Me Papan aesi jali book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Me Papan aesi jali is also popular in Women Focused in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मैं पापन ऐसी जली! - Novels
by Saroj Verma
in
Hindi Women Focused
सात सुरों के मेल को सरगम कहा जाता है,ये एक ऐसी ही लड़की की कहनी है जिसका नाम सरगम है,जिसका जीवन उसके नाम की तरह संगीतमय था जो स्वरबद्ध और तालबद्ध था लेकिन फिर उसके जीवन के सुरो का तालमेल बिगड़ा और उसके जीवन की सरगम के स्वर और ताल बिखर गएं,
क्योंकि इस पुरूषप्रधान संसार में नारी का कोई अस्तित्व ही नहीं है,प्रसिद्ध दार्शनिकों के अनुसार सृष्टि की रचना करते समय अहं था जो पहले पुरुष में प्रकट किया गया और स्त्री में बाद में इसलिए औरत का अहं पुरूष से कभी बरदाश्त नहीं होता, प्रारम्भिक दार्शनिकों का दृष्टिकोण स्त्रियों के लिए बहुत उपेक्षापूर्ण था, उनका तर्क था कि प्राकृतिक रूप से औरत में कमियाँ हैं और वह पूर्ण मानव नहीं है, वे मानते थे कि औरत एक चिन्ता है जो सदा पुरुष को पीड़ित करती है,औरत ही नर्क का द्वार है ,औरत ही सभी परेशानियों की जड़ है,औरत शारीरिक भूख के लिए भोजन और शराब की तरह ही अनिवार्य तो है लेकिन उसका उपभोग करने के पश्चात वो किसी काम की नही,देखते हैं इस पुरूष प्रधान समाज में सरगम की क्या दशा होती है,तो कहानी शुरू करते हैं....
खाना खाते खाते सिमकी ने सरगम से पूछा.... "दीदी!तुम भी पढ़ती होगी ना!" "हाँ!मैं भी पढ़ती हूँ",सरगम बोली... "किताबें पढ़कर बहुत अच्छा लगता होगा ना!"सिमकी ने पूछा... "हाँ!अच्छा लगता है",सरगम मुस्कुराते हुए बोली... "हम भी बचपन से पढ़ना चाहते ...Read Moreलेकिन हमारे बाबा ने हमें पढ़ाया ही नहीं",सिमकी बोली... "क्यों नहीं पढ़ाया तुम्हारे बाबा ने",सरगम ने पूछा... तब सिमकी बोली... "हम घर में सबसे बड़े थे ,हमारे और भी छोटे भाई-बहन थे,अम्मा-बाबा खेतों में काम करते थे और हम अपने भाई -बहनों को सम्भालते थे,इसलिए पढ़ नहीं पाएं,लेकिन हमने अपने भाई बहनों का बाबा से कहके जबरदस्ती स्कूल में नाम
सात सुरों के मेल को सरगम कहा जाता है,ये एक ऐसी ही लड़की की कहनी है जिसका नाम सरगम है,जिसका जीवन उसके नाम की तरह संगीतमय था जो स्वरबद्ध और तालबद्ध था लेकिन फिर उसके जीवन के सुरो का ...Read Moreबिगड़ा और उसके जीवन की सरगम के स्वर और ताल बिखर गएं, क्योंकि इस पुरूषप्रधान संसार में नारी का कोई अस्तित्व ही नहीं है,प्रसिद्ध दार्शनिकों के अनुसार सृष्टि की रचना करते समय अहं था जो पहले पुरुष में प्रकट किया गया और स्त्री में बाद में इसलिए औरत का अहं पुरूष से कभी बरदाश्त नहीं होता, प्रारम्भिक दार्शनिकों का दृष्टिकोण
सरगम ने जब सुना कि दीपा अब इस दुनिया में नहीं रही तो उसे उस बात का बहुत दुःख हुआ,वो कुछ दिनों तक केवल दीपा के बारें में सोचती रही और एक दिन अपनी माँ सुभागी से बोली.... माँ!दीपा ...Read Moreअगर उसके ससुराल ना भेजा जाता तो शायद आज वो जिन्दा होती,है ना! तब उसकी माँ सुभागी बोली..... बिटिया!ये जग ऐसा ही है,एक बार बेटी के हाथ में मेंहदी रच जातीं है ना तो वो अपने माँ बाप के लिए बिल्कुल पराई हो जाती है.... तुम भी मेरे साथ ऐसा ही करोगी,सरगम ने पूछा... ना...बिटिया!हम तो उस दिन दीपा के
कुलभूषण त्रिपाठी जी के अन्तिम संस्कार के बाद सदानन्द जी ने एक भाई की तरह अपनी मुँहबोली सुभागी और उसके तीनों बच्चों की जिम्मेदारियों को लेना शुरु कर दिया,अब सुभागी और सरगम को भी पता था कि अब सरगम ...Read Moreकी पढ़ाई नहीं कर पाएगी क्योंकि उसकी पढ़ाई के लिए खर्चा कहाँ से आएगा और उन्होंने संकोचवश ये बात सदानन्द बाबू से भी नहीं बताई,इसलिए सदानन्द बाबू ने कस्बें के काँलेज में ही बी.एस.सी. में सरगम का एडमिशन करा दिया और सुभागी को कुछ रूपये देकर वापस दिल्ली रवाना हो गए और जाते जाते सुभागी से ये कहकर गए... सुभागी
श्वेता समझ चुकी थी कि शाश्वत यहाँ पढ़ने नहीं आया है,वो तो यहाँ सरगम को देखने आया था और शाश्वत का वहाँ यूँ ही बैठना सरगम को भी अच्छा नहीं लग रहा था,इसलिए उसने अपनी किताबें उठाईँ और लाइब्रेरी ...Read Moreबाहर निकल गई,फिर श्वेता भी वहाँ ना रुक सकी और वो भी सरगम के पीछे पीछे लाइब्रेरी से बाहर चली गई,शाश्वत यूँ ही दोनों को जाते हुए देखता रहा.... अब ये तो रोजाना का सिलसिला हो गया,जहाँ भी सरगम जाती तो शाश्वत भी उसके पीछे पीछे हो लेता,काफी दिन यूँ ही गुजरे और फिर एक दिन शाश्वत ने श्वेता से