मम्मटिया
धर्मेन्द्र राजमंगल
भूमिका-
मम्मटिया उपन्यास एक ऐसी स्त्री की कहानी है जो अपने जीवन में आयी तमाम मुश्किलों को झेलते हुये आगे चलती चली जाती है। एक अकेली स्त्री और सामने खडी पहाड सी मुश्किलें। साथ में अगर वो विधवा हो तो उसके लिये जिन्दगी और ज्यादा कठिन हो जाती है।
एक महिला कमला जो आगे बढकर अपने आप और अपने बच्चों को सुखी देखना चाहती है, वहीं दूसरी तरफ उसे दुख देकर पीछे धकेलने वाले लोग लगातार उसको हानि पहुंचाये जाते है। लेकिन वो स़्त्री इतनी जल्दी हार मानना नही चाहती ।
वो पहले ही अपनी जिन्दगी में बहुत कुछ खो चुकी है। अब उसे मुश्किलों से लडने का अभ्यास सा हो गया है। फिर वो क्योंकर पीछे हट जाये? आखिर ये उसकी और उसके बच्चों की जिन्दगी का सवाल है।
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जूनपुर गाँव का एक मोहल्ला. बेहद पतली गली और उस गली में बने हुए बेहद घने मकान. इतने घने कि एक छत पर किसी तरह चढ़ जाओ तो पूरे मोहल्ले की छतों पर घूम लो. सारे मकानों की ऊंचाई एक जैसी थी.
लगता था जैसे पूरे मोहल्ले के मकान एक साथ एक एक इंच नाप कर बनाये गये हैं. लेकिन ऐसा नही था. इन्हीं में से एक घर रामचरन का था. रामचरन के पांच भाइयों के मकान भी उन्हीं के मकान से सटे हुए बने थे.
रामचरन के चार बेटे और एक बेटी थी. बेटी कमला सबसे बड़ी थी. उम्र थी कोई सोलह सत्रह साल की. रामचरन ने बेटी को बड़े होते देख आसपास के लोगों और रिश्तेदारों से कह रखा था कि उनकी बेटी के लायक कोई लड़का हो तो बता दें.
रामचरन की पत्नी सुशीला ने अपनी लडकी को हर काम पहले से ही सिखा रखा था. घर की रोटी बनाने से लेकर खेत और पशुओं का काम भी कमला को खूब आता था.
रामचरन किसी लोहे के कारखाने में बैल्डिंग करने का काम करते थे. घर खर्च के हिसाब की तनख्वाह तो मिल जाती थी लेकिन जोड़ सकने को कुछ न बच पाता था. लेकिन फिर भी रामचरन ने बेटी की शादी के लिए थोडा सा पैसा जोड़ लिया था. अब इन्तजार था तो सिर्फ ऐसे घर का जिसमें अपनी लडकी को भेज सकें.
इस समय गाँव में सब लोगों की यही राय हुआ करती थी कि लडकी जितनी जल्दी अपने घर को विदा हो चली जाए उतना अच्छा है. यही कारण था कि सोलह सत्रह साल की कमला घर वालों को बोझ लगने लगी थी. हालाँकि सब कमला को चाहते थे. पूरे खानदान की सबसे बड़ी और सबसे पहली लडकी थी कमला.
वैसे एक घर था जिसमें रामचरन अपनी लडकी कमला का रिश्ता कर सकते थे. घरवार भी ठीक था और लड़का भी जाना पहचाना था. लेकिन एक ही दिक्कत थी कि उसकी एक शादी पहले से हो चुकी थी और दो बच्चे भी थे. पत्नी की मौत हो चुकी थी. जो रामचरन के खानदान की ही थी.
इस कारण रामचरन उस लडके को जानते थे. अच्छा लड़का कहीं न मिलने के कारण रामचरन अपनी लडकी की शादी इसी लडके से करने के लिए राजी हो गये. जो इस वक्त दो लड़कियों का बाप था और उम्र भी कमला से बहुत अधिक थी.
