Mummatiya - 5 in Hindi Fiction Stories by Dharm books and stories PDF | मम्मटिया - 5

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मम्मटिया - 5

मम्मटियाया

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धर्मेन्द्र राजमंगल

दिशा को घर से गये काफी दिन हो गये थे लेकिन उसकी कोई खबर अभी तक कमला को नही मिली थी. दिशा को शहर ले जाते ही शोभराज के घर वालों ने उससे नौकरानी की तरह काम लेना शुरू कर दिया था.

घर के झाड़ू पोंछा से लेकर बर्तन मांजना और कपड़े धोना सब दिशा से ही करवाया जाने लगा. दिशा सुबह से काम करना शुरू करती और काम निपटाते हुए उसे रात हो जाती थी लेकिन इस मासूम लडकी को काम करने से कोई गुरेज नही था. इससे ज्यादा काम तो वो अपने घर करती थी. उसे सबसे ज्यादा मलाल इस बात का था कि वो अपने घर से दूर थी. उसकी माँ या उसके भाई बहिन उसके पास नही थे.

जब भी दिशा से कोई गलती होती थी तो शोभराज या उसकी पत्नी दिशा की पिटाई कर देते थे. तब दिशा को अपनी माँ सबसे ज्यादा याद आती थी. वो छुप छुप कर खूब रोती थी लेकिन बाद में अपनी माँ की कही बात ध्यान आ जाती. माँ ने दिशा से कहा था कि ताऊ के घर पहुंच कोई गलती मत किया करना. बस इसी बात को सोच दिशा फिर से शोभराज और उसके घरवालों को माफ़ कर देती थी.

लेकिन शोभराज को इस बात की कोई शर्म नही थी कि वो कमला से क्या वायदा कर दिशा को यहाँ लेकर आया था. न तो दिशा को स्कूल भेजा और न ही उसे अपनी बच्ची की ही तरह रखा. बस सारा दिन नौकरानी से भी बदतर तरीके से काम कराता था. जबकि दिशा की उम्र अभी इस लायक नही थी कि वो यह सब कर सके.

साथ ही गलती होने पर इन लोगों की पिटाई भी सह सके. साथ ही जब से शहर लाया था तब से एक भी बार दिशा को उसकी माँ के पास घुमाने न ले गया था. दरअसल शोभराज चाहता ही नही था कि दिशा अपनी माँ के पास जाए या उससे मिले.

इधर बड़ा लड़का जीतू और नन्ही भी बड़े हो रहे थे. दोनों की उम्र स्कूल जाने लायक थी लेकिन कमला के पास तो इन बच्चों का पेट भरने के लिए खाना नही था पढाई कैसे करा पाती? परन्तु माँ अपने बच्चो के लिए कुछ भी कर सकती है. कमला ने अपने पिता रामचरन से सारी परेशानी कह सुनाई. रामचरन की आमदनी पहले से बढ़ गयी थी. उनके चारो लडके यानि कमला के चारो भाई अब पैसा कमाते थे.

रामचरन ने कमला से कह दिया कि वे किसी को भेज नन्ही और जीतू को अपने पास बुलवा लेंगे. साथ ही नन्ही का लालन पालन और जीतू की पढाई का खर्चा भी उठा लेंगे. कमला के लिए इससे ज्यादा ख़ुशी की बात और क्या होती?

उसके सीने से बहुत सा बोझ हल्का हो गया था. कमला का सपना था कि उसके बच्चे इतने पढ़ जाएँ कि शहर में उन्हें सरकारी नौकरी मिल जाए. बच्चों की पढाई को लेकर कमला बहुत सजग थी.

जीतू और नन्ही नानी के घर जाने की बात सुन कर बहुत खुश हुए थे लेकिन माँ के साथ न जाने का दुःख भी था. कमला का एक भाई कमला के घर आ दोनों बच्चों को जूनपुर ले गया. जहाँ पर जीतू को स्कूल में दाखिल करा दिया गया और नन्ही को घर के काम सिखाये जाने लगे.

