शबाब-ए-ग़ज़ल
ग़ज़ल (1)
हमने देखी हैं सनम जबसे तुम्हारी आँखें |
एक पल भी न हटें तुमसे,हमारी आँखें |
ये समंदर हैं जो कितना ही पिलाएं फिर भी,
कभी होंगी नहीं खाली ये तुम्हारी आँखें |
यूँ तो छाता है नशा तुमको देखते ही मगर,
मस्तियाँ और बढ़ाती हैं तुम्हारी आँखें |
रोज मिलती हैं ये आँखें,मेरी आँखों से मगर,
फिर भी प्यासी ही रहें क्यूँ ये हमारी आँखें |
अभी नादान हैं,भोली हैं,बहुत कमसिन हैं,
जाने कब होंगी सुहागन ये कुँवारी आँखें |
इनको दुनिया की निगाहों से बचाकर रखो,
हर किसी शै से हैं बढ़कर ये तुम्हारी आँखें |
ग़ज़ल (2)
नज़र के सामने है हुस्न लाज़वाब कोई |
नहीं है तुझ सा ज़माने में माहताब कोई |
ये तेरी ज़ुल्फ़,ये चेहरा,ये मदभरी आँखें,
भरी है आँखों में जैसे तेरी,शराब कोई |
ये जवानी,ये तेरा हुस्न,ये अदा तेरी,
कसम ख़ुदा की,नहीं है तेरा जवाब कोई |
ये तेरा फूल सा चेहरा,ये मरमरी बाहें,
बदन तेरा है मेरी जान, आफ़ताब कोई |
ग़ज़ल (3)
मुझसे नज़रें जो चुराते हो,चुराते क्यूँ हो |
इस तरह मुझको सुबह-शाम सताते क्यूँ हो |
पास आ के मेरे तुम दूर चले जाते हो,
दूर जाना ही है तो पास यूँ आते क्यूँ हो |
इक झलक अपनी दिखाकर मुझे,छुप जाते हो,
धड़कनें दिल की बताओ तो बढ़ाते क्यूँ हो |
मुझको मालूम है तुमको है मुहब्बत मुझसे,
ज़ज़्बा ये प्यार का फिर मुझसे छुपाते क्यूँ हो |
ग़ज़ल (4)
मुझको रहती है तुम्हारी ही फ़िकर,शामो-सहर |
ढूँढती रहती है तुमको ये नज़र,शामो-सहर |
तुम कहीं भी रहो,नज़दीक मेरे रहती हो,
दिलको रहती है तेरे दिल की खबर,शामो-सहर |
ज़िन्दगी बोझ ये बनकर मेरी रह जाएगी,
तुमको देखा न सनम मैंने अगर,शामो-सहर |
तुम हज़ारों में हो,लाखों में हो,मेरे हमदम,
क्यूँ न हो फिर तेरे जलवों का ज़िकर,शामो-सहर |
ग़ज़ल (5)
इधर देखूँ,उधर देखूँ |
दिखे बस तू,जिधर देखूँ |
हर इक ज़र्रे में तू ही तू,
बता फिर मैं,किधर देखूँ |
तेरा ही अक्स दिखता है,
किसी गुल को अगर देखूँ |
तेरी ज़ुल्फ़ों की खुशबू से,
महकती रहगुज़र देखूँ |
तमन्ना है मेरे दिल की,
तुझे शामो-सहर देखूँ |
तुझे आईने में दिल के,
मेरी जाने-ज़िगर देखूँ |
तुझे हर पल करीब अपने,
ऐ मेरे हमसफ़र देखूँ |
कभी तेरा तबस्सुम तो,
कभी तेरी नज़र देखूँ |
मैं हर सूँ दिलरुबा तेरे ही,
जलवों का असर देखूँ |
ग़ज़ल (6)
आपसे ग़र ये दोस्ती होगी |
खूबसूरत ये ज़िन्दगी होगी |
ग़र चलें आप हमसफ़र बनकर,
मेरी राहों में रोशनी होगी |
आप हँस दें अगर जो महफ़िल में,
ग़म के चेहरे पे भी हँसी होगी |
साथ मिल जाए आपका जिसको,
फिर भला उसको क्या कमी होगी |
ग़ज़ल (7)
अनजान इस तरह तो न बनिए हुज़ूर आप |
रहिए न इस क़दर तो हाय,दूर-दूर आप |
हाय चुरा न ले कहीं,कोई बात-बात में,
रखिए छुपा के सबसे अजी,अपना नूर आप |
समझा था हमने आपको इक नाज़नीं हसीं,
लेकिन खबर न थी हमे,हैं कोई हूर आप |
सारा कसूर आपकी नाजो-अदा का है,
कैसे भला करेंगे,कोई कुसूर आप |
ग़ज़ल (8)
किस्मत ने जबसे तुमको,हमारा बना दिया |
रोशन मेरे नसीब का,तारा बना दिया |
आई जो शब तो आ के,तुम्हारे ख़्याल ने,
ख़्वाबों का रंग और भी,प्यारा बना दिया |
तन पे पड़ी जो तेरे,किरन माहताब की,
कुछ और हसीं तेरा,नज़ारा बना दिया |
सदके मैं उस घड़ी के,कि जिसने मेरे सनम,
तुमको हमारा,हमको,तुम्हारा बना दिया |
ग़ज़ल (9)
इक हुस्न की तस्वीर मुझे वो नज़र आए |
चेहरे से जो वो नाज़नीं चिलमन को उठाए |
क़मसिन है वो,नादान है,नाज़ुक सी कली है,
आँचल को उठाए,कभी आँचल को गिराए |
इक ज़िन्दगी नई मुझे देती है वो हवा,
छू के बदन जो उसका,मेरे पास है आए |
चिलमन जो वो पलकों की उठाए तो सहर हो,
होती है शब जो पलकों की चिलमन वो गिराए |
हर एक नज़र उसकी क़यामत की नज़र है,
हर एक अदा दिल पे क़यामत मेरे ढाए |
तारीफ़ वो भी कम है,ज़ुबाँ से जो मैं करूँ,
हुस्नो-ज़माल उसका न आँखों में समाए |
तिरछी जो निगाहों से वो देखे मेरी ज़ानिब,
धड़कन ये मेरे दिल की ठहर बस वहीं जाए |
तूफ़ान उठाती है मेरे दिल में वो हरदम,
पल भर भी बिना उसके मुझे चैन न आए |
अब और करूँ ज़िक्र क्या उस नाज़नीं का मैं,
जिस राह से निकले वो डगर फूल खिलाए |
ग़ज़ल (10)
उनकी हर एक नज़र तीरे-नज़र होती है |
वो समझते हैं नहीं होती,मगर होती है |
आँख मिलना कि क़यामत का ठहरना मुझपे,
हर क़यामत ही मेरी जाने-ज़िगर होती है |
रात होती है जो मुझसे वो जुदा होते हैं,
पास आते हैं वो मेरे तो सहर होती है |
ख़्वाब बनकर मेरी आँखों में समाए ऐसे,
आँख खोलूँ भी तो ख़्वाबों की लहर होती है |
हों जुदा ज़िस्म तो क्या,एक हैं रूहें अपनी,
दिल तड़पता है इधर,आह उधर होती है |