कशिश
उठी थी एक आरजू इस जहाँ से I
एक आरजू ले के उस जहाँ तक II
जमी से फलक दूर तक परवाज है I
देखे कशिश आज रंग लाती है या नहीं II
Dedicated
To
Parents
&
Family
रंगदर्शी कविता कशिश
आरजू के बाद कवियित्री दर्शिता यह द्वितीये काव्यसंग्र
ए प्रस्तृत कर रही है वह ज्यादातर कविता की
आबोहवामें हि जीती है दर्शिता की कविता
रंगदर्शिता का पर्याय है कवयित्री कहती है कि
नादां है जो समज न पाए दिल्लगी
मुफ्लिस थे समज न पाए दिल्लगी
काव्यसंग्रह का शिर्षक है कशिश वह यथार्थ है ये
प्यार के रिश्ते कैसे होते है वह अच्छी तरह
दिखाया गया है
कौन सी कशिश में बंधे हुए है
पल की दूरी सही नहीं जाती है
उमर खच्याम से जो रोमान्टिसिझम शरू हुआ और
हिन्दी –
उर्दू शायरीमें परंपराति हुआ उसकी परछाई है
दर्शिता की यह रंगदर्शी कविता दर्शिताकी कविता
और अधिक वैविध्यपूर्ण बने और जीवन और जगत
के एवं कला के नये नये रूपरंग दिखलाये
डों बहेचरभाई पटेल
कशिश
कौन सी कशिश में बंधे हुए है |
पल की दूरी सही नहीं जाती है ||
नजरो से दूर होते हुए लगता है |
दिल के बहोत ही नजदीक है ||
एक बार रूठे तो जाँ निकलती है |
भूले से बिछडने का नाम लेते है ||
कैसे संभाले नादा दिल को यहाँ |
हर पल मिलने की तडप होती है ||
सखी नजरो में छुपा लेना चाहते है |
दिल में ही बसा लेना चाहते है ||
नादां
नादां है जो समज न पाए दिल्लगी|
मुफ्लिस थे समज न पाए दिल्लगी||
आंसु ओ का हिसाब करने बैठे|
बेकरार थे समज न पाए दिल्लगी||
करते रहे एतबार बेकार बातो पे|
बेफिकर थे समज न पाए दिल्लगी ||
बेहाल हुआ दिल, धडकने बेकाबु|
बेजान थे समज न पाए दिल्लगी ||
जीना हुआ मुहाल कबर में लटके|
मदहोश थे समज न पाए दिल्लगी ||
सखी कहा पे दिल आकर संभला|
नासमज में समज न पाए दिल्लगी ||
नाजुकी
छुपाना कठिन है दिल का हाल|
बताना कठिन है दिल का हाल ||
बड़ा नाजुक सफर है महोब्बत का|
खुदाया कठिन है दिल का हाल ||
उजाले दिल में होते है तेरे आने से|
जानम कठिन है दिल का हाल ||
प्यार के काबिल बना दिया तोबा|
जताा कठिन है दिल का हाल ||
आहिस्ता से बढती है कशिश यारो|
सखी कठिन है दिल का हाल ||
सखी कहा पे दिल आकर संभला|
नासमज में समज न पाए दिल्लगी ||
आगाश
आगाश हो चुका है देखे अंजाम क्या होता है|
आवाज दे चूके है देखे सुनाई देती है या नहीं||
महोब्बत की राह में निकल तो पडे है |
न जाने मंजिल देखे मिलती भी है या नहीं||
जमी से फलक दूर तक परवाज है|
कशिश आज रंग देखे लाती हे या नहीं||
निराला ही अंदाज है नाजो-हुश्न का|
मुदत के बाद पर्दा देखे उठता है या नहीं ||
सखी उस मकाम पे जा पहुंचे है |
पलभर को चैन देखे मिलता है या नहीं||
तुले-सफर
ये तुले-सफर मुसाफिर
कब तक सफर करता रहे |
ये तिशनगी मुसाफिर
कब तक सफर करता रहे ||
भटकती है नजरें
हर तरफ बेजार परेशां सी |
ये जुस्तजु मुसाफिर
कब तक सफर करता रहे ||
जिसको आना था वो
आया नहीं सो जाना पडा |
ये दीवानगी मुसाफिर
कब तक सफर करता रहे ||
मोका-तूफा ने डुबो
ही दिया किनारे किनारे |
ये जुरअत मुसाफिर
कब तक सफर करता रहे ||
मंजिले ईश्क तक
पहुचते थके चलते चलते |
ये कशिश मुसाफिर
कब तक सफर करता रहे ||
चुले-सफरः लम्बा सफर
तशनगीः प्यास
जुरअतः साहस
कशिशः आकर्षग
बंधन
कैसा है बंधन समज में नही आता |
कैसी है लगन समज में नहीं आता ||
चाहे कुछ भी कर के जमाना आज|
कैसी कशिश समज में नहीं आता||
जले तो शमा परवाना साथ जले|
कैसी है दोस्ती समज में नहीं आता||
अनजाने बंधन में बंध चुके है |
कैसी है प्रीत समज में नहीं आता||
सखी किस मोड पे अफसाना बना|
कैसी है जवानी समज में नहीं आता||
शरीक
जीते जी हाल न पुछा जिसने |
वो ही जनाजे को काधा देगे ||
आबादी में बराबर के शरीक थे|
प्यार को अफसाना बना देगे||
हाले - दिल किसे जा सुनाएँ |
दिखाने को पागल बना देगे||
कठिन मंजिल से गुजरे है|
क्या और दुश्वार कर देगे ||
अजीब कशिश में फँसे है |
सखी दिल से जूदा कर देगे ||
शरीकः सामेल
मुलाकात
उम्मीदे-मुलाकात में जीते है|
हमनशी तेरी याद में जीते है ||
दर्दे-ईश्क में मुददतो रोए है|
तडप तडपकर युही जीते है ||
सामने आते कहेना भूल जाते है |
मिलन की आश में जीते है ||
न सहर कटती है न शबे-हिज्राँ |
महवे-दारू में यहाँ में जीते है||
गैरो से फीर्सत गर मिल जाए|
दिदार की तडप में जीते है||
जुदाई में सनम गुजारे दिन-रात |
थाम के जिगर भी जीते है ||
रूखसते-यार न सह पाएगे कभी |
ख्वाबो के सहारे जीते रहेते है||
तस्सव्वुर
तस्सव्वुर में उनका खयाल तोबा|
दिल में साजे-तरब का तौबा||
दिले-मुजतर आज कहेता है|
बजम में रोनके-बजम वो तोबा||
सरे महेफिल में रूसवा करना|
कातिल निगाहो का तीर तोबा||
हलकी तबस्सुम पे जां निसार है|
अंजुमन में पीकर झुमना तोबा||
दिल बेठ गया बजम से जो उठे|
उतफत में आदाब उनका तौबा||
इबतिदा-ए-इश्क में डुब चुके है|
इश्क की इन्तहा और तोबा||
तस्सव्वुरः कल्पना
दिले-मुजतरः व्याकुल मन
इब्तिदा-ए-इश्कः प्रारंभ
साजे तरबः हर्षोल्लास का साज
लगन
आज बठ गइ दिदार की लगन|
खत का इन्तजार करते करते|
कासिद मुजे ले चल नामा के साथ ||
दिल को किस तरह संभाले |
क्याक्या जतन भी करे |
नाइलाज हो गया है वकत के साथ||
अजल ही चारा लगता है |
खुदा हाफिज लिख देना |
जीना मुहाल फरेब-तमन्ना के साथ ||
अजलः मृत्यु
फरेब – तमन्नाः तमन्नाओ का धोखा
याद
रूला जाती है बार बार याद |
दौड जाता हुं कासिद की राद ||
खत कोरा देख समज जाना |
ामबर पढ न ले दिल की चाह ||
सियाही आंको की खत्म हुई |
खत में लिखी दिले-बेताब की चाह ||
नामबर तु ही कर लेना दीदार |
निगाहो से पढ लेगे दिल की राह ||
पैगाम लेकर आए हो तो रूको |
खत में लिखी दिले-बेताब की चाह ||
इज्तिराब बढती जाती है यहाँ |
फकत दिल को है दिल की राह ||
इज्तिराबः बेचेनी
तकदीर
फासले अब तकदीर बन गये |
खवाब अब तस्वीर बन गये ||
वादे जो किये थे प्यार के |
आज वो तो जंजीर बन गये ||
इम्तहान जिंदगी ने लिया है |
यादे अब तोहफा बन गये ||
हसते हुए रूखसत न कीया |
जैसे के हम गैर बन गये ||
खुन हुआ हसरत-अरमान का |
सनम भी बेवफा बन गये ||
दर्दे दिल को आंखे जान गई |
वाइज अब कातिल बन गये ||
सखी यु भी जुदा होना था |
मीटकर अब आजाद बन गये ||
दावा
नर्गिसे – मखमूर को दावा है पारसाई का |
बेवफा नहीं है वो दावा है पारसाई का||
राजे-इश्क-महोब्बत फाश हो गया है|
गाफील नहीं है वो दावा है पारसाई का||
कमसिनी छाई रहेती है हरपल यहाँ |
कातिल नहीं है वो दावा है पारसाई का||
फिर्दोसे – गुमशुदा नजर आती है |
बेदर्द नहीं है वो दावा है पारसाई का||
वाइज सादगी पे जाँ लूटा गया|
जालिम नहीं है वो दावा है पारसाई का||
सखी यही दुआ है सलामत रहे |
नादां नहीं है वो दावा है पारसाई का||
मरहूम-हसरते
हसरते-दिले-मरहूम के खुश रहे |
आशिक की दुआ है सलामत रहे ||
इक लतीफ तबस्सुम हालत संभले |
हसीन नजर मरीजे-गम सलामत रहे ||
तबीब इलाज क्या करे दर्द का |
आजार ही दवा है सलामत रहे ||
राहते-सुकुं मिल जाए दिदार से |
नर्गिशे-मखमूर युही सलामत रहे ||
चारागर ही दर्द देने लग जाए |
खुदा करे उसकी दुा सलामत रहे ||
इलाज वो क्या करेगे हकीम |
पास उनके न कोई सलामत रहे ||
हसरते-दिले-मरहूमः मृत ह्वदय की
आकांक्षा
आजारः रोग
जन्नत
मय-ए-गुफाम कैफ कहां ?
नशे में अब कैफ कहां ?
वाइज से तकाजा न कर ?
कैफे-जिन्दगी में सुकुं कहां ?
शराब का जिक्र नशा फेला ?
मयखाने दर पे खुशी कहां ?
बर्क सी चमकती है आंखो में ?
एसी रोशनी सितारो में कहां ?
तरदामनी पे न जाना दोस्तो ?
लुफ्ते मय में वो बात कहां ?
जालिम शराब है जन्नत यहाँ ?
मयखाने के सिवा ईमान है कहां ?
मय-ए-गुलफामः गुलाबी रंग की शराब
कैपे-जिन्दगीः जीवन का आन्नद
बर्कः बीजली
तरदामनीः भीगा दामन
लुफ्ते मयः शराब का आन्नद
कयामत
मुदते लगी जिन्हे भुलाने में |
वही याद आज आने लगे है ||
कोशिश तो की ती म्टाने की |
याद आ के तडपाने लगे है ||
कयामत सी आने को यहाँ है |
वाइज भी मयखाने जाे लगे है ||
परवाज दिखाइ दी निगाहो में |
आवाज सुन के चौंकने लगे है ||
आंखो आंखो में कटी सदीयाँ|
तस्वीर आज मिटाने लगे है ||
जुदाई में ही खुश थे या रब |
पास आके दूर जाने लगे है ||
पलटकर उसने देखा भी नहीं |
इल्जाम हम पे लगाने लगे है ||
फिर वही दिन याद आ रहे है |
यार खुदा हाफिस कहने लगे है ||
खलिश
खलिश सी हो रही है जिगर में|
उसने देखा हे कातिल नजरो से ||
जमाने छुपाना चाहते है जो|
समज लेगा दिल निगाहों से ||
पहले समजे और मतलब इनका |
बातिन की दिले-नाकर्दा-कार से ||
क्या इसी को ही प्यार कहते है |
बयाँ न हो जबा से, हो वक्त से ||
शाद किसी को दिल में वसा के |
भागते फिरते है जो जमाने से ||
दिले-नादां कैसे समजाये अरमान ?
