Mummatiya - 6 in Hindi Fiction Stories by Dharm books and stories PDF | मम्मटिया - 6

The Author
Featured Books
Categories
Share

मम्मटिया - 6

मम्मटियाया

By

धर्मेन्द्र राजमंगल

साल गुजर रहे थे. अब छोटू पडोस के गाँव वाले सरकारी स्कूल की दूसरी क्लास में पढ़ रहा था. गाँव के सब बच्चे टिफिन में खाना लेकर जाते थे लेकिन छोटू के घर टिफिन नही था. कमला छोटू के लिए एक पुराने से रुमाल में रोटियां बाँध देती थी. जो स्कूल तक जाते जाते चमचोड़ हो जाती थीं.

साथ में नींबू या आम का अचार होता था. लेकिन अन्य बच्चे स्कूल में खुसबूदार सब्जी भी लेकर आते थे. परन्तु छोटू के घर तो तीन चार दिन बाद ही सब्जी पकती थी. बाकी के दिन अचार या हरे धनिये और हरी मिर्ची वाली चटनी से काम चलाना पड़ता था.

छोटू के लिए तो स्कूल की पट्टिका पर लिखने के लिए खडिया भी नही होती थी. वो गाँव की बेरी के बेर तोड़ कर स्कूल में ले जाता और उनके बदले स्कूल के लडके उसे खडिया देते थे. छोटू को सरकारी स्कूल में भेजने कारण एक और था.

बच्चों को स्कूल की तरफ से तीन किलो गेंहूँ मिलते थे. जिनमे एक किलों मास्टर साहब खा जाते थे और बाकी का दो किलों बच्चों को मिल जाता था. कमला सोचती थी कि दो किलो गेहूँ भी कम नही हैं. साथ ही पढाई भी पढने को मिलती है. बस इसी बात से छोटू को सरकारी स्कूल में पढ़ने बिठा दिया था.

दिशा को कमला के पास से जाए कई साल हो चुके थे लेकिन न तो शोभराज दिशा को लेकर कमला के पास आया और न ही कमला अपनी गुरवत के चलते दिशा को देखने जा पायी. शहर तक जाने का किराया भी कमला के पास नही हो पाता था. और होता भी था तो उसमें छोटे बच्चों की स्कूल की फीस जो महीनों पहले से चली आ रही होती थी वो अदा होती थी.

उधर दिशा अपनी माँ से मिलने के लिए खूब रोती थी. रोज शोभराज से कहती कि उसे माँ के पास ले चले लेकिन शोभराज रोज कुछ न कुछ बहाने लगाकर दिशा को टाल देता था. साथ ही दिशा को कमला के खिलाफ भडकाने में भी कोई कमी न छोड़ता था.

शोभराज दिशा को बताता कि कमला उसे अपने पास बुलाना ही नही चाहती और न ही उसे दिशा की कोई याद ही आती है. धीरे धीरे दिशा के दिमाग में अपनी माँ के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. किन्तु मन फिर भी एक बार अपनी माँ से मिलने के लिए करता था. मन में सौ शिकायतें थीं और सौ दर्द. आखिर इन सबको बयान करने के लिए भी तो माँ सामने होनी चाहिए थी.

लेकिन ऐसा नही था कि कमला को अपनी लाडली की याद न आती हो. वो छुप छुप कर दिशा को याद करती थी और खूब जी भरकर रोती थी. कमला के अपने पांच बच्चों में से तीन बाहर रह रहे थे और दो छोटे छोटे उसके पास रह रहे थे. दो सौतेली बेटियों में से कोई भी कमला के पास न आ पाती थी. सीमा दानपुर में घूमने आती भी थी लेकिन सीधी आदिराज के घर आ कर रूकती.

कमला का घर सीमा के बाप का घर था लेकिन सीमा कमला को अपनी सौतेली माँ ही मानती थी. आदिराज ने सीमा को छोटेपन से ही कमला के खिलाफ कर दिया था जबकि सीमा नही जानती थी कि उसका सारा खेल ही आदिराज ने बिगाड़ा है. उसके सगे बाप को जहर भी आदिराज और शोभराज ने मिलकर दिया है. जिस सौतेली माँ को वो अपना बुरा मान रही थी उसने तो अपने सगे बच्चों को भूखा रख उसकी शादी की थी.

