Aatmglaani in Hindi Children Stories by vineet kumar srivastava books and stories PDF | आत्मग्लानि

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आत्मग्लानि

आत्मग्लानि

पंद्रह अगस्त आने में अभी एक सप्ताह बाकी था | विद्यालय के सभी छात्र पूरे उत्साह के साथ "स्वतंत्रता दिवस" के कार्यक्रमों की तैयारी में लगे हुए थे | कुछ छात्र किसी नाटक की तैयारी में व्यस्त थे तो कुछ कविता का अभ्यास कर रहे थे | कुछ मैदान की सफाई में लगे हुए थे तो कुछ छात्र कार्यक्रम में काम आने वाले साज-सामान के प्रबंध में जुटे हुए थे | विद्यालय के लगभग सभी छात्र किसी न किसी प्रकार के काम में लगे हुए थे |

सलमान, मोहित, राहुल और आशीष - ये चारों लड़के "बापू विद्यालय" की आठवीं कक्षा के छात्र थे | ये सभी छात्र काफी दबंग थे | इनमें राहुल कुछ ज्यादा ही दबंग था | मामूली सी बात पर पर भी वह अपने से छोटों को पीट बैठता | बेवजह किसी को चपत लगा देता तो किसी को अड़ंगी मार कर गिरा देता |

वैसे तो राहुल पढ़ने में बहुत तेज था | वह पिछली कक्षाओं में लगातार प्रथम स्थान पर आता रहा था | परन्तु उसमे एक कमजोरी थी | वह यह कि उसे अपने ऊपर काफी अभिमान था | वह शहर के एक बड़े उद्योगपति का एकलौता बेटा था | उसके पिता उसकी हर इच्छा को पूरा करने का सदा प्रयत्न करते और उसे कभी उदास नहीं होने देते | यही कारण था कि राहुल में अभिमान कूट-कूट कर भरा हुआ था | वह प्रतिदिन अपनी कार पर विद्यालय आता और ड्राईवर उसके बाहर निकलने के लिए जब कार का दरवाजा खोलता तो वह बड़े गर्व के साथ कार से बाहर निकलता | उसके विद्यालय आते ही उसके साथी उसे घेरकर खड़े हो जाते और उसके साथ खड़े होकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते | पढ़ाई में सदा अव्वल रहने के कारण सभी अध्यापक राहुल से काफी प्रभावित थे | उन्होंने राहुल को सदा एक प्रतिभाशाली छात्र के रूप में देखा था | उन्हें राहुल से बहुत आशाएं थीं |

राहुल की कक्षा में एक मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का सुरेश भी था | वह इस विद्यालय में नया आया था | उसके पिता एक मिल में काम करते थे | उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी परन्तु सुरेश पढ़ाई में बहुत अच्छा था | इस बार आठवीं कक्षा की अर्धवार्षिक परीक्षा में उसने कक्षा में सर्वाधिक अंक प्राप्त किये थे | यह देखकर राहुल को भय लगने लगा कि सुरेश के आ जाने से उसका प्रथम श्रेणी प्राप्त करना असंभव है | इसी कारण वह सदा सुरेश को नीचा दिखाने के अवसर की तलाश में रहता |

ईर्ष्या वह अग्नि है जिसमे जलकर सभी कुछ राख हो जाता है | ईर्ष्या की आग अच्छे-अच्छों को शिखर से गिराकर मिट्टी में मिला देती है | इससे हमारा अपना विकास अवरुद्ध हो जाता है | इस अवगुण का असर हमारे शारीरिक और मानसिक विकास पर इतना बुरा पड़ता है कि हम समाज में अपनी पहचान,अपना सम्मान-सभी कुछ गवां बैठते हैं | हम दूसरों से ईर्ष्या करने के कारण अपने जीवन के लक्ष्य को भूलकर पथभ्रष्ट हो जाते हैं | प्रगति के पथ पर बढ़ते हमारे कदम बोझिल हो जाते हैं और हम लक्ष्य से भटककर पतनोन्मुखी हो जाते हैं | ईर्ष्या की यही आग अब राहुल के हृदय में धधक रही थी | ईर्ष्या के चलते उसे अब और कुछ नहीं सूझ रहा था | वह तो बस सुरेश को अपने मार्ग से हटा देना चाहता था |

पंद्रह अगस्त को अब केवल एक दिन शेष रह गया था | राहुल की चौकड़ी अपने नाटक की तैयारी में जुटी हुई थी | "राहुल की चौकड़ी" यह नाम विद्यालय के बच्चों ने ही रखा था | राहुल,सलमान,मोहित और आशीष के साथ उनकी सहपाठी शैलजा भी उनके साथ नाटक में भाग ले रही थी |

इस समय सलमान को छोड़कर बाकी चारों लोग नाटक की तैयारी में व्यस्त थे | तभी राहुल ने कहा-"यार,हम लोग नाटक की तैयारी तो कर रहे हैं लेकिन अभी तक हमें यह नहीं पता कि हमारी पोशाकें किसके पास हैं ? क्यों मोहित,तुम्हें कुछ पता है ?"

