और मनीऑर्डर वापस आ गया
उन दिनों मैं नागपुर में दूरसंचार अभियंता का प्रशिक्षण ले रहा था, मेरा प्रशिक्षण संस्थान सीता बर्डी के मुख्य डाकघर के प्रथम तल पर था, भूतल पर डाकघर था। मेरा हॉस्टल सेमीनरी हिल्स पर शामली नाम के बंगले में था। सेमीनरी हिल्स की एक पहाड़ी पर बड़े क्षेत्र में फैला हुआ ये बंगला प्राकृतिक छटा से भरपूर था एवं सुंदर भी बहुत था। इस बंगले के एक कोने में वायरलेस स्टेशन था जहां पर कई वायरलेस ऑपरेटर व टेकनीशियन काम करते थे। हम सभी प्रशिक्षु वहाँ अकेले ही रहते थे, परिवार को साथ रखने की आज्ञा नहीं थी, अतः खाली समय में वॉली बॉल खेलना, पिक्चर देखने जाना या घूमने जाना आदि समय बिताने के तरीके थे। मैं भी कभी-कभी खाली समय में वायरलेस स्टेशन में जाकर बैठ जाया करता था। इसलिए वहाँ के सभी वायरलेस ऑपरेटर मुझे अच्छी तरह जानते थे। कभी कभी मैं वहाँ से दिल्ली टेलीफ़ोन करके घर पर बात भी कर लिया करता था।
उन दिनों घर पर संपर्क का साधन पत्राचार ही था, अक्सर पत्र खरीदने व भेजने के लिए समय-समय पर मुझे डाक घर में आना-जाना पड़ता था और डाक सेवा इतनी तेज थी कि कभी कभी मेरा सुबह नागपुर से पोस्ट किया गया पत्र उसी दिन शाम तक दिल्ली मेरे घर पर पहुँच जाया करता था क्योंकि उन दिनों दिन में तीन बार डाक निकालने व बांटने का काम होता था और सभी कर्मचारी बड़ी कर्मठता से सेवा करते थे। एक दिन मैं क्लास खत्म करके दस मिनट के मध्यान्ह में भूतल पर डाक घर में पत्र खरीदने गया तो देखा कि वायरलेस ऑपरेटर देवेंद्र पोस्ट मास्टर से लड़ रहा था चूंकि मैं देवेंद्र को भली-भांति जानता था अतः मैं भी उसके पास चला गया और वहीं खड़े होकर देवेंद्र और पोस्ट मास्टर की बातें सुनने लगा। उनकी बातें सुनकर मैं जान गया था कि देवेंद्र वहाँ पर मनीऑर्डर करने आया था। पोस्ट मास्टर साहब देवेंद्र को समझाने की कोशिश कर रहे थे कि जो पता आपने फार्म में भरा है, इस तरह का कोई भी पता पूरे भारत में नहीं है, इस पर सही पता लिख कर दो तो मैं मनीऑर्डर कर दूंगा, लेकिन देवेंद्र अड़ा हुआ था कि उसी पते पर मनीऑर्डर करना है। पोस्ट मास्टर साहब ने कहा, “”श्रीमानजी, अगर मैं इस पते पर मनीऑर्डर कर भी दूंगा तो वह वापस आ जाएगा। देवेंद्र ने पूछा कि मेरा मनीऑर्डर कब तक वापस आ जाएगा, तो पोस्ट मास्टर साहब ने बताया कि करीब 25 तारीख तक यह मनी –ऑर्डर वापस आ जाएगा। पोस्ट मास्टर की बात सुन कर देवेंद्र के चेहरे पर एक अजीब सी चमक आ गयी और वह बोला कि यही तो मैं चाहता हूँ। मैंने देवेंद्र को बीच में रोक कर पूछा कि मामला क्या है और तुम करना क्या चाहते हो? तब देवेंद्र ने मुझे विस्तार से बताया, “मुझे 600 रु वेतन मिला है जिसमें से 200 रु मैं मनीऑर्डर करना चाहता हूँ जो मुझे 25 तारीख को वापस मिल जाएंगे।” मैंने पूछा, “लेकिन भाई तुम ऐसा क्यो करना चाहते हो।” तब देवेंद्र ने जो तर्क दिया उसे सुन कर मैं हैरान रह गया और आप जानेंगे तो आप भी हैरान रह जाएंगे।
