Anokhi Prem Kahani book and story is written by Sangram Singh Rajput in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Anokhi Prem Kahani is also popular in Spiritual Stories in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अनोखी प्रेम कहानी - Novels
by Sangram Singh Rajput
in
Hindi Spiritual Stories
अमावस्या की अँधेरी रात ने बखरी सलोना अंचल को अपनी काली चादर तले समेट लिया था। समस्त बखरीवासी अपने-अपने झोपड़ों के अंदर गहन-निद्रा में खोये थे, परन्तु ड्योढ़ी में जाग थी। बखरी की स्वामिनी भैरवी-रूपमती, मृत्यु-शय्या पर लेटी अपनी अंतिम सांसें ले रही थी। पास ही उसकी तेरह वर्षीया रूपसी पुत्री वीरा मौन बैठी अपनी माँ की डूबती साँसों को असहाय नेत्रों से निहार रही थी। पूरी ड्योढ़ी वाममार्गी सिद्धों, कापालिकों, तांत्रिकों और डायनों से भरी थी। वीरा के पास ही बैठी थी पोपली काकी।
अमावस्या की अँधेरी रात ने बखरी सलोना अंचल को अपनी काली चादर तले समेट लिया था। समस्त बखरीवासी अपने-अपने झोपड़ों के अंदर गहन-निद्रा में खोये थे, परन्तु ड्योढ़ी में जाग थी।बखरी की स्वामिनी भैरवी-रूपमती, मृत्यु-शय्या पर लेटी अपनी अंतिम ...Read Moreले रही थी। पास ही उसकी तेरह वर्षीया रूपसी पुत्री वीरा मौन बैठी अपनी माँ की डूबती साँसों को असहाय नेत्रों से निहार रही थी। पूरी ड्योढ़ी वाममार्गी सिद्धों, कापालिकों, तांत्रिकों और डायनों से भरी थी। वीरा के पास ही बैठी थी पोपली काकी।पोपली काकी! अति वृद्धा पोपली काकी के निर्निमेष नेत्र रूपमती पर जमे थे। तभी रूपमती के अधर
कार्तिक-पूर्णिमा की पूर्व रात्रि से ही भरोड़ा के नर-नारी और बाल-वृद्ध हाथों में प्रज्वलित मशालें थामे, गाते-बजाते और नृत्य करते घाट पर एकत्रित होने लगे।भरोड़ा के मल्लाह-राजा की ओर से घाट की विस्तृत भूमि को समतल करवाकर तंबू लगवाए ...Read Moreथे। समतल जमीन पर जन-समूह ने मेले का स्वरूप ग्रहण कर लिया था। कहीं नट-नटी के नृत्य हो रहे थे, कहीं ढोल-मंजीरे की थाप पर कुल-देवी कमला मैया के गीत गाए जा रहे थे।अवसर था कार्तिक-पूर्णिमा में कमला स्नान का और परम्परानुसार, प्रथम स्नान मल्लाह राजा-रानी करते थे फिर उनके कुटुम्ब। राजा-रानी द्वारा कमला-मैया का पूजन होता, महारती की जाती
वीरा की नींद अचानक उचट गयी। समस्त तन में पीड़ा और जलन। मशाल बुझ गई थी। पूरे कक्ष में अँधेरा छाया था। उठकर उसने बुझे मशाल को मंत्रोच्चारण से पुनः प्रज्वलित किया। सारे कक्ष में जलती मशाल की चर्बी ...Read Moreगंध के साथ पीला-डरावना प्रकाश फैल गया।नींद से अचानक जगने का कारण ढूँढ़ती उसकी आँखें कक्ष में घूमने लगीं। क्या हो गया है उसे? विगत कई दिनों से उसकी व्यग्रता बढ़ने लगी थी। कापालिक क्रियाओं में त्रुटियां होने लगी थीं। आज भी याद कर उसे स्वयं पर क्रोध आया। क्रोध की अधिकता से उसका तन-मन जल उठा।इस बार वह सचेत
पुत्र-प्राप्ति-अनुष्ठान के अद्भुत नवदिवस व्यतीत हुए. रानी के दूसरे ऋतुकाल में वैद्य ने राजा को अपनी बधाई के साथ शुभ संदेश दिया और पाकशाला में निर्देश भिजवाया कि रानी के दूध में केशर डाले जाएँ। उनका कहना था कि ...Read Moreकेशर के सेवन से गर्भस्थ कंुवर चंद्रमा की तरह कांतिमान् और गौरवर्ण होंगे। उसी दिवस से रानी ने नित्य केशर ग्रहण करना आरंभ कर दिया।रानी गजमोती के गर्भधारण का शुभ समाचार प्राप्त होते ही भरोड़ा-राज के समस्त जड़ और चेतन खुशी से झूम उठे। वसंत के पूर्व ही वृक्षों की शाखाओं पर नयी कोंपलें उग आईं, वन में मयूरों ने
शयन-कक्ष की सुखद शय्या पर राजा विश्वम्भर मल्ल सारी रात जगे थे। युवराज को देखकर अपनी आँखों को तृप्त करने की आकुलता में वे करवटें बदलते रहे।रानी गजमोती के प्रसूति-कक्ष तक समाचार सुनते ही राजा दौड़ पड़े थे। परन्तु ...Read Moreके अंदर उन्हें प्रवेश की अनुमति न मिली। इनकी राजाज्ञा वहाँ नहीं चली। प्रसूति-कक्ष का नियंत्रण प्रसव-निपुण धाई और नाइन के हवाले था। फलतः उनके आदेशानुसार राजा छह दिनों के पश्चात् ही कुँवर के दर्शन कर सकते थे।मल्लाहराज ने उन्हें अनेक प्रलोभन दिए, परन्तु वे न मानीं। भीममल्ल, वैद्य, ज्योतिषी और राजरत्न मंगल, राजा की व्याकुलता का आनंद उठाते रहे