सीमा से बड़ी लीला के पति की कुछ दिन पहले ही मौत हो गयी थी. लीला अपने पति की मौत के बाद पागल सी हो गयी थी. कमला को लीला का दर्द पता था. क्योंकि वो खुद विधवा थी लेकिन भगवान की कृपा से ये अच्छा था कि लीला की ससुराल वाले अमीर थे. उसे कमला की तरह भटकना नही पड़ता था. लीला के तीन बच्चे थे जो बड़े आराम से उसकी ससुराल में रह रहे थे लेकिन कमला के बच्चे घोर तंगी और दुखों में पल रहे थे.

जिन्हें रोज पेट भर रोटी भी ठीक से नसीब नही थी. लीला जब भी दानपुर आती तो वो भी सीधी आदिराज के घर आ कर रूकती थी. कमला के पास दोनों में से कोई लडकी नही आना चाहती थी. क्योंकि कमला के पास न तो उन दोनों के लिए कुछ देने को था और न ही कुछ बढिया खिलाने को. लेकिन आदिराज का घर सम्पन्नता से भरा हुआ था.

एक दिन कमला को बाहर रह रहे अपने तीनों बच्चों से मिलने का मन हुआ. कमला ने अपने छोटे बच्चों को साथ लिया और सबसे पहले अपने मायके पहुंची. जहाँ जीतू और नन्ही रह रहे थे. मायके आते ही कमला का मन खिन्न हो उठा. उसके दोनों बच्चे यहाँ बहुत बुरी हालत में थे.

जीतू के सर पर कई फोड़े निकले हुए थे और इतने पर भी वो गाँव के बाहर लगे सरकारी नल से पानी ढो रहा था. पानी का बड़ा बर्तन उसके सर पर रखा था. उस के सर में हुए फोड़ों में से लगातार पीव(मवाद)निकल रहा था लेकिन कमला के माँ बाप या भाइयों में किसी को तरस न आया. इतने पर भी उस दस साल के लडके से लगातार काम कराए जा रहे थे.

जबकि कमला के मायके और आसपास के इलाकों में रिवाज था कि अपने बहिन और भांजों से कोई भी काम नही कराता था. लोग इनको सबसे बड़ा मानते थे लेकिन इन सबसे परे जीतू बहुत छोटी उम्र का भी था. जो यह सब काम करने लायक ही नही था.

नन्ही घर का चूल्हा चौका कर रही थी. उसने नन्हे से शरीर पर बेहद मैली और चिथड़ों से लिपटी एक फ्रोक पहनी हुई थी. जिसे कमला ने साल भर पहले नन्ही को पहना कर भेजा था. कमला अपने बच्चों की ऐसे हालत देख मर मर गयी लेकिन अपने घर वालों से कुछ कह भी तो नही सकती थी.

कमला को देखते ही दोनों बच्चें अपनी माँ से लिपट फूट फूट कर रोये. कमला को देख उसके मायके के लोग सिटपिटा गये. उन्हें आज कमला के आने की उम्मीद नही थी वरना बच्चों को इस तरह कम से कम आज काम पर नही लगाते.

कमला की माँ सुशीला बहुत निर्दयी थी. बच्चों से इस तरह काम कराने का करतब उसी का था. कमला को कम से कम अपनी सगी माँ से इस बात की उम्मीद नही थी लेकिन कमला फिर भी चुप रही. उसने बच्चों को कलेजे से लगा चुप करा दिया.

जीतू और नन्ही सुबह से भूखे थे. सुशीला ने उन्हें एक एक रोटी दे शाम तक के लिए टाल दिया था और साल भर से यही कर रही थी. दोनों बच्चों के शरीर पहले से भी कमजोर हो गये थे. जीतू अपने छोटे भाई बहिनों को ले घर से बाहर आ गया.

जीतू ने गाँव से आये अपने भाइयों से बोला, “छोटू श्याम तुम लोगों को भूख लगी होगी?” भूख तो सचमुच में दोनों को लगी थी और भूख जीतू और नन्ही को भी लगी थी. छोटू से पहले श्याम बोल पड़ा, “हाँ भैय्या भूख तो लगी है लेकिन नानी तो तुमको ही रोटी नही देती फिर हम लोगों को कहाँ से रोटी मिलेगी?”