जूस्तजू में लड गए दिल उन से ||
जुल्म
कातिल को दोस्त बना बैठे |
धोखे को यकी बना बैठे ||
हकीकत नजर आइ दिल |
का दुश्मन ही बना बैठे ||
क्या समजा क्या जाना ?
दिल की लगी बना बैठे ||
दिल तूटा दुआ करने लगे |
जां को पराया बना बैठे ||
शराबी न थे साकी बने |
मयखाना घर बना बैठे ||
सखी जुल्म सहते सहते |
खुद की कब्र बना बैठे ||
ईमान
इमानदारी से बेवफाई न कर ए दोस्त |
जहन्नम बन जाएगी दुनिया ए दोस्त ||
महोब्बत की कसम है वफा करेगे |
जाने बहारा मुँह न मोडना ए दोस्त||
तकदीर में जो लिखा सामने आया है |
ईमान से महोब्बत करना ए दोस्त ||
सदमा लगा है ऐसा दिल को |
तुज से जूड कर जूदा है ए दोस्त ||
बिखर पडा है वजूद यहाँ वहाँ |
कहाँ कहाँ ढूंढेगे हम ए दोस्त ||
सखी किस अदा से जां ली |
दोनो जहाँ के न रहे ए दोस्त ||
सुराही
सामने है सुराही भरी हुई |
गर हाथ में जुंबिश अठा लो ||
खुद ही गीरी परीलाने से पहेले|
चाहो तो सागरो मीना उठा लो ||
जहाँ में कुछ भी इख्तियार नहीं |
बज्म-मय में जाम उठा लो ||
लडखडा के गिर न जाओ देखो |
तशनगी है तो शराब उठा लो ||
बेठकर खुद ही उठा जाम कोई |
तहजीब छोडो मीना उठा लो ||
मयखाने में नाम नहीं लीखे जाते |
सखी प्यार से बलाएं उठा लो ||
जुंबिशः हिलने की शकित
तश्नगीः प्यास
आंखे
आंखो में आंखे डाल के एक नजर देखा |
बार बार उसी नजर को हो किया देखा ||
शराब आने से पहेले पीते रहे आंखो से |
तरसी हुई नजरों ने प्यार से किया देखा ||
तस्वीरे – ख्वाब हटी नहीं कई देर तक |
निगाहे – नाज ने इसी अदा से किया देखा ||
मुददतो से मीली न थी किसी से भी |
क्या जादू किया किस नजर किया देखा ||
सखी झुका लेते थे एक नजर डाल के |
गोया फिर नजर क्युं उठा के किया देखा ?
बर्क
पहेलु से उठकर चल दिये |
याद यु आई चल दिये ||
वाइज तु क्या जाने शराब |
बर्क चमका के चल दिये ||
पीकर मिला जो मजा तो |
कैफे – जिन्दगी में चल दिये ||
खामोशी जाँ निकाल देगी |
जबां से उफ न कि चल दिये ||
शायद मिले न मिले कभी |
गम में मुँह फेर रे चल दिये ||
सखी रिन्द नहीं अब इलाज |
जो मयखाने को चल दिये ||
राहे-मैकदा
न रोको सरे राहे – मैकदा |
आज पी लेने दो जी भरके ||
वक्त बेवकत कुछ नहीं |
थोडी पी लेने दो जी भरके ||
जाने जिन्दगी रहे न रहे |
साकी पी लेने दो जी भरके ||
न आएंगे ऐसे मुकाम फिर |
आज पी लेने दो जी भरके ||
जानते है आदाबे-मैखाना हम |
तौबा पी लेने दो जी भरके ||
सखी खाके-मेकदा है हम |
सागर पी लेने दो जी भरके ||
तिशनगी
बैठे जो बज्म में कयामत आएगी |
उठे जो बज्म से कयामत आएगी ||
उनका हर बार ये कहेना और नहीं |
इनकार न करना कयामत आएगी ||
आश्नाई तूटी तो रिन्द आश्ना हुई |
तु न रूठना कभी कयामत आएगी ||
वाइज को क्या मालूम कैसे पीते हे |
वो भी पीने लगे कयामत आएगी ||
तूट के बिखर न जाए दिल कही |
इसी तिश्नगी में कयामत आएगी ||
सखी चलो अच्छा हुआ चल दिये |
कुश और ठहरते कयामत आएगी ||
जाम
कोई होठो से पीता हे जाम |
कोई आंखो से पीता हे जाम ||
गर पीलानेवाला सच्चा हो यहाँ |
कोई दिल से पीता हे जाम ||
अब सुराही नहीं सागर चाहिये |
कोई जाम से पीता हे जाम ||
कसम न दिलाओ खुदाके वास्ते |
कोई प्यार से पीता हे जाम ||
सखी हम से न छोडी जाएगी |
कोई शोख से पीता हे जाम ||
फुरसत
मुमकीन है असर हो फुरसत का |
फिर तेरा ख्याल तबीयत उदास है ||
शबे गम न पूछो किस तरह कटी |
निकलने लगा दम तबीयत उदास है ||
दिल का लगाना दिल्लगी बन गई |
दिल के लगने से तबीयत उदास है ||
हर शख्त परेशां दुनिया - इश्क में |
दर्द बढने लगा तबीयत उदास है ||
दिल की किस्मत ही तन्हाईयाँ है |
सुकु खो गया तबीयत उदास है ||
आशिक को कोई शराबी न समजे |
सकी फुरकत में तबीयत उदास है ||
जादु
किसका जादु ज्यादा है ?
निगाहे-नाज का या
कैफे-शराब में |
किसका जादु ज्यादा है
नजर मिलाना या
धडकने का सिलसिला ||
करार मिल गया दिले – बे – करार को |
देखा जो एक नजर अन्दाज से ||
किसका जादू ज्यादा है अदाओ में या |
प्यार का सिलसिला ||
क्या कर गई असर कुछ न पूछिए|
कुछ नहीं कहा वो निगाहो ने भी ||
किसका जादू ज्यादा है शाद में या |
तीरे-नजर में ||
निगाहे-नाजः प्रेयसी की नजर
कैफे-शराबः शराब का नशा
शादः प्रशंसा
हसरत
जो भी हसरत थी फना हो चली |
जिन्दगी में कोई अरमां न रहे ||
आखिर महोब्बत का पर्दा उठ गया |
दोनो तरफ से अरमां न रहे ||
हसरतो के फूल मुरझा गये यहाँ |
खारे-आरजू उम्रभर चूमते रहे ||
हसरते – तब्बसुम दिल जलाया है |
तोहफा समज दिल बहलाया है ||
हासिल है कुर्ब, आबाद रहो |
हसरते करनेवाले रोज मरते है ||
सखी अजमाइश देते थक चुके |
चाहत के दिये जलते रहते है ||
खारे – आरजूः आरजू के कांटे
खारे-आरजूः आरजू के कांटे
कुर्बः सामीप्य
आजमाइशः इम्तिहां
दास्तान
चहेरे पे खुसी है दिल का दर्द जाने कौन ?
निगाहो में खुशी है दिल का दर्द जाने कौन ?
गुमान में बेठे है दिल की दास्तान छुपा के |
लबो पे नग्मा है दिल का दर्द जाने कौन ?
जो देखती है निगाहें वही सच नहीं होता |
होठो पे लाली है दिल का दर्द जाने कौन ?
वो ख्वाब है ये जानते हुए भी एतबार किया |
हुश्न पे बहार है दिल का दर्द जाने कौन ?
अंजाम
आंखो में जाम बातो में नशा है |
उसकी हर बात, अदा निराली है ||
जिस से मिलकर जी नहीं भरता |
उस अंजान शनासा का इन्तजार है ||
इस कहानी का अंजाम खुदा जाने |
आज प्यार की पहेली बारिस हुी है ||
कभी हमारी नजर से भी देखो जरा |
एक खुबसुरत प्यारा सा ख्वाब है ||
नादानी
आती जाती हवाए कह
रही है यु ही सही |
जब तक जवानी मस्ती
में यु ही सही ||
वो जो जा बेठे है
कही पे उस पार |
उनकी तमन्ना की
दुनिया है यु ही सही ||
भुल ही थी समजा
फरिश्ता आदमी को |
तेरी नादानी ये
आखरी है यु ही सही ||
जैसी होनी चाहिये
वेसी न थी जिन्दगी |
रकीब मीले दोस्त
के बेश में यु ही सही ||
रूखसत
रूखसत तो हो गये न था मालुम |
विरा कर गया छोड के जानेवाला ||
न कोई खुशी न अश्क आँख में|
विरा कर गया रूठ के जानेवाला ||
सोचा था कुछ तो सुकु मिलेगा |
विरा कर गया सज के जानेवाला ||
मुसाफिर है दो दिन का बसेरा है |
विरा कर गया जग से जानेवाला ||
नजरो में बसाया काजल समज के |
विरा कर गया जबाँ से जानेवाला ||
किसका इन्तजार कौन आनेवाला |
विरा कर गया दिल से जानेवाला ||
सखी सितारें जो चमके आंखो में |
विरा कर गया भूल से जानेवाला ||
हमनशी
बहुत देर हो गई आते आते |
गैरो से फुर्सत मिल गई क्या ||
खयाल-ओ-वहम दिल में छाए |
फिर हम कहा तुम से जुदा हुए ||
विसाल दिल को सुकु दे गया |
हमनशीं याद में अश्क बह गए ||
मीले तो बी एक मुदत के बाद |
दर्द-इश्क सुन सुनकर बहुत रोए ||
बेकरारी उम्मीदे मुलाकात पर थी |
होले-दिल कहना था न कह पाए ||
चुप थे वो और चूप थे जजबात |
वक्त गुजरा आप कहिए, कहते हुए ||
नशा
अजीब सा नशा है बातो में |
अजीब सी दास्ताँ है महोब्बत ||
जुबा से कहा खुदा हाफिस |
नजरो ने कहा खुदा हाफिस ||
देख लिया कमशीन अदाओ |
गुमशुदा क्युँ है दिल की राहे ||
दिल्लगी में होते ही रहे गुमाँ |
दिल की लगी ने कमाल की ||
नजरो के जाम पीने आये थे |
ये क्या ठमा दिया जामे-शराब ||
सखी शबनम टपका रही गेसुं |
समेट कर रखा करो अदाओ को ||
हसरत
ख्वाबीदा हसरत को नसीब न हुई |
तेरी जुल्फो में भी जन्नत नसीब न हुई ||
रूखसार पे लहरा रही है, जैसे बहार आई |
तमन्ना की दुनिया आज नसीब न हुई ||
बिखरी हुई जुल्फे कुश इशारा कर गई |
हाय तेरी हशी जुल्पेनसीब न हुई ||
सुलझाने जो बैठै, और भी उलझ गई |
दिल-सद-चाक फिर नसीब न हुई ||
कहने को किस से कहे क्यां कहे यहाँ |
तेरी जुल्फे दिवाने को नसीब न हुई ||
सखी परेशां जुल्फ खुद दिल भा गई |
साया-ए-जुल्फे परछाई नसीब न हुई ||
सोई हुई
आराम
सैकडो टुकडों में विभाजित दुल
बिखरे केशो की छाया
कायदा
आँखो से पीते है जामे शराब |
दिल से टपकता है खुने शराब||
मयखाने में जाने की आदत न थी |
हररोज का कायदा है पीना शराब ||
माना के पीना बूरी बात होती है |
प्यार सा नशा देती नहीं है शराब ||
फिर बुझाने प्यास चल दिये कहा |
कसमो की लाज रखना तु शराब ||
आज पलको से शबनम छलकता है |
अश्क भी बने हुए है जामे शराब ||
सखी कतरा कतरा पीना शराब |
जी ने वास्ते पी लेना शराब ||
लौ
न बुझाए बुझेगी |
न जलाए जलेगी
