Bharat ke veer in Hindi Magazine by Anubhav verma books and stories PDF | भारत के वीर

Featured Books
Categories
Share

भारत के वीर

हम अक्सर अपने भारतीय सैनिकों की बहादुरी के किस्से सुनते रहें हैं। लेकिन आज हम आपको अपने आर्टिकल के जरिए उन 10 सैनिकों के अजम साहस से परिचय कराने जा रहें हैं जिनके बारे में शायद ही कभी आपने सुना हो। ये घटनाएं दिखाती हैं कि भारतीय आर्मी बेहद मुश्किल हालात में भी दुश्मनों का डटकर सामना करती हैं। इतना ही नहीं कई बार ऐसे मौके आए हैं जब अकेले दम पर भारतीय सैनिक दुश्मन के दर्जनों सैनिकों के छक्के छुड़ा चुकी हैं।

बाबा हरभजन सिंह

बाबा हरभजन सिंह सैनिकों के बीच विख्यात यह नौजवान महज 27 साल की उम्र में देश की सेवा के हित में अपने प्राण त्याग दिए। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आज भी हरभजन सिंह अपने पद पर तैनात हैं और एक सच्चे देशभक्त की तरह आज भी देश की मुस्तैदी से सेवा कर रहें हैं, जिसके लिए उन्हें प्रोमोशन और तनख्वाह दोनों ही मिलती है। भारतीय सैनिक ऐसा मानते हैं कि बाबा हरभजन उनकी रक्षा करते हैं। मीटिंग में भी उनके लिए एक खाली कुर्सी छोड़ दी जाती है। सैनिकों के मुताबिक, किसी भी अटैक से तीन दिन पहले बाबा उन्हें जानकारी दे देते हैं।बताया जाता है कि हिमालय क्षेत्र में भारत-चीन सीमा के पास नाथुला पास है। यहां 4 अक्टूबर 1968 को बाबा हरभजन सिंह नाम के सैनिक की मौत हो गई। तब वे ड्यूटी पर थे। बताते हैं कि बर्फ में आई दरार की वजह से वे नदी में गिर गए। तब उनकी उम्र सिर्फ 27 साल थी। 3 दिन बाद उनकी बॉडी नदी में 2 किलोमीटर दूर मिली थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इसके बाद वे साथी सैनिकों के सपनों में आए और सैनिकों से उस जगह पर पवित्र स्थल बनाने को कहा। सैनिकों ने सपने को सीरियसली लिया और वहां मेमोरियल का निर्माण कर दिया। स्थानीय लोग इस जगह को पवित्र मानते हैं।

कैप्टन मनोज कुमार पांडे

कैप्टन मनोज कुमार पांडे1999 की लड़ाई में कैप्टन मनोज कुमार पांडे बटालिक सेक्टर में प्लाटून कमांडर थे। वे अपने सैनिकों के साथ जुबर टॉप को कैप्चर करने की कोशिश कर रहे थे। पांडे ने दुश्मनों के खतरों को देखते हुए भी आगे बढ़ने का फैसला किया। इस दौरान वे अपने साथी सैनिकों से आगे निकल गए। खुद घायल होने के बाद भी वे चीनी सैनिकों पर वार करते रहे और आखिर में शहीद हो गए। लेकिन खुद मरने से पहले वे वहां मौजूद सभी दुश्मन सैनिक को मार चुके थे।

योगेंद्र यादव

हीरो ऑफ कारगिल वॉरवर्ष 1999 में भारत-पाक वॉर में ना जाने कितने सैनिकों ने देश की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे। उन्ही में से एक थे योगेंद्र यादव। बताया जाता है कि, करगिल वॉर के दौरान योगेंद्र 18 ग्रेनेडियर्स के इकलौते बचे सैनिक हैं। तब 18 ग्रेनेडियर्स को आदेश दिया गया था कि वे टाइगर हिल पर कब्जा करें। लेकिन पहाड़ पर चढ़ाई के दौरान ही पाकिस्तानी सैनिकों ने अटैक कर दिया और योगेंद्र को छोड़कर बाकी सैनिक मारे गए। योगेंद्र के शरीर में खुद 15 बुलेट लगी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और पाकिस्तानी सैनिकों को जवाब दिया- अब तक नहीं मरा, तो अब भी नहीं मरुंगा।इसके बाद उन्होंने ग्रेनेड से अटैक कर सभी पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया।

कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीदअब्दुल हमीद

कंपनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीदअब्दुल हमीद को 1965 के भारत-पाक वॉर के हीरो में गिना जाता है। जब पाक आर्मी ने खेमकरन सेक्टर के चीमा विलेज पर पैटन टैंक के साथ अटैक किया था तो हमीद ने बहादुरी से पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट कर दिया। लेकिन दो टैंकों पर हमला करने के बाद वे तीसरे पर हमला करने की तैयारी कर ही रहे थे कि उनपर अटैक हुआ और वे शहीद हो गए।

जसवंत सिंह

जसवंत सिंह1962 के भारत-चीन वॉर में गढ़वाल राइफल्स की एक टुकड़ी असम-अरुणाचल प्रदेश बॉर्डर पर थी। तभी सैनिकों को आदेश मिला कि वे वहां से पीछे आ जाएं। लेकिन इस दौरान एक सैनिक जसवंत सिंह ने पीछे आने से इनकार कर दिया और वहां अकेले ही रुक गए। करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर वे अकेले 3 दिनों तक रहकर चीनी सैनिकों को पीछे रुकने पर मजबूर कर दिया। इस दौरान उन्होंने खुद के दम पर 300 से अधिक चीनी सैनिकों को मार गिराया। लेकिन आखिर में जब उन्हें लगा कि वे पकड़ लिए जाएंगे तो उन्होंने खुद को भी मार दिया। चीनी सैनिक जसवंत का सिर काटकर अपने पास ले गए। लेकिन बाद में जसवंत की बहादुरी से इम्प्रेस होकर चीनी कमांडर ने उनका सिर और उनके सम्मान में एक मूर्ति वापस किया।

कैप्टन अनुज नैय्यर

देश के बहादुर सैनिक कैप्टन अनुज को 1999 के कारगिल युद्ध में सबसे ऊंची घाटी को अपने कब्ज़े में लेने को कहा गया था. वो अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहे थे, तभी पाकिस्तानी रॉकेट लांचर उनके शरीर को भेद गया, फिर भी कैप्टन ने अंतिम सांसों तक अपना टार्गेट पूरा कर लिया. LOC फ़िल्म में सैफ़ अली ख़ान ने इनका रोल किया था.

कैप्टन नीलकंठन जयचंद्रन नायर

मराठा बटालियन में शामिल नीलकंठन जयचंद्रन नायर को 1993 में नागा विद्रोहियों से निपटने के लिए नागालैंड भेजा गया था. वहां उन्होंने अपनी आहुती देकर पूरे बटालियन को बचाया था. इनकी बहादुरी को अभी भी लोग याद करते हैं.

ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी

जेपी दत्ता की प्रसिद्ध फ़िल्म 'बॉर्डर' तो आपने देखी ही होगी. इसमें सनी देओल ने इनकी भूमिका निभाई थी. 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में 124 सैनिकों की मदद से इन्होंने पाकिस्तान को पानी पिला दिया था.

गुरबचन सिंह सलारिया

26 साल के गुरबचन सिंह सलारिया को भले न हम जानें, लेकिन इनकी वीरता को संयुक्त राष्ट्र और अफ्रीकी देशों के लोग आज भी सलाम करते हैं. अफ्रीकी देशों में गृह युद्ध को रोकने का ज़िम्मा इस बहादुर को ही दिया गया था.

राइफ़लमैन जसवंत सिंह

देश के इस बहादुर बेटे के बारे में जितना ज़्यादा बोला जाए उतना ही कम होगा. इंडो-चाइना युद्ध के दौरान ये चीनी सैनिकों के सामने अकेले पड़ गए थे. ऐसी हालत में दो स्थानीय निवासियों की मदद से इन्होंने चीनी सैनिकों को बेवकूफ़ बनाया. बाद में चीनी सैनिकों के चंगुल में आने से पहले ही इन्होंने खुद को गोली मार ली.