मम्मटियाया
धर्मेन्द्र राजमंगल
दूसरे दिन आदिराज ने अपनी लडकी से कमला के पास सीमा की शादी की तारीख की सूचना भिजवा दी. शादी उस दिन से ठीक दस दिन बाद थी. ऐसा करने के पीछे आदिराज की चाल थी. उसे पता था दस दिन में कमला चाहकर भी कुछ न कर सकेगी और मजबूर हो उसे आदिराज से ही पैदा उधार लेना पड़ेगा. कमला को थोडा आश्चर्य तो हुआ लेकिन उसे पता था आदिराज इस तरह की हरकत कर सकता है. परन्तु अब कमला पहले से अधिक तैयार थी.
सीमा की शादी का दिन करीब आया लेकिन कमला ने आदिराज से एक पाई भी उधार न ली. वो तो अच्छा था कि आदिराज ने सीमा के लिए खुद ही लड़का पसंद किया था. नही तो जलकर अब भी तरह तरह की बाते कर रहा होता. जैसे रणवीर की मौत होने पर तरह तरह के भ्रम लोगों में फैला दिए थे.
मोहल्ले के लोगों ने सीमा की शादी की दावत के लिए अपने अपने घरों से दूध भेज दिया. जिससे दावत में दही की पूर्ति हो सके. घरों में से मट्ठा भी भिजवा दिया जिससे दावत में परोसे जाने वाला रायता बन सके.
मोहल्ले के दो लोगों ने कमला को रूपये पैसे से सहारा दे दिया. इस का फल ये हुआ कि सीमा की शादी बड़े आराम और तसल्ली के साथ हो गयी लेकिन आदिराज शादी के वक्त मुंह फुलाए घूमते रहे क्योंकि कमला ने आदिराज से कर्जा नही लिया था.
आदिराज की मजबूरी ये थी कि वो किसी से यह शिकायत भी नही कर सकता था कि देखो कमला ने मुझसे कर्ज नही लिया. लोग उसे पागल बताते. लेकिन आदिराज कमला से इस बात की दुश्मनी भी मान गया था.
सीमा की शादी के बाद कमला की मुश्किल तो कम हो गयीं थी लेकिन पड़ोसियों का थोडा कर्जा हो गया था. अब कमला के पास पैसे तो थे ही नही लेकिन इसके लिए कमला ने उस पड़ोसी को अपनी खेती को पट्टे पर दे दिया.
जिसका मतलब ये हुआ कि उस साल खेत का पट्टा(भाडा) नही आना था. कमला को पैसों की बहुत किल्लत हो उठी. कमला के सबसे छोटे लडके श्याम को तो दूध के दर्शन ही नही होते थे. दूधवाले से दूध तो लिया जाता था लेकिन वो सिर्फ दो बार की चाय के लायक होता था.
उस दूध की मात्रा का लीटर भी दूध वाले के पास नही होता था. दूध वाले के पास सबसे छोटा लीटर ढाई सौ एमएल का होता था लेकिन कमला के घर उस का भी आधा दूध लिया जाता था. यानि करीबन सवा सौ एमएल.
ये मात्रा इतनी थी जितनी कोई शराबी शराब एक बार में बेकार में पी जाता था. लेकिन कमला के घर पांच बच्चों के लिए इतना दूध लिया जाता था. जिसकी कीमत शायद दो या तीन रूपये होती थी. और कभी कभी तो दूधिया इस दूध को देने के लिए भी मना कर देता था. क्योंकि कमला पर पिछले महीने के दूध के पैसे उधार होते थे.
दूध लेने कमला का बड़ा बेटा जीतू जाता था. दूधिया जितनी खिच खिच पैसे लेने के बावजूद उसको सवा सौ एमएल दूध देने में करता था उतना ही दूध मुफ्त में वो जीतू के सामने मोहल्ले के कुत्ते को पिला देता था. उतना ही दूध मुफ्त में वो मन्दिर में भोले नाथ के शिवलिंग पर चढ़ा देता था. उतना ही दूध वो मुफ्त में गाँव के बाहर खड़े भूतों वाले पीपल पर चढ़ा देता था.
