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तुम्हारे बाद by Pranava Bharti in Hindi Novels
1 ---- दिल के दरवाज़े पे साँकल जो लगा रखी थी उसकी झिर्री से कभी ताक़ लिया करती थी वो जो परिंदों की गुटरगूं सुनाई...
तुम्हारे बाद by Pranava Bharti in Hindi Novels
7 ---- ये तेरी रूह का साया मुझे परचम सा लगे लरजते आँसू भी मुझको कभी शबनम से लगें यूँ ढला रहता है तू जिस्म में मेरे अक्सर...
तुम्हारे बाद by Pranava Bharti in Hindi Novels
13 ----- इंतज़ार किया सदा ही उस हसीन पल का होगी ख्वाबों की ताबीर, बदलेगी अपनी तकदीर फूल खिलेंगे मन के गुलशन में, चह्केंगी...
तुम्हारे बाद by Pranava Bharti in Hindi Novels
19 -------- न जाने कौन रोक देता है मुझको यूँ ही टोक देता है मुझे कुछ गुनाह करने से मेरे कदम नहीं बढ़ पाते हैं, थम जाते है...
तुम्हारे बाद by Pranava Bharti in Hindi Novels
25---- एक मनी-प्लांट की बेल ने सजा रखा था घर को मेरे दूर-दूर तलक फैली थी सुंदर बेल एक किनारे से दूसरे किनारे तक सच कहूँ...