Thakar kare e thik - 4 in Hindi Drama by HASMUKH M DHOLA books and stories PDF | ठाकर करे ई ठीक - 4

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ठाकर करे ई ठीक - 4

परेश दानी : अरे मानी , तू भी क्या बके जा रहा है,
मै कह रहा हु कि इस टेबल पर मेरी माँ का दिया हुआ मेरा कुंजा रहता था जिसे मै हमेशा

अपने साथ ही रखता हु, वो नहीं है , टेबल पर ,
ओर तुम......
(ये सुनकर मानिकचंद और मंगल महेता थोड़े स्वस्थ होते है और फिर मानिकचंद कहता है)
मानिकचंद: ओह्ह! कुंजा....
तो तुम कह रहे हो कि तुम्हारी माताजी ने तुम्हे कुंजा दियाथा
परेशदानी: हा , वो भी बहोत पुराना था , मेरी माँ कि आखरी निशानी थी वो , मेरा कुंजा (बड़े दुखी भाव से )
(इतनेमे प्रेमलता उसे कहती है )
प्रेमलता: परेश ,कुंजा यही कही होगा , कही नहीं गया होगा , सामान के साथ ही मजदूरोंने रखा होगा ,तुम

दुखी मत हो
परेशदानी ; नहीं प्रेमलता , मै दुखी नहीं हूँ , किन्तु मेरा कुंजा...
यदि नहीं मिला और रात में माँ स्वप्ने में आयी और मुजसे उसने पूछा कि ,
परेश, तुम , मेरी इक दी हुयी निशानी भी ठीक से संभालकर नहीं रख सके ?
तो मै उसे क्या जवाब दूंगा.... प्रेमलता …।
(ये सुनकर मंगलमहेता बोलते है )
मंगल महेता : हवे जवाबवाली , पहेले कुंजा ढूंढ ,जवाब बाद में देना

परेश दानी : हा हा मेहताजी ने ठीक ही कहा ,
चलो ढूंढते है , यही कही होगा मेरा प्यारा कुंजा
मानिकचंद: हा हा चलो सब ढूंढो
जा जा हाथ रलियामना
परेश दानी : क्या कहा तुमने मानी?
मानिकचंद: अरे भाई कुछ नहीं ये गुजराती मुहावरा है ,

सब साथ काम करेंगे तोकाम जल्दी से हो जाएगा ,समजा
तू कुंजा ढूंढ , बाकि का बाद में समजाउंगा तुजे
(ये सुनकर प्रेमलता बोलती है)

प्रेमलता : हा.... हा ...दानी भाई सही कहते है , ये समय कुंजा ढूंढनेका है ,
मुहावरे समजने का नहीं ,
(ये सुन कर परेश थोडा परेशान होता है और फिर बोलता है )
परेशदानी: प्रेमु !!!!!! तुमभी मुझे समजाने लगी

कुंजा ढूंढो ना .......
प्रेमलता : (ज्यादा नहीं बोलती और थोड़ी शर्मिंदगी के साथ बोलकर आगे चली जाती है )हा हा चलो चलो ,

(फिर सब लोग घर में कुंजा ढूंढने लगते है)

(ये सभी कुंजा ढूंढते है तभी बाहर वे तीनो अपने वास्पा पर आते है और अपना स्कूटर उस नए घर के

सामने खड़ा रखते है और फिर अब्जल राजीव से पूछता है)

अफ़ज़ल :अरे यार राजीव , लगता है कि आज कोई नया ,यहाँ रहने आया है
राजीव; हां यार लगता तो ऐसा ही है
(इतनेमे मधुर बीचमे ही टापसी पुरता है )
मधुर: तो चलो उसके दर्शन करले !!

(इतनेमे ये तीनो अपना स्कूटर वहा पार्क करते है तभी सामनेसे दकुभाभी उसे आती हुयी नज़र आती है ,तो

अफ़ज़ल मधुर से कहता है )
अफ़ज़ल: अबे देख दकुभाभी आ रही है ,

उसे ही पुछलेते है ,उसे जरूर मालुम ही होगा
मधुर: हा ,उसे ही पूछते है
(इतनेमे दकुभाभी उसके पास पहुचती है कि तुरंत राजीव उसे पूछता है )

राजीव: अरे दकुभाभी आज कोई सोसायटी में नया मॉडल आया है क्या ?दकुभाभी:(हसकर ) हा हा क्या तुम लोग भी ,ऐसा थोड़ी ही ना बोलते है पडोसी के बारे में
अफ़ज़ल: तो भाभी
आपही बताओना कौन है ?

