आभार
सर्वप्रथम मैं विवेक कुमार शर्मा उर्फ़ विवेक बिजनोरी आप सभी पाठकों का बहुत बहुत
आभार व्यक्त करता हूँ कि आप मेरी प्रथम पुस्तक "गुहर-ए - बिजनोर" पढ़ रहे हैं I
आपके इस स्नेह के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ और आशा करता हूँ कि ये स्नेह हमेशा बना
रहेगा I
ये पुस्तक मेरी कुछ कविताओं, गजलों और कुछ शायरी का संग्रह है जिसमें दर्द है, सबक हैं
और इश्क़ भी I
मुझे उम्मीद है कि ये पुस्तक आपको पसंद आयेगीI
और मेरा एक शेर आप सभी के लिए...
"खोया था कहीं भीड़ में अक्स जो मेरा,
उसको आईना दिया दिखना सीखा दिया I
मुझको तो हर्फ़ तक का इल्म नहीं था,
आप ही के प्यार ने लिखना सीखा दिया II"
***
विवेक बिजनोरी
क्या लिखूँ
"सोचता हूँ क्या लिखूँ ?
दिल-ए-बेकरार लिखूँ
या खुद का पहला प्यार लिखूँ
सावन की बौंछार लिखूँ
या सैलाबो की मार लिखूँ
खुशियों का वो ढ़ेर लिखूँ
या किस्मत का फेर लिखूँ
खुद की कोई फिक्र लिखूँ
या खुदा का ज़िक्र लिखूँ
सोचता हूँ क्या लिखूँ ?
सूरज की वो धूप लिखूँ
या रातो का अंधकार लिखूँ
माँ का वो दुलार लिखूँ
या बाबा की फटकार लिखूँ
बचपन लिखूँ जवानी लिखूँ
या ऐसी कोई कहानी लिखूँ
ख्वाबो की परछाई लिखूँ
या खुद की ये तनहाई लिखूँ
सोचता हूँ क्या लिखूँ ?
धर्म लिखूँ या ईमान लिखूँ
चाहात लिखूँ या अरमान लिखूँ
खुद की कोई पहचान लिखूँ
या तुमको मैं भगवान लिखूँ
आपनो का वो साथ लिखूँ
या गैरो की सोगात लिखूँ
दिन लिखूँ या रात लिखूँ
कैसे दिल की हर बात लिखूँ
सोचता हूँ क्या लिखूँ ?
***
बचपन
” खुद पे ख़ुदा की आज भी मेहरबानी याद है,
कच्चे-मकान, चूल्हे की रोटी, बारिश का पानी याद है”
माँ का अपने हाथों से रोटी खिलाना भूख में,
पापा की वो सारी परियों की कहानी याद है I
” खुद पे ख़ुदा की आज भी मेहरबानी याद है,
कच्चे-मकान, चूल्हे की रोटी, बारिश का पानी याद है”
भूल कैसे सकता हूँ “बचपन” की यादों को भला,
हर नींद मेरी मुझको माँ के आँचल में आनी याद है I
” खुद पे ख़ुदा की आज भी मेहरबानी याद है,
कच्चे-मकान, चूल्हे की रोटी, बारिश का पानी याद है”
अब देखता हूँ अपने पास सब ऐशो-आराम हैं,
रात को रौशनी के लिए वो डिबिया जलानी याद है I
” खुद पे ख़ुदा की आज भी मेहरबानी याद है,
कच्चे-मकान, चूल्हे की रोटी, बारिश का पानी याद है”
दिन थे सबसे अच्छे वो जो खो गए जाने कहाँ,
तख्ती, कलम, स्याही सभी बात पुरानी याद है I
” खुद पे ख़ुदा की आज भी मेहरबानी याद है,
कच्चे-मकान, चूल्हे की रोटी, बारिश का पानी याद है”
***
कामयाबी की चमक
“नाकाम था तो लोग ठुकरा गए मुझे,
एक राह के पत्थर की तरह रस्ते से हटा गए मुझे
आज जब वो पत्थर रत्नों में गिना जाने लगा,
तो देखने के लिए दूर दराज से आ गए मुझे”
***
अगर
“सब जानते हैं मैं नशा नहीं करता,
मगर पी लेता अगर तू शराब होती
किताबों से मेरा तालुक़ नहीं रहा कबसे,
मगर फुरसत से पढ़ता अगर तू किताब होती
ख्वाब तक आते नहीं मुझको नींद में,
पर बुलाया करता अगर तू ख्वाब होती
नजरें ही मिली थीं अपनी मुलाकात में ,
चेहरा भी देखता अगर तू बेनकाब होती”
***
तेरे बिन
तेरे बिन ऐसे जिए जा रहा हूँ,
जैसे खुद पे सितम मैं किये जा रहा हूँ
तेरी कमी अब भी खलती है दिल को,
अश्को को अपने पिए जा रहा हूँ
तेरे बिन ऐसे जिए जा रहा हूँ,
जैसे खुद पे सितम मैं किये जा रहा हूँ
हर एक याद दिल को दुखाती है तेरी,
हर शाम फिर याद लाती हैं तेरी
धोखा सा खुद को दिए जा रहा हूँ
तेरे बिन ऐसे जिए जा रहा हूँ,