रामचरन ने झटपट उस लडके के घर बात की और अपनी लडकी कमला का रिश्ता उस घर में तय कर दिया. लडके वाले भी तुरंत राजी हो गये. कमला को तो कोई खबर ही नही थी कि उसका कही रिश्ता हो गया है. वो तो रोज की ही तरह घर के काम करती. लडकियों के साथ 'लंगड़ी' खेलती. गोटियों से खेले जाने वाले खेल ‘पिचगोटी’ को खेलती थी. माँ सुशीला ने कमला का रिश्ता तय होते ही उसे बहुत सी नसीहत देनी शुरू कर दीं. घर से बाहर जाना भी कम करा दिया.
जब तक कमला कुछ समझ पाती तब तक वो शादी हो ससुराल आ गयी. कमला की ससुराल वाले गाँव का नाम दानपुर था. ये बहुत छोटा सा गाँव था जिसके चारों तरफ बाग़ ही बाग़ थे. कमला अब इस घर की इकलौती बहू थी.
पति का नाम रणवीरसिंह था. उम्र कोई तीस के आसपास की थी. रणवीरसिंह के एक बड़े भाई भी थे भीकम्बर. जिन्हें लोग भिक्कू कहकर बुलाते थे. रणवीर की दो लडकियाँ लीला और सीमा थीं जो उनकी पहली बीबी की संताने थीं.
रणवीर के बड़े भाई भिक्कू जन्मजात ब्रह्मचारी थे. उन्होंने अपनी शादी नही की थी. वे दिल्ली में किसी सेठ के यहाँ काम करते थे. रणवीर और भिक्कू अपनी माँ के इक्कीसवें और बाईसवें पुत्र थे लेकिन पहले के बीस बच्चों में से एक भी जिन्दा न था. बस अंत में ये दो जने ही जिन्दा रह सके. कमला ने घर में आते ही पूरे घर को सम्हाल लिया. रणवीर की पहली बीबी की लडकियों को भी कमला ने बहुत प्यार से रखा.
भिक्कू अपने छोटे भाई की पत्नी कमला को अपनी बेटी की तरह मानते थे. जब भी दिल्ली से घर को आते तो घर का पूरा सामान लेकर घर पहुंचते. कमला जिस घर में व्याही थी वो घर भी काफी बड़ा था. पहले पूरा खानदान इसी घर में रहता था लेकिन धीरे धीरे सब लोग अलग जा जा कर रहने लगे.
रणवीर स्वभाव के बहुत भोले और मिलनसार थे. पूरा मोहल्ला उनकी तारीफें करते न थकता था. भिक्कू भी रणवीर को कभी काम करने के लिए न कहते थे. वो खुद जितना भी कमाते थे सब का सब रणवीर को दे जाते. जो रणवीर के खर्चे से कहीं अधिक होता था.
कमला की समझदारी और उम्र दोनों ही बढ़ रहीं थी. रणवीर कमला की समझदारी के कायल थे. अधिकतर काम को कमला से पूंछ कर ही करते थे. रणवीर के खानदान में और भी लोग थे जो गाँव में ही दूसरी तरफ रहते थे. गाँव में किसी से भी उनकी न बनती थी. वे लोग झगड़ालू और बेईमान किस्म के इन्सान थे और इस सब के उलट रणवीर और भिक्कू निहायत ही ईमानदार.
शुरूआती सालों में कमला ने कई बच्चों को जन्म दिया जो तुरंत मर भी गये. लेकिन एक लडकी दिशा उन में से जीवित रह गयी. लोगों ने रणवीर को सलाह दी कि वे अपने घर को किसी तन्त्र मन्त्र से शुद्ध करा लें जिससे उनके घर में हो रही बच्चों की मौतें थम जाएँ. रणवीर और भिक्कू को भी घर में एक लडके का न होने अखर रहा था. भिक्कू दिल्ली से घर आये और इस बारे में गाँव के पंडित से बात की.
