Ek tha Lekhak - 6 in Hindi Fiction Stories by Prashant Salunke books and stories PDF | ईक था लेखक - 6

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ईक था लेखक - 6

एक था लेखक

प्रशांत सुभाषचंद्र साळुंके

प्रकरण ६

यह कहानी एक वास्तविक लेखक के जीवन से बनाई है पर कहानी को रोमांचक बनाने के लिए लेखक ने अपनी कल्पनाओ का भरपूर इस्तमाल किया है इसलिये इस कहानीको सिर्फ एक कहानी के रूप में ही पढे. इस कहानी का बहोत ही ध्यान से प्रुफ रीडिंग करने के लिए में मेरे भाई अनुपम चतुर्वेदी का तहेदील से शुक्रिया करता हुं

सुचना : इस कहानी में लिए गए सभी पात्र काल्पनिक है। इनका किसीभी जीवित या मृतुक व्यक्तिसे कोई सबंध नहीं है और अगर एसा होता है तो वो महज एक इत्तफाक है

प्रकरण ६

विलीने एक झटके में शराब को अपने गले से उतारते कहा "बिलकुल सही समझा! में इंसानी गोश्त को चखना चाहता हुं, उसका स्वाद जानना चाहता हुं।

और इतना कहते विली मेक की और भूखी नजर से देखने लगा। मेक के कापते हाथो से ग्लास गिर गया।

मेकने तुरंत अपनी कुरशी से खड़े होकर विली के खंधो को पकड कर उसे झंझोड़ा। होश में आ विली होश में आ....

विलीने हंस कर कहा "में होश खो दू इतनी कभी पिता ही नहीं मेक.... याद है न... शराब पीना बुरी बात नहीं....

मेकने गुस्से से कहा "भाड में जाए तेरा यह डायलोग.... विली तू जानता है तू क्या कह रहा है?

विली : हां, में इंसानी गोश्त का स्वाद जानना चाहता हुं।

मेक : तू पागल है? तेरी कहानी का कोई पात्र जहर पीए तो तू उसे भी चख कर देखेगा?

विली : में उसे क्यों चखु?

मेक : हां अब आया न लाइन पर!.. में वहि....

विली : मैने उसे पहले ही चख कर देखा है. उसका स्वाद...

मेक : पागल है तू बिलकुल पागल है... ठीक है चल तू इसे चखना चाहता है। ठीक है। तो उधर ही चख लेता? यहाँ तुझे कौन देगा इंसानी मास?

विली : “में उधर ही चख लेता मेक, पर बिना शराब के वो मेरे गले के नीचे नहीं उतरता और उन जंगलियो के सामने शराब ...... मतलब खुदख़ुशी.... चिंता मत कर यहाँ भी इंसानी गोश्त मिल जाएगा ...”

मेक ;” कैसे? कैसे मिलेगा? बता मुझे?”

विली : “मेरे दिमाग में है एक उपाय?”

मेक : “क्या है वो? अरे यार विली, बता मुझे क्या है वो? कही तू किसीका खून करने की तो सोच नहीं रहा न? विली बता मुझे....”

विली गहरी नींद में सो गया था, या गहरी सोच में था?

भौमिक : “भाई, फिर आगे क्या हुआ? विलीने इंसानी गोश्त की व्यवस्था कैसे की? क्या उसने किसी का कत्ल किया?”

प्रशांतने पास पड़े टेबल से पानी का ग्लास उठाया और उसमे से थोड़ा पानी पिया। उसके माथे की रेखा तंग थी। तभी दीपा कमरे में आई "क्या बाते चल रही है? दोनों दोस्तों की?

प्रशांतने कहा "में भौमिक को लेखक विली के बारे में बता रहा था।"

दीपा ने आश्चर्य से कहा "उस खुनी लेखक की?

भौमिकने आश्चर्य से कहा "भाभी को पता है? उस लेखक के बारे में?"

दीपा : हां क्यों नहीं? इनका चहेता लेखक जो है। जब यह नेट पर उसके बारे मै रिसर्च कर रहे थे। तब नोट्स में ही तैयार कर रही थी। तब मैने पढ़ा था उस लेखक ने एक कहानी के लिये एक इंसान का कत्ल किया और फिर उसे पका कर खा गया!

भौमिक प्रशांत की और देख कर कहा "भाई, क्या भाभीजी सच कह रही है?

प्रशांतने तिरछी नजर से भौमिक की और देख कर कहा "हां भी और नहीं भी!!!"