लेकिन इस गरीब घर को थोडा सा दूध देने में भी सौ तरह की बातें किया करता था. कहता था नकद पैसा लेकर आया करो. दूध की मात्रा बढाकर लिया करो. टंकी में उझक कर मत देखा करो. क्योंकि तुम्हारे देखने से दूध की मात्रा घट जाती है. यही नही दूधिया उस सवा सौ एमएल दूध में भी थोडा सा कम देता था. लेकिन मोहल्ले के कुत्ते, गाँव के बाहर खड़े भूत वाले पीपल और मन्दिर के शिवलिंग को दूध चढ़ाने में कभी कंजूसी नही की.
छोटे से गिलास में जब दूध घर में आता. कमला उसे उबाल कर जब चाय बनाती और वो चाय जब बनकर बच्चो के लिए दी जाती. तब बच्चों में जमकर बहस होती थी. एक दूसरे से रूठा रूठी होती थी. माँ से भी बच्चे जमकर लड़ते थे.
क्योंकि बच्चों को लगता था कि माँ ने दूसरे भाई या बहिन को उससे ज्यादा चाय दी है. जबकि कमला तो सब बच्चों को इसी वजह से बराबर चाय देती थी. चाय के बाद बच्चों की नजर उस बाकी बचे दूध पर होती थी जो सवा सौ एमएल में से एक बार चाय बनाने के बाद बचा होता था.
उस उबले हुए दूध की खुशबू बच्चों को पागल किये रहती थी. फिर जिसको भी मौका मिलता वही माँ से छिप कर दूध की नन्ही सी मलाई चट कर जाता. कोई उस थोड़े से बचे दूध में रोटी का टुकड़ा डूबा उस दूध का स्वाद ले लेता था. दूध के लिए बच्चों का तरसना देख कमला की छाती फटती थी.
वो दिन रात भगवान से अपनी परेशानी को खत्म करने की दुआए करती रहती थी. अब तो कमला ने बृहस्पति वार को व्रत रहना शुरू कर दिया था. मोहल्ले की किसी औरत ने कमला को बताया था कि बृहस्पतिवार को भगवान बिष्णु का दिन होता है. अगर वे प्रसन्न हो जाए तो घर की सारी मुश्किलें जाती रहती हैं.
कमला को ये विचार बहुत पसंद आया. इसमें एक तो भगवान की पूजा हो जाती थी. दूसरा व्रत रहने के कारण एक दिन का अनाज भी बच जाता था. परन्तु महीने में पन्द्रह दिन भूखे पेट सोने वाली कमला की देह पिंजर होती जा रही थी लेकिन भगवान की कृपा होने की आस उसे हर वो काम कराए जाती थी जिसे कमला करने में बहुत मुश्किलों का अनुभव करती थी.
कमला ने इस घर में आ जितना सुख देखा था अभी उससे कही ज्यादा दुःख वो भोगे जा रही थी. लेकिन उसे ये तो पता ही न था कि उसने ऐसा क्या कर दिया जिससे भगवान ने उसे इतनी दुखों वाली जिन्दगी जीने के लिए मजबूर कर दिया. भगवान से यही सवाल दुनिया की वो हर औरत करती है जो कमला जैसा जीवन जी रही होती है. लेकिन जबाब..?
***
शोभराज शहर से गाँव आदिराज के घर आया हुआ था. बातों बातों में ही शोभराज ने अपने बड़े भाई से कहा, “भाई साहब. गाँव में कोई घर का काम करने वाली लडकी या औरत हो तो बताओ. तुम्हारी बहू पर काम नही होता. शहर में नौकरानी तो मिलती हैं लेकिन वे एक या दो घंटे काम करके चली जाती हैं और पूरे दिन काम कराओ तो पैसों का बहुत बड़ा खर्चा हो जाता है. गाँव की कामवाली बहुत कम पैसों में काम कर देगी.”
आदिराज ने थोडा सोचा फिर बोला, “तू रणवीर की लडकी दिशा को क्यों नही ले जाता? वो तेरे घर काम भी करेगी और तुझे एक पैसा भी नही देना पड़ेगा. मतलब फ्री की नौकरानी और उस कमला के होश ठिकाने भी लगे रहेंगे.”