ये प्यार की लौ,
खुद-ब-खुद जलती है ||
न दिन देखेगी|
न रात देखेगी |
ये तिश्नगी यु ही,
खुद-ब-खुद जलती है ||
आंधीयों से डरेगी |
तूफोनो से न मिटेगी|
ये दीवानगी यु ही,
खुद-ब-खुद जलती है ||
दिल का रीस्ता
रोक ने से नहीं रूकता आंखो से पानी |
छलक ही जाता है याद में वो तुम्हारी ||
रोक ने से नहीं रूकती आहें दिल की |
छलक ही जाता है याद में वो तुम्हारी||
पलको ने बहोत संभाल के रखा था पानी |
छलक ही जाता है याद में वो तुम्हारी||
दिल का रिस्ता जूडा है यहाँ दि से |
छलक ही जाता है याद में वो तुम्हारी||
दिल की धडकन बडी तेज चल रही है |
छलक ही जाता है याद में वो तुम्हारी||
सखी अश्को से साथ गम बह रहे है |
छलक ही जाता है याद में वो तुम्हारी||
हुशन
ये सूरत और सादगी सदके उसके |
ये अदा और हुश्न सदके उसके ||
अभी रूठे है जाब सदके उसके |
चहेरे पे भोलापन ये सदके उसके ||
कमबख्त दीवाना करके रख दिया है |
भोली भोली बातो पे सदके उसके ||
रंग निखरा है गुलाब की कली जेसा |
होश रूबावालो के सदके उसके ||
कमसिनी उसकी हर जफाओं में है|
प्यारी मुस्कुराहट के सदके उसके ||
मचल जाते है कई अरमान दिल में|
सखी बाकपन के सदके उसके ||
खत
थरथराते हाथों ने खोल दिया खत |
चुपके से कानों में बोल दिया खत ||
देख रहा था हाल कासिद देर तक |
कुछ दिल धडका, छोड दिया खत ||
आदत तो न थी लिखता कोई खत |
बारहा नामाबर हाथ भेज दिया खत ||
उलझन में थे लिख के न लिखे कुछ |
यही अलझन में तो लिख दिया खत ||
सियाह आंखो की लेकर नामा लिखा |
आंखो की साथ ही सोंप दिया खत ||
सखी दीदार की लगन लिख तो दी |
किस्मत के हवाले कर दिया खत ||
नशीली आँखे
किस तरह बयाँ करे उन प्यारी आँखो को |
किस तरह बयाँ करे उन गहरी आँखो को ||
चाहत की तस्वीर रूबरू बयाँ होती है |
किस तरह बयाँ करे उन नशीली आँखो को ||
काजल का पहेरा वहाँ लगा रहेता है |
किस तरह बयाँ करे उन मदहोश आँखो को ||
हाले दिल पल में सुना देती ये है|
किस तरह बयाँ करे उन बोलती आँखो को ||
अश्को के सागर से प्यार जलकता है|
किस तरह बयाँ करे उन बहेकी आँखो को ||
सखी कीस की राह तकती रहेती है|
किस तरह बयाँ करे उन बेकरार आँखो को ||
***
उठी थी एक आरजू इस जहाँ से |
एक आरजू ते के उस जहाँ तक||
आरजू
गणपति
जय गणपति देवा |
मंगलकारी मंगलदायी |
तुम सुख के दाता ||
पार्वतीजी की गोद में |
शिवजी के सथवारे |
पहला स्थान हर घर में |
तुम ही हो विघ्नहर्ता ||
कैसा है बेश घरा |
कैसी है अजब विधि |
हिमालय की गोद खेलते |
तुम्हे ही स्मरे जग सारा ||
सखी
शिव स्तृति
हिमालय की गोद में जा बेठे हो|
कितने शांत और गंभीर बैठे है |
न कोई गम है न कोई खुशी है |
तने करीब आकर बैठे हो ||
गले में है सर्पो की माला |
हाथो में है रूद्राक्ष की माला |
शिर पर धरी है गंगा की धारा||
कितने निर्मल होकर बैठे हो|
उँचे उँचे बर्फीले पहाडो के बीच|
त्रिशुल और डमरू के बीच |
बडे नादाँ होकर बैठे हो |
शिवशंकर भोले हो तुम शिवशंकर |
शांत हो जैसे निर्मल पानी के जैसे |
आसपास पवित्र कुदरत हो गई |
कितने ही भोले होकर बैठे हो ||
काटे नहीं कटता एक पल यहाँ |
कैसे कटेगी एक उम्र अब यहाँ ||
आरजू
अभी भी है स्वप्न मेरा|
इसके बाद आँखो में कोई स्वप्न न हो ||
आरजू काव्य संग्रह में दर्शिता शाह अपनी संवेदना से हमे रूबरू कराती है| उनका ये पहला प्रयास है| आप के लिए पहले अनुभव को, शब्दो में बद्ध किया है | इस में आदमी की कोई एसी चीज गुम हो गई है | फिर भी इसे हँसते हँसते अपनाते हुए कवियत्री कहती हैः
अगर मर जाउँ तो भी भटकता रहूंगा|
मिलने का ये मजार भी अच्छा है ||
हर वक्त अपनी तकदीर लेकर आता है| हर पल का अपना साम्राज्य होता है| कोई किसी को कुछ दे और महान बन जाए ऐसा नहीं | तभी तो कवि कहता है
तकदीर में जो था पाया है |
किसने किसको दिया दुनिया में ||
आदमी जीने की खातिर जवन जी रहा है| चलने की खातिर चलता रहता है| उसका कोई लक्ष्य नहीं| आजका आदमी लक्ष्यहीन बन गया है| उसे अपने बीवन में कोई रूची नहीं| वह क्यों जीवन जी रहा है, उसकी भी उसे खबर नहीं| क्या यह जानकर भी अंजान बनने की बात है ? या फिर आदमी सचमुच ही गुमनाम, गुमराह, विस्मृतीमय जीवन बना जा रहा है| क्या उसके नकाब पर तीसरा नकाब नहीं हो सकता ? कवि का जीवन भी ऐसा ही अनजान और पराया बन गया है |
सफर है न कारवाँ है |
यूंही चलते रहना है ||
शहर है न सहेरा है |
यूंही बसते रहना है ||
राही है न रास्ता है |
यूंही मचलते रहना है ||
सनम है न साजन है |
यूंही सजते रहना है ||
प्यार है न जानसी है|
यूंही दीवाना होना है ||
जैसे चलना, बसना, सजना ये मशीन की तरह अपने आप बनते कर्म हो गए है | दूसरी और सौचो तो आदमी जैसे किसीके लिए या अपने आपके लिये यह सबकुछ नहीं कर रहा है, फिर भी कर्म कर रहा है | इन काव्यो में वक्र्त की गुमनाम खामोशी किसी जहर से कम नहीं |
अजनबी शहर में आदमी अपना मकान ढुंढने की जुरअत कैसे कर सकता है| वक्र्त का परायापन आदमी को हर बार मात कर देता है| ये शहर भी उससे बात नहीं करता, तो रास्ते भी अपनी जिद पर अडे है , और फीर भी एक आदमी सारी उम्र अजनबी शहर में घर ढूंढता रहता है दर-ब-दर | न कोई अता-पता, नाम, ठिकाना, न जान पहचान| बस युंही गुमनाम, गुमराह, बेनाम घर की जैसे बेवजह खोज| वह अजनबी को अपना बनाना चाहता है| पर अजनबी उसे अजनबी रखना चाहता है|
अजनबी शहर, अजनबी रास्ते |
मकान ढूंढते रहे दर-ब-दर ||
नाम न कोई साथ अपने |
किसे ढूंढता दमसफर ||
आदमी अपने प्रेम को पाने तार तार हो गया है| उसने अपनापन, उस प्रेम में निसार कर दिया है| वह अपना नाम, मकान, गाँव, शहर सब भूल गया है| जैसे इश्क आदमी को गुम करने का एक सामान बन गया है| वह अपने प्रेम के सामने सबकुछ बया करना चाहता है| पर अफसोस इस कमीने को कैसे बया करे, कि जहाँ कबीर और गालिब भी इसे बयाँ न कर सके| एक जगह कबीर कहते हैः
अकथ कहानी प्रेमकी, मुँह से कही न जाय|
गूंगे केरी सर्करा खाये और मुस्काए||
कबीर
और यहाँ कवि इश्क की राहो में, इश्क के नगर में गुम हो गया है पूरी जगह | इतना गुम हो गया है कि वहाँ उसकी आवाज सुननेवाला कोई नहीं, समजनेवाला कोई नहीः
हम तो हर हाल में गुम होते रहे|
गुम होने का दर्द किस तरह बयाँ करे||
कवि ने इश्क की एक राह पकड ली है अब चाहे इसका जो बी अंजाम हो| वह किसी पर भी आशरा रखना नहीं चाहता| वह जो भी काम करता है अपने बलबूते पर कर रहा है| उस इश्क का फल खटा-मिठा, जो भी हो खुद सहने को तैयार है, वे खुद बेवफा नहीं, और वे ऐसी जहाँ की परवा भी नहीं करता| उनके लिए यह महोब्बत किसी अंधेरे से कम नहीं| उन्हें मालूम है, इश्क की राहो में रोना, खोना बना रहता है फिर भी बडी वफादारी से इश्क निभाते हुए कहता है गर मोहब्बत करनी है तो रोने की तैयारी रखनी चाहिये और उस में अश्को की गिनती नहीं की जाती |
मुल्जिम मोहब्बत की कसम है तो क्या|
मोहब्बत में अश्को का हिसाब न रखना||
अपनी भावनाओ को ज्यो का त्यों कागज पर उकेरा है|
इनकी संवेदनाओ का प्रवाह तेज है, दर्दीला पन पडा है, जो हमें हर हाल में अपना सा लगता है| इनकी रचनाएँ गुजराती अख़बार संदेश, गुरात समाचार, अल्पविराम डेली, राजस्थान पत्रिका तथा ओल इन्डीया रेडियो पर प्रसारित हुई है| दर्शिता शाह गाने का भी प्रयत्न कर रही है| ये किताब उनके शब्दो का, उनकी भावनाओ का पुंज है|
इनके पास उर्दू शब्द, अरबी, फारसी शब्दो का भंडार है|
इनकी ये संवेदनाएँ किसी न किसी तरह किसी ऐसे सहारे को ढूँढ रही है कि जिसे आदमी बडे प्यार से किसी को अपना कह सके| किसी को अपना कहने का हक्क माँग रहा है ये शब्द ये संवेदनाएँ |
केसरी सीताराम
महफिल
यह सितार यह मुरली यह बीना |
ले जा रहे है किस महफिल में ||
यह दिदार यह नशा यह प्यारभरा दिल |
ले जा रहे हो किस महफिल में ||
नया झंकार नयी धुन नया राग |
ले जा रहे हो किस महफिल में ||
महल और महफिल तो सजे हुऐ है |
राज और राग तो होते ही है ||
सच्चे हो तो इस कुटिया सजादो |
रोते हुए को आज हंसा दो ||
मीनाक्षी बी. शाह
दिल्लगी
दिल के द्धारो पे किसने |
की यह आवाज||
पागल मन तो यही कहेगा|
तेरा मीत आया है आज||
द्धार तो खोले धीरे से मैंने|
उनके दर्शन की आश में ||
देखा क्या तूफानी हवाने|
कर ली मुज गरीब की दिल्लगी|
