Akeli book and story is written by Ratna Pandey in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Akeli is also popular in Fiction Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अकेली - Novels
by Ratna Pandey
in
Hindi Fiction Stories
मोहन और शालू हर रोज़ सुबह अपनी तीन पहियों की साइकिल लेकर कचरा बीनने जाते थे। उसी से उनकी जीविका चलती थी। गाड़ी भले ही कचरे की हो पर वह अपनी गाड़ी को बड़ा ही सजा कर रखते थे। जैसे-जैसे पहिये घूमते घुंघरुओं की मद्धम-मद्धम आवाज़ कानों में एक तरंग छोड़ देती, जो कानों को बड़ी अच्छी लगती थी। आने जाने वाले उनकी गाड़ी की तरफ़ एक नज़र देखते ज़रूर थे। शालू ने विवाह के एक वर्ष के अंदर ही एक प्यारी-सी बेटी को जन्म दिया और उसका नाम रखा था गंगा।
गंगा के जन्म के समय ही डॉक्टर ने कहा, "अब तुम्हें बस इस अकेली बेटी से ही संतोष करना पड़ेगा। अब दूसरी बार गर्भवती होना तुम्हारे लिए ठीक नहीं है।"
गंगा दो-तीन हफ्ते की ही हुई थी कि शालू ने गंगा को भी साथ ले जाने का मन बना लिया। शालू क्या करती मजबूरी इंसान को मज़बूत बना देती है और मजबूर भी कर देती है। मोहन अकेले कचरे में से उतना प्लास्टिक नहीं ला पाता, जितना शालू बीन कर ले आती थी। अपने पति का हाथ बटाने के लिए शालू भी जल्दी ही काम पर लग जाना चाहती थी।
मोहन और शालू हर रोज़ सुबह अपनी तीन पहियों की साइकिल लेकर कचरा बीनने जाते थे। उसी से उनकी जीविका चलती थी। गाड़ी भले ही कचरे की हो पर वह अपनी गाड़ी को बड़ा ही सजा कर रखते थे। ...Read Moreपहिये घूमते घुंघरुओं की मद्धम-मद्धम आवाज़ कानों में एक तरंग छोड़ देती, जो कानों को बड़ी अच्छी लगती थी। आने जाने वाले उनकी गाड़ी की तरफ़ एक नज़र देखते ज़रूर थे। शालू ने विवाह के एक वर्ष के अंदर ही एक प्यारी-सी बेटी को जन्म दिया और उसका नाम रखा था गंगा। गंगा के जन्म के समय ही डॉक्टर ने
गंगा इसी तरह कचरा बीनने की ज़िद करती रही पर शालू ने कभी उसकी एक ना सुनी। देखते-देखते 12 साल गुजर गए। हर रोज़ की तरह आज फिर गंगा ने वही कहा, "वो देख अम्मा कितना सारा कचरा दिखाई ...Read Moreरहा है। आज तो तू बैठ अम्मा मैं ही जाऊंगी।" "नहीं गंगा ..." "अरे अम्मा देख कितनी बड़ी हो गई हूँ। तुझसे ज़्यादा लंबी भी हो गई हूँ। अब सब सीखने दे मुझे, साइकिल चलाना भी फिर तुम दोनों पीछे बैठना मैं तुम दोनों को खींचूंगी।" "बहुत ज़िद्दी है तू, रोज़ एक ही पहाड़ा पढ़ती रहती है; जा ले आ।"
अपने माता पिता के पार्थिव शरीर के साथ गंगा पूरे समय अस्पताल में ही थी। घर पहुँचते ही उसने देखा उसकी खोली के सामने भीड़ लगी है, जिसमें उसके नज़दीकी रिश्तेदार और अड़ोसी पड़ोसी खड़े उनका इंतज़ार कर रहे ...Read Moreउसके तुरंत बाद ही मोहन और शालू की अंतिम विदाई की तैयारियाँ होने लगीं। जैसे ही उनके पार्थिव शरीर को अंतिम यात्रा के लिए उठाकर कंधा दिया जाने लगा, तब पहली बार गंगा फूट-फूट कर ज़ोर से रोने लगी। "अम्मा बापू मत जाओ मैं अकेली क्या करूंगी? कैसे खींचूंगी कचरे की गाड़ी। अम्मा तुम मुझे कचरा बीनने नहीं जाने देती
एक-एक करके सभी रिश्तेदार गंगा को छोड़ कर चले गए और अपने-अपने ठिकाने पहुँच गए। गंगा के मन के अंदर भभकता हुआ दिया एकदम से बुझ गया। अब वह बिल्कुल अकेली थी। मोहन और शालू कभी उसे कचरा बीनने ...Read Moreजाने देते थे। वह पहला दिन था जब उसे शालू ने कहा था, "तू बहुत ज़िद्दी है, रोज़ एक ही पहाड़ा पढ़ती है, जा ले आ।" गंगा के कानों में बार-बार यही शब्द गूँजा करते थे। वह सोच रही थी शायद भगवान ही उसे बचाना चाहते थे। अम्मा कभी हाँ नहीं कहती थी पर उस दिन उन्होंने हाँ कह दिया
आज ज़िंदगी में पहली बार गंगा अकेली कचरा बीन रही थी। उसकी आँखों से आँसू गिर कर उस कचरे में मिलते जा रहे थे भले ही शालू और मोहन बेहद गरीब थे फिर भी गंगा के लिए उनके सपने ...Read Moreथे। थैला भर कर कचरा बीनने के बाद गंगा उसे अपने कंधे पर टांगे चल रही थी। उसे अपनी माँ की कही बातें याद आ रही थीं। "गंगा मैं तुझे कचरा बीनने के काम में कभी नहीं लगाऊँगी। तेरी शादी भी ऐसे लड़के से करूंगी जो तुझे अच्छे से रखेगा और वह भी कचरा बीनने का काम नहीं करता होगा।"