिवर्तित करे मै उपन्यास की रूप मातृभारती पर देने जा रही हूँ | प्रतिलिपि पर मैने इसे दस भागो मे प्रस...
यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है इसका किसी भी गांव या व्यक्ति से कोई संबंध नही है। एक गांव था जिसका नाम सुंदर नगर था। ये गांव भी और गांव की तरह ही था। मगर यहां के नियम थोड़े अजी...
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