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काँटों से खींच कर ये आँचल  by Rita Gupta in Hindi Novels
क्षितीज पर सिन्दूरी सांझ उतर रही थी और अंतस में जमा हुआ बहुत कुछ जैसे पिघलता जा रहा था. मन में जाग रही नयी-नयी ऊष्मा से...
काँटों से खींच कर ये आँचल  by Rita Gupta in Hindi Novels
कैसी उजड़ी चमन की मैं फूल थी. क्या अतीत रहा है मेरा क्या जीवन था, मानों तप्त रेगिस्थान में उगे कैक्टस. निर्जन बियावान कंट...
काँटों से खींच कर ये आँचल  by Rita Gupta in Hindi Novels
“रेगिस्तान में उगे किसी कैक्टस की ही भांति मेरा जीवन शुष्क और कंटीला है. संभल कर रहना अनुभा कहीं मेरे कांटे तुम्हें भी ज...
काँटों से खींच कर ये आँचल  by Rita Gupta in Hindi Novels
कार में सारे रास्तें उसे अपनी बाहों में ही मैं भरी रही, मेरी गोद उसके अश्रुओं से सिक्त होते रहें. घर पहुँचते पहुँचते वह...
काँटों से खींच कर ये आँचल  by Rita Gupta in Hindi Novels
बैठा रहा गुमसुम सा बहुत देर तक, भोला मासूम सा सर झुकाए. बहुत देर बाद सर उठाया तो कहा,
“एक बार मैंने महेश अंकल के सामने...