"मैंने सर से पूछा था |"शैलजा बोली,"उन्होंने कहा है कि हम तैयारी करें,नाटक का सामान उन्हीं के पास है,कल सबको मिल जाएगा |"इसी समय सलमान ने आकर राहुल के कान में कुछ कहा | मोहित और आशीष भी चौकन्ने हो गए |

"क्या बात है सलमान ?"दोनों ने पूछा | राहुल ने संकेत करके दोनों को चुप रहने को कहा | थोड़ी देर बाद यह चौकड़ी विद्यालय के पीछे वाले बरामदे में खड़ी थी |

"अरे यार,क्या बात है?" मोहित ने पूछा | "क्यों राहुल,सलमान क्या खबर लाया है?" आशीष अब बहुत उत्सुक हो उठा था |

"बताता हूँ,बताता हूँ | मैंने यह बात वहाँ इसलिए नहीं बताई क्योंकि वहाँ वह चुगलखोर शैलजा जो खड़ी थी | उसके पेट में कोई बात हजम ही नहीं होती | अच्छा सुनो- वह तीस मार खां सुरेश सात नंबर कमरे में बैठा कुछ कर रहा है | उसके हाथों में कपड़ों का एक पुलिंदा भी है | सलमान यही खबर लाया है | शायद बड़े मियाँ भी किसी कार्यक्रम की तैयारी में लगे हुए हैं |"राहुल ने व्यंग्य से कहा | "लेकिन मैं भी देखता हूँ,वह अपना कार्यक्रम कैसे तैयार कर पाता है | वह मुझसे आगे नहीं निकल सकता | मैं उसके रास्ते का वह पत्थर हूँ जिसे ठोकर मारने पर उसका अपना ही पैर लहूलुहान हो जायेगा |"राहुल का मुख ईर्ष्या और क्रोध से लाल हो उठा था |

"अरे यार,अगर वह कोई कार्यक्रम तैयार कर रहा है,तो इसमें बुरा क्या है ?"मोहित ने कहा,"और फिर विद्यालय के दूसरे बच्चे भी तो कार्यक्रम कर रहे हैं,फिर सुरेश से ही हमें भय कैसा ?"

"तुम नहीं समझोगे | यह बात जितनी सीधी दिखती है,उतनी है नहीं | जरा सोंचो,अर्धवार्षिक परीक्षा की तरह अगर वह इसमें भी बाजी मार ले गया तो हम तो कहीं के न रहेंगे | हमारे नाटक को उसके रहते किसी भी तरह का कोई पुरस्कार मिलना असंभव लगता है | वह एक मजदूर का बेटा मुझे धूल चटाने का प्रयत्न कर रहा है और तुम कहते हो कि इसमें बुरा क्या है ! मैं चाहता हूँ कि हमारा कार्यक्रम विद्यालय में सबसे अच्छा हो | हमारे नाटक की सभी लोग प्रशंसा करें और हमें पुरस्कार भी मिले |"यह कहकर राहुल ने अपनी योजना सबको समझा दी |

"टन-टन-टन-टन" छुट्टी हो चुकी थी | कुछ ही देर में सभी छात्र अपने-अपने घर को चले गए | बस राहुल और उसके साथी विद्यालय के पीछे वाले मैदान में अपनी योजना को क्रियान्वित करने के लिए रुके हुए थे | चपरासी रामदीन अभी कार्यालय का दरवाजा ही बंद कर रहा था | यही अवसर था राहुल को अपनी योजना को मूर्त रूप देने का | उसने झट से सात नंबर कमरे का दरवाजा खोला और भीतर से कपड़ों का एक पुलिंदा उठा लाया | "चलो,चलो,जल्दी करो |"आशीष बोला,"रामदीन इधर ही आ रहा है |"

"चलो"यह कहकर राहुल आशीष के साथ वहीं मैदान में आ गया जहाँ सलमान और मोहित खड़े हुए उनकी राह देख रहे थे | विद्यालय के पीछे स्थित इस मैदान में छुट्टी के बाद कोई आता-जाता नहीं था | इसी बात का फ़ायदा उठाते हुए ये चारों लड़के यहाँ एकत्र हुए थे |