या दी मेरे दिल को तसल्ली||
मीनाक्षी बी. शाह
आरजू
उठी थी एक आरजू इस जहाँ से |
एक आरजू ले के उस जहाँ तक ||
दुनुया छोड के मिली दुनिया मुजे |
आरजू मुस्तकिल कामयाबी तक ||
जो भी तमन्ना की फना हो चली |
जिंदगी बेकरार हुसूले आरजू तक ||
खुदा गवाह दिल की तडप का |
तमन्ना है रहेम नजर होने तक ||
पर्दा जो उठ गया खलवत का |
खाक हुए गुवार में सेहरा तक ||
सखी आरजू दो से एक हो गई |
तमन्ना दराज है आसमान तक ||
मुस्तकिलः स्थायी, हुसुले आरजूः इच्छापूर्ति
गुवारः धूल, सहराःरण, खलवतः एकांत
दराजः फेलाएं
कहकशाँ
काटे नहीं कटता एक पल यहाँ |
कैसे कटेगी एक उम्र अब यहाँ ||
क्या इसीको जीना कहते है |
मरने की शरूआत है अब यहाँ ||
खाक हो जाएँगे गुबार में यहाँ |
ये कहकशाँ, सुरू होता अब यहाँ ||
कहकशाँः आकाशगंगा
गुबारः धूल
रुठना
रुठे एसे कि, जैसे पहचान नहीं |
मिले एसे कि जैसे अंजान नहीं ||
जा तो एसे रहे कि लोटेंगे नहीं |
मिले एसे कि जैसे अजनबी नहीं ||
संभाले किस तरह दिल को संभाले संभलता नहीं |
मनाये किस तरह उनको मनाने की आदत नहीं ||
कौन आयेगा यहाँ, कीसी का इंतजार नहीं |
मजबुर है दिल से, वरना इतने नादान नहीं ||
लहराती हवाओ
धीरे चलो लहराती हवाओ |
सपनोंकी रानी सोई हुई है ||
आज वो खवाब, नींद में खोई है |
सपनों में वस्ल से, आज अभी सोई है ||
इसे न पुकारना एकबार भूले से भी कभी |
मोती बिखर जाएँगे, नींदो में खो गई है ||
न पुकारो काली घटाओ, न पुकारो हँसी पिझाओ |
तारों के संग खेल के, भोर मस्ती में सोई है ||
नूर-ए-रोशन जवानी
समजकर भोले सनम, यूं न चल दीजिये |
अभी आये हो, ठहरो तो, यूं न चल दीजिए ||
अभी जी भर के देखा नहीं, अभी हाले दिल कहा नहीं|
फिर क्या बात हुई कि यबंही, बिना हे चल दीजिए||
अभी तो महफिल सजी है, नूर-ए-रोशन जवाँ हुई है |
कहीं बीजली गीरनेवाली है, इस तरह यूं न चल दीजिये ||
उम्मीद
कब तक उम्मीद लगाये, बैठे रहे राहों में |
पहचान थी राहों की, छोड आये है पीछे राहों में ||
न शिकवा है किसी से, न गीला है किसी से |
अहसास है बाद मेरे सामाँ, न मिले पीछे राहों में ||
क्यूं तमन्ना की बहारों की, क्यूं चल दिये उन राहो पे |
खुद ही वीरा न कर दी, फिर क्यूं रहे पीछे राहों में ||
मितवा
बाँसुरी सुन के डोले मेरा जीया |
अब तो आजा पुकारे मेरा जीया ||
धून मोहे रुलाये, याद तेरी सतावे |
कहां चूपा है कहां है मेरे पीया ||
याद दिला के हँसते रोते बोले जीया |
सूरत दिखलादे मेरे किशन कन्हैया ||
अहसास
दिल टूटने के बाद दर्द का,
अहेसास हुआ तो भी क्या |
जिन्दगी न मिली मौत की,
तमन्ना हुई तो भी क्या ||
कई लोग है जो जीते नहीं,
फिर चलना हुआ तो भी क्या ||
एक तू ही गमगुसार नहीं,
और हम भी है तो भी क्या ||
खूब नीभीई जाती दोस्ती यहाँ,|
दोस्त न हो तो भी क्या ||
एक तू ही नहीं बेवफा यहाँ,
सब एक से हो तो भी क्या ||
तसव्वुर
कौन आया है यहाँ, कोई न आया है यहाँ |
किसका है इंतजार, कोई न आया है यहाँ ||
तेरे तसव्वुर में दिल, खोने लगा है यहाँ |
तेरा जिक्र तेरे जाने के बाद हुआ है यहाँ ||
कुछ आसार बीने के, नजर नहीं आते है यहाँ |
कहीं फूर्कत के मारे, मर ही न जाये यहाँ ||
मदहोशी
पीकर एक जाम झुम रहे है महफिल में |
कुछ यादो में कुछ अपनी ही मस्ती में ||
पीकर एक जाम झुम रहे है महफिल में ||
कभी पीया था बाम नशीली महफिल में |
उसी मदहोशी में झुम रहे है महफिल में ||
मयखाने में पीकर न बहके थे कभी भी |
हुशन का जाम पीए झुम रहे है महफिल में ||
प्यारभरे नग्मे
इन वादियों में महक उठी है तेरी खुश्बू |
इन फिझाओ में गुँज रहा है तेरा ही गीत ||
कभी प्यारभरे नग्मे गुनगुनाएँ थे साथ-साथ |
आज भी सुनाई देता है, वो तेरा ही गीत ||
वो पुरानी याद, वो प्यारबरे नग्मे, वो खुश्बू|
जैसे पुकार के बुलाता है, वो तेरा ही गीत ||
प्यार की लौ
मुसाफिर है ए भोले सनम |
तेरे जहाँ में ही मुजे बस |
ढूढते रहेना है अपना जहाँ ||
न कोई अनीस साथ मेरे |
न कोई रकीब साथ मेरे |
तेरे ही प्यार की लौ में |
ढूढते रहेना है अपना जहाँ ||
प्यार की सुनी रोहो में |
शायद कभी मुलाकात हो |
तेरे ही प्यार की लौ में |
ढूढते रहेना है अपना जहाँ ||
अजनबी शहर
अजनबी शहर, अजनबी रास्ते |
मकाम ढूँढते रहे दर-ब-दर ||
अजनबी सी हर शय है यहाँ |
मकाम ढूँढते रहे दर-ब-दर ||
छूट गया है देश अपना |
जा पहुंचे अंजान नगर में ||
और न कोई ठोर ठीकाना|
मकाम ढूँढते रहे दर-ब-दर ||
नाम न कोई साथ अपने |
किसे ढूँढता है हमसफर ||
इन अंजान सी राहो में |
मकाम ढूँढते रहे दर-ब-दर ||
नशा
होठो पे हसी, आँको में नशा है |
यहाँ वफा का आलम खफा है ||
यादो में उनकी रोये रातभर |
सवेरा उनका जवाँ जवाँ है ||
हमारी जोली में अरमान सारे |
क्यूं कर ऐसे खफा है ||
सपनो में उनके उजाले भर दिये |
क्यूं घर हमारे धुआँ धुआँ है ||
तकदीर
तकदीर की बात थी, तुमहारी
मिलना रहगुजर में ||
तकदीर की बात है, तुम्हारा
चल देना हमसफर में ||
सोचा न था अंजाम यूं भी,
होता है वस्ल का |
हँसते हँसते जख्म जीये,
तेरे हमसफर में ||
कौन कहेता है बेजान होती
है साँसे हर जनम में |
दिल का धडकना ही काफी
है प्रेमनगर में ||
शामे हिज्राँ
झल्म न था कभी यबं भी,
गुजरेगी सामे हिज्राँ |
ये रंग लायेगी फाक्रा –मस्ती,
एक रोज शामे हिज्रा |
मुहब्बत में कई मक्राम आए,
फिर आयी शामे हिज्राँ ||
शामे हिज्राँ-वियोग की शाम
नादांदिल
कौन है क्या हैः
कुछ नहीं है हम|
तेरी महफिल में,|
बुझी शमा है हम ||
बहलाने दिल को,
आज तेरी महफिल में |
दिल तो न बहला |
मीटकर रह गये हम ||
लेकर कहाँ जाए |
टूटा हुआ हम दिल ये |
जब कि दुनिया हि ,
तेरी छोड आये हम ||
सोचा था कुछ तो,
असर होगा प्यार में ||
नादां थे इतने भी,
कुछ समज न पाए हम ||
मुडकर किस को,
देख रहा है ए-दिल ||
कोई नहीं जिसका ,
इन्तजार भी करे हम ||
चाहत
मिलने को सारा,
जहाँ मिल जाएगा |
पर हमसा चाहनेवाला,
न मिल पाएगा ||
कहने को जमाना,
तुम्हें हाँ देखेगा |
पर हमारी तरह,
कोई यार न कहेगा ||
महफिल में परवाना,
जल के मिट जाएगा ||
पर हमारी तरह,
न रोशनी लाएगा ||
आजमा के देख लो,
तकदीर जानेगा ||
पर हमसा चाहने वाला,
जल न मिल पाएगा ||
आरजू
खुशनशीबी मेरी यहाँ भी चली आई |
तेरे आने से पहेले फिजाँ चली आई ||
गीत बहारों के कोई गुनगुना गई |
आरजू की रोशनी राहो में चली गई ||
आरजू नहीं तेरी, तेरे बीना नहीं |
न करनी थी वो आरजू चली आई||
वक्त
दिन गुजरते रहते है,
वक्त गुजरता रहता है ||
पल हँसाते रहते है,
वक्त रूलाता रहता है ||
कहता है आदमी बदलता है,
पर नहीं वक्त बदलता है |
कहीं उम्र भर थम् जाता है,
कहीं आगे नीकल जाता है ||
वक्त की रफतार नहीं रूकती,
आदमी चलते रूक जाता है |
वक्त के साथ आगे बढना है,
वक्त को पीछे छोड जाना है |
रफतारः गति
परदेश
जाते हो तो जाओ पीया तुम परदेश |
जहाँ जाओगे वहाँ, हमे पाओगे ||
कहते हो याद आना, न करना |
पर दिल का न एतबार करोगे ||
गर याद हमारी रूला जाए कभी |
निगाहो से अश्क न बहाओगे ||
भूल जाना कभी मिले थे यहाँ हम |
पर हमारी वफा यूं न भूलाओगे ||
बेचेनी गर दिल की बढ जाए तो |
चुपके से यहाँ लोट आ जाओगे ||
प्यारभरी निगाह
इतने प्यार से देख रहे है हमें वो |
के जैसे कत्ल करलेवाले है वो ||
युं ही प्यार से देखेंगे हम ईन्हें |
यूं ही खडे उम्र गुजारनेवाले है वो ||
क्या हकना प्यारी मदभरी निगाहों का |
कि जैसे बरबाद करनेवाले हे वो ||
किस तरह चुराकर नजरे जाए हम |
जैसे के शिकार करनेवाले है वो ||
मोत का सामाँ
हम से पहले हमारी मौत,
का सामाँ पहुँच गया |
मुश्किल था जीना यहाँ ,
जो पथ्थर पहुँच गया ||
इस कदर बरबाद हो चूके,
है उनकी मोहब्बत में |
की मोहब्बत से पहले,
खंजर यहाँ पहुँच गया ||
जीये तो जीये किस तरह ,
इस कायनात में यहाँ |
कि उम्मीद ही से बर,
उम्मेदवार पहुँत गया ||
उम्मीद
ऐक वो गालिब था, जो जीने से पहेले मर गये |
एक हम है जो, मरने से पहले जी जायेंगे ||
एक रोज रंग लाएगी फाक्रा, मस्ती हमारी |
एक रोज हमारी दीवानो में, होगी गीनती ||
किसीने क्या खूब कहा है, उलफत न करना |
दिल्लगी में गवाँ दी हमने, अपनी तो जो ||
बडी फूरसद से बनाया है, उनको रबने |
बडी बेदर्दी से दिल को, तोडा है उसने ||
पहुंच न पाए उस मंजिल, पे जहाँ कोई |
वहीं ले चला है हमें, कारवाँ कोई ||
