Neha in Hindi Poems by vineet kumar srivastava books and stories PDF | नेहा

Featured Books
Categories
Share

नेहा

नेहा

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तुमसे स्नेह बढ़ाकर मैंने, मन में अगन लगाई नेहा ||

तुमको देखा तो यह जाना, सुंदरता किसको कहते हैं |

तुमसे मिलकर ही यह समझा, प्रेमी क्यों बेसुध रहते हैं |

तुमको सपनों में ला-ला कर, अपनी नींद उड़ाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तुम्हें देखकर ना जाने क्यों, दिल की धड़कन बढ़ जाती है |

तुमसे नज़र मिलाते ही क्यों, साँस मेरी यह थम जाती है |

अपनी इन आँखों में मैंने, सूरत यही बसाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

एक तुम्हारे सिवा न भाए, अब कोई भी, जग में मुझको |

फूल-कली क्या चाँद सितारे, अब देखूँ मैं सबमें तुझको |

तुम क्या जानो, कैसे मैंने, अपनी रैन बिताई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

अब से पहले इन आँखों में, कोई नया सपना ना आया |

अब से पहले इन साँसों ने, कोई नया नग़मा ना गाया |

प्रेम का पाठ पढ़ा तुमसे तो, कविता नई बनाई "नेहा "||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

क्या होती है प्रीति, किसे कहते हैं मन का मीत, ये जाना |

तुमसे मिलकर ही मैंने, कहते हैं किसे संगीत, ये जाना |

मन के सूने आँगन में, है आज बजी शहनाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

कहते हैं यह दुनिया वाले, हर सम्बन्ध बनाता है "वह"|

जिसकी सत्ता से सब चलता, सबको यहाँ मिलाता है "वह"|

मेरा और तुम्हारा मिलना, प्रभु की है प्रभुताई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तुमको देखूँ तो दिन लगता, ना देखूँ तो रात है लगती |

तुमसे मिलकर जाने क्यों अब, बदली सी हर बात है लगती |

मेरे मन पे साँझ-सवेरे, तुम ही तुम हो छाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तुम्हें देखता रहता हूँ मैं, सामने जब तुम आ जाती हो |

सच कहता हूँ, झूठ नहीं, तुम दिल पर मेरे छा जाती हो |

मन के इस मंदिर में मैंने, मूरत यही बिठाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

जोड़ा है ऊपर वाले ने, तुमसे जनम-जनम का नाता |

तुम ही सोंचो, ऐसे ही तो, नहीं किसी को कोई भाता |

समझ सको तो समझो, मेरे प्यार की यह गहराई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

क्यों अब तक ना कोई भाया, तुम्हें देखकर मन डोला है |

देखो इसको ठेस न देना, बेचारा यह मन भोला है |

पहली बार मेरे जीवन में, प्रीति ने ली अंगड़ाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

अपने दिल में झाँक के देखो, प्यार मेरा ही पाओगी तुम |

अपनी साँसों की सरगम में, नाम मेरा ही पाओगी तुम |

आँखों से होती है ज़ाहिर, हर दिल की सच्चाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

डूब के इन आँखों में तुम्हारी, दिल के भीतर उतर चुका हूँ |

लाख छुपाओ, इन आँखों में, सपना बनकर सँवर चुका हूँ |

अब यह दूरी मिट जाने दो, रुत है मिलन की आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

रेशम सी लहराती ज़ुल्फ़ें, मदमाते ओंठों की लाली |

बड़ा गज़ब ढाती है मुझपे, तेरे यौवन की हरियाली |

ज़ुल्फ़ों की इन जंज़ीरों से, हो ना कभी रिहाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

दुनिया में है प्रेम से बढ़कर, और नहीं दूजा धन कोई |

सारी सुंदरता है मन की, देखे तो देखे तन कोई |

मैंने तुम पर प्यार की अपने, दौलत यही लुटाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

हाथ में लेकर हाथ चलेंगे, दिन हो चाहे रात, चलेंगे |

कभी ज़ुदा होना मत मुझसे, जनमों तक हम साथ चलेंगे |

आगे भी तुम प्रीति निभाना, अब तक बड़ी निभाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