"आशीष,जरा माचिस देना |"राहुल ने कहा और माचिस जलाकर उसने उस पुलिंदे में आग लगा दी | थोड़ी ही देर में कपड़ों का वह पुलिंदा जलकर राख हो गया | अब चारों मित्रों के मुख पर एक कुटिल मुस्कान थी | "कल पता चलेगा सुरेश बाबू को "राहुल ने यह कहकर जोरदार ठहाका लगाया और चारों मित्र घर की ओर चल पड़े |

आज पंद्रह अगस्त का दिन था | स्वतंत्रता दिवस के इस पावन राष्ट्रीय पर्व पर सभी छात्र बड़े उत्साह में थे | "बापू विद्यालय" में आज काफी चहल-पहल थी | विद्यालय की छत पर रखा रिकॉर्ड-प्लेयर देशभक्ति के गीत सुना रहा था | विद्यालय के मुख्य द्वार को अत्यंत आकर्षक ढंग से सजाया गया था | गेंदा,गुलाब आदि सुगन्धित पुष्पों से विद्यालय का मुख्य द्वार खिल उठा था | जहाँ-तहाँ रंगीन लड़ियों के कलात्मक प्रयोग से विद्यालय की शोभा कई गुना बढ़ी हुई प्रतीत हो रही थी | मैदान में एक ओर मंच बनाया गया था | उसे भी रंगीन झंडियों और फूलमालाओं से सजाया-संवारा गया था | कुछ छात्र मैदान के दूसरे किनारे बड़ी सी मेज पर जलपान आदि की व्यवस्था में लगे हुए थे | छात्रों के बैठने के लिए मैदान में काफी तादाद में कुर्सियों की व्यवस्था की गई थी | मंच के सामने सबसे आगे मुख्य अतिथि और विद्यालय के प्रबंधक महोदय आदि के बैठने का प्रबंध किया गया था | मंच के सामने दूसरी ओर विद्यालय के अध्यापकों एवं अन्य विशिष्ट अतिथियों के बैठने की व्यवस्था थी | झंडारोहण का समय करीब आ रहा था |

उधर विद्यालय के अंदर सभी छात्र अपने-अपने कार्यक्रम की तैयारी में जुटे हुए थे | राहुल,सलमान,मोहित,आशीष और शैलजा-ये पाँचों बड़ी देर से अपने अध्यापक को खोज रहे थे |

"वह देखो,वह रहे हमारे सर |"राहुल ने कहा,"सर हमारी पोशाकें तो हमें अभी तक नहीं मिलीं | नाटक का फ़ाइनल रिहर्सल तो हमनें सुबह आते ही कर लिया था |"

"क्या सुरेश ने तुम्हें तुम्हारी पोशाकें नहीं दीं ?"अध्यापक ने कहा,"कोई बात नहीं,तुम लोग जाकर सुरेश से अपनी पोशाकें ले लो |"

तभी उन चारों को सामने से सुरेश आता दिखाई पड़ा | उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं | चिंता और परेशानी की रेखाएं उसके माथे पर साफ़ झलक रही थीं |

"क्या बात है सुरेश,तुम इतना परेशान क्यों हो ?"अध्यापक ने पूछा |

"सर,मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है |"सुरेश रुंआंसा हो गया |

"आखिर बात क्या है ?साफ़-साफ़ कहो सुरेश |"अध्यापक ने कहा |

"सर इन लोगों के नाटक का सामान कमरे में नहीं है | मैंने सारी अलमारियाँ देख लीं लेकिन इनकी पोशाकें कहीं नहीं मिलीं |"

"ऐसा कैसे हो सकता है ?कल तो तुम इनकी पोशाकें उसी कमरे में रखकर घर गए थे |"अध्यापक अब काफी सकते में आ गए थे |

"हाँ सर,मैंने इन सब के कपड़े सात नंबर कमरे की अलमारी में ही रख दिए थे | मुझे अच्छी तरह याद है कि कल छुट्टी के समय तक इनकी पोशाकें उसी कमरे में ही थीं |"सुरेश ने कहा ,"और कल सब बच्चों के विद्यालय से जाने के बाद ही मैं घर गया था |

"सुरेश कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम बगल वाले कमरे में पोशाकें रख आये हो क्योंकि दोनों कमरे एक ही जैसे हैं और अलमारियां भी एक ही जैसी हैं |"अध्यापक ने सुरेश को याद दिलाने के उद्देश्य से कहा |