मुलाकात
हम से मुलाकात को वादा है आज |
फिर दिल तोडने का इरादा है आज ||
सुननी है तो सुन लो दिल की आवाज |
फिर दिल ने तुमको पुकारा है आज ||
महफिल से चल देगे तुम्हें छोडके आज |
महफिल में ठहरने की जिद न करो आज ||
मुजको हवा का रूख बता देती है |
शायद उनके आने का संदेशा है आज ||
तोडकर दिल मेरा चैन न पाओगे कभी |
एकबार आजमाईश का मौका है आज ||
राज जो छूपाया था दिल ही दिल में |
निगाहों से फिर तीर ताका है आज ||
सहमी सी साँस तिरछी तिरछी नजरे |
साजन के रूठने का मौसम है आज ||
आजमाईशः खातरी
फूल
फूल होता तो बिछा देता |
प्यार से तेरी रैहों में आज ||
बादल होता तो बरसा जाता |
प्यार से तेरी बगियाँ में आज ||
पवन होता तो गुंजा देता |
प्यार से तेरी कलियाँ में आज ||
बसंत होता तो खिला देता |
इस बगियाँ में आज ||
जाम होता तो छलका देता|
तेरी सुहानी महफिल में आज ||
भँवरा होता तो मंडराता |
इस वन उपवन में आज ||
दिवाला होता तो मारा फिरता|
पागल की तरह गली में आज ||
शब होता तो फैला देता|
सितारों की रोशनी में आज ||
रवि होता तो चमका देता |
इस सुहाने मौसम में आज ||
मृदंग होता तो बजा देता |
तीतीना धीनी धीना में आज ||
साज होता तो सुना देता |
प्यारभरा नग्मा यहाँ में आज ||
शायर होता ते शेर कहता |
तेरे लाजवाब सबाहत में आज ||
खुदा होता तो दुआ देता |
तेरे लिये खुशी की में आज ||
सबाहतः सुंदरता
अर्श
दोस्ती के लिये, न जिंदगी के लिये |
वक्त रूकता नहीं किसी के लिये ||
प्यार के लिये, न शाशिकी के लिये |
वक्त रूकता नहीं किसी के लिये ||
कदम दो कदम, सभी साथ देते है |
कोई रूकता नहीं किसी के लिये ||
मोत आती है, एक ही पल में |
वो रूकती नहीं जिंदगी के लिये ||
देरो-दरम बहोत ही, मिल जाते है |
अर्श नहीं किसी के लिये ||
अर्शः स्थान
कातिल
किस पे इल्जाम लगाये हम |
मुजसा चहेरा है कातिल का ||
बन के आये थे अनिस,
रकीबो के वेश में ||
न रकीब है न दोस्त,
महोरा है जालिम का ||
दिल के कातिल जालिम,
कैसे वो अनिस है ||
तुम्हें न भुला सकेंगे हम,
रिश्ता है मोहब्बत का ||
किस हक्क से तोडा दिल,
क्या पाया तुमने |
सितारों में दिखेंगे हम,
सुहानी रातो में ||
अनिसः दोस्त, रकीबः दुश्मन
तसवीर
एक तस्वीर ही थी काफी जीने के लिए |
पर तकदीर ही न थी कि दिदार हो जाए ||
यादो को दामन में समेट लेना चाहते है |
इस तूफान के बहाव में बिखर न जाए ||
कौन कहेता है दीवाना चमन हुआ है |
हर कली मुस्काई है बहारो के आने से ||
और क्या रह गया है इस जिंदगी में |
तनहाई-दर्द के सिवा कुछ नजर न आए ||
उलझन
किस तरह उलझन को सुलझाएँ |
और भी उलझते जा रहे है ||
समज में नहीं आता क्या करे |
किस तरह उलझन सुलझाएँ ||
जा तो पहोंचे है उस मंजिल पे |
जहाँ रेन बसेरा रहा है ||
निकल तो पडे है उन राहो में |
पर रहगुजर बिछड गया है ||
किस सोच में डुबे हुए है मुड के |
पीछे भी नहीं जा सकते है ||
न आगे भी बढ सकते है |
आप तो कहाँ विरानीओ में ||
जलवे
कितने जलवे बिखर गये |
तेरे इंतजार में तेरे ख्याल में ||
क्या करे ये इश्क भी |
जालिम शै हे जो तडपाता है ||
जान चुके है दिल्लगी थी |
वरना कौन दिल लगाता है ||
वादा जूठा हर शै जूठी थी |
सिर्फ मोहब्बत पाक है ||
यूं तो बरबाद दो चूके है |
कैसे सँभालना कैसा समजना ||
दिल न बस में था न है |
फिर नाकाम कोशिश से क्या ||
महफिल
महफिल में आए हो |
जरा रूको तो ||
थोडा तुम भी पीओ |
थोडा पीलाओ तो ||
फिर इस महफिल में |
झुम भी जाओ ||
पीकर एक जाम एसे |
जरा रूको तो ||
न जाने कल ये पल |
मिले न मिले ||
न जाने कल ये महफिल |
सजे न सजे ||
आज पीकर कुछ इस |
तरह तुम बहेको तो ||
फिर होश में आना है |
अब होश में आओ तो ||
बेहोशी का आलम कुछ|
इस तरह छाए ||
न तुम होश में आओगे |
हम बहकेंगे तो ||
पीते जाए झुमते जाए |
इस महफिल में ||
बस युं ही लडखडाते हुए |
तुम झुमो तो ||
महफिल से जाने की |
जीद न करो ||
महफिल को रंगीन|
होने भी दो ||
शायद कोई दीवाना |
फिर सज़ा दे ||
शायद कोई नग्मा |
फिर सुना दे तो ||
रिश्ते
रिश्ते निभाँए नहीं
जीये जाते है|
रिश्ता ही आदमी
की पहचान है ||
वक्त बदल जाता है
रिश्ते नहीं बदलते |
दिल बदल जाता है ||
रिश्ते नहीं बदलते ||
वो रिश्ता ही क्या
जो तूट जाता है |
रिश्ते ही आदमी को
आदमी बनाता है||
न जाने क्यूं रिश्ते
बदल जाते है|
वो रिश्ता ही नहीं
पहचान है शायद ||
माँझी
दूर है किनारा हो
माँझी दूर है किनारा |
पार लगा दे नैया
माँझी दूर है किनारा ||
कह रहा है बहाव पानी
का दूर है किनारा |
दूर है किनारा हो
माँझी दूर है किनारा||
साहिल पे नैया कहीं
डूब ही न जाए जरा|
दूर है किनारा हो
माँझी दूर है किनारा||
जाना है पार
हम जाएँगे पार |
एक हो तेरा साथ
माँझी दूर है किनारा ||
साहिलः किनारा
निगाह
उसीको सोचते
है जिसे देखा नहीं है |
उसीको सोचते है क्यूं
जिसे देखा नहीं है ||
एक धूंधली सी
तस्वीर निगाहों में है |
जो कभी ख्वाब
में ही देखा करते है||
आज वो नजरों
के सामने ही खडे है |
उसीको सोते है
जिसे देखा नहीं है ||
अजनबी को ही
दिल का महेमान बनाया है |
ये क्या सज़ा दी
अपने आपको हमने |
जो कभी भी न
मिलेंगे उनकी तमन्ना है |
इंतजार न जाने
दिल क्युं करता रहता है
उसीको सोचते है
जिसे देखा नहीं है ||
खोया है जिसे
ए दिल तुमने हँसते हँसते |
उसे पाने की तमन्ना
दिल करे हँसते हँसते||
पर हाय री किस्मत हाथ न वो आये
हाथ आए तो दिल को ठुकराकर चल दिये ||
उसीको सोचते है जिसे देखा नहीं है ||
रहगुजर
कांटोभरी है रहगुजर
थोडी दूर साथ चलो |
मुश्किल है चलना
थोडी दूर साथ चलो ||
दूर कहीं दूर तक
बहुत दूर साथ चलो |
हो न सके किसी को खबर
थोडी दूर साथ चलो ||
मंजिल तो मिल ही
जाएगी मंजिल की तमन्ना में |
दूर सही तो दूर तक
थोडी दूर साथ चलो ||
आशियाना बनाएंगे
कहीं दूर बहोत दूर |
प्यार का जहाँ बसाने
थोडी दूर साथ चलो ||
नादाँ
आये तो जरा ठहरो,
दिल-ए-नादाँ|
कुछ अपनी कहो कुछ
हमारी सुनो ||
यूं मुस्कुराकर चल दिये
यूं दिल तोडकर चल दिये |
ये दिल्लगी भी ठीक नहीं,
कुछ अपनी कहो कुछ हमारी सुनो ||
यूं तो बहल जायेगा दिल,
फिर भी महफिल होगी सुनी |
देख शमा जली परवाने की,
साथ जलने की आवाज सुनो ||
क्या बात हो गई सनम,
क्या खता हो गई सनम |
कहीं दम नीकल रहा है,
कहीं टूटने की आवाज सुनो ||
मिलेगा चैन जाँ से गिजर के,
वरना जिंदगी में क्या रखा है|
ये दिल्लगी ठीक नहीं,
कुछ अपनी कहो कुछ हमारी सुनो ||
पथ्थरो का शहर
ये पथ्थरो का शहर है,
हर चीज है बेजुबा ||
कौन सुनेगा तेरी ये,
फरियाद भी यहाँ||
होठो को सी ले ,
आंसुओ को पी ले |
कदरदां नहीं है,
कोई भी यहाँ ||
रास्तो तुमहे कैसे,
बेवफा कह दूं |
हमसर न मिलेगा,
कोई भी यहाँ ||
शहिद
वतन पे फिदा हो जाते है जो|
कोई याद नहीं रखता है यहाँ ||
सभी मतवाले है सभी है गुमानी |
किसीको क्या कोई जीए मरे यहाँ ||
तुमको तो मीटना ही है आखिर|
तू मुस्कुराकर फना हो जा यहाँ||
जीते जी तो कोई न पहेचानेगा |
मरने पर दो अश्क न बहेंगे यहाँ ||
नीलामी
उनके आने की बात करते हो |
क्यूं दिल तडपाने की बात करते हो ||
आना होता तो खुद ही आ जाता |
क्यूं पैगाम भेजने की बात करते हो ||
मैंने देखी है नीलामी मोहब्बत की |
क्यूं दुनियादारी की बात करते हो ||
मौसम
चुपके से कुछ कह,
कह रहा, गुलाबी मौसम |
ये महकी हुई हवाएँ,
ये प्यारा सुहाना मौसम ||
कल कल बहता हुआ पानी,
झर-झर बहते हुए झरने ||
कोई गीत सुना रहा है जैसे,
चुपके से कुछ रहा है कह ||
झील में आज चाँद नजर आया |
शब खिल उठी है दुल्हन जैसे ||
मंद मंद बहता हुआ ये समीर |
चुपके से कुछ रहा है कह||
इबादत
रंगदिल तुज से क्या,
फुर्कत की बात करे |
बेवफा तुजसे क्या,
मुहब्बत की बात करे ||
बडी बेदर्दी से क्युं ,
तोडा है तुमने दिलको|
तुज से हम क्या,
मलम की बात करे ||
दिल का चमन क्यूं,
ऐसा उजाडा है तुमने |
तुज पे हम क्या ,
महेर की बात करे ||
प्यार किया क्यूं ,
बेवफा नादाँ तुमने |
पथ्थर से हम क्या ,
इबादत की बात करे ||
फुर्कतः वियोग
तनहाई
तनहाई का शिकार है,
सारा जग यहाँ |
परेशान हर कोई है ,
हर शै है यहाँ ||
ढूँढो तो है सबकुछ ,
चैन न है यहाँ |
ढूँढते ही है रहेना,
सुःख चैन यहाँ ||
कौन कहेता है मिलती ,
जिंदगी भी यहाँ |
मौत भी आती है तडप |
