Papa's doll in Hindi Moral Stories by Divana Raj bharti books and stories PDF | पापा की गुड़िया

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पापा की गुड़िया

पापा कि गुड़िया ।

दिवाना राज भारती।

दो शब्द

दोस्तों आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद, जो आप ने अपनी राय मुझे दी, मेरी लिखीं रचनाओं पर, पापा कि गुड़िया ये सिर्फ एक कहानी नहीं है, एक सच्चाई है, मेरे घर कि, मेरे गांव, मेरे शहर और मेरे देश की, जिसे मैने महसूस किया है। उम्मीद है जब आप इसे पढेंगे तो आप भी महसूस कर पायेंगे। आपका विचार आमंत्रित है। अब आप मुझे फेसबुक पर भी फ्लो कर सकते है। जिसके लिए फेसबुक सर्च बार मे मेरा नाम टाइप करना होगा ।

पापा कि गुड़िया......

मैं पढ़ाई की वजह से अक्सर घर से बाहर ही रहा हूँ। पढ़ाई करके कुछ पाने, कुछ करने कि उम्मीद मे, न जाने कितने पर्व त्योहार में, परिवारजनों के साथ वक्त बिताने का मौका खो दिया हूँ, इसलिए जब भी मैं शहर से गाँव आता हूँ, तो मेरी कोशिश रहती है कि, मै अपना ज्यादा से ज्यादा वक्त, परिवारजनों के साथ बिताऊँ। मेरे पापा भी शायद इस पल का इंतजार, बड़ी बेसब्री से करते रहते है, कि मै कब गाँव आऊँगा। मेरे आने के बाद हमारी बातें ढेर रात तक होती हैं, मै पापा को अपनी पढ़ाई-लिखाई, शहर के बारे मे बताता हूँ और पापा मुझे गाँव-घर, रिश्तेदार और अपने कामों के बारे मे बताते है। इसबार जब मै घर आया तो रात मे तो समान्य बातें हुई। लेकिन अगले दिन दोपहर में, जब मैं अपना नाखून काट रहा था, तभी पापा भी कहीं से आ गयें। पापा बताये कि आज फूफा के, घर के बगल के कोई आने वाले है। मैं इससे पहले, पापा से पूछता कि कौन और क्यों आ रहे है, उससे पहले पापा ही बोल पड़े।

पापा : गुड़िया कि शादी के लिए, किसी लड़के के बारे मे बात करने आ रहे है।

अरे हाँ मैं तो बताना भूल हि गया, गुड़िया मेरी बहन, मुझसे छोटी हैं, अभी-अभी ग्रेजुएशन कम्प्लीट की हैं। गुड़िया की शादी के लिए पापा ने उसकी इंटर पास होने के बाद से ही लड़का देखना शुरू कर दिये थे। शुरू मे तो मैंने पापा को ये कह के, समझा लिया था कि अभी शादी करने कि उम्र नहीं हुई है, शहर मे तो लोग शादी के लिए पच्चीस के पहले सोचते भी नहीं है। इसतरह कोई अच्छा लड़का नहीं मिलने के वजह से तीन साल और गुजर गये। अब गुड़िया इक्कीस की हो गयीं थीं, शादी के लिए ये उम्र भी बहुत जल्दी थीं लेकिन शहर के लिए, गाँव मे तो अधिकतर इस उम्र में लड़कियों कि शादी हो जाती हैं। भले हि उसकी उम्र शादी की हो गई हो या लोगों के लिए बडी़ हो गयीं हो, लेकिन मेरे लिए तो अभी भी वो बच्ची ही थीं, वो बच्ची जो किताब और नोटबुक मे फर्क भी नहीं समझ पातीं हो, और नोटबुक समझ किताब पर ही लिख के भर देती हो। बेटी हो या बहन नादानी करते-करते कब बडी़ हो जाती हैं कहां पता चलता है। किसी ने सच ही कहा हैं कि बेटी बडी़ हो गयी है, ये घर वालों से पहले बाहर वालों को पता चल जाती है। पापा भी नहीं चाहते थे कि इतनी जल्दी गुड़िया कि शादी करें, वो तो चाहते थे अब उसकी बीएड में नामांकन करवा दे, क्योंकि वो दूसरों कि बेटियों कि तरह अपनी बेटियों को भी नौकरी करते देखना चाहते थें। लेकिन आजकल गाँवों मे, लड़का-लड़की का घर से भाग जाना, और शादी-ब्याह मे लड़के के घरवाले द्रारा दहेज का डिमांड करना, आम बात सी हो गयीं थीं, शायद यही वजह थीं कि, अपनी बेटी को शहर कि बेटियों कि तरह, लड़कों से, कदम से कदम मिलाकर चलने लायक बनाने वाला पापा, अपनी अरमान दिल के किसी कोने मे दफन कर, अपनी बेटी के लिए लड़के ढूँढ रहे थें ।

