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फादर्स डे - Novels
by Praful Shah
in
Hindi Fiction Stories
सोमवार, 29/11/1999
पिनकोडः 412801, श्रीवाल, खंडाला, जिला सातारा, महाराष्ट्र।
करीबी रेल्वे स्टेशनः दौन्दाज, 23.6 किलोमीटर।
करीबी हवाई अड्डाः हडपसर, 40.5 किलोमीटर।
आबादीः 6000 लगभग
मुख्य व्यवसायः कृषि
वैसे तो शिरवळ में सूर्योदय हमेशा ही इंडियन स्टैंडर्ड टाइम से 34 मिनट देरी से होता है। लेकिन आज, ऐसा महसूस हुआ कि सूर्य उगना ही नहीं चाहता था। शायद वह कुछ अप्रिय घटने को टालना चाहता हो। पर अफसोस, उगना उसकी मजबूरी थी। उसकी इस इच्छा ने शिरवळ के वातावरण को अधिक ही उदास बना दिया था। किसी रहस्य की ओर बढ़ते, अशुभ घटना के द्वार खटखटाते हुए समय जैसे आगे बढ़ता चला जा रहा था और जैसे ही शिरवळ के क्षितिज पर सूर्यकिरणों ने अपना जाल बिखेरा, हवाओं ने भी नीरा की लहरों पर उड़ने का एक खिन्न प्रयास किया। नीरा, भीमा नदी की सहायिका है। यही नीरा, आमतौर पर अपने ताजे पानी की रसधार के साथ पुणे और सोलापुर जिलों में खुशियां प्रवाहित करती है। आज, उसकी जगमगाहट कहीं खो सी गई थी।
शिरवळ पर पसरी उदासीनता ने नीरा पर उड़ने वाले एकमात्र परिंदे को भी नहीं बख़्शा। परिंदे ने यू-टर्न लिया और शिरवळ की ओर मुड़ गया। उसने अपनी उड़ान को प्रतिष्ठित शुभमंगल किले पर रोकना पसंद किया। शायद, किले का शानदार ऐतिहासिक महत्व उसमें कुछ आत्मविश्वास भरता हो...
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 1 सोमवार, 29/11/1999 पिनकोडः 412801, श्रीवाल, खंडाला, जिला सातारा, महाराष्ट्र। करीबी रेल्वे स्टेशनः दौन्दाज, 23.6 किलोमीटर। करीबी हवाई अड्डाः हडपसर, 40.5 किलोमीटर। आबादीः 6000 लगभग मुख्य व्यवसायः कृषि वैसे तो शिरवळ में सूर्योदय हमेशा ही ...Read Moreस्टैंडर्ड टाइम से 34 मिनट देरी से होता है। लेकिन आज, ऐसा महसूस हुआ कि सूर्य उगना ही नहीं चाहता था। शायद वह कुछ अप्रिय घटने को टालना चाहता हो। पर अफसोस, उगना उसकी मजबूरी थी। उसकी इस इच्छा ने शिरवळ के वातावरण को अधिक ही उदास बना दिया था। किसी रहस्य की ओर बढ़ते, अशुभ घटना के द्वार खटखटाते
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 2 सोमवार, 29/11/1999 भले ही, शिरवळवासियों का ध्यान इस ओर गया न हो, लेकिन साई विहार को छोड़कर सारा कस्बा किसी विषाद की गिरफ्त में था। हमेशा की तरह घड़ी ने सुबह के सात बजाये ...Read Moreसूर्यकान्त की दिनचर्या रोज़ की ही तरह शुरू हो चुकी थी। वह तैयार होकर सोफे पर बैठा था, अपनी सुबह की चाय के इंतजार में। उसने शिरवळ के दैनिक अखबार ऐक्य को पढ़ना तो शुरू किया, पर न जाने क्यों उसका ध्यान नहीं लग रहा था। उसने अखबार किनारे रख दिया और किन्हीं ख्यालों में खो गया। उसने एक के
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 3 सोमवार, 29/11/1999 सूर्यकान्त बाथरूम में घुसा, उसने बालों में शैम्पू तो लगाया लेकिन रगड़न भूल गया। उसके विचारों की रेल चल पड़ी थी, ‘अंततः मेरे कठोर परिश्रम के वृक्ष पर फल लगने की बारी ...Read Moreगई है। संकेत के जन्म के बाद मेरे करियर में जबर्दस्त उछाल आया है। दुःख तो इस बात का है कि मेरी कोई भी उपलब्धि प्रतिभा के मौन को तोड़ने में सफल नहीं रही है। मैं उसके व्यवहार को समझ ही नहीं पा रहा हूं। हमारे विवाह को कई साल बीत गए, हमारे बीच प्रेम का बंधन भी है, बावजूद
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 4 सोमवार, 29/11/1999 बेचैन परिंदा शिरवळ शवदाहगृह की ओर उड़ चला। कहने की बात नहीं कि उस जगह पर नीरव शांति पसरी हुई थी; अक्षरशः श्मशान शांति। परिंदा यहां की नकारात्मक ऊर्जा से परेशान होकर ...Read Moreकी तलाश में कुछ और दूर उड़ गया। उसने शवदाहगृह की अस्थाई दीवार का सहारा लिया, नल की टोंटी और बिजली के खंबे का आसरा लेने की कोशिश की, लेकिन सब व्यर्थ। अंततः, वह अंतिम संस्कार स्थान के नजदीक बनी लोहे की पटरी पर जा पहुंचा। अधजले शव से उसे कुछ ताप तो महसूस हुआ, लेकिन गरमाहट न मिली। वह
लेखक: प्रफुल शाह प्रकरण 5 सोमवार, 29/11/1999 तब ठीक दोपहर के 2 बजकर 3 मिनट हुए थे। फातिमा तो मानो होश ही खो बैठी थी। वह टेलीफोन इंस्ट्रूमेंट को देखती रह गई, समझ ही नहीं पा रही थी आखिर ...Read Moreकिसने किया था, उसने जो कुछ कहा उसका मतलब क्या था और उसने ऐसा कहा किसलिए। वह हमेशा ही घर के भीतर रहती है, बाहरी दुनिया से उसे अधिक कुछ लेना-देना नहीं होता। उसने स्कूल जाकर औपचारिक पढ़ाई-लिखाई भी नहीं की थी। भाषा को दरकिनार कर भी दें, पर जिन शब्दों और जिस अंदाज से सामने वाला फोन पर बात