दकुभाभी: अरे वो हमारे मानिकचंदजी के दोस्त है , बड़े ही अच्छे है वो ,

मै अभी-अभी वहा ही जा रही थी कि तुम लोगोने मुझे रोका

(ये सुनकर अफ़ज़ल तुरंत बोलता है )
अफ़ज़ल: अच्छा , तो आप वहा जा रही हो
दकुभाभी: हा ,
अफ़ज़ल: तो चलो हम भी आपके साथ चलते है ,

हम भी हमारे नए पडोसी से मिल लेंगे
(राजीव तुरंत बीच में ही बोल पड़ता है )
राजीव: पहचान के वास्ते
दकुभाभी: हा ..हा... क्यों नहीं ?, चलो ...

आओ मेरे साथ

(फिर ये चारो परेश दानी के घरके दरवाजे कि ओर जाते है ,)

(जैसे ही वे चारो परेश दानी के घर में प्रवेश करते है ,कि वो देखते है कि सभी लोग इधर-उधर कुछ खोज रहे

है इतने में अफ़ज़ल बोल पड़ता है )
अफ़ज़ल: अरे ! मंगल चाचा क्या ढूंढ रहे है आप ?

अभी तक पानी नहीं मिला क्या ?
(ये सुन कर राजीव ,मधुर और दकुभाभी हसते है और बाकी के लोगो कि नज़र दरवाजे कि और पड़ती है

,फिर दकुभाभी बोलती है )

दकुभाभी :(प्रेमलता के पास आकर )क्यों क्या हुआ है प्रेमलता भाभी ?
प्रेमलता: कुछ नहीं दकुभाभी,
दकुभाभी:कुछ नहीं ....!!!!
तो फिर ये सब इधर से उधर ,और उधर से इधर क्यों दौड़ रहे है ? (हाथ कि एक्शन बता कर )

(इतनेमे मंगल महेता बोलते है)
मंगल महेता:अरे कुछ नहीं हुआ है दकुडी
वो तो इस दानी का कुंजा खो गया है , वो ढूंढ रहे है हम

(ये सुनकर राजीव, अफ़ज़ल और मधुर हसने लगते है और फिर राजीव बोलता है)
राजीव: हा,हा हा, सुबह में आप पानी ढूंढ रहे थे , और ,,और अब दोपहर में ,,,,, आप
(राजीव हसता है कि इतनेमे अफ़ज़ल बीचमे ही बोलता है )

अफ़ज़ल: लगता है कि चाचाजी को पानी मिल गया ही इसलिए उस पानी को भरने के लिए अब कुंजा ढूंढ रहे है ……

हा ....हां ......हां
(ये सुन कर मंगल महेता अफ़ज़ल के पीछे दौड़ते है ,और )

मंगल महेता : रुक तू अभी तुजे बताता हु कि मै क्या ढूंढ रहा हु ?
अफ़ज़ल :अरे चाचाजी कही इस उम्र में आप गिर जायेंगे तो आपकी हड्डी.... कि..... पसली.... कि मालिश करना

बहोत मुश्किल हो जाएगा
(ये दोनों सबके आगे -पीछे दौड़ते है , ये सब देख कर परेश दानी को थोडा गुस्सा आता है और वो बोलता है )

परेश दानी : अरे रूक्को...... (ये सुनकर वे दोनों ठहर जाते है,फिर परेश अफ़ज़ल,राजिव और
मधुर कि और इशारा करके बोलता है )
तुम लोगहो कौन ? और .....
यहाँ , इस घर में कैसे अंदर आये ?

(इतनेमे मानिकचंद बोलता है )
मानिकचन्द; अरे दानी , शांत , दिमाग को थोडा ठंडा रख ,

ये हमारे ही लडके है , हमारे ही परिवार के ,

मैंने तुम्हे बतायाथाना कि अभी तीन और बाकी है ,

वो ये थे ,

करदियाना तुम्हे दौड़ता ,

जैसे ही उनके चरण तुम्हारे घरमे पड़े....

