Unhi Rashto se Gujarate Hue book and story is written by Neerja Hemendra in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Unhi Rashto se Gujarate Hue is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए - Novels
by Neerja Hemendra
in
Hindi Fiction Stories
मुझे अपना यह नया उपन्यास " उन्हीं रास्तों से गुज़रते हुए " पाठकों को समर्पित करते हुए अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। मेरे इस उपन्यास का कथ्य यद्यपि समकालीन न होते हुए अब से लगभग चार दशक पूर्व का है, तथापि इसमें तत्कालीन कालखण्ड को चित्रित करने के साथ आज के समय की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक बदलावों को भी रेखांकित करने का प्रयास मैंने किया है। पूर्वी उत्तर प्रदेश का वह क्षेत्र जिसे सतही तौर पर देखने वाले पिछड़ा क्षेत्र मानते थे, मानते हैं। जब कि यथार्थ इसके विपरीत है। देश के अन्य भागो की भाँति यह क्षेत्र भी उस समय विकास की दौड़ में शामिल था। आज उसके विकास की कहानी किसी से छुपी नही है। उस समय इस क्षेत्र के गाँव कस्बों में, कस्बे छोटे-बड़े शहरों में तब्दील हो रहे थे। यह परिवर्तन मात्र भैतिक परिवर्तन नही था।
नीरजा हेमेन्द्र सम्मान -- उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा प्रदत्त विजयदेव नारायण साही नामित पुरस्कार, शिंगलू स्मृति सम्मान। फणीश्वरनाथ रेणु स्मृति सम्मान। कमलेश्वर कथा सम्मान। लोकमत पुरस्कार। सेवक साहित्यश्री सम्मान। हाशिये की आवाज़ कथा सम्मान। कथा साहित्य विभूषण ...Read Moreअनन्य हिन्दी सहयोगी सम्मान आदि। हिन्दी की लगभग सभी अति प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियाँ, कविताएँ, बाल सुलभ रचनाएँ एवं सम सामयिक विषयों पर लेख प्रकाशित। रचनाएँ आकाशवाणी व दूरदर्शन से भी प्रसारित। हिन्दी समय, गद्य कोश, कविता कोश, मातृभारती, प्रतिलिपि, हस्ताक्षर, स्त्रीकाल, पुरवाई, साहित्य कुंज, रचनाकार, हिन्दी काव्य संकलन, साहित्य हंट, न्यूज बताओ डाॅट काॅम, हस्तक्षेप, नूतन कहानियाँ आदि वेब
भाग 2 घरों की कच्ची-पक्की छतों और मड़ईयों पर फैली लौकी, कद्दू, तुरई की बेलें पीले, श्वेत फूलों से भर जातीं। उस समय सब्जियों के छोटे बतिया ( फल ) खुशियों की सौगात लाते प्रतीत होते। इसका कारण ये ...Read Moreये था कि ये उपजें बहुत लोगों की रोटी-रोजगार से जुड़ी होतीं। विशेषकर छोटे कृषकों की। छतों व मडईयों पर उगी इन सब्जियों को बेचकर वे कुछ पैसे कमा लेते। सर्द ऋतु की गुनगुनी धूप में उपले पाथती औरतें कोई प्रेम गीत गुनगुना उठतीं। कभी-कभी विरह गीत भी.....और उनकी स्वरलहरियों से उदास वातावरण जीवन्त हो उठता। वसंत ऋतु की तो
भाग 3 इस वर्ष मैं दसवीं की व दीदी बारहवीं की परीक्षा दे रही थी। हम दोनों की इस वर्ष बोर्ड की परीक्षायें थीं। मेरे मन में बोर्ड परीक्षा को लेकर थोड़ा डर था। मैं कहूँ तो थोड़ा नही ...Read Moreबोर्ड परीक्षा से बहुत डर रही थी। मन में हमेशा फेल हो जाने का भय बना रहता। इसीलिए मैं मन लगाकर पढ़ने के साथ-साथ पढ़ाई पर अधिक समय भी दे रही थी। किन्तु ऐसा प्रतीत होता जैसे मुझे कुछ याद नही हो रहा है, न समझ में आ रहा है। ऐसा इसलिए था कि परीक्षा को लकर मेरे मन में
भाग 4 समय का पहिया अपनी गति से चलता जा रहा था। मैंने इण्टरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी तथा दीदी ग्रेजुएशन के अन्तिम वर्ष में थी। मुझे दीदी के साथ रहना अच्छा लगता। एक घड़ी के लिए ...Read Moreदीदी कहीं चली जाती तो मुझे अच्छा नही लगता। जैसे-जैसे मैं बड़ी होती जा रही थी, दीदी के साथ मेरा जुडा़व बढ़ता ही जा रहा था। मैं दीदी के बिना रहने की कल्पना भी नही कर सकती थी। दीदी मेरा आर्दश थी, संबल थी। कुछ समय पश्चात् उस दिन...... दोपहर का समय था। हम सब भोजन करने के उपरान्त बैठे
भाग 5 उस समय के पडरौना से अब का पडरौना भिन्न हो चुका है। अब यहाँ उतनी कट्टरता से जातिप्रथा दिखाई नही देती। शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ, विशेषकर लड़कियों की शिक्षा के साथ चीजें परिवर्तित हो रही है। ...Read Moreके भी युवा अब बड़े शहरों के प्रबन्धन संस्थानों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। मल्टीनेशनल कम्पनियों में काम कर रहे हैं। सबसे बढ़कर अच्छी बात ये है कि जाति को अनदेखा करते हुए अपनी पसन्द के साथी से प्रेम विवाह भी कर रहे हैं। अब उस विवाह को घर वाले स्वीकार भी कर रहे हैं। आज दलितों का दक्खिनी