कमला की माँ सुशीला का व्यवहार इन बच्चों के प्रति बहुत सख्त था. उसी की वजह थी जो नन्ही को स्कूल में दाखिल नही किया गया था. वो खुद पढ़ी लिखी नहीं थी. कहती थीं लडकियों को पढ़कर क्या करना किन्तु नन्ही सी नन्ही का बहुत मन था कि वो स्कूल पढने जाए लेकिन ये संभव नही था.

रामचरन अपनी पत्नी के सामने इस बात का विरोध भी न कर सके. कमला भी अपनी माँ के सामने कुछ न बोल सकी. सोचती थी कि ये क्या कम है कि माँ उसके बच्चों को अपने घर रखने के लिए तैयार हो गयी. कमला की बची खुची खेती का पट्टा चार सौ रूपये बीघे आना था.

मतलब दस बीघे का चार हजार रूपये सालाना. जबकि इतना पैसा तो एक सरकारी बाबू को एक महीने की पगार से मिल जाता था. ऊपर से रिश्वत और फंड बोनस अलग से. छोटे किसान की यही दशा होती है. जो सबका पेट भरता है वही एक दिन खुद भूखा मर जाता है.

कमला के पास अब सबसे छोटे दो लडके ही रहते थे. जो अभी तक छोटे छोटे थे. उनमे से सबसे छोटा श्याम जिस दिन पैदा हुआ था तब से लेकर आज तक ठीक से खा पी तक न सका था. भैंस का दूध तो उसने एक गिलास भी पेट भर न पिया था और कमला को तो खुद खाने के लिए नही था फिर बच्चे को कहाँ से अपना दूध पिलाती?

श्याम की शक्ल देखकर कुपोषण के विज्ञापन वाला लड़का नजर आता था. आँखें गड्ढे में धंसी हुई थीं और पेट बाहर निकला हुआ था. शरीर की हड्डियाँ कमजोर और तिरछी थीं.

छोटू की भी हालत इससे कुछ ज्यादा अलग नही थी लेकिन वो श्याम से काफी अच्छा था. किन्तु वो हर चीज को बहुत ध्यान और गहरे तरीके से सोचता था. वो अपनी माँ की हालत देख कर भी बहुत दुखी होता था. मोहल्ले की अन्य स्त्रियों के मुकाबले अपनी माँ को बहुत छोटा पाता था.

वे बहुत खुश रहती थीं लेकिन उसकी की माँ हमेशा दुखी और बीमार. मोहल्ले की स्त्रियाँ नई साड़ियाँ और गहने पहने रहती थीं और उसकी माँ.? उसे क्या पता था कि उसकी माँ विधवा है. छोटू ने ये भी महसूस किया कि लोग मोहल्ले के शुभ कार्यों में उसकी माँ को नही बुलाते.

लोग सोचते थे कि विधवा औरत को शुभ कार्यों में बुलाना ठीक नही है लेकिन ऐसा हर आदमी नही करता था. कुछ लोग बहुत अच्छे भी थे. परन्तु परम्पराओं के आगे उनकी भी नही चलती थी.

***

कमला ने छोटू को गाँव में ही पढने बिठा दिया था. इस गाँव में एक औरत अपने घर में ही बच्चों को पढाने का काम करती थी. अब कमला गाँव की अन्य महिलाओं के साथ खेतों में जा जा कर काम करने लगी थी. ये पहली बार था जब उच्च जाति की महिला अन्य लोगो के खेतों में जा कर काम कर रही थी लेकिन कमला को क्या ऐसा करते ख़ुशी थोड़े ही न हो रही थी? भीषण गर्मी में अपने सबसे छोटे बच्चे को पीठ पर डाले खेतों में काम करना किस औरत के लिए ख़ुशी की बात हो सकती थी.

खेतों में कमला मूंग की फली तोड़ने से लेकर गेंहू काटने तक का काम करती थी. मूंग की फली खेत से तोड़ कर उस किसान के घर तक पहुंचानी पडती थी. फिर उसकी तुलाई होती थी. जिससे मालूम पड़े कि किसने कितनी फली खेत से तोड़ी हैं. फिर तुलाई करने के बाद पचास पैसे प्रति किलो के हिसाब से हरएक औरत को पैसा मिलता था.

