Ek Yogi ki Aatmkatha book and story is written by Ira in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ek Yogi ki Aatmkatha is also popular in Spiritual Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
एक योगी की आत्मकथा - Novels
by Ira
in
Hindi Spiritual Stories
योगी कथामृत का विश्व व्यापक अभिनन्दन
हजारों पुस्तकें जो हर वर्ष प्रकाशित होती हैं उनमें से कुछ मनोरंजक होती हैं, कुछ शिक्षा प्रदान करती हैं, कुछ ज्ञानवर्धक होती हैं। एक पाठक अपने को भाग्यशाली समझ सकता है यदि उसे ऐसी पुस्तक मिले जो यह तीनों काम कर दे। योगी कथामृत इन सबसे और भी अनपम है - यह एक ऐसी पुस्तक है जो मन और आत्मा के द्वार खोल देंती है। — इण्डिया जर्नल
“एक अद्वितीय वृत्तान्त।” — न्यू यॉर्क टाइम्स
“इसके पृष्ठ अद्वितीय शक्ति एवं स्पष्टता के साथ, एक विमोहक जीवन को प्रदर्शित करते हैं। एक ऐसे व्यक्तित्व को जिसकी महानता की कोई मिसाल न हो, जिससे पाठक प्रारम्भ से अन्त तक अवाक् रह जाता है.... इन पृष्ठों में अखण्डनीय प्रमाण है कि मनुष्य की मानसिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धियों का ही केवल स्थायी महत्व है, और वह सभी सांसारिक बाधाओं पर आंतरिक शक्ति से विजय प्राप्त कर सकता है.... इस महत्वपूर्ण आत्मकथा को हमें अवश्य ही एक आध्यात्मिक क्रान्ति ला सकने की शक्ति का श्रेय देना चाहिये।” — श्लेसविग होस्टीनीशे टाजेस्पोस्ट, जर्मनी
“एक स्मारकीय कार्य।”— शेफील्ड टेलीग्राफ, इंग्लैंड
परमहंस योगानंद की यह आत्मकथा, पाठकों और योग के जिज्ञासुओं को संतों, योगियों, विज्ञान और चमत्कार, मृत्यु एवं पुनर्जन्म, मोक्ष व बंधन, की एक ऐसी अविस्मरणीय यात्रा पर ले जाती है, जिससे पाठक अभिभूत हो जाता है। सहज-सरल शब्दों ...Read Moreभावाभिव्यक्ति, पठनीय शैली, गठन कौशल, भाव-पटुता, रचना प्रवाह, शब्द सौन्दर्य इस आत्मकथा को एक नया आयाम देते हैं और पुस्तक को पठनीय बनाते हैं। एक सिद्ध पुरुष की जीवनगाथा को प्रस्तुत करती यह पुस्तक जीवन दर्शन के तमाम पक्षों से न सिर्फ हमें रूबरू कराती है, बल्कि योग के अद्भुत..
{ मेरे माता-पिता एवं मेरा बचपन }परम सत्य की खोज और उसके साथ जुड़ा गुरु-शिष्य संबंध प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है।इस खोज के मेरे अपने मार्ग ने मुझे एक भगवत्स्वरूप सिद्ध पुरुष के पास ...Read Moreदिया जिनका सुघड़ जीवन युग-युगान्तर का आदर्श बनने के लिये ही तराशा हुआ था । वे उन महान विभूतियों में से एक थे जो भारत का सच्चा वैभव रहे हैं। ऐसे सिद्धजनों ने ही हर पीढ़ी में अवतरित हो कर अपने देश को प्राचीन मिश्र (Egypt) एवं बेबीलोन (Babylon) के समान दुर्गति को प्राप्त होने से बचाया है।मुझे याद आता
{ माँ का देहान्त और अलौकिक तावीज }मेरी माँ की सबसे बड़ी इच्छा मेरे बड़े भाई के विवाह की थी। “अहा ! जब मैं अनन्त की पत्नी का मुख देखूँगी तब मुझे इस धरती पर ही स्वर्ग मिल जायेगा ...Read Moreइन शब्दों में माँ को अपने वंश को आगे चलाने की प्रबल भारतीय भावना व्यक्त करते मैं प्रायः सुनता था। अनन्त की सगाई के समय मैं लगभग ग्यारह वर्ष का था । माँ कोलकाता में अत्यंत उल्लास से विवाह की तैयारियों में जुटी हुई थीं । केवल पिताजी और मैं ही उत्तरी भारत में स्थित बरेली में अपने घर में
{ द्विशरीरी संत }“पिताजी! यदि मैं बिना किसी दबाव के घर लौटने का वचन दूँ, तो क्या दर्शन यात्रा के लिये बनारस जा सकता हूँ?”मेरे यात्रा-प्रेम में पिताजी शायद ही कभी बाधा बनते थे। मेरी किशोरावस्था में भी अनेक ...Read Moreऔर तीर्थस्थलों की यात्रा करने की अनुमति वे मुझे दे देते थे। साधारणतया मेरे साथ मेरे एक या अधिक मित्र होते। पिताजी द्वारा प्रदत्त प्रथम श्रेणी के पासों पर हम लोग आरामपूर्वक यात्रा करते। हमारे परिवार के खानाबदोश लोगों के लिये पिताजी का रेलवे अधिकारी का पद पूर्णतः संतोषप्रद था।पिताजी ने मेरे अनुरोध पर यथोचित विचार करने का वचन दिया।
{ हिमालय की ओर मेरे पलायन में बाधा }“कोई भी छोटा-मोटा बहाना बनाकर अपनी कक्षा से बाहर निकल आओ और एक घोड़ागाड़ी किराये पर ले लो। हमारी गली में ऐसी जगह आकर ठहरना जहाँ तुम्हें मेरे घर का कोई ...Read Moreन देख सके।”हिमालय में मेरे साथ जाने की योजना बनाने वाले उच्च माध्यमिक विद्यालय के अपने सहपाठी अमर मित्तर को मेरा यह अंतिम निर्देश था। अपने पलायन के लिये हम लोगों ने अगला दिन तय किया था। अनन्त दा मुझ पर कड़ी दृष्टि रखते थे, इसलिये सावधानी बरतना आवश्यक था। उन्हें पूरा सन्देह था कि मेरे मन में भाग जाने