ऐसा कोई पल ही नहीं, जब इन आँखों में तुम ना आईं |

रात को तुम ही ख़्वाबों में थीं, सुबह उठा तो तुम मुस्काईं |

हर पल है बस ध्यान तुम्हारा, कैसी लगन लगाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

पल दो पल का साथ बना है, अब तो जनम-जनम का नाता |

प्यार तुम्हारा कदम-कदम पर, जीने की नई राह दिखाता |

यूँ ही रखना प्यार जवाँ तुम, अपनी यही कमाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

करते हैं जो प्रेम किसी से, नफरत कभी नहीं वो करते |

सुख में साथ निभाते हैं तो, दुःख सहने में नहीं वो डरते |

मेरे इस विश्वास की बनना, तुम सच्ची परछाईं नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

प्यार करम है, प्यार धरम है, प्यार इबादत है उस रब की |

इस जग में हम सब की खातिर, प्यार नियामत है उस रब की |

हर दिल में ऊपर वाले ने, प्यार की जोत जलाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

खींच रहा था मेरे मन को, अपनी ज़ानिब प्यार तुम्हारा |

और जुड़ा अनजाने में ही, तुमसे दिल का तार हमारा |

तन से तन मिलने से पहले, मन की हुई सगाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

एक अकेला इस दुनिया में, दर-दर की ठोकर खाता है |

छू लेता है आसमान, जब साथ कोई तुम सा पाता है |

मेरी और तुम्हारी किस्मत, कुदरत ने है मिलाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

हर पल मेरे पास तुम्हीं हो, मेरे दिल की आस तुम्हीं हो |

तुम्हें भुलाना नामुमकिन है, मेरा तो मधुमास तुम्हीं हो |

तुमसे ही जीवन में मेरे, छाई नई तरुणाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तुमसे मिलकर इन ओंठों पर, मीठी सी एक प्यास जगी है |

भूल के दुनिया के रंजो-गम, जीने की नई आस जगी है |

प्यार में तेरे, इस दुनिया की, हर एक चीज़ भुलाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तुम्हें देखकर अब क्या देखूँ, कोई नज़ारा तुम सा नहीं है |

मेरे लिए अब इस दुनिया में, कोई भी प्यारा तुम सा नहीं है |

चाँद तुम्हारे आगे क्या है, है तेरी परछाईं नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

किसे पता कब, कौन, कहाँ पर, इस दुनिया में मिल जाता है |

मिलते हैं बस वही, कि जिनसे, होता जनमों का नाता है |

ऊपर वाले ने ऐसी ही, जग की रीति बनाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

जीवन के इस पथ पर मैंने, एक तुम्हीं को अपना समझा |

अपनी इन प्यासी आँखों का, बस तुमको ही सपना समझा |

भूल गया मैं खुद को ही, यह कैसी नज़र मिलाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

प्यार तुम्हारा पाकर मैंने, दुनिया की हर दौलत पा ली |

और मैं रब से अब क्या माँगूं, जब मैंने तेरी चाहत पा ली |

बैठे-बिठाए कर ली मैंने, जीवन भर की कमाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

झुकी-झुकी ये तेरी आँखें, दिल में मेरे तूफ़ान उठाएँ |

और ये तेरी शोख़ अदाएं, दिल में कई अरमान जगाएँ |

सारी सुंदरता कुदरत की, तुझमे नज़र है आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

छू लेने दो इन ओंठों को, ओंठों की यह तपन मिटा दो |

बन के घटा सावन की बरसो, मेरे दिल की अगन बुझा दो |

प्रीति की चिंगारी ने दिल में, है ये अगन भड़काई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

अब तक था वीरान पड़ा, यह दिल का आलम झूम उठा है |

जाने कब का प्यासा मन, तुझको नज़रों से चूम उठा है |

अब जो मिले हैं हम दोनों, तो, हो ना कभी जुदाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तुम मेरे जीवन की आशा, तुम मेरे मन की अभिलाषा |