(फिर मानिकचंद उन तीनो को कहते है )
मानिकचंद: बच्चो , अब शरारत नहीं ,

इस समय हमारे दानी साहब , बिचारे परेशान है , और आज वे हमारे महेमान कि तरह है ,

,इसीलिए उसकी समस्याका हल करना हमारा फ़र्ज़ है
(ये सुनकर राजीव बोलता है )
राजीव : ठीक है अंकल ,

आप बताओ कि समस्या क्या है ?
मानिकचंद: बेटा , दानी अंकल का कुंजा खो गया है ,

जो इसको ,उनकी माताजी ने अपनी निशानी के तौर पे दिया था ,
(इतनेमे प्रेमलताभाभी बोलती है )
प्रेमलता: हम लोगो ने पूरा घर छान मारा है किन्तु कुंजा कही नहीं मिला

(फिर दकुभाभी बोलती है )

दकुभाभी: अरे रे ,,,माड़ी रे.....

कुंजा खो गया ?
कैसा कुंजा था दानी भाई ?
परेश दानी : अरे दकुभाभी काय बतऊ आपको इस कुंजे के बारे में ,

वो तो बहोत साल पुराना था ,

मेरी माँ कि आखरी निशानी थी वो मेरे लिए ,

पता नहीं आज वो कब और कैसे ...... ?

(बड़े दुख के साथ )
दकुभाभी: नहीं नहीं दानी भाई आप निराश मत होइए
परेशदानी :क्यों निराश ना होउ , दकुभाभी
दकुभाभी: अरे दानीभाई निराशा में भी इक अमर आशा छुपी होती है ,

इसीलिए आप धीरज रखो ,

सब अच्छा ही हो जायेगा , ऐसा मेरा मन कहे रहा है

(ये सुनकलर मंगल महेता तुरंत बोलता है)
मंगल महेता ; दकुडी एकदम सही कहे रही है दानी
थोड़ी धीरज रखो , और ठन्डे दिमाग से काम लो .

तुम्हारा कुंजा होगा तो यही कही कही ही होगा
परेश दानी: नहीं चाचाजी, यदि यही कही होगा तो हमें कब का मिल चूका होता , पता नहीं ये भूल मुजके कैसे हो

गयी …।
(इतनेमे अफ़ज़ल बोला पड़ता है )
अफ़ज़ल: मेरे पास इक आईडिया है आपका कुंजा ढूंढनेका
(ये सुनकर सब लोगो कि जान में जान आ गई और परेश दानी बड़ा ही खुश हो कर बोला )
परेश दानी ; क्या है .....?,

जल्दी से बोल , क्या आईडिया है तुम्हारे पास ?
अफ़ज़ल: आईडिया तो अछा है ,

किन्तु पहेले आप हमें माफ़ कर दीजिये फिर मै बताऊंगा
परेश दानी : अच्छा चलो तुम्हे माफ़ किया , अब तो बताओ .....
अफ़ज़ल : (बड़े शरारती अंदाज़ में सबके बिच आ कर )तो दानी अंकल आप मुझे ये बताओ कि ,

सबसे पहेले आपने अपना कुंजा कहा देखा था ?
परेश दानी ; सबसे पहेले मैंने मेरा कुंजा..... हा.... मेरी माँ के पास देखा था ,
अफ़ज़ल; और उसके बाद आपने उसे कहा रखाथा ?
परेश दानी: फिर मैंने उसे ........बस जहाभी जाता था ,उसे इस टेबल के ऊपर ही रखता था

(टेबल कि तरफ निर्देश करते हुए)

अफ़ज़ल: मतलब कि आपने जब यहाँ आनेके लिए सामान भरा होगा तो साथ में ये टेबल और टेबल पर

से कुंजा भी लिया होगा ,
परेश दानी: हां लिए थे ना …
अफ़ज़ल: तो फिर , आपने टेबल और कुंजे को आखरी बार कहा एकसाथ देखा था ?
परेश दानी : इन दो नो को इक साथ ,,,,, हा ....जब टेबल को ट्रक में चढ़ाते थे तब
अफ़ज़ल: और तब आपने कुंजा कहा रखा था ?.