तडपकर यहाँ ||
इन्सान भटकता है उदास ,
मारा मारा यहाँ |
तनहाई का शिकार है ,
सारा जग यहाँ ||
जाम
महफिल में बैठे है कोई नई बात नहीं |
जाम पीकर झुमें है कोई नई बात नहीं ||
हिज्र में अश्क बहाना कोई नई बात नहीं|
रहगुजर में ही मिलना कोई नई बात नहीं ||
तेरा ही ये बेवफाई कोई नई बात नहीं.|
तेरा ही है ईंतजार कोई नई बात नहीं ||
पूछे कोई जो एक रोज हमारा भी हाल |
तुजे याज भी हम न आए, नई बात नहीं ||
निगाहें
तुम्हे चाहने के बाद, मुश्किल में जान आई |
न दिल में चैन है, न दिल को करार है |
तुम्हे पाने के बाद, मुश्किल में जान आई ||
न फिजा कभी आई, न फिजा कभी आई |
तेरे जाने के बाद, मुश्किल में जान आई ||
निगाहें उलझी हुई, ये ग्सुं बिखरे हुए |
न भाया तेरे बाद, मुश्किल में जान आई ||
न तुम आ सके, न हम भी बुला सके|
फिर भी है ईंतजार, मुश्किल में जान आई ||
अब तो आ जाओ, कि जां पे बन आई है |
कसम खाने के बाद, मुश्किल में जान आई ||
कजाः मृत्यु
हंसी झुल्फ
देखा तुजे दिल दीवाना हो गया|
मस्त निगाहों का दीवाना हो गया ||
दीवाना न होता पागल हो जाता |
हंसी झुल्फ का दीवाना हो गया ||
ये तेरी शोखियाँ, लटबिखरे गेसुँ |
इन में उलझ के दीवाना हो गया ||
दीवाने तो न थे देवाने हो गये |
नाझो अदाओ का दीवाना हो गया ||
वादा
न तुम आये न हमने बुलाया |
फिर भी हमे है इंतजार |
न कोई खत, न कोई पैगाम |
फिर भी हमे है इंतजार ||
न तुमने कहा न हमने सुना |
फिर भी दिल ने कहा सुना ||
वक्त ने भूला दिया मगर |
दिल भी आज है बेकरार ||
जी न सकेंगे बिन तुम्हारे |
वादा भी किया है झूठा ||
ख्वाहिश
हजारो ख्वाहिश फना होती है |
राह में तलाश जिंदगी होती है ||
कौन सी ये रहगुजर होती है |
राह में तलाश जिंदगी होती है ||
मोहब्बत में उम्र कम होती है |
राह में तलाश जिंदगी होती है ||
राहबर
हमने जिन्दगी से दोस्ती कर ली |
हमने अजनबी से दोस्ती कर ली ||
मिले सफर में हजारो तुमसे |
बनके राहबर से दोस्ती कर ली ||
इस बेवफा जहाँ में वाईज से |
हमने महफिल से दोस्ती कर ली ||
गुजरी है उम्र फरेब में तुमने |
तन्हाईयों में हम से दोस्ती कर ली ||
मिलेगा कोई कारवाँ राहो में |
रहगुजर से यूं ही दोस्ती कर ली ||
अंजाम मोहब्बत का जानते है|
फिर रकीबो से दोस्ती कर ली ||
याद
पीकर जाम झुम उठे है महफिल में |
उनकी यादो में, कुछ अपनी मस्ती में ||
यहाँ पीकर तो भी न कभी बहेके थे |
बेहाल होकर झुम उठे है महफिल में ||
झुम उठे है महफिल में ||
पीकर एक जाम न उन्हें भूला सके |
न याहें मीटा सके, मीटते रहे मस्ती में ||
न पीने का सलीका न झुमने का |
यूं ही झुमते है मदहोसी में मयखाने में ||
जीते रहे हैं अंक उम्मीदो के सहारे |
खो गये है किसी की प्यारी झुल्फो में ||
कभी पीया था जाम नशीली नजरों से |
आज भी महसूस कर रहे है फिजाँ में ||
तसव्वुर
कोन आया है यहाँ, कोई न आयेगा यहाँ |
तेरे तसव्वुर में दिल खोने लगा है यहाँ ||
तेरा जिक्र तेरे जाने के बाद हुआ है यहाँ|
जीने के आसार नजर नहीं आते है यहाँ ||
कहीं फुर्कत के मारे मर न जाए यहाँ|
यादो को जतन से संभाले रखा है यहाँ ||
गगन से भी उँचा मेरा प्यार है यहाँ |
तुज ही पर दिल मीटेगा हरपल मेरा यहाँ ||
दस्तूर
किसीकी यादो में अश्क बह रहे है |
वो जो किस महफिल से जा चूके है |
ये वो जो महफिल से जा रहे है ||
वफा सिखाने आये थे |
वो वफा करने आये थे |
या वो बेवफा होकर चल दिये है ||
उनसे न हुई वफा कभी |
हमसे न हुई जफाँ कभी |
या वो दोनो ही बेवफा हो गये है ||
वफा का दस्तूर है ईंतजार |
जफा का दस्तूर है इम्तिहान |
या दो दिल ईंतजार कर रहे है ||
जालिम
नादाँ समज के छोड न देना जालिम |
शीसा समज के तोड न देना जालिम ||
हजारो गम मिलेंगे मोहब्बत में सनम |
गम देख जहाँ से कोई गम न कर ||
चल देंगे जहाँ से कोई गम न कर |
पर तेरी बेवफाई मंजूर नहीं जालिम ||
सफर
न सफर है न मंजिल है|
अब कोई न उम्मीद है||
मिले थे एक रोज जहाँ |
एसी न कोई ख्वाहिश है||
मरते रहे यहाँ जिस पर|
एसी कहाँ दोस्ती है ||
उम्मीदो के दरिया में डूबे |
कस्ती का कहाँ माँझी है ||
लाखो है गम जहाण में |
बचने की कहाँ जगह है ||
रोशनी
क्या हुआ किसको क्या खबर |
किसे हुआ असर यहाँ क्या खबर ||
तमन्ना फना हो चली |
आरजूँ फना हो चली ||
आरजूँ परवान हो चली |
मिलना किसको कैसे,
कौन जाने क्या खबर ||
एक अहसास है दिल में,
कौन है सारे दिल में |
तू ही तो अपना माँझी है,
साहिल की क्या खबर||
होती है जहाँ महफिल,
खुशियो का आलम है |
एसे में तेरा आना,
या अल्लाह क्या खबर ||
जिंदगी
मिलती है जहाँ जिंदगी |
कहीं वो अजनबी तो नहीं ||
हरजाई न कहो उसे तुम |
कहीं वो तकदीर तो नहीं ||
साथ चले कदम दो कदम |
कहीं वो मंजिल तो नहीं ||
मुश्किल के मारे है बहोत |
कहीं वो मजहबा तो नहीं ||
कहते है जिसे दिल्लगी|
कहीं वो हरजाई तो नहीं ||
महजबीः सुंदर
हरजाईः निस्ठाहीन
सलीका
आज फिर जा पहुँचे महफिल |
पीने जाम ढूंढते रहे महफिल ||
पीयु एक जाम तो झुमे जग |
न पीयु तो खाली लगे महफिल ||
पीकर गुस्ताखी न हो जाए सखी|
पीकर तुम भी रोशन करो महफिल||
सलीकाः तरीका
हसरत
एक अहसास की जरूरत है |
जीने को गम भरी दुनिया में ||
लाखो है जहाँ में गमगुसार |
किसे गम मिला दुनिया में ||
राहतें, उल्फते, नाकाम हसरतें |
चंद गीनी यादे दुनिया में ||
ठहर गई मंजिले ही राहो में|
बेकार है आहें दुनिया में ||
तकदीर में था जो पाया है सखी |
किसने किसको दिया दुनिया में ||
बंदगी
दिल बहलाने का ये ख्याल अच्छा है |
न मिलने का ये ख्याल भी अच्छा है ||
चाहते है सारे जहाँ की खुशियाँ मिले |
दिल बहलाने का ये ख्याल अच्छा है ||
किस सोच में ये दिल डूबा हुआ है |
तसव्वुर का ये ख्याल भी अच्छा है ||
तुम मेरी जिंदगी हो बंदगी भी हो |
अपनो का ये ख्याल भी अच्छा है ||
हर बार अपने ही श्याल में उलझे रहे |
आज तेरा यह जवाब भी अच्छा है ||
अगर मर जाउँ तो भी भटकता रहूंगा |
न मिलने का ये मजार भी अच्छा है ||
पुकार
मिला था एक रोज चैन |
वही ढूंढ रहा है दिल ||
मिला था एक रोज प्यार |
वही ढूंढ रहा है दिल ||
चले आओ चले आओ ||
जहाँ गूंजा करते थे प्यार के नग्मे |
उस फिझाओ में, उस गुलशन में |
वही आवाज दे रहा है |
चले आओ चले आओ ||
दूर से एक पहचानी आवाज |
कब से पुकार रही है दीवाने को |
कहां हो कहां हो तुम |
चले आओ चले आओ ||
इतना तडपाना ठीक नहीं जालिम|
देख लो अकबार हाल दीवाने का ||
कितने बेहाल है हम |
चले आओ चले आओ ||
चमन
सफर है न कारवाँ है |
यूं ही चलते रहना है ||
शहर है म सेहरा है |
यूं ही बसते रहेना है ||
राही है न रास्ता है|
यूं ही मचलते रहना है ||
सनम है न साजन है |
यूं ही सजते रहना है||
प्यार है न जाँनशी है |
यूं ही दीवाना होना है ||
मोड
मनासिब तो नहीं यूं राह को मोडना |
कई रास्ते बदल जाते है चलते चलते ||
अनजानी सी राहो में कारवाँ ढूंढते है |
देखे कौन मिल जाते है चलते चलते ||
आसान तो नहीं है राहों को मोडना |
न दिल ही माने न कोई हो सूरत |
एसे में फिर याहों का मौसम आया |
मुडकर फिर देखने लगे चलते चलते ||
याद कुछ वक्त एसे ही दिला गया |
न जी सकते है न कोई इलाज |
एसे में फिर प्यारभरा पैगाम लाया |
रूककर फिर चलने लगे चलते चलते ||
दर्द
कहने से गर कम होता,
दिल का दर्द |
पीने स् गर कम होती,
दिल की प्यास ||
तो कौन नजर आता,
मैयखाने में |
कहने से गर कम होता,
दिल का दर्द ||
यूं ही कोई नहीं पीता,
यहाँ पैमाना |
प्यास न बुझे तो कोई,
क्या करे झलाज|
मयखाने में न होते तो,
खत्म हो जाते |
कहने से गर कम होता,
दिल का दर्द ||
शायद मोहब्बत में ही,
होता है असर|
तडप तडप कर जीये,
जाए कोई उम्रभर|
यबं भी जीनी गँवारा,
होता दिल को |
कहने से गर कम होता,
दिल का दर्द ||
मुमकीन तो नहीं अब,
यादो को भूलाना |
बार बार कोई याद,
आये तो क्या करे |
भूला देना गर बस में,
होता भूला देते |
कहने से गर कम होता,
दिल का दर्द ||
तसवीर
वो दिल ही कहाँ से लाए,
जो यादो को तेरी भूला सके |
वो निगाह कहाँ से लाए,
जिस में तेरी तस्वीर न हो ||
वो बहार कहाँ से लाए,
जो तेरा पैगाम लेकर आए |
वो फिझाँए कहाँ से लाए ,
जहाँ बिना तेरे रोशनी हो ||
था पैमाना कहां से लाए,
जो बिन पीए छलक उठे ||
वो फूल कहां पे सजाए,