कुछ देर इंतजार करने के बाद, फूफा के घर के बगल के, शिबू काका मेरे घर आ गये। मैं वहाँ से उठ दूसरे कमरे में आ गया, मैं घर पे रहता नही हूँ जिस वजह से शिबू काका मुझे पहचानते नहीं थे, लेकिन मैं उनके बारे में सूना था, इनकी बात होती है कभी-कभी, क्योंकि ये लड़का-लड़की की शादी करवाते हैं जिस वजह से फेमस है। जिस तरह शहर के लोग शादी के लिए, वेबसाइट का प्रयोग करते है उसी तरह गाँव के लोग शादी के लिए शिबू काका का प्रयोग करते है। इनके पास भी शादी-ब्याह वाली वेबसाइटों कि तरह दुल्हा दुल्हन कि लिस्ट होती है। पापा और काका कि बातें होने लगी, शुरू मे तो समान्य बात हुईं, फिर शादी-ब्याह कि बातें होने लगी। मैं दुसरे कमरे में बैठा सुन रहा था कि क्या बातें हो रही है ।

काका - (पापा से) नरायण जी सुनें है, गुड़िया की शादी के लिए लड़का ढूँढ रहे है?।

पापा - (शिबू काका से) हाँ काका, ढूँढ तो रहे है, लेकिन कोई अच्छा लड़का मिल नही रहा है, अगर आपके नजर में कोई अच्छा लड़का है तो बताइये?।

काका - मेरे नजर में तीन लड़का हैं, उन्हीं के बारे मे बात करने आया हूँ।

पापा - लड़के के बारे में बताइये कुछ, जैसे क्या करता हैं, और कितना तक खर्च हो जायेगा?.

काका - पहला जो है उसको अभी-अभी, रेल्वे के डाकघर में नौकरी हुईं हैं। उससे किजिये गा तो दस लाख तक खर्च आयेगा। दुसरा अभी पढ़ाई कर ही रहा है, बहुत मेहनती है उसको भी नौकरी जल्दी ही मिल जायेगी, लड़के कि माँ को बहू लाने कि जल्दी हैं इसलिए शादी कर रहा है, अभी नौकरी नहीं हुईं हैं इसलिए कम खर्च पड़ेगा आठ लाख तक हो जायेगा। तीसरा जो हैं वो लड़का इंजीनियर है, उसमें लगता नहीं है कि आप सकेंगे, क्योंकि आपका घर द्वार और आमदनी भी उतना अच्छा नहीं हैं, उससे किजिये गा तो पंद्रह लाख तक खर्च आयेगा।

इस तरह काका अपनी लिस्ट के लड़के और उनकी किमत के बारे मे बताते रहे। और पापा सुनते रहे, अंत मे काका जब पूछें पापा से कि, बोलिये किस लड़के की बात आगे बढ़ाये, तो पापा मायूस हो बस इतना ही बोले कि मै सोच के बताऊँगा। फिर बात यही खत्म हो गयी और काका चले गये। काका की बात सुन कर, मुझे जोड़ों कि हँसी आ रही थीं, क्योंकि मैं भी इंजीनियरिंग कर रहा हूँ। इसलिए मुझे इंजीनियर के बारे मे सब पता है। उसके रहन-सहन पढ़ाई-लिखाई के बारे में। काका के जाते हि मैं पापा के पास आ गया, पापा किसी ख्यालों में खोये हुये थें और उनके मन कि उदासी उनके चेहरे पर साफ दिख रही थीं। मैं ये सोच रहा था कि, पापा ने काका को, ये क्यों नहीं बोले कि, सकने कि बात न करिए क्योंकि मैं अपने बेटे को भी इंजीनियर बना रहा हूँ और जिस तरह बेटे-बेटियों को सारी खुशियाँ दी है, बचपन से उसकी सारी ख्वाहिशें पूरी की है, तो इस रिश्ते कि बाजार मे से एक दामाद खरीदने कि भी हिम्मत है उनमें। फिर पता नहीं क्यों पापा ने मायूस हो सोच के बताउंगा सिर्फ इतना ही जवाब दे पाये। मैं पापा के पास में आके बैठ गया कुछ देर शांत रहने के बाद, मैने चुप्पी तोड़ी।

मैं - पापा, जिस तरह काका बोल रहे थें अभी, अलग-अलग लड़के कि अलग-अलग किमत के बारे में तो क्या सच मे लड़के वाले को इतना पैसा मिल जाता हैं लड़की वालों से?