कमला पूरी दोपहरी फली तोडती तो ज्यादा से ज्यादा दस से पन्द्रह किलो फली तोड़ पाती थी. जिसका पांच से आठ रुपया मिल जाता था. जबकि उसी समय दूध की कीमत बारह रूपये किलो थी और दारु के पौवे का दाम पन्द्रह रुपया. एक भिखारी को लोग पांच रुपया आसानी से दे देते थे.

सुबह घर का पूरा काम करना. दोपहर में पूरी दोपहरी खेतों में काम करना. शाम को फिर से घर का काम करना. फिर रात को आधा पेट भोजन कर सो जाना और कभी कभी तो वो आधा पेट भी बहुत मुश्किल पड़ जाता था.

लेकिन इतने पर भी कमला दुनियादारी भूल मेहनत किये जा रही थी. उसके दिल में दिन रात अपनी गरीबी से छुटकारा पाने की योजना चलती रहती थी. अपने बच्चों का उज्ज्वल भविष्य उसकी आखों में दिवास्वप्न बना दिखाई देता रहता था.

परन्तु कमला का इस तरह खेतों में काम करना उसके खानदानी लोगों को अच्छा न लगा. आदिराज जो रिश्ते में कमला का जेठ लगता था, उसने अपनी पत्नी से कमला को ये सब काम छोड़ देने के लिए कहलवा दिया.

आदिराज की बीबी चंदा कमला के गाँव की ही थी. चंदा की बहन पार्वती रणवीर की पहली बीबी थी. इस तरह चंदा भी कमला की रिश्तेदार होती थी. जब चंदा ने आकर कमला को आदिराज की कही बात कही तो कमला को थोडा गुस्सा आ गया.

कमला को समझ नही आया कि वो इस बात पर चंदा से क्या कहे. आखिर चंदा खुद एक औरत थी और औरत को औरत का दर्द सिर्फ देखकर ही पता लग जाना चाहिए था. लेकिन चंदा ने यह सब महसूस न किया.

कमला चंदा को जेठानी के रिश्ते की जगह अपना गाँव वाला रिश्ता ही मानती थी. बोली, “बुआ दद्दा ने जब आप से यह सब कहा तो आप उनको कुछ न कह सकीं? आप को मेरे घर की हालत नही पता? मेरे बच्चे अपने जीवन को जीने के लिए इधर उधर दूसरों के यहाँ रह रहे हैं.

मेरे घर में इतना भी नही कि कोई आ जाय तो में उसको ठीक से चाय पानी भी करा सकूँ. फिर मैं क्यों न ये सब काम करूँ? आप का एक बेटा सरकारी नौकरी वाला है. आप खुद इतने बड़े जमींदार है. फिर मैं आप की बराबरी कैसे कर सकती हूँ?

अगर मैं घर में बैठी रही तो भूखों मर जाउंगी. तब कहाँ रहेगी खानदान की इज्जत. अगर आप सब खानदान वाले चाहते हो कि मैं खेतों में काम न करूं तो आप लोग मेरे घर का खर्चा उठाने के लिए तैयार हो जाओ. मैं आज के बाद घर से ही निकलना बंद कर दूंगी.”

चंदा खुद एक औरत थी. कमला की बात सुन उसे उसकी मजबूरी का आभास हो गया था लेकिन कमला के जबाब में भी करारापन था. जिसके सामने चंदा के मुंह से बात ही न बनी. कमला की बात सच थी. अगर उसके घर का खर्च कोई उठा ले तो वो क्यों जगह जगह भटकी डोले? क्यों भीषण गर्मी में बच्चे को पीठ पर डाले खेतों में काम करती फिरे?

जितनी भीषण गर्मी कमला सहती थी उतनी ही गर्मी कमला का सबसे छोटा लड़का श्याम भी सहता था. खेतों के किनारों पर कमला उसे सुलाती तो सांप बिच्छू के खाने का डर भी लगा रहता था. शायद एक माँ के लिए ये सब इतना आसान नही होता लेकिन जिन लोगों ने ऐसी मुश्किलों का सामना किया ही न हो वे यह सब कैसे जानें? जिन लोगों का ध्येय दूसरों को कुचल आगे बढने का हो वे किसी की मुश्किल कैसे समझें?