शोभराज के दिमाग की बत्ती जल उठी. उसे सच में ये बात बहुत अच्छी लगी लेकिन एक मुश्किल भी थी. बोला, “भाई साहब क्या कमला अपनी लडकी को मेरे साथ भेज देगी और कहूँगा भी क्या कि किस बात के लिए ले जा रहा हूँ?”
आदिराज ने थोडा सोचा फिर बोला, “बात तो सही कहते हो लेकिन इसका हल मेरे पास है. तुम कमला के पास जा कहना कि तुम उसकी लडकी को पढाओगे लिखाओगे. बढिया घर में उसकी शादी कर दोगे. वो भी खुद के पैसे से और जब कमला इस रहमोकरम का कारण पूंछे तो बताना कि घर पर तुम्हारी बीबी अकेली रहती है. दिशा के जाने से उसका मन लग जायेगा. बस फिर कमला ख़ुशी ख़ुशी लडकी को तुम्हारे साथ भेज देगी.”
शोभराज को अपने बड़े भाई का विचार अच्छा लगा. बोला, “ठीक है भाई साहब. मैं अभी जाकर बात करता हूँ. अगर ऐसा हुआ तो समझो मेरा बहुत खर्चा बच जायेगा लेकिन भाई साहब अगर मुझे उस लडकी की शादी करनी पड़ी तो खर्चा तो फिर भी पड़ेगा?”
आदिराज बड़े रुतवे से बोला, “एक नौकरानी की दस साल की कमाई जोड़ ले. फिर तुझे पता पड जायेगा कि कितना खर्चा पड़ेगा और फिर तू लिख कर थोड़े ही न दे रहा है कि बहुत अमीर घर में उसकी शादी करेगा. अरे तेरे शहर में तो बहुत सारे फैक्ट्री मजदूर हैं. किसी ऐसे ही आदमी को ढूंढ कर इस लडकी की शादी कर देगा. समझ ले मुफ्त में शादी हो जाएगी.”
शोभराज का चेहरा ख़ुशी से खिल उठा. बोला, “भाई साहब चालाकी के मामले में तो आप मुझसे भी आगे हो. मुझे इस बात का विचार सपने में भी नही आया था. अच्छा अब मैं कमला के पास जा इस बारे में बात करता हूँ.”
आदिराज ने हाँ में सर हिला दिया. शोभराज वहां से सीधा कमला के घर की तरफ चल दिया. मन में ख़ुशी थी लेकिन पत्थर दिल इन्सान ने एक भी बार उस नन्ही लडकी के बारे में न सोचा जिसका कि ये जीवन बर्बाद करने जा रहा था. कम से कम उस मासूम को तो बख्श सकता था.
कमला के घर की हालत इस वक्त सबसे बुरी थी. इस बार खेती के पट्टे का एक भी रुपया घर में नही आया था और न ही अनाज का एक दाना. कमला ने बच्चों के साथ मिलकर खेतों से गेहूँ की बालें बीननी शुरू कर दीं. ये बालें खेतों में फसल कटने के बाद गिर पड़ती हैं. जिन्हें किसान खेत में ही पड़ी छोड़ देते हैं लेकिन गरीब लोग इन्हें बीनकर अपना काम चला लेते हैं.
यही काम कमला ने शुरू कर दिया था. पेट की भूख इन्सान से कुछ भी करवा सकती है. एक किसान का घर दूसरे किसानों के खेत में गेहूँ के दाने बीनकर अपना पेट भरने पर मजबूर था. कमला की गोद में एक नन्हा बच्चा भी था जिसे वो खेतों में पेड़ के किनारे सुला देती थी. बाकी के बच्चे उसके साथ गेहूँ की बालें बीनते थे.
गेहूँ के सीजन की गर्मी का अंदाज़ा आराम से लगाया जा सकता है. तापमान पैंतालीस से तो कम रहता ही नही है लेकिन इस औरत और बच्चों को इससे ज्यादा फर्क नही पड़ता था. क्योंकि उन्हें पता था कि अगर दो से तीन किलो गेहूँ रोज इकट्ठा न हुए तो भूखा मरना पड़ेगा.
