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  • मुक्त - भाग 3

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    अध्याय 3: आर्या की यात्रा जारी हैआर्या की यात्रा जारी थी, और वह अपने लक्ष्य को प...

अफसर का अभिनन्दन By Yashvant Kothari

कामदेव के वाण और प्रजातंत्र के खतरे यशवन्त कोठारी होली का प्राचीन संदर्भ ढूंढने निकला तो लगा कि बसंत के आगमन के साथ ही चारों तरफ कामदेव अपने वाण छोड़ने को आतुर हो जाते हैं मा...

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राज घराने की दावत..... By pooja

अजगर करे ना चाकरी,पंछी करे न काम,दास मलूका कह गए,सबके दाता राम.....

सेठ मतकू राम अंदर आते हुए अपने पेट पर हाथ फेरते हुए यह कहता है..

तभी अंदर से आवाज आती है कोई नई ताजी खबर...

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हास्य का तड़का By Devaki Ďěvjěěţ Singh

??घंटी ??

छबिली लैला से, " ये बात बात में तू घंटी क्यों बजाती रहती है ?"

लैला, "क्या करूँ यार तुझे तो पता ही है तेरे जीजाजी स्कूल मास्टर हैं , चिल्ला चिल्ला के मर...

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चरण नंदन का अभिनंदन By Tripti Singh

ये मेरी पहली कहानी है! मातृभारती पर! अगर कोई भी गलती हुई हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ ! गुटखा चबाते हुये बड़े ही स्टाईल से जब चरणनन्दन ने घर में प्रवेश लिया तभी अचानक से उसके सिर पर...

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बाबू जी की मुक्त शैली पिटाई By संदीप सिंह (ईशू)

आप सभी प्रेरक पाठक गणों को मेरा (संदीप सिंह का) राम-राम, गुरु आप लोग खुशहाल और चकाचक (स्वस्थ) होंगे| ईश्वर का आशीर्वाद आप सभी पर सदैव बना रहे और अना-पेक्षित हालातों की बारिश मे छात...

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बुढ़ापे से जवानी की ओर (सच्ची घटना) By r k lal

“अरे अंकल! चल रहे हैं “? राहुल ने पूछा।

कहां चलना है, पूछने पर राहुल ने उत्तर दिया, “आपको पता नहीं है, दो दिन पहले राकेश अंकल गिर पड़े थे जिससे उनके कमर की हड्डी टूट गई थी, अस्प...

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बीवी से पंगा, पड़ गया महँगा By Sanju Sharma

मेरी मति मारी गयी थी कि पिछले साल मई की एक दुपहरिया में "मर्द उद्धार शिविर" में एक दोस्त के साथ पहुँचा

शायद मेरे दोस्त ने मेरी बीवी के सामने मेरी बोलती बन्द जैसी हालत दे...

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प्यार में बन गए उल्लू By Sanju Sharma

जूनियर कॉलेज पास करके डिग्री में कदम रखा ही था, ज्यादा कुछ बदलाव नही आया था सिवाय इसके कि, जूनियर कॉलेज में लड़कियों से दोस्ती करने की उम्मीद में नज़रें बिछी रही और यही उम्मीद पास हो...

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हंसी के महा ठहाके By Dr Yogendra Kumar Pandey

प्रस्तुत हास्य व्यंग्य के धारावाहिक में एक आम नागरिक मामा मौजी राम और उनके शिष्य सवालीराम के किस्से हैं।अपने पास-पड़ोस में बिखरे हास्य के प्रसंगों को एक दीर्घ कथा सूत्र में पिरो कर...

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मालगाड़ी का सफ़र By शिव प्रसाद

विनोद को फ़िल्में देखने का बहुत शौक़ था । उसका बस चलता, तो रोज़ एक फ़िल्म देख लेता । लेकिन तब, यानी १९७० के दशक में तो कई फ़िल्में छोटे शहरों और कस्बों तक में भी चार-छः हफ्ते चल ही जाती...

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