पंडित जी ने पत्रा देखी और बोले, “देखो भिक्कू तुम्हारे घर में कुछ बुरे ग्रह हैं. पहले तो तुम घर में हवन पूजा करवा लो. उसके बाद जो भी लड़का पैदा हो उसको एकाध दिन के लिए गाँव की मेहतरानी(हरिजन महिला) को दे देना. साथ ही भीख मांगकर पैसे इकट्ठा कर उसके कान में सोने की बाली डाल देना. ध्यान रहे कान की बाली में भीख का पैसा जरुर लगा होना चाहिए. बाकी का तुम अपने पास से भी डाल सकते हो.”
भिक्कू अपने खानदान के चिराग को पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. उन्होंने घर में पंडित जी से हवन कराया. उन्हें खूब सी दक्षिणा भी दी. कमला इस वक्त गर्भवती थीं. पूरे घर में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और इस बार कमला ने एक लडके को जन्म दिया. भिक्कू और रणवीर तो ख़ुशी से पागल हो उठे थे. भिक्कू ने गाँव में लड्डू बटवा डाले. जो उस समय बहुत बड़ी बात हुआ करती थी.
पंडित जी के बताये अनुसार सब काम किया जाने लगा. पैदा हुए नन्हे लडके को गाँव में साफ सफाई का काम करने वाली और लोगों के द्वारा अछूत कही जाने वाली महतरानी को दे दिया गया. उस महतरानी ने उस लडके को अपना दूध तक पिलाया. जबकि उसका छुआ लोग अपने हाथों से नही पकड़ते थे.
कुछ दिन बाद नन्हा लड़का फिर से अपने घर अपनी माँ के पास आ गया. अब महतरानी सिर्फ उसे हाथ लगाने आती थी. जिससे कोई बुरी ग्रह उस नन्हे बच्चे को कोई हानि न पहुंचा सके. शायद ग्रह और बुरी आत्माएं भी उस महतरानी को अछूत मानती होंगी.
लडके का नाम करण भी हो गया. उसका नाम पंडित जी ने जीतू रखा. अब भिक्कू को इस जीतू के लिए भीख मांगकर कान की बाली बनवानी थी. हालांकि भिक्कू चाहते तो इस बच्चे के लिए दस बालियाँ लाकर पहना देते लेकिन फिर पंडित जी का बताया उपाय न हो सकता था. भिक्कू ने गाँव के दो चार लोगों से भीख मांगी. कुछ पैसा अपने पास से डाला और जीतू के लिए कान की बाली बनवा दी.
पता नही इन सब उपायों का परिणाम था या कुछ और रणवीर का नन्हा लड़का जीतू ठीक ठाक रहा. अब घर में चार बच्चे थे. दो कमला देवी के और दो रणवीर की पहली बीबी की लडकियाँ. सीमा और लीला उम्र में बड़ी थीं. लीला की उम्र बारह तेरह साल के आसपास थी और सीमा दस साल की थी.
दोनों लडकियाँ कमला देवी के बच्चों से जलती थीं. रणवीर के खानदान वालों ने इन दोनों लडकियों के कान भर दिए थे. उन्होंने इन दोनों से कहा कि अब कमला के बच्चे उस घर पर राज करेंगे और तुम भटकी डोलोगी. लेकिन कमला के मन में इस तरह का कुछ भी नही था.
वो इन दोनों लड़कियों को उसी तरह रखती थीं जिस तरह अपनी लडकी को रखती थी. हालाँकि जीतू और दिशा इन दोनों लडकियों से बहुत छोटे थे तो कमला का इन बच्चों के प्रति अधिक प्यार होना स्वभाविक था लेकिन सौतेली माँ को थोड़ी बहुत बदनामी तो मिलती ही है. चाहे वो कितनी अच्छी क्यों न हो?
दिन गुजर रहे थे कि तभी एक दिन गाँव में एक एम्बेसडर कार आकर रुकी. जिसके पीतल के पहिये थे. गाँव में पहली बार कोई इस तरह की गाडी आई थी. गाँव में उस गाड़ी के आसपास भीड़ लग गयी. गाडी में से एक आदमी निकला जो किसी बड़े सेठ की तरह दिख रहा था. उसने उतरते ही लोगों से पूंछा, “भैय्या ये रणवीरसिंह का घर कौन सा है?” लोगों ने ठीक सामने बने घर की तरफ इशारा कर दिया.