जीतू श्याम की तरफ देखता हुआ बोला, “उसकी चिंता मत करो. मैंने चार रोटियों का इंतजाम कर रखा है लेकिन लानी तुमको ही पडेगीं. छोटू तू ले कर आ. देख भैंसों के रहने वाले मकान में धरती पर एक गोबर के कूड़े का ढेर लग रहा होगा. उस ढेर को कुरेदने पर तुझे चार रोटी मिल जाएगी. फटाफट जा उनको ले आ. फिर चारो जनें मिल कर खायेगें.” छोटू ने नाक सिकोड़ कर अपने बड़े भाई जीतू से कहा, “छिः. गोबर में रखी हुई रोटियां खाओगे भैय्या? सब गोबर में सन गयी होंगी?”

जीतू उसे समझता हुआ बोला, “अरे नही. वो गोबर का नही सूखे हुए कूड़े का ढेर है. रोटी हिलाने पर सारा कूडा रोटियों से साफ़ हो जायेगा. अब फटाफट से जा और चारो रोटी बड़ी सावधानी से लेकर आजा.” छोटू अपने भाई के कहने पर चल तो दिया लेकिन उसका मन घिन से भर रहा था. सोचता था भाई भी कितनी गंदी जगह से निकाल रोटी खा लेता है.

छोटू भागकर भैंसों वाले घर में पहुंचा. जहाँ कूड़े के दो ढेर लगे हुए थे. छोटू ने दोनों को कुरेद कर देखा. उनमे से एक ढेर में चार रोटियां एक जगह रखी हुई मिल गयी. रोटी बेहद हल्की हल्की और घी से चुपड़ी हुई थीं. छोटू को उन रोटियों में लगे देशी घी की सुगंध वावला किये दे रही थी.

उसने रोटियों को ठीक से झाड़ा और उनमे से एक रोटी को खा लिया. भूख तो पहले से लग ही रही थी ऊपर से घी की भीनी सुगंध ने उसे ललचा दिया. लेकिन एक रोटी को खा उसकी भूख न बुझी. उसने दूसरी भी खाली. फिर तीसरी और चौथी भी खा ली लेकिन पेट की भूख अब भी न बुझी. रोटी थी हीं इतनी हल्की. चारों रोटियां खाने के बाद छोटू को ध्यान आया कि अब बाकी के लोग क्या खायेंगे? छोटू डरता हुआ उन तीनों के पास जा पहुंचा.

जीतू, नन्ही और श्याम छोटू को आते हुए देख रहे थे और जैसे ही छोटू उनके पास पहुंचा तो जीतू ने सबसे पहले पूंछा, “मिल गयीं रोटियां?” छोटू का पूरा शरीर काँप गया. बोला, “मिल तो गयी लेकिन...” तीनों लोग उसके चेहरे को बड़ी अधीरता से देखने लगे.

मानो छोटू कोई बहुत बड़ी बात कहने वाला हो. जीतू की अधीरता तो जबाब ही दे गयी. उसे लगता था किसी ने उससे रोटीयां छीन ली होंगी. बोला, “लेकिन फिर क्या हुआ? क्या किसी ने रोटियां निकालते हुए तुम्हें देख लिया या किसी ने तुमसे रोटियां छीन लीं?”

यह बात कहते हुए जीतू की अधीरता अपने चरम पर थी. लगता था कि उसे रोटियों के बारे में न बताया गया तो पागल हो उठेगा. शायद ये उसके पेट की भूख थी. छोटू ने डरते डरते कहा, “वो चारो रोटीयां मैने खा लीं. मुझे माफ़ कर देना भैय्या.

रोटियां देख मुझसे रुका ही न गया. मुझे बहुत तेज भूख तो लग ही रही साथ ही उस रोटियों की खुश्बू ने और ज्यादा भूख लगा दी. घी की चुपड़ी हुई ऐसी रोटियां तो मैने आज तक खायीं ही न थीं लेकिन जब तुम लोगों का ध्यान आया तो मैं बहुत शर्मिंदा हुआ. मुझे इस बात के लिए माफ़ कर देना.”

जीतू को भी बहुत भूख लगी हुई थी. उसे छोटू पर गुस्सा भी बहुत आया और तरस भी बहुत आया. उसे पता था जब अथाह भूख में रोटियां सामने होती है तो क्या होता है? आदमी दूसरे आदमी को मार तक सकता है.

