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जहाँ ईश्वर नहीं था by Gopal Mathur in Hindi Novels
गोपाल माथुर 1 आँख कुछ देर से खुली. बाहर सुबह जैसा कुछ भी नहीं लगा, हालांकि सूरज निकल चुका था, पर वह घने बादलों के पीछे क...
जहाँ ईश्वर नहीं था by Gopal Mathur in Hindi Novels
2 अरे ! शीशे में यह कौन था ! इतने भद्देे से कान, खिचड़ी से बाल, किसी फटे हाल भिखारी सी आँखें......... शीशे में से मेरा चे...
जहाँ ईश्वर नहीं था by Gopal Mathur in Hindi Novels
3 पर उनके पास हितेश की बात मानने के अतिरिक्त कोई चारा भी नहीं था. उन दोनों के चले जाने के बाद हितेश मेरे पास सरक आया, जै...
जहाँ ईश्वर नहीं था by Gopal Mathur in Hindi Novels
4 मैंने कहा, ”भले ही मुझे थाने ले चलो, पर उस बेचारी को कुछ खाने को तो दे दो. लगता है उसने सदियों से कुछ खाया नहीं...