लेकिन लोगों को उस सेठ से इस गाँव में आने का कारण जानना था. गाँव के एक बुजुर्ग ने पूंछा, “भैया आप को रणवीर से क्या काम था? क्या कोई बात हो गयी है?” सेठ ने गम्भीर हो बताया, “जी चचा उनके बड़े भाई भीकम्बर की मौत हो गयी है. जिन्हें मैं इस गाड़ी में लेकर आया हूँ.” सेठ का इतना कहना था कि लोग उस गाड़ी पर चढ़ बैठे. एक दो आदमी रणवीर के घर जा इस बात की खबर दे आया.
रणवीर ने जैसे ही अपने भाई की मौत की खबर सुनी तो उन्हीं पांव दौड़े चले आये. कमला ने घर में ही रोना शुरू कर दिया. औरतें घर में पहुंच कमला को सम्हालने लगी. रणवीर अपने भाई भिक्कू को मृत देख दहाड़े मार मार रोते थे. गाँव के लोगों ने भिक्कू को गाड़ी से उतार उनके घर में पहुंचा दिया. सेठ ने भिक्कू के मरने का कारण प्राक्रतिक बताया था. कहता था कि सुबह सुबह भिक्कू अपने कमरे में मरे हुए पाए गये थे.
लोगों ने सेठ की बात पर यकीन कर लिया. बल्कि उसे धन्यबाद भी दिया. क्योंकि वो भिक्कू को घर तक गाड़ी से पहुँचने आया था. गाँव के सीधे साधे लोग न जान सके कि ऐसे मौके पर उन्हें क्या कदम उठाना था. भिक्कू का अंतिम संस्कार कर दिया गया.
रणवीर के घर की मासिक आमदनी भिक्कू के मरने से बंद हो गयी थी. अब सिर्फ खेती ही एक ऐसा साधन था जिससे रणवीर का घर चलना था. ऊपर से इन्हीं दिनों रणवीर ने जमापूंजी से अपनी सबसे बड़ी लडकी लीला की शादी कर दी.
उन्हीं दिनों कमला के घर एक लडकी ने जन्म ले लिया. इस लडकी का नाम नन्ही रखा गया. घर में बच्चे बढ़ गये थे और आमदनी कम हो गयी थी. रणवीर खेती से जितना कमाते थे उतना चार पांच बच्चों की परवरिश के लिए काफी नही होता था और साल भर के अंदर एक लड़का और हो गया.
घर में घोर तंगी और ऊपर से छठा बच्चा. रणवीर के घर की तंगी देख पंडित इस नवजात का नामकरण तक करने नही आये. उन्हें पता था कि उन्हें इस बार दक्षिणा भी ठीक से नही मिलेगी. बार बार बुलावा भेजने पर अपने छोटे भाई को भेज दिया जो ये सब करना ही नही जानता था. ऊपर से उसका हकलाना और अटक कर बोलना. बच्चे जब उसके हकलाने पर हँसे तो उठकर चला गया.
कमला इस बात से बहुत दुखी हुई लेकिन उसी समय दरवाजे पर एक भिखारी आ पहुंचा. कमला देवी ने पंडित को दिए जाने वाली सारी दक्षिणा उस भिखारी को दे दी. ये सब भिखारी के लिए बहुत था लेकिन पंडित के लये बहुत थोडा. भिखारी इतनी भीख पा खुश हो उठा और उसे जब पता पड़ा कि आज बच्चे का नामकरण है और पंडित भी घर से विना नाम रखे ही चला गया है तो उसने तुरंत उस बच्चे का नाम छोटू रख दिया.
घर के हर व्यक्ति को उस बच्चे का छोटू नाम पसंद आया. कमला ने उस भिखारी को दिल से धन्यबाद दे विदा किया. दिन गुजरते जा रहे थे. रणवीर की हालत दिनोदिन तंग होती जा रही थी और इन्हीं दिनों रणवीर बीमार पड गये.
