Mann re tu kahe n dhir dhare in Hindi Magazine by sushil yadav books and stories PDF | मन रे तू काहे न धीर धरे

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मन रे तू काहे न धीर धरे

II मन रे तू काहे न धीर धरे II

सुशील यादव

मेरा मन 8/11 के बाद जोरो से खिन्न हो गया है |

जिस तिजौरी के पास जा कर अपनी कमाई का उल्लास मिलता था, खुद की पीठ दोकाने का मन करता था अब उसके पास से गुजरते हुए दहशत होने लगती है|

नोट कमाने-भर का नशा हमने पाला था | क्या कोई गुनाह किया था.....?|

न हमने दलाली खाई न घूस के जमा किये |

लोगो को ज्ञान बाटे,, खेतों में मजदूरों के बीच बैठे, अपनी कला का प्रदर्शन किया, तब जा के लक्ष्मी माता की प्रसन्नता हाथ लगी |

यही मन उदास है | लाख मनाने की कोशिशे होती हैं मगर सब फेल |

तस्सली के लिए खुद से कहता हूँ, ए मन भाई..... तू धीर काहे नहीं धरता......?

दिलासा देने के लिए एक तरफ कहता है, सब दिन एक जैसे नहीं होते | आज गया तो क्या हुआ कल फिर आ जायेगा ......| दूसरी तरफ ये चिता होती है कि यमर के इस पड़ाव में दूसरी इनिंग खेलने का मौका कहाँ मिल सकेगा .........?

तेरी कमाई तो काली नहीं थी साल दर साल, तीन -चार लाख की ट्यूशन लेता था |

चावल, दाल, गेहूँ, चने,प्याज को बेच के नोट तिजौरी के हवाले करता रहा | जिस पर टेक्स की कोई मार नहीं थी वो पैसा जमा किया |

बस तुझे बैक, न जाने क्यूँ एक झांसा लगता था | तेरे भीतर का “इस्लामी- फितूर” तुझे ब्याज की रकम खाने से परहेज करवाता था | तूने इसी के चलते किसी को अपनी रकम उधार भी नही दी |

अलबत्ता, कुछ जान पहिचान के लोगों को वक्त जरूरत काम चलाने को जो रकम दी, वो वापस ही नहीं लौटे | उलट इसके, उन रिश्तेदारों ने रकम वापसी के डर से रिश्तों की मय्यत ही निकाल दी | दुबारा लौट के नहीं आये | तूने भी गड़े मुर्दों का हिसाब नहीं रखा | किस्सा कोताह ये कि तेरी तिजौरी का माल बढ़ता गया |

बहुतों ने इशारों में जमीन- प्लाट-सोना खरीदने की सलाह दी, मगर अखबार मीडिया की खबरों ने कि, “अभी और गिरेगा” ने इस तरफ कदम उठाने नहीं दिया | निर्णय लेने का अपना उपरी माला अछे दिन होने की गरज में सदैव खाली रहा |

जमीन यूँ भी जरुररत से अधिक ही थी, जो वैसे भी नहीं सम्हालती थी और लेकर क्या करते ....? मकान रहने लायक पुश्तैनी और पर्याप्त था | किराए-दारों को दो तो, दो-तीन साल बाद उनसे वापस छुड़ाने के नाम पर लिए अडवांस से भी ज्यादा नोट गिनने पड़ जाते हैं | कोर्ट कचहरी में मामला उलझ जाए तो, हाथ न जमीन आती न मकान |

इन सब झमेलों के चलते जो भरोसा तिजौरी - लाकर पर था, उसकी खटिया यूँ खड़ी हो जायेगी कहा नहीं जा सकता था | कोई सपने में भी जो सोच नहीं सकता था वो काम हो गया | कानून कायदे की मानो धज्जी उड़ गई |

हम बाकायदा पिछले दस आम-चुनाओं के सजग-चैतन्य मतदाता रहे | सुबह सात बजे मतदान देने, बाकायदा लाइन हाजिर हो जाते थे | न हम नेताओं के भाषण को मन में रखते थे न उनके वादों के अमल होने की कोई कामना पालते थे | हमारे मन में पता नहीं क्यों ये शुरू से बैठा था कि जो भी आयेंगे चोर-धोखेबाज-दगाबाज ही आयेंगे | ये वो लोग नहीं होंगे, जो दो जून की दाल-रोटी कमाने निकले हैं | इन्हें भारी-भरकम नंबर दो की कमाई चाहिए | नोटों का पुलिंदा नहीं, ट्रक भर नोट मागने वाले होंगे | ये घपलो-घोटालो के पिछले रिकार्ड को पूछ-पढ़ कर आते हैं कि अब बताओ कितने का तोड़ना है ? भाई बन्धुओं के नाम पर बड़े बड़े ठेके उठाने वाले यही लोग पचास की दशक के बाद देश को आम की तरह चूस बैठे |

एक ओर जहाँ कुछ मसखरों ने, समय-समय पर देश की दशा और दिशा बदल दी | वहीँ दूसरी ओर आरक्षण, जातिवाद, मन्दिर मुद्दे ने राजनीति के मायने बदल दिए | आज नाली सडक बनवाना, या पबिक को राहत देना राजनीति का हिस्सा ही नहीं रह गया |

आज अपने देश में, जहाँ बिना पूंजी लगाए ,सभा में हाथ उठाने का आव्हान करने मात्र पर, पूंजी, नोट और वोट बरसने लग जाते हैं, वहां ईमान की वाट लग जाती है | कोई बाबा अदरक-अजवाइन के गुण बता कर अरबो बटोर लेता है तो कोई व्यायाम-योग की बदौलत बड़े-बड़े ब्रांड-नाम को टक्कर देने की हैसियत वाला बन गया है | रोज नई इजाद के नाम पर नामी प्रोडक्ट में खामियां गिना गिना कर अपनी मार्केटिंग कर रहा है | मीडिया वाले इनकी कमाई के हिस्सेदार बने हुए हैं | अपने टी आर पी की दुहाई देकर विज्ञापन के अलावा कुछ और नहीं दिखा पा रहे | न्यूज को बेचे जाने का उपक्रम जोरों से जारी है |

दीगर मुल्कों में बच्चों को दिखाए जाने वाले कार्टून में शिक्षा और ज्ञान का भंडार, वहां की सरकारें समाहित करवाती हैं, वहीँ हमारे तरफ भीम का पराक्रम नहीं, बल और हिसा पर जोर देने वाली चीज पारसी जाती है | सोच की फेह्रित तो मीलों लम्बी है आप मेरे साथ कहाँ तक चल सकोगे .....?

रामू सुबह की चाय लिए हाजिर हो गया है, सोचता हूँ, उसकी सेवा का इनाम चालीस -पचास हजार दे दूँ, पुराना नोट किसी का, कुछ तो भला कर देगा .....?

उसके हाथ में “कड़क-चाय” को देखकर एकबारगी पटखनी खाए जैसा लगा ..... ? उसे हिदायत दी मेरी चाय में आइन्दा शक्कर-पत्ती ज़रा कम डाला करे, ज्यादा कड़क चाय सेहत के लिए ठीक भीं नहीं होती......|