चंदा अपना बुझा सा चेहरा ले कमला के घर से चली गयी. आदिराज ने भी जब कमला की बात को चंदा से सुना तो तिलमिला कर रह गया लेकिन करे क्या? जो बात कमला ने कही उसका जबाब भी तो नही था आदिराज के पास.

वो कमला के घर का खर्च उठाने की सोच भी नही सकता था. वो तो सिर्फ ये चाहता था कि कमला उससे ब्याज पर पैसा ले और अपनी बाकी की जमीन उसके नाम लिख डाले. जो कमला कभी नही चाहती थी. कम से कम बच्चे जब तक बड़े नही होते तब तक तो कभी भी नही.

आदिराज की इस तरह बात न बनी तो उसने कमला के पिता रामचरन को भी खबर भिजवा दी. उसने कहलवाया कि कमला से कहें कि वो इस तरह खेत खेत मजदूरी न करती फिरे. इस बात से इस खानदान और बिरादरी की नाक कटती है. रामचरन कमला की हालत को जानते थे. उन्होंने आदिराज की बात को सुना तो सही लेकिन कमला को समझाने की हिम्मत न कर सके. शायद उन्हें चंदा की तरह कमला से करारा जबाब सुनने का डर रहा होगा.

***

कमला की बिरादरी में कई औरतों के गरीबी रेखा वाले कार्ड बन चुके थे. जिन पर उन्हें राशन की दुकान से बहुत सस्ता सामान मिल जाता था. जबकि वे औरतें कमला से बहुत अच्छी स्थिति की थीं. सब के घर काफी जमीन जायदाद और कमाने खाने वाले थे लेकिन कमला गरीब होते हुए भी इस गरीबी रेखा वाले कार्ड से बंचित थी.

गाँव की काफी अमीर औरत को विधवा पेंशन मिल रही थी लेकिन गरीब कमला विधवा होते हुए भी इसके काबिल न थी क्योंकि उस की कोई सुनने वाला नही था. गाँव के मुखिया तक उसकी पहुंच नही थी. उसके घर में सिर्फ एक वोट होता था. जो मुखिया कि नजर में कुछ भी नही था.

लेकिन मोहल्ले की एक औरत रमा को कमला की इस दशा पर दया आ गयी. उन दिनों पंचायत का मुखिया उस औरत का करीबी था. रमा ने कमला को आश्वासन दिया कि वो उसकी विधवा पेंशन और उसका गरीबी रेखा वाला कार्ड मुखिया से कह बनवा देगी. बस जिस दिन वो उसे अपने घर बुलाये उस दिन कमला उसके घर आ जाय. जिससे मुखिया के रमा के घर आने पर वो कमला की सिफारिश उससे कर सके.

कमला रमा की बात सुन बहुत खुश हुई. इससे अच्छी और क्या बात हो सकती थी. एक दिन जब मुखिया रमा के घर आया तो रमा ने कमला को बुलावा भेज दिया. कमला अपने छोटे लडके छोटू को ले रमा के घर पहुंच गयी गयी. मुखिया रमा के घर कुर्सी पर बड़े आराम से बैठा था. मुखिया की उम्र कोई पचास साल के आसपास होती. कमला ने जाते ही मुखिया से दुआ सलाम की.

रमा ने कमला का परिचय मुखिया से कराया, “मुखिया जी ये रणवीर की घरवाली कमला है. बेचारी बड़ी गरीब और दुखियारिन है. आप इसकी पेंशन और गरीबी रेखा वाला कार्ड बनवा दो.” मुखिया ने कमला को ऊपर से नीचे तक देखा. मुखिया की नजरों में इतनी गंदगी थी कि कमला सिहर कर रह गयी. घूँघट किये बैठी कमला को समझ न आया कि इतनी उम्र का आदमी उसे इस तरह क्यों देख रहा है?

मुखिया कमला की ओर नजर गढा कर देखता हुआ बोला, “अच्छा कोई बात नही. सब काम हो जायेगा. कमला तू मुझे अपने दो फोटो खिंचवा कर दे देना. फिर मैं तेरी विधवा पेंशन और गरीबी रेखा वाला कार्ड वनवा दूंगा.”