"नहीं सर,मुझे अच्छी तरह याद है | उन कपड़ों को मैंने सात नंबर कमरे में ही रखा था | मेरे जाने के पहले ही सब लोग घर चले गए थे | मैंने पोशाकों का पुलिंदा अलमारी में रखकर बाहर से दरवाजा बंद कर दिया था |"सुरेश ने कहा,"और चपरासी रामदीन सभी कमरों में ताला लगाता उधर ही आ रहा था,यह भी मैंने देखा था | रामदीन को उधर आते देख मैं आश्वस्त हो गया था और अपने घर चला गया था |"

"तो क्या वो पोशाकें हमारी थीं ?"राहुल बुदबुदाया | उसका मन उसे धिक्कारने लगा-"क्या यही गाँधी जी का आदर्श है जिस पर तू चल रहा है ? तुझे यहाँ के सभी अध्यापक कितना चाहते हैं | कितनी अपेक्षाएँ हैं उन्हें तुझसे | अब भी समय है,तू अपने अपराध को स्वीकार कर ले नहीं तो अपराधबोध की यह भावना तुझे भीतर ही भीतर जलाकर राख कर देगी | सोंच क्या रहा है,अपना अपराध स्वीकार कर ले राहुल |"

"हाँ यही ठीक होगा |"राहुल बुदबुदाया और अगले ही क्षण राहुल अध्यापक के पैरों पर गिर पड़ा |

"मुझे माफ़ कर दीजिये सर | मैं अपराधी हूँ | सुरेश के घर जाने के बाद वह कपड़ों का पुलिंदा मैंने ही चुराया था |" सिसकियाँ लेता हुआ राहुल अध्यापक के सामने था |

"लेकिन तुमने ऐसा क्यों किया राहुल ?"राहुल के मुख से ऐसा सुनकर अध्यापक सकते में आ गए |

"मैं समझता था कि वह सामान सुरेश का है और मैं सुरेश को अपने से आगे नहीं निकलने देना चाहता था | मेरे अभिमान ने सुरेश के प्रति मेरे मन में ईर्ष्या पैदा कर दी | मैं सदा अव्वल आता रहा हूँ और इस बार अर्धवार्षिक परीक्षा में जब सुरेश मुझसे अधिक अंक ले आया तो मेरे अभिमान को बहुत ठेस पहुंची | मैं भीतर ही भीतर व्यथित हो उठा | ईर्ष्या और अहंकार के चलते मैंने बिना कुछ सोंचे-विचारे ये घिनौना काम कर डाला |"अपराधबोध की भावना में सुरेश बोलता जा रहा था |"मुझे आप कठोर से कठोर दंड दीजिये सर,मैं इसी लायक हूँ |"यह कहकर राहुल फूट-फूटकर रो पड़ा |

राहुल के इस तरह अचानक अपना अपराध स्वीकार करते देख अध्यापक सन्न रह गए | उन्हें राहुल से इस प्रकार के काम की आशा कतई न थी | वह राहुल को एक अच्छे और होनहार छात्र के रूप में देखते थे लेकिन राहुल का यह रूप देखकर उनके पांवों के नीचे की जमीन ही खिसक गई |

"कोई बात नहीं राहुल |अपराध तो तुमने किया ही है लेकिन भविष्य में इस प्रकार का कोई भी काम दुबारा कभी मत करना नहीं तो मैं समझूँगा कि मुझमे ही कोई कमी रही जो तुम्हें उचित ज्ञान न दे सका |"अध्यापक भावुक हो उठे |"वैसे उन पोशाकों को तुमने रखा कहाँ है? जाओ और जाकर सबकी पोशाकें ले आओ | मैं तब तक मंच पर कोई दूसरा कार्यक्रम करवाता हूँ |"

अध्यापक के यह कहने पर राहुल फिर फ़फ़क पड़ा-"सर,अब आप चाहे मुझे कुछ भी कहें,कैसा भी दंड दें लेकिन चोरी के इस अपराध के बाद अब झूठ बोलकर मैं दूसरा अपराध नहीं करूँगा | सर,मैंने वह पुलिंदा बिना देखे,बिना खोले ही जला दिया था | मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है,सर | मैं अपराधी हूँ | मुझे दंड मिलना ही चाहिए |"राहुल अध्यापक के पैरों पर गिरा आँसू पर आँसू बहाता जा रहा था |