परेश दानी: (याद करने कि कोशीश करता है ,अपना हाथ अपने सर पर रखता है और फिर एकदम फटाक से

बोलता है)

तब मैंने .........कुंजा , तो अपने पास ही ,

अपने हाथ में पकड़ कर रखा था ,

और फिर उसे मै लेकर ऑटो में बेठ गया था
हा ......हा .......हा ........याद आया...... ऑटो..........

(इतने में मानिकचंद बोलता है )
मानिकचंद: क्या ऑटो ………?
(तुरंत प्रेमलताभाभी बोलती है)
प्रेमलता: हा याद आया ,भाई साहब ,
पिंकू के पापाने वो कुंजा तो ऑटोमे रखा था
परेश दानी: (थोड़ी हताशा के साथ )हा मानी , अब मई उस ऑटो वाले को कैसे ढूंढूंगा इस बड़े शहरमे .?
और कैसे मेरा कुंजा मुझे मिलेगा ?
(तुरंत अफ़ज़ल बोलता है)
अफ़ज़ल: अरे दानी अंकल ,ये गुजरात है ,गुजरात
अरे यहाँ लोगो को जिंदगी मिलजाती है, तो आपका इक कुंजा नहीं मिलेगा ...?
(तुरंत दकुभाभी बोलती है )
दकुभाभी: हा हो दानी भाई ,अफ़ज़ल सही कहे रहा है
अरे यहाँ खोये हुए खजानेभी मिल जाते है, तो आपका कुंजा तो मिल ही जाएगा
(तुरंत मंगल महेता बोलता है)
मंगल महेता : अरे तुम सब ये पंचात छोडो और ये सोचो कि
उस ऑटो वाले को कैसे ढूंढेंगे ?
(तो परेश दानी कहता है)
परेश दानी : हा .....चाचाजी सही कहते है ,
अब हमें ये सोचना चाहिए कि ऑटो वाले को कैसे ढूंढेंगे हम ?

(तो राजीव बोलता है)
राजीव: आपको ऑटो का नंबर मालुम है
परेश दानी : नहीं ,
राजीव: तो ,फिर कैसे ढूंढेंगे ऑटो वाले को...?

(तब मानिकचंद थोड़े गम्भीर होकर बोलते है परेश दानी से)
मानिकचंद: अच्छा तो ये बताओ कि दानी ,तुमने ऑटो कहासे ली थी ?
परेशदानी: ऑटो मैंने स्टेशन से ही लीथी
मानिकचंद : तब तो मुश्किल है यार (थोड़े उदासीके साथ )
क्योकि यदि तूने किसी चौक से या फिर यही पासके ऑटो स्टेंड से ऑटो ली होती तो उसे ढूंढना बड़ा ही आसान होता
(तो प्रेमलता बोलती है )
प्रेमलता: तो क्या ,अब ऑटो वाला नहीं मिलेगा हमें ?

और हमारा कुंजा ....!!!!
(तुरंत दकुभाभी उसे सान्तवना देते है)
दकुभाभी: नहीं नहीं प्रेमलताभाभी ऐसा मत बोलिये ,

आपका कुंजा आपको जरूर मिलेगा ऐसा मेरा दिल कहता है और,

जब कोई दिल कहता है ना तो वो ही होता है इसीलिए आप निराश मत होइए
(फिर मंगल महेता कहता है )
मंगल महेता : हा प्रेमलता बेटा, दकुडी बिलकुल सही कह रही है
तुम चिंता मत करो

हम कैसे भी करके तुम्हारा कुंजा आज शाम से पहले ढूंढ निकालेंगे
क्यों .... ढूंढ निकालेंगे ना..... ? (सबको कहते हुए )
(तो सब बोलते है)
सब: हा.... हा..... हम कुंजा आज शाम से पहेले ढूंढ निकालेंगे

तो परिषदानी कहता है
परेश दानी: किन्तु कैसे ?
ना कोई ऑटो वाला का अता , ना कोई पता
और हम कैसे ढूंढ निकालेंगे उसे ?
और वो .... भी इतने बड़े शहर में ?
लगता है आज यहाँ आते ही मेरा कुंजा गया ,
अब माँ मुझे मिलेगी तो क्या कहेगी ……(बड़ी ही उदासी के साथ )
(तभी मानिकचंद उसे कहता है कि)
मानिकचंद: देखो दानी , तुम हिम्मत मत हारो ,