पापा मेरे सवाल सुन अपने ख्यालों से बहार आये, फिर लम्बी सांसें लेते हुये बोले।

पापा - हाँ, आजकल शादी मे लड़के वालो की तरफ से दहेज माँगना आम बात हो गयी हैं। अपने आसपास ही देख लो, लोग बेटे को पढाते है घर से बाहर, लेकिन बेटियों को नहीं पढाते हैं घर से बाहर, कारण ये है कि उन्हें लगता हैं कि बेटी तो एक दिन चलीं जायेगी, बेटी तो परायी धन है, तो उनपे खर्च क्यों करे, फिर उसकी शादी मे भी तो खर्च होंगे, लड़के वाले को दहेज भी देने पड़ेंगे, तो क्यों न लड़की के पढ़ाई का खर्च बचाकर उसकी शादी के लिए रखा जाये। इस वजह से लड़कियाँ लड़कों से पिछड़ रही है। अगर दहेज प्रथा नहीं होती हमारे देश में,तो लोग बेटी को भी घर से बाहर पढाते और बेटियों कि शादी भी उनपे बोझ नहीं होती।

पापा बोले जा रहे थें और मै सुन रहा था, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि पापा मुझे आज कि सच्चाई बता रहे है या अपनी उलझनें।

मै बात को आगे बढाते हुये फिर पूछा।

मैं - तो क्या अपने गाँव मे किसी को शादी में इतना पैसा दहेज में मिला हैं? ।

पापा - हाँ, अभी कुछ ही दिन पहले कि बात हैं, इन्द्रकांत(हमारे पड़ोस का एक लड़का) को शादी मे ग्यारह लाख दहेज और घर का सारा समान मिला है।

मै - उसको, इतना पैसा कैसे और किस वजह से मिल गया?, उसको तो पढ़ाई में भी मन नहीं लगता था, मैट्रिक और इंटर मे दो-दो बार बैक लगा, बडी़ मुश्किल से सफलीमैन्ट्री से पास हुआ, और किसी तरह खींच के ग्रेजुएशन पास किया था, फिर लड़की वाले ने क्या देख के दे दिया इतना पैसा?।

पापा - इन्द्रकांत ग्रेजुएशन पूरा होते ही, पटना चला गया था तैयारी करने, छह साल मे कोई परीक्षा नहीं निकाल पाया बैंकों की, फिर किसी दलाल से उसने अपनी सेटिंग लगवाया, बैक की परीक्षा निकलवाने कि दस लाख में, जैसे उसका काम हुआ झटपट शादी कर लिया, और दहेज मे मिले पैसे उसने दलाल को दे दिये, इसतरह से उसे नौकरी भी मिल गयीं और पत्नी भी।

मैं - पापा, आजकल तो लगता है कि शादी का नजरिया ही बदल गया है, लड़का कैसा है, क्या करता है, उसका स्वभाव कैसा है, उसके घर वाले कैसे हैं। ये सब कोई नही जानना चाहता। जानना चाहते हैं तो बस लड़के का काम और उसका दाम।

पापा - पता है राज, आजकल लोग बेटों को बैंक कि डिपॉजिट समझते है, उसके उपर किया खर्च निवेश होता है, पिता कि जिम्मेवारी नहीं, और वो निवेश या डिपॉजिट शादी के समय तोड़ा जाता हैं जिसकी भरपाई एक बेटी वाला करता है। पता है आजकल लोग शादी से पहले घर कि जरूरत के समान भी नही खरीदते है,क्योंकि वो लिस्ट बेटी वालों को जो देना होता है, जैसे फ्रिज, गाड़ी,टीवी,वाशिंग मशीन, और न जाने क्या-क्या । जिसके सिर्फ बेटे है वो सिर उठा के घूमते है और जिसके घर बेटी है सिर झुका के।

मै- लेकिन पापा जब इसतरह लोग बिना समझे बुझे परखे, लड़के को पैसे देने लगे शादी में, तो लड़के वाले का मन तो और बढ़ जायेगा।

पापा - मन बढ ही गया है, कल कि ही बात ले लो रामकंत(इन्द्रकांत के पिता)मिले थे तो बोल रहे थें कि, अब कोई समस्या नहीं है मुझे जब से पैसे वाले संबंधी मिले है, जो जरूरत होती है मिल जाती है, उनके पास दो ट्रेक्टर है वो खुद बोल रहे है एक ले जाइये, हमी मना कर दिये बोले कि अब हम खेतीबाड़ी करना छोड़ दिये है तो ट्रेक्टर ले के क्या करेंगे, उसके बदले मे हमें एक कार दे दिजिये ताकि आने जाने मे सुविधा हो। इसतरह बेटी वाला एक बैंक और बेटा लौकर कि चाबी है आजकल।

इसतरह न जाने कितने सवाल मेरे मन मे उठते रहे और पापा जवाब देते रहे। अभी तक ये तो पता चल ही गया था कि हमारे चारों ओर दहेज का कैसा जाल बिछा है। पता नहीं पापा गुड़िया कि शादी कैसे और किस लड़के से करवायें गे। क्योंकि न पापा मेरे बैंक थे और न मै अपने बहन के लिए पैसे से प्यार, या रिश्ता खरीदना चाहता था। अब कोई आदर्श शादी करने वाला, बिना दहेज का शादी करने वाला, दिल और मन देख के शादी करने वाला लड़का न तो जमीन चीर के आना वाला था और न आसमान फाड़ के। लेकिन ढूँढना था मुझे। अगले दिन मै शहर वापस आ गया।

फिर क्या हुआ ये जानने के लिए अगले भाग कि प्रतीक्षा करे।....