भौमिक : “मतलब”

प्रशांत : “किसी के बारे में अफ़वाए बड़ी जल्द उडती है, और जब इंसान बदनाम होने लगता है। तब उसकी बदनामी बड़े जोरो शोरो से होती है! सुन .... आगे सुन...”

मेक भी वही एक कमरे में सो गया। सुबह जब उसकी आँख खुली। विली अपने कमरे में नहीं था! वो परेशान हो उठा। उसको अब चिंता सताए जा रही थी। की विली कहा गया होगा? कही वो किसीका कत्ल न करदे! वो जानता था की विलीने एक बार ठान ली फिर वो अपने आप की भी नहीं सुनता! उसे इंसानी गोश्त चाहिए मतलब वो किसी भी तरीके से उसे पा कर ही रहेगा

रात के करीबन 8 बजे थे। अचानक दरवाजे पर ठक ठक की आवाज से मेक चोक गया। उसने उठ कर दरवाजा खोला। सामने विली था। उसे देख विलीने कहा "तू अब तक इधर ही है मेक?”

मेकने उसके हाथ की तरफ देखते हुए कहा "यह क्या है विली? तेरे हाथ में क्या है?

विलीने कहा : कुछ नहीं, वो बाहर से आते वक्त होटल से खाना लेकर आया था। अब तू जा मेक में बहोत थक गया हुं.”

मेकने कहा "मुझे भी बहोत भूख लगी है विली में भी खाकर ही जाऊँगा।“

विली को यह पसंद नहीं आया। उसने मेक को टालने के बहोत प्रयत्न किए पर मेक भी जिद्दी था उसे देखना था। दरअसल उसे जानना था की मेक के हाथो में क्या है?

विली के हाथो में जो चीज थी, वो प्लास्टिक के पेपर में लपेटी हुई थी। विली चुपचाप अंदर के कमरे में गया। और थोड़ी देर में बाहर आया। वो सिर्फ टॉवेल पर था। उसके हाथ में इस वक्त वो पेकेट नहीं था। मेकने कहा: “यह क्या खाना नहीं खाना?”

विलीने इशारो से कहा की वो नहाने जा रहा है, विली को मेक का व्यव्हार खटक रहा था। और मेक को विली का!

विली के बाथरूम में जाते ही मेक के मन में विचार आया की वो विली के कमरे की तलाशी ले। पर यह शिष्टाचार के विरुद्ध होता। सो वो वही बैठा रहा। उसका इंतज़ार करते हुए। विली को स्नान करने में बहोत देर लगी थी। मेक जानता था वो जानबुझ कर देरी कर रहा था। उसने भी अब वहाँ से न हटने की ठान ली थी।

बहोत देर तक स्नान करने के बाद विली कमरे से बाहर आया। मेक को अभी तक अपने घर में देख वो थोडा नाराज हो गया। उसने नाराजगी से मेक की और देखा।

मेकने कहा "खाना खाए?

विलीने कहा "अभी बनाया नहीं है! देर लगेगी तू घर जा... मेक तेरा बर्ताव अब ज्यादा हो रहा है। आदमी की कुछ व्यक्तिगत जिंदगी भी होती है।

मेकने कहा "पेकेट में क्या था? वह देखे बिना में बिलकुल नहीं जाऊँगा।

विलीने कहा "देख लेगा तो जाएगा?

मेकने कहा "हां और शायद फिर कभी तेरे घर लौटकर भी नहीं आऊंगा!!!

विलीने अंदर कमरे में जाकर वह पेकेट ले आया। उसने उस पेकेट को मेक के सामने ही खोला

पेकेट के खुलते ही मेकने जो देखा उसे देख वह दंग रह गया। उसकी आँखे खुली की खुली रह गई।

पेकेट के अंदर था खून से लथपथ इंसानी गोश्त!!

मेकने गुस्से से विली की और देख कर कहा "विली यह क्या है? तूने सारी हदे तोड़ दी। अपनी जिद के लिए, किसी लाचार बेबस का खून कर दिया? तू खुनी है विली। पागल है!

विलीने कहा "में लेखक हुं दोस्त लेखक मेरी बात तो सुन!

मेकने गुस्से से कहा "में कुछ नहीं सुनना चाहता विली। और आज के बाद मुझे दोस्त भी मत कहना में नहीं चाहता की कोई मुझे तुझ जैसे कमीने का दोस्त कहे। मेरी तेरे साथ जो भी यादे है उसे मिटा दे। तू पिशाच हो गया है विली पिशाच।“

(आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़े प्रकरण ७)