कमला का दिल खुश हो उठा लेकिन मुखिया की वहशी नजर उसे अब भी डरा रही थी. कमला का लड़का छोटू इस वक्त इतना समझदार तो था ही कि कोई उसकी माँ को इस तरह की पैनी नजरों से देखे तो वह कुछ समझ न पाए. छोटू खुद मुखिया की नजरों से सहमा हुआ सा था.

रमा खुश होकर बोली, “चल कमला तेरा काम तो हो गया लेकिन मुखिया जी का एहसान याद रखना. बहुत नेक आदमी हैं मुखिया जी. अगर किसी दिन मुखिया जी तुझसे किसी काम की कहें तो मना मत करना. समझी.”

कमला ने हाँ में सर तो हिला दिया लेकिन रमा की द्विअर्थी बातों का मतलब वो खूब समझती थी. पूरे गाँव में रमा और मुखिया जी के इश्क के चर्चे मशहूर थे लेकिन कमला को इस बात से कोई मतलब नही था. परन्तु आज जब खुद रमा उसको मुखिया का मुरीद बनाने की कोशिश करने लगी तो कमला के मन ने इस बात पर एतराज कर दिया.

कमला बहुत ही धार्मिक और संस्कारों वाली स्त्री थी. उसे ऐसा कोई काम नही करना था जिससे उसके मृतक पति या उसके माँ बाप को कोई बदनामी सहनी पड़े. वो मुखिया के सामने खुद को गुलाम नही बना सकती थी फिर चाहे उसके लिए पेंशन मिले या न मिले. सोचती थी तब से ऐसे ही जी रही है तो कुछ दिन और ऐसे ही जी लेगी लेकिन किसी को अपनी अस्मिता से खेलने का मौका नही देगी.

इसके बाद कमला रमा के घर से उठ कर चल दी. रमा ने कमला को जाते हुए देखा तो बोल पड़ी, “कमला फोटो खिंचवा कर तैयार रखना. जिस दिन मुखिया जी आयेंगे में तुझे बुलवा लूंगी.” कमला ने हाँ में सर हिला दिया. मुखिया की नजरें अब भी वही हैवानियत लिए कमला को देखे जा रही थी.

कमला तेजी से छोटू का हाथ पकड़ रमा के घर से बाहर निकल गयी. रमा के घर से बाहर निकलते ही उसकी सांस में साँस आई. कमला ने मन ही मन फैसला किया कि अब वो कभी रमा के घर मुखिया के आने पर नही आएगी.

हर आदमी एक अकेली स्त्री का फायदा उठाना चाहता था. चाहे वो उसके खानदानी उसके अपने हों या फिर वाहर के लोग जो समाज की रक्षा के लिए तय किये गये थे. मुखिया राशनकार्ड और विधवा पेंशन दिलाने के बदले कमला का शोषण करना चाहता था और कमला के खानदानी उसकी जमीन जायदाद का.

चारो तरफ से मुसीबतों से घिरी कमला इन चालबाजों से बड़ी मुश्किल से खुद को बचा कर चल रही थी. कमला पर तरस दिखाते लोग इस तरस दिखाने के बदले कुछ न कुछ चाहते थे. लेकिन कमला भी अपने स्वाभिमान पर अटल थी. उसे गरीबी से जूझना मंजूर था लेकिन अपनी अस्मिता से खिलवाड़ कतई पसंद नही था.

बाद में कमला ने फोटो तो खिंचा लिए लेकिन खुद उन्हें मुखिया को देने न गयी. अपने बेटे को भेज वो फोटो रमा के घर आये मुखिया को भिजवा दिए. मुखिया कमला के इस व्यवहार से नाराज़ हो गया. फिर उसने न तो कमला के लिए विधवा पेंसन ही बंधवाई और न ही राशन कार्ड बनवाया.

भरी तंगी में कमला ने पन्द्रह किलो मीटर दूर जा फोटो खिंचवाए थे वो भी बेकार चले गये. इस बात का कमला को अफ़सोस भी था लेकिन एक बात की उसे ख़ुशी भी थी कि वो अपने सम्मान के साथ जी रही थी. शायद वो चाहती तो मुखिया उसके दोनों काम करवा सकता था लेकिन फिर आज वाली कमला नही होती. जो अपने मान सम्मान से जिए जा रही थी.

***