तुमको पा कर दूर हो गई, अब मेरी हर एक निराशा |

तुम आईं तो यूँ लगता है, भोर सुहानी आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

आँखों ही आँखों में जाने कब, चुपके से बात हो गई |

ना मैं जाना, ना तुम समझीं, कब, कैसे बरसात हो गई |

मस्त पवन के झोंकों ने, है मन में हूक़ उठाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

छुई-मुई से ये ओंठ तुम्हारे, बिन बोले ही बोल रहे हैं |

कजरारे ये नयन तुम्हारे, भेद वो मन का खोल रहे हैं |

इतने दिनों तक तुमने कैसे, मन की बात छुपाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

प्यार तुम्हारा पा कर महकी, मेरे जीवन की फुलवारी |

साथ तुम्हारा पाया है तो, अब मुझको कैसी लाचारी |

आसमान में उड़ने की अब, मैंने होड़ लगाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

बात किसी की करता हूँ पर, तुमपे आ कर रुक जाती है |

अब मेरी हर राह तुम्हारे, घर तक आ कर रुक जाती है |

तेरे ख़यालों से होती है, दूर मेरी तनहाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

बिन तेरे एक पल भी मेरा, जीना अब दुश्वार हुआ है |

खोया रहता हूँ मैं तुझमें, जब से मुझको प्यार हुआ है |

अपना तुम्हें बनाने की अब, मैंने क़सम है खाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

खोल रहा हूँ राज ये दिल का, अब तक बहुत छुपाए रखा |

दर्द ये उल्फ़त का सीने में, अब तक बहुत दबाए रखा |

होने मत देना दुनिया में, अपनी कभी रुसवाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

वादा कर लो आज ये मुझसे, साथ मेरा दोगी जीवन भर |

सुख में, दुःख में साथ चलोगी, हाथ न छोड़ोगी जीवन भर |

तुमको पा कर मन-उपवन की, कली-कली मुसकाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

मिल ही जाती हो तुम मुझको, रोज किसी ना किसी मोड़ पर |

बदल गई है दुनिया मेरी, तुमसे दिल का तार जोड़कर |

राह मेरी तेरे रस्ते से, रब ने खूब मिलाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

पास नहीं जब तुम होती हो, बेक़रार रहता है दिल ये |

चैन मुझे आता है अब तो, बस इक सिर्फ तुम्हीं से मिलके |

दूर-दूर अब रहना कैसा, रुत है मिलन की आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

चुपके-चुपके, चोरी-चोरी, प्यार मेरा परवान चढ़ा है |

दिल मेरा बेताब बहुत है, माने ना, नादान बड़ा है |

पास मेरे आ कर तुम कर दो, दूर मेरी तनहाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

अच्छी लगती हैं अब मुझको, बस तेरी ही तेरी बातें |

दिन तेरी यादों की महफ़िल, रातें तेरी ही सौगातें |

अब मुझको जग से क्या लेना, तुम हो तो है खुदाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तेरी पलकों के उठने से, रोशन होता है जग सारा |

और झुकें जो तेरी आँखें, हो जाता है जग अँधियारा |

ज़ुल्फ़ों में तेरी, सावन की, मस्त घटा लहराई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

चाल तेरी मतवाली, मेरे दिल पे क़यामत ढा देती है |

और तेरी हर एक अदा , दिल में तूफ़ान उठा देती है |

होश उड़े हैं मेरे, जब भी, ज़ुल्फ़ तेरी लहराई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तुम मेरे ख़्वाबों की परी हो, तुम मेरे जीने का इरादा |

संग रहोगी यूँ ही हरदम, आज ये मुझसे कर लो वादा |

होने मत देना जीवन भर, प्यार की तुम रुसवाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

मन ही मन तुम मुझको चाहो, कहने से पर क्यूँ डरती हो |

कर भी लो इक़रारे-मुहब्बत, छुप-छुप आहें क्यूँ भरती हो |

दिल अपना होता है लेकिन, होती प्रीति पराई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

