Shrikant by Sarat Chandra Chattopadhyay

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श्रीकांत by Sarat Chandra Chattopadhyay in Hindi Novels
मेरी सारी जिन्दगी घूमने में ही बीती है। इस घुमक्कड़ जीवन के तीसरे पहर में खड़े होकर, उसके एक अध्याापक को सुनाते हुए, आज मु...
श्रीकांत by Sarat Chandra Chattopadhyay in Hindi Novels
पैर उठते ही न थे, फिर भी किसी तरह गंगा के किनारे-किनारे चलकर सवेरे लाल ऑंखें और अत्यन्त सूखा म्लान मुँह लेकर घर पहुँचा।...
श्रीकांत by Sarat Chandra Chattopadhyay in Hindi Novels
आज मैं अकेला जाकर मोदी के यहाँ खड़ा हो गया। परिचय पाकर मोदी ने एक छोटा-सा पुराना चिथड़ा बाहर निकाला और गाँठ खोलकर उसमें से...
श्रीकांत by Sarat Chandra Chattopadhyay in Hindi Novels
मनुष्य के भीतर की वस्तु को पहिचान कर उसके न्याय-विचार का भार अन्तर्यामी भगवान के ऊपर न छोड़कर मनुष्य जब स्वयं उसे अपने ही...
श्रीकांत by Sarat Chandra Chattopadhyay in Hindi Novels
इस अभागे जीवन के जिस अध्याय को, उस दिन राजलक्ष्मी के निकट अन्तिम बिदा के समय ऑंखों के जल में समाप्त करके आया था- यह खयाल...