Mandir ke Pat book and story is written by Sonali Rawat in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Mandir ke Pat is also popular in Horror Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मंदिर के पट - Novels
by Sonali Rawat
in
Hindi Horror Stories
रात का अंधेरा धीरे-धीरे गहरा होता जा रहा था । आकाश में घने बादल छाए हुए थे । हवा तेज थी और अपने साथ पतझड़ में गिरे हुए पत्तों को उड़ाती एक विचित्र प्रकार की भयावनी ध्वनि उत्पन्न कर रही थी । सन्नाटा और भी गहरा हो चला था । नीरवता के उस साम्राज्य को कभी-कभी चमगादड़ या उल्लू के चीखते हुए स्वर तोड़ देते । कालिमा की उस फैली हुई चादर के नीचे सृष्टि किसी थके हुए नटखट शिशु की भांति सो रही थी । रजत को अमझरा घाटी आए हुए अभी कुल दो ही दिन हुए थे । वह पुरातत्व विभाग से संबंधित था और उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश को मिलाने वाली सीमा रेखा के निकट घने वन में स्थित मंदिरों तथा प्राचीन भग्नावशेषों का अध्ययन करने अकेला ही अमझरा घाटी की सुरम्यता का पान करने आ पहुंचा था ।
आते समय पथ प्रदर्शक के रूप में एक निकट का ग्रामवासी साथ था जो उसका सामान भी उठाए हुए था और मार्गदर्शन भी वही कर रहा था ।
घाटी के सौंदर्य ने रजत को पूर्णतया अभिभूत कर लिया था । लंबे राजमार्ग के दोनों ओर चिरौंजी और आम के वृक्ष थे । कहीं कहीं पलाश के वृक्ष तथा कँटीली झाड़ियां थीं । पेड़ों का सिलसिला सड़क के निकट उतना घना न था किंतु जैसे जैसे उनका सड़क से फ़ासला बढ़ता गया था उनकी सघनता में भी वृद्धि होती गई थी ।
रात का अंधेरा धीरे-धीरे गहरा होता जा रहा था । आकाश में घने बादल छाए हुए थे । हवा तेज थी और अपने साथ पतझड़ में गिरे हुए पत्तों को उड़ाती एक विचित्र प्रकार की भयावनी ध्वनि उत्पन्न कर ...Read Moreथी । सन्नाटा और भी गहरा हो चला था । नीरवता के उस साम्राज्य को कभी-कभी चमगादड़ या उल्लू के चीखते हुए स्वर तोड़ देते । कालिमा की उस फैली हुई चादर के नीचे सृष्टि किसी थके हुए नटखट शिशु की भांति सो रही थी । रजत को अमझरा घाटी आए हुए अभी कुल दो ही दिन हुए थे ।
खंडहर में प्रवेश करते ही एक विचित्र सी गंध रजत के नसों में घुसी । वह कुछ ठिठक गया किंतु फिर दृढ़ता से भीतर प्रविष्ट हो गया । द्वार पार करने पर एक लंबा पतला गलियारा पार करना पड़ा ...Read Moreएक विशाल आँगन में जा कर यह गलियारा खत्म हो गया । आंगन के पूर्व में एक दालान था । शेष तीनों और कमरे बने हुए थे जो अब जर्जर अवस्था में थे । रजत ने आँगन की पश्चिमी दिशा में पड़ने वाले कमरे को खोला । जर्जर, उड़के हुए किवाड़ चरमरा कर खुल गए और वर्षो से बंद रहने
"अच्छा साहब !"गेंदा सिंह ने लंबा सलाम ठोंका और चला गया । उसके जाने के बाद रजत बैठा नहीं । उसने अपने सामान को एक ओर जमाया और साफ़ की हुई फ़र्श पर अपना बिस्तर लगा दिया । आते ...Read Moreवह अपने साथ कुछ अखरोट बादाम और सूखे मेवे ले आया था । थोड़े से अखरोट जेब में डाल कर वह कमरे से बाहर निकला । द्वार अच्छी तरह बंद करके उसने एक बार पूरे खंडहर का चक्कर लगाया । कहीं कोई खास बात नजर न आयी । पुराने समय के जमींदारों के भवनों के ही समान ही यह भी
रजत का मन बार-बार मंदिर की ओर खिंचा जा रहा था । वह गेंदा सिंह से कहकर मंदिर की ओर बढ़ गया । मंदिर तक जाने के लिए उसे कुल उन्चास सीढ़ियां तय करनी पड़ीं । मंदिर के पट ...Read Moreनीचे से देखने पर खुले प्रतीत हो रहे थे वस्तुतः बंद थे । उनका काला रंग कहीं-कहीं से उखड़ गया था । मंदिर की दीवारें पत्थर की थीं जिन पर सुंदर नक्काशी की गई थी । ऊपर गोल गुंबद और फिर ऊंची लंबी चोटी पर रखा हुआ पीतल का कलश जो धूप में सोने का भ्रम उत्पन्न कर रहा था
चारों ओर फैला सन्नाटा । गहरा अंधेरा और पल-पल खिसकता समय । बढ़ती भयानकता । आज की रात रजत को रोमांचित कर रही थी । यद्यपि एक रात वह इसी खंडहर में सकुशल बिता चुका था किंतु आज उसका ...Read Moreव्यग्र था । गेंदा सिंह बस्ती की ओर जा चुका था । मोमबत्ती जला कर देर से रजत पढ़ने की कोशिश कर रहा था लेकिन शब्द थे कि सब आपस में गड्डमड्ड हुए जाते थे । कई बार प्रयत्न करके भी वह कुछ न पढ़ सका तो किताब बंद करके रख दी और सोने की चेष्टा करने लगा । पिघलती