भ्रम में जो पड़ते हैं, उनका जीवन व्यर्थ चला जाता है |

दुविधा में पड़ने वालों का, जीवन आप छला जाता है |

दूर करो अपने जीवन से, भ्रम की यह परछाईं नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

नेह-प्रेम की मृदुल छाँव में, आओ हम बैठें, बतियाएँ |

स्नेहिल मन के मृदु-भावों से, जीवन का संगीत बनाएँ |

साँसों के स्वर में शहनाई की अनुगूँज समाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

कल्पनाओं के फूल खिल गए, महकी आशाओं की कलियाँ |

तुमसे ही आबाद हुई हैं, मेरे दिल की निर्जन गलियाँ |

प्रीति की डोर पकड़कर मन ने, ऊँची पेंग बढ़ाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

भटक रहा था जाने कबसे, इधर-उधर यह मन बंजारा |

तुमको पाकर दिल की कश्ती को, जैसे मिल गया किनारा |

तुमने आकर मेरे दिल की कश्ती पार लगाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

बिन पंखों उड़ता फिरता है, मन मेरा हो कर मतवाला |

बदल रही है दुनिया मेरी, तुमने क्या जादू कर डाला |

दिन-दिन, पल-छिन, तुमने मेरी, प्रीति और गहराई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

भूल के तुमको क्या पाऊँगा, जीते जी मैं मर जाऊँगा |

तुमसे मेरा वादा है यह, नाम तेरे दिल कर जाऊँगा |

तुमको भुलाकर कर न सकूँगा, उस ग़म की भरपाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

संग तेरे जीने की कसमें, संग तेरे जीने का वादा |

और करेगा प्यार को गहरा, संग तेरे जीने का इरादा |

ऊपर वाले ने हम-दोनों की तक़दीर मिलाई नेहा |

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

लाख जुटा ले साधन सुख के, पर संसार न पूरा होगा |

प्यार की नेमत ही जो नहीं तो, यह संसार अधूरा होगा |

किस्मत वालों ने ही जग में, प्यार की दौलत पाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

अनजानी सी डोर है कोई, जिसने हम-दोनों को बाँधा |

मैं तेरा आधा हिस्सा हूँ, तू मेरा हिस्सा है आधा |

आधा-आधा जोड़ के हमने, गिनती एक बनाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

सोंचा ना था हम-तुम दोनों, एक दिन ऐसे मिल जाएँगे |

और हमारे जीवन में यूँ, फूल ख़ुशी के खिल जाएँगे |

बनते-बनते आख़िर इक दिन, बात मेरी बन पाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

सोंचा था जाने कब मैंने, कोई मेरा अपना होगा |

साथ किसी का पाकर मेरा, पूरा हर इक सपना होगा |

आज मेरे सपनों की दुनिया, लेती है अंगड़ाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

कब तक ऐसे मौन रहोगी, कुछ मैं बोलूँ, कुछ तुम बोलो |

अपने मन की परतों को तुम, आकर मेरे सम्मुख खोलो |

बात जो थी मेरे मन में, वह मैंने तुम्हें बताई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

बिन तेरे मैं कुछ भी नहीं हूँ, मेरे बिना हो तुम भी अधूरी |

हम दोनों के मिलने से ही, दुनिया अपनी होगी पूरी |

पलक बिछाए बैठा हूँ मैं, अब आई, अब आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

दिन को चैन न रातों को, यह बेचैनी बढ़ती ही जाए |

तुमसे मिलने को इस दिल की, बेताबी बढ़ती ही जाए |

इधर-उधर बहलाया फिर भी, तबियत बहल न पाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

बैठे-बैठे अक्सर यूँ ही, तुझमें ही मैं खो जाता हूँ |

रात हुई तो तेरी यादों के साए में सो जाता हूँ |

एक सिवा तेरे यह दुनिया, लगती मुझे पराई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

बिन फेरे मैं हुआ तुम्हारा, और हुई हो तुम भी मेरी |

उजियाली पूनम की हो गई, जो थी मेरी रात अँधेरी |

धवल चाँदनी इस जीवन में, तुमने ही बिखराई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