देवेंद्र ने बताया, “देखो भाई, 25 तारीख तक सब का वेतन खतम हो जाता है और उसके बाद के दिन बड़ी परेशानी मे निकालने पड़ते हैं। मेरा वेतन भी 25 तारीख तक खतम हो जाएगा तब तक मेरा मनीऑर्डर वापस आ जाएगा और मुझे 200 रु मिल जाएंगे, इस तरह से मैं 25 तारीख के बाद वाले दिनों में आने वाली परेशानी से बच जाऊंगा।” उसने यह भी बताया, “पिछले महीने भी मैंने इसी तरह का मनी ऑर्डर किया था जो मुझे 24 तारीख को ही वापस मिल गया था जब डाकिया मेरा मनी ऑर्डर वापस लेकर मेरे घर आया तो मेरी पत्नी भी मेरे साथ ही बाहर आ गयी थी और उस दिन घर में एक भी पैसा नहीं बचा था। लेकिन उस दिन जैसे ही 200 रू उसके हाथ में आए तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, वह तो ऐसे खुश हो रही थी जैसे रेगिस्तान में किसी प्यासे राही को कंही से पानी कि दो बूंदें मिल गयी हो। उसको इतना खुश देख कर मेरी भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब तुम ही बताओ अगर मेरे एक गलत मनी ऑर्डर करने से मेरी पत्नी के चेहरे पर महीने के आखिरी दिनों में भी खुशी ला सकता हूँ तो ऐसा मनी ऑर्डर करने में इस पोस्ट-मास्टर को क्यों तकलीफ हो रही है, अब आप ही इन महाशय को समझाओ कि मेरा मनी ऑर्डर भेज दें।” मैंने भी पोस्ट-मास्टर साहब से सिफ़ारिश कर दी थी कि भईया इनका मनी ऑर्डर कर दो, फीस तो ये पूरी दे ही रहे हैं। मैं देवेंद्र की बात अच्छी तरह समझ गया था और समझ गया था कि कैसे देवेंद्र अपनी छोटी सी तंख्वाह में खुश रहने व परिवार को भी खुश रखने का तरीका ढूंढ निकाला था।
वेदिता का स्पेस शिप
ड्राइंग टीचर ने सभी बच्चों को स्पेस शिप का चित्र बनाने के लिए कहा। वेदिता ने स्पेस शिप का बहुत ही सुंदर चित्र बना कर अपनी ड्राइंग टीचर को दिखाया तो टीचर बहुत खुश हुई और उसने वेदिता को गोद में उठाकर ढेर सारा प्यार किया। वेदिता बहुत खुश हुई और घर आकर सारी बात अपनी मम्मी को बताई। मम्मी ने जब वेदिता का स्पेस शिप देखा तो उसको भी वह बहुत सुंदर लगा, मम्मी ने वेदिता के स्पेस शिप वाले चित्र को फ्रेम करवा कर वेदिता के कमरे की दीवार पर टांग दिया।