जीतू ने उदास हो छोटू से कहा, “यार मैं और नन्ही तो रोज ही भूखे से ही रहते हैं. हमें तो आदत सी पड गयी है भूखे रहने की. मैं तो इस श्याम की वजह से कह रहा था. ये हम सब से छोटा है. पता नही इसे कितनी भूख लग रही होगी?”

छोटू ने ग्लानी में हो श्याम की तरफ देखा. वो नन्हा लड़का चेहरा लटकाए खड़ा था. आँखें देख लगता था किसी भी समय रो पडेगा लेकिन छोटू को इस बात पर बहुत ताज्जुब हो रहा था कि उसका भाई जीतू और नन्ही रोज ही भूखे रहते हैं. उसने जीतू से पूंछा, “भैय्या क्या नानी तुम्हें खाना नही देती?”

जीतू की आँखें भर आयीं. बोला, “नानी रोटी तो देती है लेकिन सिर्फ जीने लायक. सुबह आधी या एक रोटी और इसी तरह शाम को. मैं और नन्ही शुरू में तो भूखे ही रहते थे लेकिन धीरे धीरे हमने लोगों से रोटियां मांगना शुरू कर दिया.

हम लगभग रोज ही किसी न किसी से रोटियां मांगकर खाते हैं लेकिन एकाध दिन ऐसा भी जाता है जिस दिन हम लोग रोटियां मांग नही पाते और उस दिन हम लोग भूखे ही सो जाते हैं. आज जो रोटियां तुम कूड़े से निकाल कर खा आये हो वो भी एक लडके से मांगी थीं लेकिन अचानक नानाजी आ गये. मैंने डर के मारे उन्हें कूड़े के ढेर में छुपा दिया. जब भी नानी को किसी से रोटियां मांगने की खबर मिलती है तो नानी हमें बुरी तरह से मारती हैं. इसलिए हम लोग बहुत छुपकर रोटी मांगते हैं.”

जीतू बात कहते कहते भावुक हो गया था. उसकी आँखें छलछला उठीं. जीतू के साथ साथ. नन्ही, छोटू और श्याम भी रोने लगे. अभी कोई कुछ कहता उससे पहले ही कमला इन चारों के पास आ पहुंची. चारों ने एकदम से अपने अपने आंसू पोंछ लिए लेकिन कमला इन बच्चों की माँ थी.

वो जानती थी बच्चे अभी रो कर चुप हुए हैं. माँ ने आते ही सबसे पहले अपने सबसे छोटे लडके श्याम को गोद में ले लिया. चार साल का श्याम माँ से गिलहरी के बच्चे की तरह लिपट गया. कमला ने चारों बच्चों को अपने पास बिठा लिया और बोली, “अच्छा बेटा तुम लोग क्या बात कर रहे थे अभी और रो क्यों रहे थे? छोटू तू बता क्या बात थी?”

छोटू ने जीतू की तरफ देखा. जीतू नजर नीचे किये हुए खड़ा था. छोटू माँ से बोला, “माँ भैय्या और नन्ही दोनों को नानी भरपेट खाना नही देती और मारती भी है. ये लोग मोहल्ले के आदमियों से रोटी मांग मांग कर खाते हैं. माँ इन्हें अपने साथ अपने घर ले चलो न. वहां तो पेट भर खाना होता है. चाहे सब्जी न हो या घी से चुपड़ी रोटी न हो लेकिन पेट भर सूखी रोटी तो है ही.”

कमला का दिल ये बात सुनते ही भर आया. उसने आते ही जीतू और नन्ही की हालत देख रखी थी. वो अपनी माँ सुशीला का निर्दयी स्वाभाव भी बहुत अच्छी तरीके से जानती थी. कमला ने जीतू और नन्ही को अपने सीने से चिपका लिया और जीतू को पूंछती हुई बोली, “जीतू मुझे सही सही बता. क्या सच में नानी तुम दोनों को भूखा रखती है?”

जीतू ने माँ की तरफ देखा. आज जीतू माँ से कोई भी बात छुपाना नही चाहता था. उसे अपनी माँ से कोई डर नही था लेकिन साल भर का दर्द जब जीतू के अंदर से फूटा तो अपने आप को रोने से न रोक पाया.