"उठो राहुल,दंड देने से कोई सुधरता नहीं है | दंड से तो कभी-कभी व्यक्ति और भी हठी हो जाता है | कोई व्यक्ति तभी सुधरता है जब उसका अपना मन उसे धिक्कारता है और उसे अच्छे-बुरे की पहचान कराता है | अपराध तो तुमने किया ही है परन्तु आज "बापू" की इस तस्वीर के सामने प्रतिज्ञा करो कि भविष्य में किसी को तंग नहीं करोगे | कभी किसी से ईर्ष्या नहीं करोगे | तुमने अपनी गलती मानकर बहुत अच्छा काम किया है | तुम्हारे पश्चाताप,तुम्हारी आत्मग्लानि की भावना ने तुम्हारे मन के सारे मैल को धो डाला है | अब तुम एक अच्छे बच्चे की तरह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो | आज तुमने अपना अपराध स्वीकार करके मेरे मन को गदगद कर दिया है | राहुल बेटे,तुम मेरे और अन्य अध्यापकों के मन में बसी अपनी अच्छी छवि को कभी धूमिल मत होने देना |"यह कहकर अध्यापक ने राहुल को अपने गले से लगा लिया |

"हमें भी क्षमा कर दीजिये सर |"आशीष,मोहित और सलमान दौड़कर अध्यापक के पैरों पर गिर पड़े,"केवल राहुल ही इस सबके लिए ज़िम्मेदार नहीं है | उसमे अभिमान और ईर्ष्या की इस भावना को बलवान बनाने के लिए हम लोग भी उत्तरदायी हैं सर | हम राहुल से मित्रता बनाये रखने के लिए बस उसी की मुँह देखी बात करते आए हैं | क्या सही है और क्या गलत है,इसकी समझ होते हुए भी हमने बस राहुल के ही मन की बात की है | हम उसके मित्र नहीं बल्कि शत्रु हैं | जो अपने मित्र को संकट में डाल दे,वह उसका मित्र नहीं हो सकता |"

अब ये तीनों राहुल की ओर घूम पड़े-"हमें माफ़ कर दो राहुल | हमने सच्ची मित्रता के नाम को धूमिल किया है,उसे कलंकित किया है |"

उठो,उठो,तुम तीनों ने अपना अपराध स्वीकार करके मेरे मन में अपना स्थान बना लिया है | मुझे अब तुम पर पूरा विश्वास है कि तुम लोग भविष्य में कभी भी कोई गलत काम नहीं करोगे | जहाँ तक तुम तीनों की राहुल से मित्रता की बात है,वह अब आज से और भी पक्की हो गई है | आज से पहले तुम स्वार्थवश राहुल के मित्र बने थे लेकिन आज से तुम राहुल के सही मायने में सच्चे मित्र हो | एक बात और है |"यह कहकर अध्यापक थोड़ा रुक गए |

"वह क्या सर ?"चारों एक साथ कह उठे |

"वह यह कि जिसके कारण तुम्हें जीवन का इतना बड़ा सबक मिला,क्या उसके लिए तुम सबका कोई फ़र्ज़ नहीं है ?"यह कहकर अध्यापक ने उन पर एक प्रश्नवाचक दृष्टि डाली तो सभी बच्चे उनका आशय समझ गए |

"जिसने मेरे जीवन को एक नई दिशा दी है,भले ही वह अप्रत्यक्ष रूप में हो लेकिन मुझे सबक देने वाला,मेरे अभिमान को नष्ट करने वाला,ईर्ष्या की आग से मुझे मुक्त करने वाला अब मेरा प्रतिद्वंदी नहीं रहा | अब वह मेरा मित्र है,मेरा हितैषी है |"यह कहकर राहुल ने आगे बढ़कर सुरेश को अपने गले से लगा लिया |

"शाबास बच्च्चों,मैं आज तुम सबमें यह बदलाव देखकर बहुत प्रसन्न हूँ | आज मंच पर जो नाटक होना था,उसका पुरस्कार तुम्हें नाटक न कर पाने के कारण नहीं मिल पाया लेकिन जीवन का यह नाटक,जिसने तुम सबके जीवन को एक नई दिशा दी है,उसका पुरस्कार तुम सबकी आपसी मित्रता है | सुरेश अब तुम्हारा नया मित्र है | एक ऐसा मित्र,जिसके कारण तुमने सही अर्थों में मित्रता का अर्थ समझा और जीवन की सच्चाई को जाना और समझा | "आत्मग्लानि" की पावन भावना ने तुम्हारे अंतःकरण को पवित्र कर दिया है | मेरा आशीर्वाद तुम सबके साथ है | खूब मन लगाकर पढ़ो और आपस में प्यार से मिलजुलकर रहो | बापू की तरह सच्चाई की राह पर चलते हुए अपने देश का नाम रोशन करो |