जैसे खुद पे सितम मैं किये जा रहा हूँ
मुझको पता है तू भी ना भूलेगा मुझको,
सपनो में आकर के छू लेगा मुझको
इसी उम्मीद से आँखें बंद किये जा रहा हूँ
तेरे बिन ऐसे जिए जा रहा हूँ,
जैसे खुद पे सितम मैं किये जा रहा हूँ
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हंगामा
"मैं खुद को उसके पहलू में छिपाता हूँ तो हंगामा,
मैं कुछ पल साथ जो उसके बिताता हूँ तो हंगामा
नहीं मालुम के कमबख्त जमाना चाहता क्या है,
दर्द उसकी जुदाई का दिखता हूँ तो हंगामा"
"मैं दर्द-ऐ-दिल को जो दिल में दबाता हूँ तो हंगामा,
मैं रो के खुद की पलकों को भिगाता हूँ तो हंगामा
समझ आता नहीं ये खेल जो भी है ज़माने का,
मैं राज-ऐ-दिल जो तुम सबको बताता हूँ तो हंगामा"
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मेरी बदनसीबी – मेरा होंसला
आज होंसले से ही तो पहचान बन गयी,
थी बदनसीबी मेरी आफत-ए-जान बन गयी..
एक कदम आगे बढ़ाया जो फकत,
रूबरू हुए शोहरत शान बन गयी..
थी बदनसीबी मेरी आफत-ए-जान बन गयी..
सबको था मैं नाकाम सा दिखता रहा,
बस हर रोज कागज पे हर्फ लिखता रहा..
आज वो हर्फ़े ही मेरा सम्मान बन गयी..
थी बदनसीबी मेरी आफत-ए-जान बन गयी..
शिद्दत ही थी जो बदल गयी मेरा जहाँ,
शायद इसके काबिल था मैं वरना कहाँ..
शिद्दत से तो पत्थर की मूरत भी भगवान् बन गयी..
थी बदनसीबी मेरी आफत-ए-जान बन गयी..
आज होंसलो से ही तो पहचान बन गयी
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काश
काश कोई जुल्फों से पानी झटक के जगाता,
काश कोई ऐसे हमको भी सताता
काश कोई बतियाता हमसे भी घंटो,
काश कोई होता जो तन्हाई मिटाता
काश कोई जुल्फों से पानी झटक के जगाता
काश कभी कोई मेरी भी राह तकता,
काश कोई मेरे लिए भी उपवास रखता
काश कोई मेरे लिए अपनी पलकें भिगाता,
काश कोई मेरे सारे नखरे उठाता
काश कोई जुल्फों से पानी झटक के जगाता
राज-ए-दिल अपने मुझको बताता,
काश कोई मुझको भी अपना बनाता
काश कोई भरता मेरी नींदों में सपने,
काश कोई मुझको भी जीना सिखाता
काश कोई जुल्फों से पानी झटक के जगाता
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हाल-ऐ-दिल
" हाल ऐ दिल कभी बताओ तो जानें,
नज़र से नज़र को मिलाओ तो जानें
जख्म ऐ दिल तुमने अब तक जो छिपा रखे हैं
रूबरू हो उनको दिखाओ तो जानें"
हाल ऐ दिल कभी बताओ तो जानें
" हर समुन्दर का साहिल ये कहता है,
टूटा हुआ कोई पत्थर लहरो संग बहता है
टूटा है दिल तुम्हारा तो क्या हुआ नादां,
टूटा दिल भी फिर से लगाओ तो जानें
हाल ऐ दिल कभी बताओ तो जानें"
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क्या खोया – क्या पाया
आज सोचता हूँ क्यों मुझसे, अपने सारे रूठ गए
अपनों को मानाने की जिद्द में ही, अपने मुझसे रूठ गए
आज पास है सब कुछ मेरे, फिर भी कमी सी लगती है
जिंदगी की दौड़ में ना जाने कब, अपने पीछे छूट गए
आज सोचता हूँ क्यों मुझसे, अपने सारे रूठ गए
काश रिश्तो को अपने, मैंने संभाला होता
काश कभी कुछ वक़्त, अपनों के लिए निकला होता
तो आज ना होता यूँ तनहा, अरमान मेरे लुट गए
अपनों को मानाने की जिद्द में ही, अपने मुझसे रूठ गए
आज सोचता हूँ क्यों मुझसे, अपने सारे रूठ गए
ना करना तुम भूल कभी ऐसी, साथ में अपनों के रहना
आज नहीं कुछ और है कहना, आज है बस इतना कहना
आज है जाना रिश्तो को जब, रिश्ते सारे टूट गए…
अपनों को मानाने की जिद्द में ही, अपने मुझसे रूठ गए
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