एक दिन वेदिता अपने प्यारी डॉल के साथ खेल रही थी, खेलते-खेलते उसकी निगाह स्पेस शिप वाले चित्र पर पड़ी और वह उसे बड़े ध्यान से देखने लगी, देखते ही देखते स्पेस शिप फ्रेम से बाहर निकल कर उड़ने लगा और वेदिता की प्यारी डॉल वेदिता के हाथ से निकल कर स्पेस शिप में जाकर बैठ गयी, वह वेदिता को भी स्पेस शिप की सैर करने के लिए बुलाने लगी। वेदिता ने डॉल से कहा, “ना बाबा ना, मुझे तो डर लगता है।” लेकिन डॉल ने वेदीता से कहा, “आओ ना वेदिता देखो ना कितना आनंद आ रहा है, हम स्पेस शिप में बैठ कर चाँद सितारों की सैर करके आएंगे, कितना अच्छा लगेगा।” वेदिता ने डॉल की बात मान ली एवं वह भी स्पेस शिप पर चड़ गयी। अब स्पेस शिप दोनों को लेकर बड़ी तेजी से आकाश की ओर उड़ने लगा। जैसे जैसे स्पेस शिप आसमान में और ऊपर जा रहा था, वैसे वैसे चाँद सितारे नजदीक आ रहे थे। देखते ही देखते वह चाँद के इतना नजदीक पहुँच गया कि चाँद को हाथ से छू सकते थे, लेकिन डॉल ने वेदिता से मना कर दिया। चाँद बहुत सुंदर लग रहा था, थोड़ी ही देर में स्पेस शिप झिलमिलाते सितारों के बीच उड़ने लगा। सभी सितारे ऐसे नजर आ रहे थे जैसे वह सब भी उनके साथ-साथ दौड़ रहे हों। डॉल ने वेदिता को बताया, देखो दूर से हमारी पृथ्वी भी कितनी सुंदर नीली-नीली नजर आ रही है और वह बुध ग्रह जो हरा-हरा चमक रहा है, मंगल ग्रह देखो कैसे लाल-लाल चमक रहा है और वह देखो वेदिता शुक्र ग्रह कैसी चाँदी जैसी रोशनी में नहाया हुआ है। वेदिता सभी ग्रहों को बड़े ध्यान से देखे जा रही थी और सोच रही थी कि अगर अबकी बार ड्राइंग टीचर ने सौर मण्डल बनाने को कहा तो मैं पूरे सौर मण्डल का सजीव चित्रण कर दूँगी। वेदिता ने डॉल से कहा कि मुझे ब्रहस्पति, शनि, राहू और केतू ग्रह भी देखने हैं। डॉल ने कहा, नहीं आज नहीं, उन्हे कल देखेंगे, वो तो अभी दूर हैं और हमें देर हो जाएगी, अब मैं स्पेस शिप को वापस घर कि तरफ मोड रही हूँ, लेकिन वेदिता तो अभी और ग्रहों को देखना चाहती थी। डॉल ने स्पेस शिप को वापस घर की तरफ मोड़ा तो वेदिता ने डॉल को रोकने के लिए उसका हाथ कस कर पकड़ लिया, और जैसे ही वेदिता ने डॉल का हाथ कसा तो वह दब गया और डॉल से सीटी की आवाज बड़े ज़ोर से निकल गयी। सीटी की तेज आवाज सुन कर मम्मी दौड़ी-दौड़ी वेदिता के कमरे में आई तो देखा कि वेदिता ने डॉल का हाथ बहुत ज़ोर से दबाया हुआ है और नींद में ही कुछ बड़बड़ाए जा रही है। मम्मी ने बस इतना सुना कि वेदिता कह रही है, “डॉल, मुझे बाकी के सारे ग्रह भी देखने हैं, मैं अभी वापस नहीं जाना चाहती। ”मम्मी ने वेदिता को जगाया, थोड़ा पानी पीने को दिया और अपनी गोद में बैठाकर पूछने लगी, “बेटा, कोई सपना देख रही थी क्या?” वेदिता बोली, “नहीं मॉम मैं तो स्पेस शिप में बैठ कर सभी चाँद सितारों की सैर करने गयी थी।” फिर वेदिता ने मम्मी को सारी बात कह सुनाई। वेदिता की बात सुन कर दोनों ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगीं।