व्यंग
शक की सुई
आदमी के पास दिमाग नाम की एक चीज होती है |
इस दिमाग में सोच के साथ, शौच के लिए दिशा मैदान को पहचानने की क्षमता होती है |
हर दिमाग में कहें तो एक कम्पास फिट रहता है जो ये तय करता है कि आप सही जा रहे हैं या नहीं ?
इसी कम्पास के अगल बगल एक और कम्पास होता है जिसकी ‘सुई’ ‘शक’ नाम के भारी मेटल से बनी होती है |
यों तो ये शक की सुई हर ख़ास ओ आम में पाई जाती है मगर आम तौर पर वहमी आदमी -औरतों में ,खुफिया डिपार्टमेंट के खुखारों में,.पुलिसिया खोजबीन करने वाले काइयां किसम के अकडू लोगो में, इन्कौन्टर स्पेशलिस्ट खुर्राटों में और आजकल के घाघ नेताओं में इसका पाया जाना आम सा हो गया है |
इस सुई के, ऊपर बताये लोगों के अतिरिक्त अन्य जगह पाए जाने की जो संभावित और खास जगह है, तो वो है आपके पडौसी का दिमाग |
हर एक पडौसी अपने बगल में रहने वालों की गतिविधियों को बहुत ही गहराई से सालों सदियों से परखते रहता है | परखने के बाद चिपकाने लायक खामियों बुराइयों को ढिढोरा पीटने लायक शकल में ढालता है | आप स्रीलिग़ में अगर इंन बातों को गौर फरमाएं तो समझाने में ज्यादा सहूलियते होगी
इसी से ‘चुगली; जैसे शब्दों का चलन शुरू हुआ हो ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है |
जब हम चाल में रहते थे बड़े सादगी का जीवन था |
सात्विक विचारधारा वाले शर्मा जी, बौद्धिक वर्मा जी,मेहनती श्रीवास्तव बाबू, फेकू झा, उबाऊ ओझा, क्या बिहारी क्या यु पी, मराठी, बंगाली तेलगु तमिल सब में भाई चारा जैसा माहौल था |
सुबह शाम घरों से घंटी- घंटा और शंखनाद होते रहता था |
किस- किस घर से क्या- क्या बन के नहीं आता था ....?
कहाँ मती मारी गई थी, प्रसाद आरती के माहौल को छोड़कर 'थ्री बी. एच. के' वाले प्लेट में आ गए |
ऊपर वाला, नीचे वालों को नहीं पहचानता |
लगता है सब के पास काले- धन की बारिश हो रही है|
दिन रात कार घुमाए रहते हैं पेट्रोल को इस महंगाई में भी पानी की तरह पिलाए रहते हैं |
इनके स्कूटर- स्कूटी मानो पानी पी के चलते हैं | बेहिसाब चलाते हैं | कितना देती है .....? जैसे तुच्छ सवाल अगर इन लोगों के सामने कर दो तो हमेशा के लिए कालोनी भर की नजरों से गिर जाओ वाली बात हो जाती है |
खुदा का शुक्र है की इस दकियानूसी प्रश्न को दागने से अभी तक बचे हुए हैं |
‘स्टेटस सेम्बाल’ को मेंटेन करना है, तो यहाँ चुप्पी सबसे अच्छी जीज है, ये हिदायत अपने श्रीमती जी को हमने कालोनी के स्टेन्डर्ड और मौक़ा- मुआयना के निचोड़ बाद बाद सबसे पहले दे दी थी |
साथ ही गाँठ -बाधने लायक कुछ और तजुर्बों के निचोड़ से वाकिफ करा दिया था |
किसी के साथ ज्यादा घुसो मत |
एक की सुन के दूसरे को बताओ मत |
काम वाली बाइयों से किसी पडौसी महिला के रहन-सहन बात व्यवहार पर टीका टिप्पणी मत करो, तभी इधर टिक पाओगी वरना फ्लेट में रहने के अरमान को गोली मारना पड़ेगा |
यहाँ रहने वालों के एक पैर तो फकत शापिंग- माल में थिरकते रहता है |
हमने अपने शक की सुई घुसा- घुसा के देख ली, सुई ही भोथरी होने को आ गई मगर ‘करेक्टर’ खत्म होने के नाम नहीं लेते |
यो तो इस सुई को इजाद हुए तो सदियों बीत गए | हम सतयुग के पीछे जाने की चेष्टा खुद अपनी अज्ञानतावश नहीं कर रहे |
महाभारत काल में कौरवो द्वारा सुई के नोक बराबर जमीन न देने की घोषणा के साथ पाडवों के बदन में सैकड़ों सुइयां चुभ गई होगी |
कौरव के कुछ एक चहेतों ने पांडवों पर नमक मिर्च लगी सुइयों का प्रयोग किया होगा ....? कहा होगा .....देखते क्या हो .....हक़ से मागो ....मिलेगा कैसे नहीं .....?