जनम-जनम की पूँजी पा ली, एक तुम्हारा साथ जो पाया |

ग़म न रहा अब मुझको कोई, हाथ में तेरा हाथ जो आया |

एक तुम्हारे आ जाने से, जान में जान है आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तुमने क़दम जो रखा छम से, वीराने आबाद हो गए |

चाँद, सितारे, फूल, कली अब, ये सब तेरे बाद हो गए |

तेरी उपमा देने को कोई, चीज़ नज़र ना आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

कितना भी तुझको मैं देखूँ, दिल फिर भी प्यासा का प्यासा |

तुमसे ही मैं जोड़ चुका हूँ, जीवन की हर एक अभिलाषा |

गीत हो तुम, संगीत तुम्हीं हो, ग़ज़ल हो तुम ही रुबाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तुम ही हो ख़्वाबों में मेरे, और ख़यालों में तुम ही हो |

तुम ही जवाबों में हो मेरे, और सवालों में तुम ही हो |

हर सूँ बस तेरी ही सूरत, मुझको नज़र है आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

प्यार है या यह कोई नशा है, रहता हूँ मदहोश सा अब मैं |

जागूँ या सो जाऊँ लेकिन, रहता हूँ बेहोश सा अब मैं |

मस्त अदाओं की इस दिल पर, बिजली तुमने गिराई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

नींद भी अब ना आए मुझको, चैन भी अब यह दिल ना पाए |

क्या मैं करूँ, अब तुम ही बता दो, मुझको तो कुछ समझ न आए |

जीना अब दुश्वार हुआ है, बेचैनी है छाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

दो पल का मिलना क्या मिलना, प्यास अधूरी रह जाती है |

वक़्त गुज़र जाता है यूँ ही, उम्र ये सारी बह जाती है |

चैन नहीं मिल पाएगा, जो प्यास न यह बुझ पाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

रब की जो मर्जी ना होती, तो यह सारा खेल न होता |

हम दोनों ऐसे ना मिलते, दिल से दिल का मेल न होता |

मेरी और तुम्हारी किस्मत, आज यहाँ ले आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

बाँहों से बाहें मिलने दो, दूरी अब यह मिट जाने दो |

आज मुझे रोके ना कोई, लुटता हूँ तो लुट जाने दो |

लुटने में भी एक मज़ा है, बात समझ क्या आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

जनम-जनम की प्यास लिए यह, घूम रहा था मन बंजारा |

देख के तुमको डोल गया मन, बजा मेरे मन का इकतारा |

साँसों की लय पर अब मैंने, धुन इक नई बनाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

इन आँखों की मस्ती में दिल, मस्ताना ना हो तो क्या हो |

इन जलवों को देख के कोई, दीवाना ना हो तो क्या हो |

लहराती ज़ुल्फ़ों ने दिल की, हसरत और बढ़ाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

तन कंचन सा सुंदर है तो, मन गंगाजल सा निर्मल है |

आँखें हैं मस्ती के प्याले, चाल ये नदिया की हलचल है |

कर दे जिगर को चाक जो, है वह तेरी यह अँगड़ाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

गैर नहीं अब अपनी हो तुम, दिल के सबसे पास तुम्हीं हो |

तुम क्या जानो मेरे लिए तो, आशा हो, विश्वास तुम्हीं हो |

तुम ही नज़र आई हो जिधर भी, मैंने नज़र घुमाई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

दिल में अपने तुमको बिठाकर, अगणित दीप जलाए मैंने |

इन आँखों में रंग-बिरंगे, कितने ख़्वाब सजाए मैंने |

इस दिल से हर राह निकलकर, बस तुम तक है आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

जो कुछ भी है मन में तुम्हारे, चुप न रहो अब खुलकर कह दो |

दिल में छुपी है बात जो कबसे, मिलकर आज मचलकर कह दो |

दूर-दूर अब रहना कैसा, मिलने की रुत आई नेहा ||

तुमसे नेह लगाकर मैंने, अपनी सुध बिसराई नेहा ||

***