शोभराज कमला के घर पहुंच चुका था. कमला पुरानी सी साड़ी पहने एक बच्चे को दूध पिला रही थी. दूसरा उसके पैरों में लेटा हुआ था. जो इस वक्त बुखार से तप रहा था. बड़ा लड़का जीतू किताब में कुछ पढ़ रहा था. जीतू से छोटी लडकी भी वहीं बैठी खेल रही थी. बड़ी लड़की दिशा घर के काम में लगी हुई थी. बच्चों के भी कपड़े बेहद पुराने और फटे हुए से थे. सब के सब धूप से काले रंग के हो गये थे. शरीरों को देख लगता था की बच्चे और कमला रोज भूखे ही रहते होंगे.
शोभराज के पहुंचते ही कमला ने चारपाई बिछा दी. सात साल का बड़ा लड़का जीतू हाथ के पंखे से शोभराज की हवा करने में जुट गया. कमला शोभराज के निकम्मेपन को जानते हुए भी उसकी इज्जत अपने सगे जेठ की तरह करती थी. शायद इस बात में वो अपना नारी धर्म निभाती होगी.
कमला ने अपनी नौ दस साल की लडकी को आवाज दे शोभराज के लिए चाय बनाने को कह दिया. बाकी के बच्चों के मुंह में चाय के नाम से लार बन आई लेकिन निराशा भी हुई क्योंकि आज शोभराज ताऊ की चाय के बाद उनके लिए चाय नही बन पानी थी. दूध इतना नही होता था कि तीन बार चाय बन सके.
शोभराज ने कमला के घर की गुरबत देखी तो अंदर से हिल गया लेकिन दिल पर पत्थर रखा था और मन में चालाकी भरी थी. गर्मी में ठंडाई पीने वाला शोभराज कमला के घर की गर्मागर्म चाय नहीं पीना चाहता था. बोला, “नही कमला मैं चाय नही पीऊंगा. अभी तुरंत भाई साहब के घर पीकर आ रहा हूँ.” दिशा का हाथ वहीं के वही रुक गया. बच्चों के मन फिर से खिल उठे. अब दूध का खर्च नही होना था क्योंकि अब शोभराज के लिए चाय नही बननी थी. बच्चे ख़ुशी से झूम उठे.
कमला शोभराज के सामने घूँघट किये जमीन पर बैठी थी. शोभराज ने उसकी तरफ देखते हुए कहा, “कमला मैं तुम्हारी हालत को देख तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ. अभी तुम जिस हालत में हो उसे देख कर लगता है कि तुम्हारे बच्चे ठीक से न तो पढ़ लिख पाएंगे और न ठीक से खा पी सकेंगे. मैंने सोचा है कि तुम्हारे एक बच्चे का पालन पोषण में अपने खर्चे पर कर दूं.
उसे मैं पढ़ा लिखा दूंगा और उसकी शादी भी में अपने हाथों से कर दूंगा. इस बात के लिए में तुम्हारी बेटी दिशा को अपने घर ले जाना चाहता हूँ. तुम्हारी जेठानी का मन भी इस लडकी से लगा रहेगा और तुम्हारा बोझ भी थोडा हल्का हो जायेगा. अगर तुम चाहो तो मेरे साथ दिशा को भेज सकती हो.”
कमला ने दिशा की तरफ देखा. दिशा की आँखों में माँ से अलग होने का भय था. वो लडकी अपनी माँ और भाइयों को छोड़ कही और नही जाना चाहती थी. कमला भी कब अपनी लाडली को अपने कलेजे से अलग करना चाह रही थी. ये बात सच थी कि वो दिशा के पालन पोषण में कमी महसूस करती थी लेकिन इसका मतलब ये तो नही कि अपनी बच्ची को किसी और के यहाँ भेज दे.
कमला का मन भावुक हो गया. यूँ तो कमला के पास अपनी खुद की दो लड़कियां थी लेकिन उनमें से किसी एक को भी अपने से अलग करके रहना कमला के लिए इतना आसान न था. ये बात भी सच थी कि कमला का स्नेह लडकी से ज्यादा लडकों के लिए था. लेकिन ये उसकी अपनी लडकियां थीं. इन लड़कियों ने उसकी खुद की कोख से जन्म लिया था. कमला के लिए पांच बच्चों में अपने प्यार का बंटवारा करना ज्यादा कठिन नही था.