ये छोटे- छोटे दृष्टांत महाविनाश के बीज बो देते हैं, युद्ध अवश्यंभावी हो जाता है |
रामायण वाले स्क्रिप्ट पर आयें |
मंथरा बहिनजी की 'सुई' माता कैकई को कैसे चुभी.....?
आप सब जानते हैं|
'शक' ये की राम को गद्दी मिलने के बाद भरत की जाने क्या दुर्गति हो ....? राज भारत को मिले, मिलना ही चाहिए |
‘जहाँ प्राण जाए पर वचन न जाए’ वाले शासक हों वहां आप हलकी- फुल्की सुई की जगह दिए हुए वचनों का सूजा चुभा दो..... आपका काम निष्कंटक हो जाएगा |
माता- कैकेयी ने वही किया | फूल से कोमल राजकुमार का देश निकाला हो गया | पत्नी और भाई विछोह के दंश, और सेवा भाव में संग हो लिए |
मर्यादा पुरुषोत्तम ने अपने जिस पराक्रम से, दंभी रावण का वध किया, उतनी ही क्षुद्रता के साथ किसी गैर के लगाए आरोप पर, सीता मैया के उन तलुओं में 'शक की सुई' चुभा दी, जिन तलुओं ने उन्हें जंगल, झाडी, कंकर,पत्थर, कांटे भरे रास्तों में साथ दिया था | उस अबला का अपराध क्या था ....? जो उसे जमीन के दरारों में, समाने को विवश होना पड़ा .....?
शी वाज कम्पेल्ड टू डू अ सुसाइडल अटेम्प्ट .......?
(अंग्रेजी में कहने की विवशता आंन पड़ी, हिंदी में यही कहो तो बखेड़ा उठ खड़ा हो जाए |}
यों होती हैं भाई जान........ शक वाली सुई ....!
हमारे पडौसी देश वाले काश्मीर का दावा लिए फिरते हैं | यो करते करते उनहोंने अपनी जमीन अपने देश का एक बड़ा हिस्सा बंगला देश के नाम खो दिया | चवन्नी बचाने के फेर में लाखों का नुकसान ....| वे हमेशा शक के घेरे में रहते हैं .....? कौन समझाए ......?
शायद यही उनकी राजनीति की रोजी - रोटी चलाने का जरिया हो |
अपने तरफ ‘मन्दिर‘ को जरिया बना के, नया नजरिया कई दिनों तक चलाया गया |
लोगों में शक या खौफ पैदा करके राज करने का फार्मूला कब तक चलेगा कह नहीं सकते ?
अपनी सरकार जितना बेहिसाब पैसा मिलेट्री और नताओं की सिक्युरिटी में लगा देती है उसकी चौथाई अगर पडौसी मुल्क को दान दे के वहां स्कुल कालेज उद्योंग धंधे खुलवा दे तो दोनों तरफ अमन चैन का माहौल व्याप्त हो जाएगा |
मुझे अपने ‘सर’ की याद आ रही है | हर वक्त बौखलाए हुए से रहते थे | शोरगुल वाले क्लास में आ धमकते ही रोबदार लहजे में गरजते ..... ,हल्ला नइ.......हल्ला बिलकुल नाइ..... चोप ......एकदम चोप्प.......|
हम लोगो ने उनका नाम ‘अल्ला सर’ रख दिया था |
वे आते ही कहते,’ आई वांट पिन ड्राप साइलेंस ....,यु नो पिन ड्राप .........|
मालुम है इसका मतलब .....?
फिर, कमीज के तीसरे बटन के पास खुरसे हुए दो तीन पिन में से एक निकाल के फर्श पर गिराते .....उनके इस करिश्मे को देखने और सुनने में ही माहौल सन्नाटे वाला हो जाता था ......
.डेड साईंलेन्स मेंटेन हो जाने पर, वे उत्साहित होते |
उन्हें लगता लगाम उनके कब्जे में है |
सुई का ऐसा अनोखा प्रयोग आपनेकिसी मुहावरे के साथ, शायद ही कभी सूना हो .......?
इस जगह हालाकि ये चुभने वाली चीज, शक की कतई नहीं है | .
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सुशील यादव