ब्रुन्धा-एक रुदाली by Saroj Verma in Hindi Novels
इन्सान सरलता से झूठी हंँसी हँस तो सकता है, लेकिन बिना बात के बड़े बड़े आंँसुओं के साथ उसके लिए रोना लगभग कठिन सा हो जाता ह...
ब्रुन्धा-एक रुदाली by Saroj Verma in Hindi Novels
किशना को मौन देखकर गोदावरी फफक फफककर रो पड़ी और रोते हुए किशना से बोली.... "अभी भी वक्त है,दबा दो इस बच्ची का गला,मर जाऐग...
ब्रुन्धा-एक रुदाली by Saroj Verma in Hindi Novels
ठाकुराइन पन्ना देवी के जाते ही ठाकुर साहब किशना से बोले.... "किशना! कसम खाकर कहता हूँ अगर मुझे अपनी दौलत जाने का डर ना ह...
ब्रुन्धा-एक रुदाली by Saroj Verma in Hindi Novels
ठाकुर रुपरतन के सीढ़ियों से लुढ़क जाने के बाद विद्यावती और जगीरा को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो दोनों क्या करें,इसलिए उन द...
ब्रुन्धा-एक रुदाली by Saroj Verma in Hindi Novels
ब्रुन्धा धीरे धीरे बड़ी हो रही थी और किशना उसका बहुत ख्याल रख रहा था ,अब ब्रुन्धा पाँच साल की हो चली थी,लेकिन ठाकुर नवरतन...