लेकिन सिक्के के दो पहलुओं की तरह कमला के दिल का एक पहलू इस बात का समर्थन भी करता था कि दिशा को शोभराज के साथ उसके घर भेज दे. भूख से बिलबिलाते बच्चों को देख कमला का दिल भी तो रोता था. दूध की एक एक बूँद को तरस रहे बच्चों को देख उसका मन भी तो चाहता था कि वो पेट भर दूध पियें.
दिशा की उम्र तो स्कूल जाने लायक थी लेकिन आज तक किताब के भी दर्शन न कर पायी थी अभागन लडकी. जहाँ पेट के लिए रोटी के लाले पड़े हों वहां किताब किसको चाहिए. ऐसे बच्चों के लिए किताब रद्दी का कागज मात्र हो सकती है और हो सकता है कि वे किताब में छप रही खाने की चीजों को देख और ज्यादा लालयित हो उठें. लेकिन भूखे पेट पढना...?
कमला सहमी सी आवाज में शोभराज से बोली, “दद्दा ये लडकी अकेली रह नही पायेगी आपके घर. यहाँ एक घंटे भी मुझसे अलग नही रह पाती. पता नही आपके घर इतने लम्बे समय तक कैसे रहेगी? आप इसे ले जाओगे तो आपको ही परेशानी होगी. ये रोज यहाँ आने की जिद करेगी.”
शोभराज किसी भी तरह दिशा को अपने घर ले जाना चाहता था. आखिर उसे इससे सस्ती नौकरानी कहाँ मिलने वाली थी. बोला, “देखो कमला मैं तुमसे इतना वादा कर सकता हूँ कि इस लडकी की जिन्दगी बना दूंगा. इसे अपनी सगी लडकी की तरह पढ़ा लिखा कर इसकी शादी बहुत अच्छे घर में करा दूंगा. इस लडकी के तुम्हारे पास रहने से अच्छी तरह रखूँगा. ये जिम्मेदारी मेरी होगी कि इसे कोई दुःख न हो पाए.”
कमला थोड़े सोच में पड़ गयी. हकीकत ये थी कि शोभराज के लुभावने प्रयास ने कमला के दिल को नर्म कर दिया था और कौन माँ ऐसी होगी जो अपने बेटे या बेटी के लिए अच्छा न सोचे. ये बात भी सच थी कि जो हालात कमला के इस समय थे उन हालातों में दिशा की शादी किसी खाते पीते घर में होना किसी सपने जैसा था.
साथ ही दिशा पढ़ भी नही सकती थी. कमला खुद चौथी क्लास तक ही पढ़ सकी थी. वो खुद अपने बचपन में पढना लिखना चाहती थी लेकिन सब सपना ही रह गया. कम से कम आज शोभराज के घर भेजने से दिशा पढ़ लिख कर किसी अच्छे घर में जा सकती थी. इससे ज्यादा कमला को और क्या चाहिए था?
कमला ने एक बार फिर से दीवार से टिकी खड़ी उदास दिशा को देखा. जो आखों ही आँखों में अपनी माँ से शोभराज को साफ साफ ना कहने के लिए कह रही थी. माँ भी तो माँ थी. बेटी की बात समझ तो गयी लेकिन उस बेटी की लम्बी खुशहाल जिन्दगी भी तो माँ को सोचनी थी. माँ जानती थी कि दिशा को इस घर में कभी सुख नही मिलेगा. कमला ने कलेजे पर पत्थर रख शोभराज से कहा, “दद्दा जैसा आप कह रहे हो वैसा ही करोगे? कहीं मुझे निराश तो नही होना पड़ेगा?”
दिशा ने माँ की तरफ तडप कर देखा. वो माँ की इस बात का मतलब समझती थी. उसे पता चल गया कि उसका शोभराज के साथ जाना तय है लेकिन शोभराज की बांछे खिल उठीं. ख़ुशी से झूमता हुआ कमला से बोला, “कमला तू कहे तो मैं किसी की कसम खाने को भी तैयार हूँ. मैं जो भी कहकर जा रहा हूँ वो करूँगा ही करूँगा.”
कमला शोभराज की बात का विश्वास कर बैठी. बेटी के उज्जवल भविष्य के दिवास्वप्न ने उसे अच्छा बुरा सोचने के काबिल ही न छोड़ा. बोली, “ठीक है दद्दा आप इसे ले जाना लेकिन मुझे एकाध घंटे की मोहलत और दे दीजिये.”