जिससे तेरा दामन महके |
वो नग्मा कहां से लाए,
जो तेरी शाम सुहानी करे ||
कोरा कागज
जब भी सामना हुआ कोरे कागज का |
जैसे सेहरा में दिखे दरिया पानी का |
न कलम ने साथ दिया न प्यास बुझी ||
कलम देख रही थी अंगडाई कागज की |
जैसे तमन्ना की दुनिया में जवानी आई |
सोये ख्वाबो ने बदली तकदीर कागज की ||
यूं कोई गीत छेड गई प्यारी आवाज |
यूं कोई नग्मा सुना गई प्यारी आवाज |
जैसे गजल सुना गई प्यारी आवाज ||
तलब
खुदा बनना आसान है,
खुदाई तलबगार |
इन्सान बन के दिखादे,
इन्सान के रखवाले |
देरो दरम में ढूंढ लिया,
छूप छूप के रहनेवाले ||
मंदिर मस्जिद में,
रहेना बहोत आसान है |
मुश्किल तो है,
रहेना इन्सान के दिल में |
सितारो में ढूंढ लिया,
छूप छूप के रहनेवाले ||
बड़ा आसान है,
यहाँ राहो को दिखाना |
बड़ा कठिन है,
यहाँ उन राहों पे चलना |
सहरा में ढूंढ लिया,
छूप छूप के रहनेवाले ||
तलबः इच्छा, तलबगारः इच्छुक
तू ही बनाता है,
तू ही बिगाडने वाला ||
दिल ही नहीं है,
हर कोई है खिलोना |
मूरत में ढूंढ लिया ,
छूप छूप के रहनेवाले ||
काश ! तुज पे,
न आए कभी हिजरात |
काश तुज पे,
न आए कभी कयामत|
कायनात में ढूंढ लिया,
छूप छूप के रहनेवाले ||
सिर्फ एकबार,
इन्सान बना के दिखा दे |
सिर्फ एकबार,
इन्सान के दिल में बस |
इन्सानों में ढूंढ लिया,
छूप छूप के रहनेवाले ||
हिज्ररातः जुदाई की रात,
हिज्ररातः जुदाई की रात, कयामतः प्रलय
दूरी
जितने हो नजरो से दूर ,
इतने हो दिल के करीब |
मेरे हमराझ हमनवाज,
तुम तो हो मेरे शरीखे-सफर |
क्यूंकर भूला पाएँगे तुम्हें,
मेरी जाँ निसार हो तुम |
क्यूंकर देख सकेंगे तुम्हें,
जाते हुए जाने तमन्ना |
जाना चाहो जाओ तुम,
न रोकेंगे कभी बी तुम्हें |
लौटकर फिर चले आओगे,
खिंचे खिंचे मेरे सरकार ||
शरीखे-सफरः जीवन साथी
तडप
प्यार करते हो तो,
इजहार भी करना सीखो |
यूं न तडपाओ भला,
कुछ तडपना भी सीखो ||
फुर्कत पे मेरी एक,
दिन चिराग जलाओगे तुम |
मेरी रूह को ईतना,
यकीन है लौट आओगे तुम ||
गर खबर मिल,
जाए हमारे मौत की कभी ||
न अश्क बहाना,
न यादों में सताओंगे तुम||
रूहः आत्मा
मोड
ऐसी तकदीर नहीं कि निगाह उठती ,
और दीदार-ए-यार होता |
ऐसी तकदीर नहीं कि जुबाँ बोलती ,
इजहार-ए-मोहब्बत होता ||
काश कि दीदार-ए-यार हो जाता |
काश कि इजहार-ए-मोहब्बत हो जाता |
न दिल तडपता न निगाह नम होती |
काश कि खुदा इतना नम होता |
काश कि हो जाता किसी से प्यार |
काश कि कह सकते दिल की बात |
दिल खुशी से झुमता निगाहे हँसती |
काश ऐसी तकदीर होती हमारे पास ||
दीदार-ए-यार से क्या होता भला |
इजहार-ए-मोहब्बत क्या होता भला |
निगाहे और जुबां पे क्या भरोसा भला |
काश दिल भी इतना नादाँ न होता ||
गुजारा
कल तक थे दिल से भी दूर |
आज जा रहे है नजरो से दूर |
कल तक थे नजरों के पास |
आज आ गये है दिल के पास ||
दिल का है जो हाल,
किस तरह बयाँ करे |
होठो को हैं सीये,
किस तरह गुजर करे |
मुश्किल में है जाँ,
किस तरह जिये जाए |
धडकने बेकाबू है,
किस तरह दिल संभाले |
लब्ज बेजुबां हो गये,
किस तरह जबान खोले |
जाँ उलझा गई है,
किस तरह मर भी सके ||
गुजाराः निर्वाह
शीशा
काश पथ्थर ही होता,
शीशे का न होता ये दिल |
टूटने पर आवाज होती,
बेआवाज न होता ये दिल ||
पथ्थर की तरह सजता,
किसी की बेनमुन मूरत में |
पथ्थर की तरह पूजाता,
किसी भगवीन के मंदिर में |
कभी किसी को खुदकी,
तस्वीर न दिखाता ये दिल ||
न असर होता तूफाँ का,
न किसी तरह आँधी का |
सबकुछ सहता चुपचाप ,
अपनी मस्ती में घूमता |
कभी किसी को अपनी,
पहचान करवाता ये दिल ||
आहिस्ता
आहिस्ता आहिस्ता किसी के,
कहमों की आहट सुन |
धीरे धीरे मचल ए दिल,
किसी के धडकन की आहट सुन||
मस्ती की बहारे बेजान हो न जाए|
जवानी कर रही है पुकार सुन ||
एक फूल से बगियाण महक रही है |
झुम झुम झुमती हुई आवाज सुन ||
पहचान
जलाये है किस के लिये राहों में दीये |
ढूढंते है फिर से तेरी यादों के लिये ||
जब तक पहचान न थी मारे फिरते थे |
आज मिलकर भी पराए आँखो के लिये ||
पूछा करते थे जो मिलने का सबब हमें |
आज फिर जलाये हे तेरी राहो में दीये ||
अब जलने की वजह न बता पाउँ |
बस जलते है, रोशनाई के लिये ||
सुनामी
दरियाई भूकंप है सुनामी |
मारी ननामी है सुनामी ||
इस की लपेट में जो है आता|
वो है अपनी जाँ से भी जाता ||
यूं पानी का बहाव है आता |
जैसे मौत की छाया ले आता||
मोजों की लपेट में जो भी आता |
बेशक अपनी जाँ से भी है जाता||
कौन किसे बचाये है हर|
कोई है इन में डूबाता जाता||
जीवन मृत्यु के इस पल में |
खुदा भी याद न किसी को आता ||
केलिडोस्कोप
टूटे फूबटे काँच के टूकडो से बना है |
कुछ गीने रंगबीरंगी टूकडों से बना है ||
एक ही नली के अंदर पूरी है रंगोली |
बाहर से सादा अंदर पूरी है कारीगरी ||
नये आकार से बनी है प्रतिकृति |
खूब बेजोड सुंदर जैसे है मेघधनूषी ||
कुछ मोती कुछ रंगीन काँच के टूकडे |
पर लगती है मनमोहक सुंदर कारीगरी ||
जिस तरफ से देखो जहां से देखो |
बनती है हर बार नई नई सबाहत ||
सबाहतः सुंदरता
सुनामी
जिसने बनाय उसीने डूबोया |
जहां से आया वहीं पे है जाना ||
अजब है तेरी लीला तारणहार |
गजब है तू ही खेली मारणहार ||
कभी हँसाया कभी गोद में सुलाया |
कभी रूलाया कभी पास बुलाया ||
कभी झंझावात बनके तूफाँ मचाया |
कभी बगियन में हँसी फूल खिलाया ||
कैसी निराली रीत है तेरी |
कैसी सामिरी दिखाई तुने सुनामी ||
सामिरीः जादूगिरि
फागून
फागून आयो रे आयो फागून आयो |
साथ अपने रंगबीरंगी होली लायो ||
रंगो की जैसे लहराती गोपी संग |
पीचकारी भर कान रे होली आयो ||
हर कहीं गुलाल के बादल धीरे है |
मस्ती की बहार में जवानी लायो ||
खुशीयों के फूल सपने सजाये |
प्यार के रंग से दिलो को महकायो ||
होली के रंग में ऐसे मिले दिल |
जैसे लहू में रंग रे होली छायो ||
कुछ ऐसे रंग दिया दिलों को |
प्रेमनगर में आँधी के बादल लायो ||
फलसफा
फलसफा बेहाली का किस तरह बयाँ करे |
ये कहानी कभी और सही ||
फलसफा बरबादी का किस तरह बयाँ करे |
ये सबब न पूछना कभी ||
दास्तोने जिन्दगी न सुना पाएंगे कभी कहीं |
हर कोई सामिल है यहाँ नाम कैसे बयाँ करें ||
न अपनों ने समजा न गैरो ने समजा यहाँ |
हर कोई नादान है किसे दर्दे हाल बयाँ करे ||
न सीता को चैन मिला, न मीरां खुश हुई |
हर कोई फरियादी है फरियाद कहाँ बयाँ करें ||
हबीब
वो दिल ही क्या जिसमें दर्द न हो |
वो दर्द ही क्या जिसकी दवा न हो |
वो जख्म ही क्या जिसमे कोई जलन न हो ||
कौन हबीब मिले यहाँ हर कोई है बेवफा |
कौन समजे यहाँ बात हर कोई है पशेमां |
कौन पूछेगा यहाँ हाल हर कोई है परेशान||
कोई हमदर्द मिले यहाँ हमराज भी मिले |
कोई इन्सान् मिले यहाँ जो पशेमां न हो |
कोई तो मिले हमसफर जो साथ रहे सदा ||
आँखे
आँखो में है जो तसवीर
दिल में बसाना चाहते है |
आँखे कही बयाँ न करे
दिल का जो हाल है ||
आँखो में जो बसे है
जैसे दिल में धडकन है |
कहीं ये राझ न खुले
जिसे दिल में छुपाया है ||
आँखो में गुजरता
ख्वाबो का काफला है |
कहीं ये ख्वाब न
नजर आए दुनिया को ||
आँखो से टपकती
है शबनम की बूँदे |
हम तुम डूबे है
प्यारभरी मस्ती में ||
प्यार दिल की
आँखो में समायी है |
उनकी आँखे है
दिदार से भारी भारी ||
तारीफ न करो
प्यारभरी निगाहो की |
आँखें हुई जाती
है शर्म से पानी पानी ||
पलको में समाये
है ख्वाब कीतने ही |
आँखें से सुनाई
न जाएगी ये बाते ||
हाले-ए-दिल
दिल का जो है ये हाल,
सुनाया न जाएगा|
आज उनको हाल-ए-दिल,
सुनाया न जाएगा ||
कहने को बहोत कुछ है,
कैसे कहे किसे कहे हम |
होठो पे आते आते रूकी है,
कितनी ही एसी बाते ||
शायद कहते हुए जमाना लगे,
पर कहानी तो होगी बात |
आजनहीं तो कल ही सही,
जो हाल हे छुपाएँगे कैसे ||
आज फिर कह भी न सके,
दिल की दिल में रह गई |
काश निगाहों से पढ ले,
हाल-ए-दिल का मुददआ ||
आरजू
आरजू ने तेरी रूला दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के ||
दिल्लगी ने तेरी भीगो दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के ||
जुस्तजू तेरी दिल से निकल न पाएगी भला |
आरजू तेरी यूं ही हे बेकरार मचल हुए दिलमें ||
क्यूंकर दिखाई प्यारकी लौ नादाँ दिल को |
क्यूंकर बिताई प्यारकी शब्र इन्तजार में तेरे ||
आरजू
दिल-ए-नादान यूं न,