हम है ना...!
हम सब साथ मिल कर तुम्हारा कुंजा ढूंढेंगे
(तो मंगल चाचा कहता है)
मंगल चाचा: अरे पन ढूंढेंगे, .... ढूंढेंगे , आखिर कब तक ढूंढेंगे ........अैसेही चलेगा
यहाँ खड़े खड़े ढूंढेंगे क्या ?
(ये सुन कर सब इक पल के लिए डर जाते है तभी मानिकचंद कहता है)
मानिकचंद : नहीं नहीं मेहताजी ,

यहाँ थोड़ी ना है कुंजा तो हम ढूंढेंगे इसे ,यहाँ ....!
मंगल महेता ; तो फिर बहार चलो और उस ऑटो वाले को ढूंढो पहेले
(तो दानी कहता है )
परेश दानी : हा हा मेहताजी ठीक ही कहते है ,

हमे बाहर ही उसे ढूंढने के लिए जाना पडेगा
(तो सभी इक दूसरेको कहने लगता है)
सभी : हा हा चलो चलो, बहार चलो
(और सभी परेश दानी के घर से बाहर आते है)

(सब परेश दानी के घर में से इक इक करके बाहर आते है और शेरी में उसके घर के सामने खड़े रह जाते है

इतने में वहा इतनी भीड़ देख कर और थोडा शोर के कारण डॉली आंटी और मुकुला भाभी भी आ जाती

है)

(डॉली आंटी सबके पास आकर उत्सुकता से पूछती है ,उसके साथ मुकुला भाभी भी है )
डॉली आंटी: अरे क्या हुआ मानिकचंद भाई ,?
क्या हुआ मेहताजी ?

(तुरंत साथ ही साथ में मुकुलाभाभी बड़ी उत्सुकता से पूछती है)
मुकुलाभाभी : हा हा क्या हुआ ,मौसमी के पापा ,
आप सब इतने परेशां क्यों लग रहे हो और....
ये आपके दोस्त दानी भाई को क्या हुआ ?
(ये सुनकर सब थोड़े गम्भीर हो जाते है और फिर मानिकचंद कहता है )

मानिकचंद: कुछ नहीं मुकुला ,

वो तो हमारे दानी साहब का कुंजा उस ऑटो में रह गया है,और

हम सब उसी कुंजे के लिए ही चिंतित है

(तो डॉली आंटी फिर पूछती है)

डॉली आंटी: किन्तु उस कुंजे में ऐसी तो क्या खासियत थी कि उसके लिए इतने चिंतिंत लग रहे हो ?
तो मुकुलाभाभी तुरंत बोलती है ?

मुकुलाभाभी ; अरे डोलीजी ,कुंजा बहोत कि कीमती होगा ,

तभी तो ये सभी इतने गम्भीर ,और चिंतित दिख रहे हे ना ,

वरना माटी के कुंजे के लिए कोई भला इतना परेशान थोडिहीना होता है
(ये सुनकर परेश दानी को थोडा गुसा आता है और वो तुरंत मानिकचंद के सामने देखता है , तो

मानिकचंद उसका इशारा समज जाता है और वो मुकुला से कहता है)
मानिकचंद : अरे मुकुला , केम तू दाजवा पर डाम दे छो ,
(ये सुन कर परेश फिर हैरानी से पूछता है)
परेश दानी ; ये अभी अभी तूने क्या बोला ?
(तो मानिकचंद उसे कहता है)

मानिकचंद: अरे भाई वही गुजराती मुहावरा है तुम्हारी भाषामे कहु तो
जले हुए पर नमक छिड़कना …… अब समजा

(तो तभी मंगल महेता बिचमेंही बोलते है )
मंगल महेता ; अरे ओ भाई मनिया
तुम्हारे ये मुहावरे को बोलना बांध कर और कुंजा ढूंढना शुरू कर
(तो मानिकचंद बोलता है )
मानिकचंद: हा हा चाचाजी ,

किन्तु ये तो दानी पूछ रहा था इसीलिए उसे बता रहा था

(फिर मुकुलाने प्रेमलताभाभी से पूछा बीचमे आ कर )
मुकुलाभाभी : आप ही बताओ ना प्रेमलताभाभी
कि कुंजे के लिए आप सब क्यों इतने परेशान है ?

(तभी प्रेमलता उसे कहती है )
प्रेमलताभाभी: वो तो ऐसा हैं ना कि....
(प्रेमलताभाभी इतना बोलती है कि तुरंत मानिकचंद बिच में ही बोलता है और मुकुला को कहता है )
मानिकचंद: मुकुला ,

ये कुंजा हमारे दानी भाई को दी हीई उसके पूज्य मातु श्री कि आखरी निशानी थी

इसीलिए हम सब उसके लिए चिंतित है
(तो मुकुला थोड़ी भावुक हो कर बोलती है )
मुकुलाभाभी: तब तो उसे किसी भी हालत में ढूंढना ही चाहिए
(ये बात सुन कर फिर परेश दानी बोलता है )
परेश दानी : पर कैसे ?

तभी अफ़ज़ल बोलता है
अफ़ज़ल: दानी अंकल आपको उस ऑटो वाले का चहेरा मालुम है ?
( तो परेश दानी तुरंत बोलता है )
परेश दानी : हा हा हा मुझे उसका चहेरा , अच्छी तरह से मालुम है ,
(तोअफ्ज़ल बोलता है)

अफ़ज़ल : तब तो काम हो गया समजो
तो मानिकचंद और सभी उसको पूछते है
सभी : कैसे ?
अफ़ज़ल : (बड़े ही मौजिले अंदाज़ में) ....बड़ा ही सिंपल सा रास्ता है

हम स्केच आर्टिस्ट को बुलवाकर उस ऑटोवाले का स्केच तैयार करेंगे
(तो मंगल महेता अफ़ज़ल को कहते है कि)
मनांगल महेता : अरे ओ वेवलीना !!! उसकी स्केच बनवाके क्या हम उसे क्राइम ब्रांच में दे

और वहा जाए और कहे कि

इस ऑटो वाले कि ऑटो में कुंजा रह गया है,

तो आप उसे ढूँढिये और हमें हमारा कुंजा वापस दिलाइये
(ये सुन कर मानिकचंद बोलते है )
मानिकचंद ; नहीं नहीं , हमें कोई क्राइम ब्रांच के चक्करमे नहीं पड़ना
(तो तुरंत अफ़ज़ल बोलता है)

अफ़ज़ल; अरे अंकल आप सभी अभी भी अपने जमाने कि सोचमे ही लगे रहते हो
हम कोई क्राइम ब्रांच के चक्करमे नहीं पड़ेंगे ,
(तुरंत परेश दानी बोलता है )
परेशदानी : तो फिर तुम उस ऑटो वाले का स्केच क्यों बनवाना चाहते हो ?
(तो राजीव अफ़ज़ल का साथ देते हुए अब बोलता है)

राजीव : अरे अंकल सीधी सी बात है ,

यदि हमने उसका स्केच बनवा लिया और उसे यही आस-पास के सभी ऑटोवाले को दिखाएँगे,

तो उन सभी में से कोई इक तो ऐसा होगा कि जो उसे पहचानता हो और...

उसके जरिये हम उस ऑटो तक पहोच सकते है ,
(और इतने में मधुर भी तुरंत बीचमे बोलता है)
मधुर: और उस ऑटोसे, दानी अंकल के प्यारे कुंजा तक पहोच सकते है
(ये सुनकर डॉली आंटी बोलती है)

डॉली आंटी ; बच्चे लोग सही कहते है
यदि आपको जल्दी से आपका कुंजा चाहिए तो आपको बच्चो कि बात माननी पड़ेगी

और साथ ही में दकुभाभी भी बोलती है
दकुभाभी: हा हां , अब तो आपको बच्चो कि बात माननी ही पड़ेगी,
(तो तुरंत मंगल चाचा बोलते है)
मंगल चाचा ; किन्तु दकुडी, ये सब करने में हमें बहोत समय लगेगा ,

और इतने समय में पता नहीं ,

क्या से क्या हो जाये ?,

कुंजा ....ना भी मिले और ऑटो वाला भी ना हो, तो......