उसने सिसकते हुए अपनी माँ को सारी बात बतानी शुरू कर दी, “माँ ये बात सच है. नानी हमें एकाध रोटी देकर रोटी देने से मना कर देती है और जब हम किसी और से रोटी मांगें तो पता पड़ने पर हमें बहुत बुरी तरह से मारती भी है. माँ अब हम लोग यहाँ नही रहना चाहते. हमें अपने घर ले चलो. जब भूखा ही रहना है तो यही क्यों रहें? कम से कम अपने घर में तो रहेंगे.”

कमला की आँखें वहे जा रहीं थीं. कलेजा बच्चों के दर्द को महसूस कर फटा पड़ता था. कमला ने इन दोनों बच्चो को यहाँ इसलिए भेजा था ताकि बच्चे चैन से रह सकें लेकिन यहाँ तो बच्चों की घर से भी ज्यादा बुरी हालत थी.

कमला सोच ही रही थी कि जीतू सुपकता हुआ फिर बोल पड़ा, “माँ अभी एक दिन पहले ही करवाचौथ पर बड़ी मामी ने एक बर्तन में दो परांठे रख दिए थे. जिनमें एक कुत्ते के लिए था और दूसरा गाय के लिए. लेकिन रात में भूख लगने पर एक परांठा मैंने खा लिया और दूसरा नन्ही ने मेरे कहने पर भी नही खाया था.

नन्ही के मना करने पर मैंने वो परांठा खा लिया था. सुबह मामी ने जब उठकर बर्तन के परांठे गायब देखे तो नानी से शिकायत कर दी कि नन्ही ने पूजा वाले परांठे खा लिए हैं. इस बात से गुस्सा हो नानी ने नन्ही को लोहे की करछ्ली से बहुत मारा. माँ तुम नन्ही की पीठ पर देखो. उस करछ्ली की मार के निशान अभी तक होंगे.”

कमला का दिल इस बात को सुन कुम्हला गया. वो नन्ही से बोली, “नन्ही अपनी पीठ दिखाना जरा. दिखा तुझे कहाँ पर करछ्ली मारी थी?” नन्ही भी माँ को अपनी तकलीफ दिखाने के लिए लालयित थी. उसने पीछे मुड कर अपनी फ्रोक पीठ तक उठा दी. नन्ही लडकी नन्ही की पीठ पर करछ्ली की धार के कटे हुए निशान साफ़ साफ दिखाई दे रहे थे.

कमला ने नन्ही को पीठ के निशानों को अपने हाथ से छूकर देखा. नन्ही माँ के छूने से उछल पड़ी. शायद उस जगह पर अभी भी दर्द हो रहा था. कमला का दिल रो पड़ा. उसने खुद कभी अपनी सौतेली लडकियों पर भी कभी हाथ न उठाया था.

आखिर छोटे बच्चों को छोटी सी गलतियों के लिए क्यों मारा जाय? उस गाय और कुत्ते को दी जाने वाली रोटी को अगर बच्चों ने खा लिया तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा? इन्सान ज्यादा महत्वपूर्ण है या जानवर? क्या उसके बच्चों की कदर गाय और कुत्ते से भी गयी गुजरी थी?

कमला मन में कुछ निर्णय ले उठ खड़ी हुई और चारों बच्चों से बोली, “चलो आओ अंदर चलते हैं.” इतना कह कमला बच्चों को ले अंदर घर में चली गयी. घर में अंदर रामचरन और सुशीला के साथ साथ कमला के भाई भी बैठे हुए थे.

कमला ने अंदर जाते ही अपने पिता से गम्भीर हो कहा, “पिताजी मैं चारों बच्चों को ले अपने घर जा रही हूँ.” कमला की बात सुन सब लोग भौचक्के रह गए. रामचरन हडबडा कर बोले, “क्यों? क्या बात हो गयी बेटा. क्या किसी ने कुछ कह दिया तुमसे?”

कमला को अपने घर वालों पर बहुत गुस्सा आ रहा था. अपने पिता से बोली, “कहने को बचा ही क्या है पिताजी? माँ मेरे बच्चों को ठीक से खाना नही देती. ऊपर से बुरी तरह मारती है वो अलग. नन्ही की पीठ पर करछली के निशान अभी तक बने हुए है. भला कोई बच्चों को इतनी बुरी तरह से मारता है क्या?