उदास हो इस तरह |
आरजू यूं बेकरार रहे,
न मचल इस तरह ||
है किसे वक्त इस कायनात,
में किसी के लिए |
एक हम ही नादाँ है इंतजार में,
इंतजार करे इस तरह ||
साथ न मिले किसीका कोई,
गम भी तो नहीं |
है एक आरजू बस हर आरजू,
बर रहे इस तरह ||
आरजू
पलको में समाई है कितनी आरजू|
कभी तो बर आए, कोई हो इलाज-ए-आरजू ||
तमन्ना की दुनिया में जवानी बहक रही हाँ |
किस तरह बयां करे बेकाबू हुई जा रही है आरजू ||
दिल्लगी को कोई दिल की लगी बना बैठा |
ईस तरह तडपा गया फिर जवाँ हो गई आरजू ||
सब्र कर अपनी तडप पे दिल-ए-नादाँ |
तेरी हर सारजू सखी, मेरी है आरजू ||
आरजू
दफन हो जाएगी साथ मुदआ-ए-आरजू |
इस तरह न तडपा जालिम मिट जाए आरजू ||
फिक्र ने तेरी इस तरह जलाया है |
कि किसी भी सूरत में म्ट नहीं सकती आरजू ||
पूछिये क्या हो सबब दिल-ए-जलन का |
कि हर हाल में सिमट कर रह गई है आरजू ||
इर्शाद
हम से इर्शाद है
यूं ही हँसते रहा करो |
ये क्या कह दिया जालिम
हमें यूं न कहा करो ||
सदा रहे हो मस्ती में
तो, मस्ती में बस जीया करो ||
हर आरजू बर आएगी
ईमान से आरजू किया करो ||
अपना पराया कोई नहीं
सब को अपना किया करो ||
मस्ती के पल बीत जाएगे
फिक्र छोड के जाया करो ||
सिलसिला
मुझे याद है वो शाम जहां हम मिले थे |
फिर वही बातो का सिलसिला चलता रहा ||
न था मालूम फिर अश्क बहने लगेंगे |
फिर रूठने मनाने का सिलसिला चलता रहा ||
गर तुम से हो सकेगी वखा कभी हम से |
फिर बदलने का सिलसिला चलता रहा ||
सुनाई जाती है दास्ताँए-मोहब्बत दर-ब-दर |
फिर चर्चा का सिलसिला चलता रहा ||
बेरूखी
आज उनकी बेरूखी, बेमानी बयाँ करती है |
आज उनकी नजरे, बेअदबी बयाँ करती है ||
क्या क्या न कह गयें दिदार-ए-यार |
आज उनकी साँसे, रूआब बयाँ करती है ||
कह तो दिया था, छोड दिया पीना जाम |
आज उनकी आवाज बेशर्मी बयाँ करती है ||
क्या करे इलाज, सबरत नजर नहीं आती |
आज उनकी बात, बेमानी बयाँ करती है ||
शायद हम ही न, समज पाए बेवफाई |
आज उनकी समज, नासमजी बयाँ करती है ||
कसम
खुदा को छोडकर हमारी कसम खाने लगे |
ये क्या गिस्ताखी कि वो हमे आजमाँ लगे ||
अजनबी दिल का महेमान बनाने लगे |
आज वो खुदकशी के रास्ते पर चलने लगे ||
किसे रवा किसी की जाँ की इस जहाँ में |
कि आज वो खुद को हवाले करने लगे ||
पहचान न थी राहों की उन राहों पर चलने लगे |
ये क्या गुनाह वो सरेमंजिल करने लगे ||
जाम पे जाम छलके जा रहे है महफिल में |
कि आज वो महफिल में बंदगी करने लगे ||
सरेमंजिलः मंजिलपर
जाम
इसे जीना कहते है तो मरना किसे कहते है|
इसे पीना कहते है तो पयासा किसे कहते है||
आज जीने के लिए पी रहे हे जाम-ए-शराब|
कल मरने के बहाने का बहाने पी लेंगे जाम||
हमें कसम न दिलाओ न पीने की |
न पीएँगे तो जियेंगे किस तरह से हम||
नजरों से बहोत पीला दिये जाम पे जाम |
आज महफिल में पी लेने दो, दो घूँट जाम||
इर्शाद
हम से ये इर्शाद हे न पीना गम |
ये क्या कह दिया जालिम न छू जाम ||
अलग ही तरीका होता है पीने का जाम ||
कोई नजरों से पी लेता है यहाँ जाम |
कोई होठो से पी लेता है यहाँ जाम ||
दोनो ही सूरत में पीया जाता है जाम |
कोई नया ढंग सीखो पीने का जाम ||
प्यास बुझाने पीया करते है क्यूं जाम |
दिल की लगी को मीयाने पीते है जाम ||
न प्यास बुझती है न दिल की लगी बुझती |
फिर क्यूं यहाँ बार बार पीते है जाम ||
हवा
झोका हवा का आज उनकी खुश्बु ले आया |
पागल मोंजा आज उनकी यादों को ले आया ||
महसूस होता होगा प्यार जो कभी था |
आज तक महका रहा है दामन दिल का ||
आज तक धडका रहा है चमन साँसो का |
कभी जो धडका था दिल का अहसास था ||
कदम
वफा की उम्मीद न रख दिल-ए-नादाँ |
बेदर्दो की दुनिया में न फस दिल-ए-नादाँ ||
हर कदम पे बसते है इन्सान यहाँ |
कितने है फिर भी इन्सान यहाँ ||
गरज परस्त जहाँ में वफा तलाश न कर |
बेमानी है हर शै न रूक दिल-ए-नादाँ ||
कर भरोसा खुद पे हो बुलंद ऐ दिल |
तेरा हौसला तूजे मंजिल दिखलायेगा ||
न कर एतबार संगदिल इन्सान यहाँ |
आगे कदम बढा न डर दिल-ए-नादाँ ||
कातिल
अपने कातिल को चारागर कहते है |
ये क्या खूबसूरत खता कर रहे है ||
चौदवी रातों में सज के निकलना |
किसी को भी कातिल बना देगा ||
दिन-रात का हिसाब रखते नहीं |
अब तो हर दिन सुहाना दिन है||
बेनकाब घुम रहे है कहकशाँ में |
होने लगे और भी जवाँ वो है ||
वस्ल
मिलना होता ही है बिछडने के लिए |
भरोसा होता ही है टूटने के लिए ||
दिल का लगाना जैसे खेल बना है |
दिल का मिलना होता इतफाक है ||
किस पे करे कैसे करे एतबार |
एतबार होता है एकबार भूल से ||
गर हो जाती है भूले से मोहब्बत |
नीभ जाती है उम्रभर मोहब्बत ||
अश्क
पीना जरूरी है तो अश्क पी लेना |
जीना जरूरी है तो गम पी लेना ||
ये क्या बात हुई पीए जा रहे हो |
आगे से पीना खुन-ए-जिगर पीना ||
कोई मयखाने में, महफिल में पीता है |
हिम्मत हो तो सामने बैठकर पीना ||
देखते है किस में दम है पीने या नशे में |
दोनों ही सूरत में जान ही निकल जाएगी ||
चहेरा
आज जाने की जीद न करो |
अभी जी भर के देखा भी नहीं ||
अभी रूठने मनाने का मौसम है |
अभी हाल-ए-दिल सुनाया नहीं ||
अभी दीदार हुए है जानेमन के |
अभी तो दिल नम हुआ नहीं ||
जी भर के देख ले चाँद सा चहेरा |
अभी चहेरा पूरा देखा भी नहीं ||
अभी तो आये है खिस तरह जाने दे |
सखी आज जी भर के देखा नहीं ||
महसूस
महसूस होता है पास होते हुए दूर हो |
दिल को यकीन नहीं के पास ही हो ||
किस जजीरों में जकडे हुए हो |
नजरो के सामने, दिल से दूर हो ||
कोई तो बात है वरना दूर क्यूं हो |
आखिर इरादा क्या है कि दूर हो ||
अपनापन
सँभालना हमनशीन तेरे आगे अपने है |
बचना हमनशीन तेरे पीछे अपने है ||
अपनों ने ही ठुकराया है, वरना गेरो की कहाँ ताकत |
आज बेगाने तो बने है, कल तक जो अपने थे ||
चौट तो एसी दी है, कभी भी भूल पाएँगे |
आज गुमान में है, कल तक जो अपने थे ||
किस तरह भबला, बैठा वो बाँकपन |
खूब निभाया रिश्ता, मोहब्बत तु ने हसीन |
आज फकिर बने है, कल तक जो अपने थे ||
इरादा
आज भी न आए वादा कर के |
कब तक इंतजार करते रहेंगे ||
बेजान सी हो गई है नजरें |
तलब दिदार की गुम हो गई ||
वस्ल का इंतजार था |
जो खो गया किसी अंधेरे में ||
वो वस्ल क्या जो वक्त पे न हो |
वो बारिस क्या जो प्यास न बुझे||
गर पानी ही प्यास न बुझाये |
झाम का हिसाब ही क्या मय में ||
आज ये तय कर ही लिया है |
न उम्मीद करेगें, न इंतजार ||
आना हो तो खुद ही आ जाना|
अब कभी भी पैगाम न भेजेंगे ||
खामोशी
लब्ज खामोश है, दिल परेशान है |
आज न तडपाओ, दिल उदास है ||
मिले थे अंक रोज अजनबी की तरह |
आज न मिलो ऐसे दिल उदास है ||
रूठकर एक पल चैन न पाओगे |
आज न रूठो ऐसे दिल उदास है ||
बडी मुरादों के बाद शाम आई है |
आज न जाओ ऐसे दिल उदास है ||
रोज कहाँ एसी बारिस होती है |
आज न पीयो ऐसे दिल उदास है ||
किसको अपना बना बैठे है |
आज मुस्कुरा दिल उदास है ||
रूक सको तो रूको कसम है |
आज तो रूको एसे दिल उदास है ||
दास्तान
दर्द है तो सब मेहरबान है |
जो दिल का दर्द, वही इलाज है ||
किस को सामिल करे यहाँ|
जिसे भी मिले अलग दास्तान है ||
फना तो आखिर होना था |
वही शायद जीने का निशान है ||
तारीफ इतनी न करो तुम|
और भी लोग जमाने में महान है ||
मयखाने में वाईज भी पी लेते है |
सखी यहाँ भी देखो ईमान है ||
वसिल
इंतजार हे पर वस्ल नहीं होता |
सामने मंजिल है राही नहीं होता ||
जुदाई की शब्रमें धूमती है निगाहे |
ख्वाब में जो है सच नहीं होता ||
बैठे है महफिल में करार मिले |
हाथ में जाम है करार नहीं होता ||
दीदार की तलब में दम निकला |
सामने सनम है इकरार नहीं होता ||
कतार
वैसे तो मालूम है खुदा सब का है |
दुआ तो ऐसे की जैसे मेरा है ||
कोई तो रास्ता दिखादे मंजिल का |
इंतजार तो ऐसे किया जैसे जुदा है ||
सामिल न होता रकीब की कतार में |
अनीश तो एसे जैसे हमनवाडा है ||
इस पल की लाज रखने आ जाओ |
पाया तो ऐसे जैसे खोया नहीं है ||
भँवरा
एक और नाम सामिल हो गया दीवानो में |
ऐक और भँवरा मंडाराने लगा बगियन में||
ये कैसी बहार आई लोग दीवाने होने लगे |
ये कैसी हवा चली फिझाएँ महकी हुई है ||
झहाँ कभी आँधी चली थी आज बहार है |
ये कैसी पुरवाई चली मौसम बहका है ||
***