Baingan by Prabodh Kumar Govil

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बैंगन by Prabodh Kumar Govil in Hindi Novels
बैंगन ! गाड़ी रुकते ही मैं अपना सूटकेस उठाए स्टेशन से बाहर आया। एक रिक्शावाला तेज़ी से रिक्शा घुमाकर मेरे ठीक सामने आ गय...
बैंगन by Prabodh Kumar Govil in Hindi Novels
( 2 ) मेरी समझ में कुछ नहीं आया कि ये चल क्या रहा है, क्या ये दोनों मिले हुए हैं और इन्होंने मेरा सामान लूटने के लिए ये...
बैंगन by Prabodh Kumar Govil in Hindi Novels
( 3 ) महिला के भीतर जाते ही मैं भाई पर लगभग बिफर ही पड़ा। भाई चुपचाप मुंह नीचे किए मेरी गुस्से में कही गई बात सुनता रहा।...
बैंगन by Prabodh Kumar Govil in Hindi Novels
( 4 ) अब मैं सचमुच बिफर पड़ा। मैंने बच्चों के सिर पर हाथ फेरा, भाभी को नमस्कार किया और फ़िर भाई की ओर कुछ गुस्से से देखत...
बैंगन by Prabodh Kumar Govil in Hindi Novels
तो प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के डॉक्टर की सीख के अनुसार मैंने सीट पर इत्मीनान से बैठे- बैठे भी काफ़ी समय निकाल दिया। कुछ...