शोभराज ख़ुशी ख़ुशी बोला, “अरे क्यों नही. ये तुम्हारी बेटी है तुम जितना चाहो इसके साथ समय बिताओ. मैं भाईसाहब के पास जा रहा हूँ. एक दो घंटे बाद आकर दिशा को अपने साथ शहर ले जाऊंगा. तुम बस इसे तैयार कर देना.” इतना कह शोभराज वहां से आदिराज के घर की तरफ चला गया.
कमला की आँखें भर आई. उसे घर से दिशा को भेजना कतई अच्छा नही लग रहा था. दिशा भी जमीन पर बैठ घुटनों में अपना मुंह दिए फफक रही थी. उसे अपनी माँ पर गुस्सा आ रहा था. सोचती थी पता नही माँ मुझे यहाँ से क्यों भेज रही है.
कमला ने सिसक रही दिशा को देखा. पैरों में पड़े बुखार से तप रहे छोटू को उठाकर चारपाई पर लिटाया. एक बच्चा अब भी कमला की गोद में था. उस बच्चे को भी कमला ने छोटू के बगल में लिटा दिया और सीधी दिशा के पास जा पहुंची. कमला ने उस दुखी हो रही लडकी के सर पर हाथ रखा तो दिशा ने गुस्से में अपनी माँ का हाथ अपने सर से हटा दिया.
लेकिन माँ तो माँ थी. उसे बेटी का दुःख दर्द पता था. बोली, “दिशा बेटी तू मुझसे नाराज है क्या? बेटा में तेरे भले के लिए ऐसा कर रही हूँ. तू वहां बहुत खुश रहेगी मेरी बच्ची. शहर में बहुत अच्छी अच्छी चीजें होती हैं. वहां खाना भी बहुत अच्छा बनता है. दूध भी मिलता है. कपड़े भी बहुत अच्छे अच्छे होते हैं.”
दिशा ने अपना मुंह घुटनों से निकाल माँ की तरफ देखा. उसका चेहरा आंसुओं से लदा हुआ था. कमला बेटी का चेहरा देख बिलबिला कर रह गयी. दिशा रोते हुए माँ से बोली, “माँ मैं यहीं ठीक हूँ. मुझे कुछ भी नही चाहिए. मैं यहीं रहना चाहती हूँ चाहे मुझे हमेशा भूखा ही क्यों न रहना पड़े.
माँ क्या तुम को मैं अच्छी नही लगती. क्या मैं लडकी हूँ इस लिए मुझे अपने से दूर भेज रही हो या मैं भी सीमा और लीला की तरह तुम्हारी सौतेली लडकी हूँ जो मुझे भाइयों से कम प्यार करती हो? अगर ऐसा है तो मैं चली जाउंगी. फिर मुझे कोई परेशानी नही.”
कमला आँखें फाड़ फाड़ कर अपनी मासूम बच्ची को देख रही थी. जो बात ये सगी लडकी कह रही थी ऐसी बात तो कभी सौतेली लडकियों ने भी नही कही थी. कमला का दिल मानो किसी पत्थर से कुचल गया था.
कमला ने सामने बैठी अपनी बेटी दिशा को एकदम से अपने कलेजे से लगा लिया और उसके साथ खुद भी सिसक सिसक कर रोने लगी. माँ बेटी को रोते देख बाकी के बच्चे भी माँ के पास आ लिपट गये. उन्हें तो ये तक नही पता था कि ये लोग रो क्यों रहे हैं. बस माँ रो रही है और बहन रो रही है यही इन सबके लिए काफी था.
कमला ने चुप हो बाकी के बच्चों को भी चुप करा दिया. फिर दिशा के आंसू पोंछ बोली, “बेटा तू नही जाना चाहती तो रहने दे. मैं भी तुझसे जबरदस्ती नही करना चाहती लेकिन आज के बाद ये कभी मत कहना कि में तुझे प्यार नही करती. अरे वावली मैं जो करने जा रही थी उसमे मेरा स्वार्थ बस इतना था कि तेरी जिन्दगी सम्हल जाती.
