Desi ghee ka khali kanastar in Hindi Short Stories by Ved Prakash Tyagi books and stories PDF | देसी घी का खाली कनस्तर

Featured Books
Categories
Share

देसी घी का खाली कनस्तर

देसी घी का खाली कनस्तर

हिसार जा रहे घोड़े तांगे में बैठी वह वृद्ध महिला अपने साथ देसी घी का कनस्तर ले जा रही थी। हिसार कस्बे की चुंगी आई तो चुंगी पर उसने एक कनस्तर देसी घी का चुंगी कर अदा कर दिया और रसीद ले ली। वापस आकर बैठने लगी तो तांगे वाले लड़के ने कनस्तर को सरका कर वृदधा के लिए जगह बनाने के लिए जैसे ही कनस्तर को उठाया तो बोला, “कनस्तर तो खाली है, ताई तूने तो बेकार ही चुंगी कर दिया है।” वृदधा कुछ नहीं बोली और चुपचाप आकर बैठ गयी। तांगा आगे बढ्ने लगा, घोड़े की टापों की आवाज से निकल रहा संगीत कानों को सुमधुर लग रहा था। कुछ देर बाद तांगा बाज़ार के स्टैंड पर आकर रुक गया। सभी लोग उतर कर अपने-अपने गन्तव्य पर चल पड़े। वृदधा भी अपना कनस्तर उठा कर सामने वाली घी की दुकान की तरफ बढ़ गयी। दुकान पर जाकर वृदधा ने लालाजी से कहा, “मेरा घी का कनस्तर रख लो, मैं वापस आकर ले लूँगी।” लालाजी ने कनस्तर लेकर एक कोने में यह सोच कर रख दिया कि वृदधा वापस आकर घी खरीद कर ले जाएगी। लालाजी का घी का थोक का व्यापार था, घी बेचते भी थे और गाँव से घी लाने वालों से घी खरीदते भी थे। वृदधा अपना घी का खाली कनस्तर लालाजी की दुकान पर रखकर बाज़ार में बाकी सामान खरीदने निकल गयी।

उन दिनों हिसार ज्यादा बड़ा शहर नहीं था, एक कस्बा था जहां पर नजदीक के गाँव वाले जरूरत का सामान खरीदने और बेचने आया करते थे। किसी भी कस्बे में बेचने के लिए लाये गए सामान पर चुंगी कर लगता था जो कि कस्बे मे प्रवेश करते समय वसूला जाता था। वृद्धा बाज़ार में घूम कर घर के लिए जरूरी सामान खरीदने लगी, चाय-पत्ती, मसाले आदि खरीदने के बाद सामने पेड़े वाले की दुकान पर पहुँच गयी। सुंदर-सुंदर सफ़ेद पेड़े एक किलो तुलवा कर कहने लगी, भैया, मेरे पोते को पेड़े बहुत पसंद हैं, पिछली बार जो लेकर गयी थी उनमे से कई पेड़े तो मेरी पोती ने छुप-छुप कर खा लिए थे जिससे मेरे पोते के लिए कम रह गए थे। पेड़े वाला बोला, “अम्मा पोते के लिए पेड़े खरीदे हैं तो पोती के लिए भी ले लिया करो, वह भी तो तुम्हारी ही बच्ची है।” पेड़े वाले की बात सुनकर वृदधा कहने लगी, “मैंने पोती के लिए एक किलो बेर पहले ही खरीद लिए हैं, लेकिन पेड़े तो मैं अपने पोते को ही खिलाऊँगी।”

सामान खरीद कर वृदधा वापस चल पड़ी और चलते चलते देसी घी की दुकान पर पहुँच गयी, जहां पर उसने घी का खाली कनस्तर आते समय रखा था। घी की दुकान पर पहुँच कर वृदधा ने लालाजी से कहा, “लालाजी मेरा घी का खाली कनस्तर और घी के 640 रु दे दो।” लालाजी ने घी का खाली कनस्तर पकड़ाते हुए कहा, “बहनजी आप तो यहाँ पर खाली कनस्तर ही रख गईं थीं, इसमे घी नहीं था।” लालाजी की इतनी बात सुनकर वृदधा ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगी एवं लालाजी को झूठा, चोर, बेईमान आदि शब्दों से परिभाषित करने लगी। झगड़ा होते देख आस पास के दुकानदार और राहगीर वहाँ इकठ्ठा हो गए और इस झगड़े का कारण जानने लगे। लालाजी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा, “भाइयों, आज सुबह ये बहनजी तांगे से उतर कर घी का खाली कनस्तर मेरी दुकान पर रख कर गयी थीं, मैंने यह सोच कर रख लिया था कि जाते समय ये बहन जी घी लेकर जाएंगी इसीलिए अभी खाली कनस्तर रख कर आगे बाज़ार से बाकी सामान खरीदने जा रही हैं।” इस पर वृदधा बोली, “मैंने तो घी का भरा हुआ कनस्तर इसकी दुकान पर यह कह कर रखा था कि जाते समय खाली कनस्तर और पैसे ले लूँगी, लेकिन इस लाला के मन में बेईमानी आ गयी है, अब यह खाली कनस्तर तो दे रहा है लेकिन पैसे नहीं दे रहा है जो कि 16 किलो घी के 640 रु बनते हैं, अगर आप लोगों को विश्वास नहीं है तो ये लो चुंगी की पर्ची जो मैंने आज सुबह ही घी लाते हुए कटवाई थी।” लोगों ने चुंगीकर की परची देखी जो पूरे 16 किलो देशी घी की उसी तारीख की थी। चुंगी कर की पर्ची देख कर लोगों ने लालाजी से कहा, “भले आदमी, क्यों इस भली औरत के साथ बेईमानी कर रहा है, यह तो अपनी जगह सही है, इसके पास तो सबूत भी है, एवं लालाजी को समझाया कि इसके 640 रु दे दो नहीं तो मामला पुलिस में जाएगा, फिर हो सकता है इससे ज्यादा ही खर्च हो जाए और बाज़ार में इज्जत भी खराब होगी।” लोगों के दबाव में आकर लालाजी ने 640 रु निकाल कर वृदधा को पकड़ा दिये और वृदधा अपने चेहरे पर एक विजयी मुस्कान लेकर देसी घी के खाली कनस्तर के साथ जाकर तांगे में बैठ गयी। अब तांगे वाले लड़के की समझ मैं आया कि ताई ने आते समय खाली कनस्तर की चुंगीकर की पर्ची क्यों कटवाई थी।