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अगिन असनान by Jaishree Roy in Hindi Novels
अगिन असनान (1) भांडी-बासन में फूल-पत्ती आंक कर उसने हमेशा की तरह दालान में करीने से सजा दिया। भर दोपहर की तांबई पड़ती धूप...
अगिन असनान by Jaishree Roy in Hindi Novels
अगिन असनान (2) उस दिन जोगी घर लौटा तो चाँद बंसबारी के पीछे उतर चुका था। थाली में धरी रोटी-तरकारी पानी-सा ठंडा। ढिबरी का...
अगिन असनान by Jaishree Roy in Hindi Novels
अगिन असनान (3) रोज़ साँझ जोगी को धूले कपड़े थमाती, पान की गिलौरी साज कर देती, खोंट से पैसे निकाल कर हथेली पर धर जब जोगी नद...