मैं तो नन्ही और जीतू को भी नानी के घर भेजने वाली हूँ. कम से कम बाहर रहने से तुम सब लोगों के कष्ट तो कम हो सकते हैं. ये घर तो नरक की तरह हो गया है जहाँ इन्सान अपना पेट भर खाना भी नही खा सकता. तू नही जानती मेरी बच्ची कि मैं जिस हालत में हूँ उस हालत में तेरी शादी तो छोड़ तेरा पेट भी ठीक से न भर पाऊँगी. पर तू ये सब नही चाहती तो रहने दे.”
इतना कह कमला चुप हो गयी लेकिन दिशा को अपनी बातों पर ग्लानी होने लगी. वो अपनी माँ की मजबूरी को अच्छी तरह जानती थी. सोचती थी अगर वो लडकी न होती तो हमेशा माँ के साथ ही रह कर उसकी सेवा करती. दिशा का मन भी बदलने लगा.
उसने मन ही मन निर्णय लिया कि वो शोभराज के साथ शहर चली जाएगी. जिससे माँ के कन्धों का बोझ हल्का हो सके. जिससे उसके बाँट का खाना उसके बाकी के बहिन भाइयों को मिल सके. दिशा के लिए ये फैसला अपने आप को खत्म करने जैसा था लेकिन गरीबी और लाचारी से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका था.
दिशा अपना मन कड़ा कर माँ से बोली, “माँ मुझे भी लगता है कि मुझे ताऊ के साथ शहर चले ही जाना चाहिए. तुम परेशान मत होओ में अब वहां न जाने की जिद न करुँगी.” कमला का दिल दिशा की बातों को सुन भर आया था. अभी दिशा की उम्र ही क्या थी लेकिन गुरबत ने उसके दिमाग को गहन सोच सोचने के लिए मजबूर कर दिया था.
कमला ने दिशा को एक बार फिर से अपने सीने से लगा लिया. दिशा ने सब लोगों को सुखी देखने के लिए खुद को दुखी कर लिया था. शायद एक लडकी अपने घर वालों के लिए यह सब करके गर्व महसूस करती होगी. शायद औरत को हर मुश्किल और बुरे वक्त में खुद को नौछावर करने में जरा भी हिचक नही होती होगी.
समय बीत रहा था. कमला देवी और दिशा के साथ साथ घर के अन्य बच्चों के दिलों की धडकनें भी अनियंत्रित हो रही थी. जीतू जो रोज दिशा से लड़ता था वो आज दिशा से बड़े प्यार से बातें कर रहा था. चूल्हे पर रखे छोटे से गिलास में उबला हुआ दूध रखा था.
जीतू ने उस गिलास की मलाई चम्मच से उतार दिशा की तरफ बढ़ा दी और बोला, “ले दिशा तू ये मलाई खा ले पता नही वहां तुझे मलाई मिल पायेगी या नही?” दिशा भौचक्की हो अपने छोटे भाई जीतू की तरफ देख रही थी. जो लड़का मलाई खाने लिए उससे रोज लड़ता था वो खुद आ उसे मलाई खाने के लिए कह रहा था.
दिशा भी जीतू की ही बहिन थी. बड़े प्यार से बोली, “नही जीतू तू ही खा ले. वहां शहर में तो दूध की कोई कमी ही नही होती और ताऊ के घर तो पैसों की कोई कमी ही नही है. मैं वहां बहुत अच्छी अच्छी चीजें खाऊँगी.” इतना कह दिशा ने मलाई की चम्मच को अपने भाई की तरफ बढ़ा दिया. जीतू ने चाहते हुए भी बहिन की बात न टाली. बहिन भाई का प्यार देख कमला भावुक हो उठी. उन्हें अपने भूखे बच्चों से इतनी उम्मीद तो कम से कम थी ही.
दिशा ने अपने छोटे भाइयों को निहारा. जिनमे एक तो ठीक से बोल भी नही सकता था और दूसरा बुखार से तप रहा था. दिशा ने दोनों को बारी बारी से दुलारा और ताऊ के साथ जाने की तैयारी होने लगी. लेकिन ताऊ के साथ जाने के लिए कौन से कपड़े पहने ये समझ नही आता था. जिस मैले फटे हुए सलवार शूट को पहने खड़ी थी वही कपड़े उसके पास थे. दूसरा एक फ्रोक भी थी लेकिन वो अब छोटी हो चुकी थी जिसे अब नन्ही ने पहनना शुरू कर दिया था. फिर क्या पहन कर शहर जाए?