पेट में असहनीय दर्द था. घर में एक भी रुपया नही था लेकिन इनका एक पड़ोसी भला इन्सान था जिसने अपने लडके के दहेज में आये रुपये उठा कमला को दे दिए. जैसे तैसे शहर के सरकारी अस्पताल में उन्हें दिखाया गया. यहाँ डॉक्टर ने बताया कि रणवीर के पेट का दर्द अपेंडिसाइटिस की वजह से है. कमला ने फौरन अपने मायके खबर कर दी.
रामचरन और उनके बेटे दौड़े चले आये. रणवीर के अपेंडिक्स का ओपरेशन करा दिया गया. ओपरेशन के बाद कमला अपने पति को ले घर आ गयीं. घर में खर्चे को रुपया नही था. खानदान के लोग रणवीर को देखने आये. उन्होंने कमला से मदद की पेशकश की लेकिन कमला ने उस समय मना कर दिया.
रणवीर के चचेरे भाइयों में आदिराज और शोभराज बहुत चालबाज आदमी थे. उनकी नजर रणवीर की जमीन पर थी. सोचते थे इस समय रणवीर और कमला किसी तरह उनसे कर्जा ले लें फिर वो इन लोगों की जमीन खरीद कर ही छोड़ेंगे.
आदिराज और शोभराज जब भी रणवीर को देखने आते तभी वे लोग रुपयों पैसों को लेकर मदद करने की कहते लेकिन रणवीर इन दोनों के स्वभाव से अच्छी तरह परिचित थे. उन्हें पता था इन दोनों ने मजबूर लोगों से एक रूपये के चार बसूले हैं.
जिसने भी इन लोगों से कर्जा लिया था वो किसी भी काम का नही रहा. लेकिन मुसीबत किसी को बता कर थोड़े ही न आती है. रणवीर के ऑपरेसन वाली जगह पर इन्फेक्शन फैल गया. कमला रणवीर को ले फिर से शहर के सरकारी अस्पताल वाले डॉक्टर को दिखने पहुंची.
सरकारी अस्पताल के डॉक्टर ने कमला को सलाह दी कि वो रणवीर को दिल्ली ले जाकर दिखा दें. क्योंकि शहर के सरकारी अस्पताल में कोई ठीक सा डॉक्टर नही था जो खराब हुए ऑपरेसन को ठीक कर सके. साथ ही डॉक्टर ने कमला को यह भी बताया कि अभी इन्फेक्शन इतना नही फैला कि कोई ज्यादा बड़ी मुश्किल हो जाय इसलिए बिना चिंता किये दिल्ली ले जा कर दिखा दो.
कमला के पास इतने रूपये नही थे कि रणवीर का इलाज दिल्ली के किसी अस्पताल में करा सकें. जब घर आकर उन्होंने अपने पिता को खबर भेजी तो उधर से उनका जबाब आया कि उनके पास भी इतने पैसे नही कि वो कमला को दे सकें.
कमला के भाई ने अपने बहनोई के लिए अपना खून तक दिया लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से पैसा न दे सके. कमला को चारो ओर निराशा नजर आती थी. पति की गम्भीर बीमारी और पांच बच्चों का बोझ. ऊपर से एक बच्चा उसके गर्भ में भी था.
कमला ने पति के मना करने के बावजूद शोभराज और आदिराज से मदद मांगने की सोच ली. कोई भी औरत अपने पति को पैसों की तंगी के चलते भी मरने के लिए तो नही छोड़ सकती. फिर चाहे उसके गहने बिक जाएँ या उसकी जमीन बिक जाए.
कमला जानती थी कि अगर कर्जा ज्यादा हो गया तो जमीन बिक जाएगी और उसके बच्चे जीवन भर भिखारियों की तरह जीयेंगे. लेकिन पति की जिन्दगी ही न रही तो जमीन और बच्चों का ही क्या होगा? जिस पति की वजह से उसे जमीन मिली. जिस पति की वजह से उसे बच्चे मिले. आज उसी को मरने के लिए छोड़ दे. कम से कम कमला तो यह न सोच सकती थी.
