वो रात कुछ और थी by Karunesh Singh in Hindi Novels
इतनी बेचैनी, इतनी घबराहट शायद ही कभी वर्तिका को हुई थी जितनी आज हो रही थी। रह रह कर घड़ी देखना, कभी माथे पे लटकती लटो को...
वो रात कुछ और थी by Karunesh Singh in Hindi Novels
बर्फ की सिल्ली जैसी वर्तिका एक दम ठंडी पड़ती जा रही थी , चेहरा डर के मारे सफ़ेद सा होता जा रहा था। आंटी की पिस्तौल की नली...