माँ कमला बेटी की इस दुविधा को समझती थी. बोली, “दिशा एक काम कर. तू मेरी किसी साड़ी को पहन ले और ताऊ के साथ चली जा. मैं उन्हें कह दूँगी तो वे शहर से तुझे नये कपड़े दिला देंगे. चाहे इस बात के लिए बाद में मुझसे पैसे क्यों न ले लें?”
इतना कह कमला देवी ने अपने बक्से से एक साड़ी निकाल दिशा को दिखा दी. नौ दस साल की लडकी साड़ी में कैसी लगती. उसका तो शरीर भी इतना बड़ा नही होता कि जिसपर साड़ी लपेटी जा सके लेकिन गुरबत में सब कुछ हो सकता है. गुरबत में महान से महान राजा घास की रोटी भी खा सकता है.
दिशा भी जानती थी इसके अलावा उसके पास कोई चारा नही है. वो माँ की तरफ चुपचाप खड़ी देखती रही. कमला ने जल्दी जल्दी से दिशा को साड़ी पहना दी. पहना क्या दी लपेट दी. दिशा साड़ी पहने बड़ी अजीब सी लग रही थी. फूल सी बच्ची के साथ ये भगवान का सितम था जो उसका नारीत्व ढकने तक को कपड़े न दे सका.
पता नही तब उसकी आँखें होती भी थीं या नही. दिशा का दिल बार बार भगवान को यही कह कह कर कोसता धिक्कारता था लेकिन भगवान ने एक भी न सुनी. न फरियाद और न दिशा का धिक्कारना. फिर भगवान ही क्यों सुने? किसी अबला स्त्री की तो धरती का इन्सान भी नही सुनता.
दिशा अभी साड़ी पहन कर ठीक से खड़ी भी न हुई थी कि शोभराज आ पहुंचा. दिशा को इस हालत में देख बोला, “अरे शूट पहन लेती दिशा. अच्छा शूट होगा नही. चलो कोई दिक्कत नही. शहर पहुंच मैं खुद दिलवा दूंगा.”
जो बात कमला शोभराज से कहने वाली थी वो शोभराज ने खुद कह दी थी. कमला ने दिशा की तरफ बड़े लाड से देखा. दिशा की आँखें जाने का नाम सुन फिर से डबडबा गयीं थी. कमला ने एक बार फिर से दिशा को अपने दिल से लगा लिया.
शोभराज ने माँ बेटी को मिलते देखा तो बोल पड़ा, “कमला अब मैं दिशा को लेकर चलता हूँ. ज्यादा देर होने से रास्ते में अँधेरा हो जायेगा.” कमला ने हाँ में सर हिलाया और दिशा को अपने से अलग कर बोली, “चलो बेटा अब जाओ और ताऊ के घर ठीक से रहना. कोई भी ऐसा काम न करना जिससे ये लोग गुस्सा हो तुम्हारी शिकायत हमसे करने आयें. जब भी मेरी या भाईयों की याद आये तो ताऊ को बता देना. वे तुम्हें यहाँ घुमा ले जायेंगे.”
दिशा ने रोते हुए माँ की बात पर हाँ में सर हिला दिया और शोभराज के साथ घर से बाहर चल पड़ी. घर को छोड़ कर जाना किसी छोटी लडकी के लिए बहुत मुश्किल होता है. शोभराज मोटर बाइक पर दिशा को बिठा शहर की तरफ चला गया. कमला दरवाजे पर खड़ी खड़ी दिशा को जाते देखती रह गयी.
साथ में बच्चे भी खड़े इसी तरह देख रहे थे. घर से एक लडकी कम हुई थी लेकिन कमला को लगता था जैसे घर में कोई रहा ही नही है. परन्तु एक उम्मीद थी कमला को जिसकी वजह से दिशा के घर से जाने का दुःख इतना नही लग रहा था. उसे शोभराज से बहुत उम्मीद थी. दिशा की पढाई से लेकर अच्छे घर में उसकी शादी तक की उम्मीद. एक माँ के लिए इतना बहुत था.
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