कमला ने अपना एक बच्चा भेज आदिराज को बुलवा लिया. आदिराज को पता था कि उसे कमला ने क्यों बुलवाया है? बच्चे के साथ भागता ही चला आया. आदिराज रिश्ते में कमला का जेठ लगता था और एक रिश्ते में फूफा.
लेकिन कमला आदिराज से यहीं का रिश्ता मान घूँघट करती थी. आदिराज रणवीर के घर आ बैठक में बैठ गया. कमला कमरे के दरवाजे के पीछे आ खड़ी हो गयी. क्योंकि औरतों को अपने से बड़े के सामने आने की इजाजत नही थी. बात करना तो दूर की बात थी.
आदिराज ने कमला से पूंछा, “बता बहू मुझे क्यों बुलवाया? किसी चीज की जरूरत हो तो बेझिझक हो कह देना.” कमला को आदिराज की बात अपनेपन जैसी लगी. बोली, “दद्दा तुम्हारे भाई के इलाज में कुछ पैसों की जरूरत पड रही है. अगर...?”
इतना कह कमला चुप हो गयी. आदिराज तो इस बात का कब से इन्तजार कर रहा था. बोला, “बहू पैसों की जरूरत थी तो बच्चे से मंगवा लिए होते. इसमें पूंछने की क्या बात थी? बता कितने रूपये चाहिए? आज ही रूपये दिए देता हूँ.”
कमला को लगा कि आदिराज को रणवीर पर तरस आ गया है इसलिए इतना भावुक हो बात कर रहे हैं. लेकिन वो क्या जानती थी कि इसमें आदिराज की चाल कूट कूट कर भरी हुई है. बोली, “दद्दा मैं रुपया लेकर क्या करुँगी? आप इनको दिल्ली लेकर चले चलिए. वहां जो भी खर्चा हो कर दीजियेगा. बस. मुझे कुछ नही चाहिए.” कमला ने सच्चे दिल से आदिराज पर भरोसा दिखाया था. उसे लगा जैसे आदिराज उसका सगा जेठ हो. मानो वो रणवीर का सगा भाई हो.
आदिराज ने जब यह सुना कि उसे रुपया खुद खर्च करना है तो खिल उठा. वो जानता था इसमें उसका और ज्यादा फायदा है. एक रुपया खर्च हो तो चार का खर्चा लिखेगा. गरीब मजबूर लोगों से इस तरह की चाल चल चल कर ही तो आदिराज गाँव का सबसे अमीर आदमी बना था.
आज तक उस पर कोई ऊँगली भी न उठा सका था. कई लोग तो आदिराज से पैसा ले बर्बाद हो चुके थे. पता नही कमला का क्या होना था. यही नही अब से कुछ साल पहले तक आदिराज थैलाछाप डॉक्टर का काम भी किया करता था. उसी दौरान एक बच्चे का इलाज करते हुए उस बच्चे की मौत हो गयी तब से आदिराज ने डॉक्टरी छोड़ दी थी और ब्याज का काम शुरू कर दिया था.
आदिराज का छोटा भाई शोभराज शहर के स्वास्थ्य विभाग में किसी पद पर कार्यरत था. वो अस्पताल से दवाइयां चुरा चुरा कर घर आदिराज को भेजता था और आदिराज उन दवाओं से गाँव में थैला छाप डॉक्टर बन गया था.
आदिराज कमला से बोला, “ठीक है बहू. मैं पैसों का इंतजाम करके लाता हूँ. तुम लोग चलने की तैयारियां करो.” इतना कह आदिराज अपने घर को चला गया. कमला ने अपने पति रणवीर को सारी बात कह सुनाई. रणवीर को असहनीय दुःख था लेकिन इतने पर भी मन अंदर से आदिराज की कोई मदद नही चाहता था.
कमला तो अभी कुछ साल पहले ही आई थी लेकिन रणवीर तो आदिराज को बचपन से जानते थे. आज की विवशता रणवीर को कमला की खिलाफत नही करने देती थी. रणवीर कमला के मन की हालत ठीक से समझ रहे थे. आज अगर कमला रणवीर की जगह होती तो रणवीर भी वही करते जो कमला कर रही थी.
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