भूखा बच्चा चुरा कर खाना नही खायेगा तो क्या करेगा? अगर तुम लोग मेरे बच्चों को ठीक से खाना नही खिला सकते थे तो मुझे बता क्यों न दिया. मैं अपने बच्चों को यहाँ से ले जाती. मारने और भूखे रखने की क्या जरूरत थी?

मैं तुम्हारी इकलौती बेटी हूँ और मेरी परेशानी में तुम लोग काम नही आओगे तो कौन आएगा? मैं तुम लोगों के पास मदद मांगने न आती तो ही अच्छा था. कम से कम मेरे मासूम बच्चे इतने प्रताड़ित तो न होते. आपको इन बिना बाप के बच्चों पर जरा भी तरस न आया. कम से कम एक बार तो ये सोच लेते कि इन बच्चों को पेट भर खाना न देने और मारने से इन पर क्या बीतती होगी?

इनके दिल तुम लोगों को बददुआ देते होंगे. वैसे तो बड़े कहते थे कि बहिन भांजे बड़े मान्य होते हैं लेकिन इन बच्चों से घर के काम से लेकर गोबर डालने तक का काम लिया जा रहा है. इतने बड़े बड़े लोग घर में बैठे आराम से खा रहे हैं और ये बच्चे सब काम कर रहे हैं. इस जीतू के सर पर फोड़े हैं और उसी से बर्तन भर भर कर पानी ढुलवाया जा रहा है. मुझे आप लोगों से इस तरह की उम्मीद न थी.”

इतना कहते कहते कमला का गला भर्रा गया. रामचरन कमला की बात सुन अवाक रह गये. उन्हें अपनी बेटी से इस तरह बात करने की उम्मीद नही थी लेकिन रामचरन ने खुद जीतू और नन्ही की बुरी गति होते देखी थी. कभी कभी तो उन्हें भी इन बच्चों पर तरस आ जाता था लेकिन अपनी पत्नी सुशीला के डर से कुछ कह न सके थे.

कमला की बात का सर्मथन सा करते हुए रामचरन बोले, “बेटा तो कम से कम आज की रात तो रुक जाओ. इस वक्त तुम्हारा जाना ठीक भी नही है. रात में बच्चों को ले कहाँ भटकती फिरोगी? मेरे कहने से आज की रात रुक जाओ. कल सुबह ही चली जाना.”

कमला का गुस्सा अपने पिता की बात से थोडा कम हो गया था. वो अपने पिता की बात सुन रुक गयी लेकिन कमला की माँ सुशीला एक भी बात अपने मुंह से न कह सकी. कमला के भाई भी मूक दर्शक बने हुए यह सब देख रहे थे. वे लोग अपनी माँ के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित थे.

कमला दूसरे दिन सुबह अपने घर से दानपुर की लिए चल दी लेकिन रामचरन ने कमला से नन्ही को छोड़ जाने की बात कह दी. जिससे सफर में आराम से जा सकें. उन्होंने कमला को भरोसा दिया कि वे एक दो दिन में ही नन्ही को उसके पास भिजवा देंगे. कमला मान तो गयी लेकिन मन नही करता था कि नन्ही को इस घर में एक दिन के लिए भी छोड़ दे. नन्ही भी बार बार माँ की तरफ भीगी आँखों से देख रही थी.

लेकिन कमला ने सफर की परेशानी की वजह से अपने पिता की बात मान ली. नन्ही को सब कुछ समझाते हुए कमला दानपुर के लिए चल दी. आज जीतू बहुत खुश था. उसके हिसाब से उसे जेल से छुटकारा मिल गया था. उसके चेहरे की ख़ुशी देखते ही बनती थी लेकिन उसे नन्ही की भी फिकर थी.

अगर उसका वश चलता तो नन्ही को यहाँ छोड़ता ही नही. उसे पता था यहाँ का एक एक दिन कितना मुश्किल होता है. नन्ही थोड़ी दुखी तो थी लेकिन मन में अपने पिता के घर माँ के पास पहुंचने की आशा उसे दिल ही दिल में खुश किये जा रही थी.

***