… खण्ड-14 से आगे
पाण्डुकेश्वर
टैक्सी तेज गति से आगे बढ़ती रही।
‘‘तो इस समय हम पाण्डुकेश्वर से गुजर रहे हैं!’’ दादा जी बताने लगे, ‘‘पीछे जो पंच बदरी तुम्हें गिनाए थे, उनमें से योगध्यान बदरी इसी क्षेत्र में है। कहा जाता है कि यु्धिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव—सभी पाण्डव इसी क्षेत्र में पैदा हुए थे। यहाँ के एक प्राचीन मन्दिर में आज भी पाण्डवों की अनेक मूर्तियाँ विराजमान हैं।’’
इस बीच अल्ताफ ने टैक्सी को रोककर इंजन बन्द कर दिया था।
‘‘क्या हुआ ? गाड़ी क्यों रोक दी?’’ दादा जी ने उससे पूछा।
‘‘आगे वाली बस में कुछ लोकल सवारियाँ चढ़-उतर रही हैं बाबा जी। सामान भी काफी है, देर लगेगी।’’ वह बोला।
बच्चों के रोमांच का ठिकाना न था। वे ऐसी-ऐसी जगहों से गुजर रहे थे जिन्हें अपने कल्पना-लोक में भी कभी महसूस नहीं कर सकते थे। उन्हें लग रहा था कि इसे स्वर्गभूमि कहने की दादा जी की बात एकदम सही है। अब तक उन्होंने सिर्फ सुना था, लेकिन अब वे फूलों से लदे पहाड़, झरने और घाटियाँ स्वयं देख रहे थे। जगह-जगह पर सैकड़ों फुट ऊपर से गिरने वाले झरने उनके मन को झंकृत कर रहे थे।
‘‘अब मैं आपको एक कहानी और सुनाता हूँ।’’ दादा जी बोले।
‘‘कुछ देर तक आप चुप बैठो बाबूजी।...अब कोई कहानी मत सुनाओ।’’ आगे बैठी ममता बोल उठी, ‘‘निक्की-मणि! सुनो, अब दादा जी को भी बाहर का कुछ देख लेने दो। इनसे ज्यादा बोलवाओगे तो ये थक जाएँगे।’’
‘‘मम्मी ठीक कह रही हैं दादा जी,’’ निक्की ने तुरन्त कहा, ‘‘अब आप भी कुछ देर बाहर का मजा ले लीजिए और हम भी लेते हैं।’’
बात दरअसल यह थी कि बैठे-बैठे उसे नींद-सी आने लगी थी और वह कुछ समय के लिए सो जाना चाहता था। उधर, मणिका की स्थिति उससे अलग थी। वह बाहर के दृश्यों को तन्मयतापूर्वक देखती हुई बोली, ‘‘मम्मी ठीक कह रही हैं, अब कोई कहानी नहीं।’’
‘‘ठीक है, अब आगे जिस महत्त्वपूर्ण स्थान से हमारी यह टैक्सी गुजरने वाली है उसके बारे में आप लोग मुझसे कुछ नहीं पूछेंगे।’’ दादा जी ने अनमनेपन से कहा।
‘‘उसके या किसी भी दूसरे स्थान के बारे में बताने से आपको हम रोक थोड़े ही रहे हैं बाबू जी।’’ ममता ने कहा, ‘‘बाकी जगहों के बारे में आप कुछ देर बाद भी तो हमें बता सकते हैं।’’
‘‘लेकिन जो स्थान पीछे छूट जाएगा मैं उसके बारे में कुछ कैसे बताऊँगा?’’ दादा जी ने कहा।
‘‘ओफ् दादा जी, डोंट डिस्टर्ब!’’ मणिका ने उन्हें झिड़का।
‘‘लो सुनो,’’ उसकी झिड़की सुनकर दादा जी ने निक्की से कहा।
‘‘वैसे तो औरतें बदनाम हैं बाबूजी, लेकिन...’’ ममता बोली और बीच में ही रुक गई।
‘‘बोल,-बोल...वैसे तो मैं समझ गया कि तू कहना क्या चाहती है,’’ दादा जी बोले, ‘‘लेकिन बात को रोक मत। दिल के अरमान निकल जाने दे। तुझे यह शिकायत नहीं रहनी चाहिए कि ससुराल वाले तुझे मुँह नहीं खोलने देते।’’
‘‘आप चुप हो जाओ बाबू जी, वरना पता चलेगा कि उल्टे यही ससुराल वालों को मुँह नहीं खोलने दे रही है...’’ कहकर सुधाकर हँसा। इस पर ममता ने फिर एक कोहनी उनके पेट में जड़ दी लेकिन धीरे-से। इस बार उनके मुँह से ‘उई बाबू जी’ की चीख नहीं निकली। टैक्सी में चुप्पी पसर गई।
अल्ताफ अन्दर ही अन्दर मुस्कराता हुआ गाड़ी चलाता रहा।
हनुमानचट्टी
‘‘दुर्योधन ने एक बार पाण्डवों को जुए में हराकर बारह साल के लिए वनवास में भेज दिया था।’’ काफी लम्बी चुप्पी के बाद दादा जी ने एकाएक सुनाना प्रारम्भ किया, ‘‘अपने उस वनवास के दौरान भीम जब एक जंगल में घूम रहे थे तब रास्ते में पूँछ फैलाकर लेटे पड़े एक बूढ़े और कमज़ोर-से दिखने वाले बंदर पर उनकी नजर पड़ी। उन दिनों किसी प्राणी के शरीर को लाँघकर आगे बढ़ने को अशिष्टता माना जाता था। इसलिए भीम ने उस बंदर से अपनी पूँछ समेट लेने को कहा ताकि वे अपने रास्ते पर सीधे चलते चले जाएँ।’’
‘‘क्यों ?’’ निक्की ने दादा जी को टोका, ‘‘वह पूँछ जितना रास्ता छोड़कर दूसरी ओर होकर भी तो निकल सकते थे।’’
‘‘अरे वाह!’’ दादा जी हँसकर बोले, ‘‘हम तो समझ रहे थे कि हमारा बेटा अभी भी नींद की दुनिया में डूबा है, कहानी सुन ही नहीं रहा!...दरअसल यही बात उस समय उस बंदर ने भी भीम से कही थी कि दूसरी तरफ होकर निकल जाओ। और अगर इसी रास्ते से सीधे निकलने की जिद है तो खुद ही पूँछ को हटा दो और चले जाओ। भीम उसकी यह बात सुनकर गुस्सा खा गए। बोले, ‘अरे नासमझ बंदर, तू नहीं जानता कि मैं पवनपुत्र हनुमान का छोटा भाई हूँ—महाबली भीम।’
यह सुनकर बंदर बोला, ‘तब तो यह पूँछ तुम्हें खुद ही हटानी पड़ेगी। जरा देखें तो सही कि कितने महाबली हो!’
उसके बाद भीम ने अपनी सारी ताकत लगा दी लेकिन उस बंदर की पूँछ को उसकी जगह से हटाना तो दूर, तिलभर हिला तक न सके। एक बूढ़े और कमज़ोर-नजर आने वाले बंदर की पूँछ में इतनी ताकत! इसका मतलब है कि यह कोई साधारण बंदर नहीं है—यों सोचते हुए भीम गए और उसके चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगे।
बंदर ने कहा, ‘जाओ, क्षमा किया।’ और अपनी फैली हुई पूँछ समेटकर भीम को चले जाने का रास्ता दे दिया। लेकिन क्षमा पाए हुए भीम ने जाने से पहले उस बूढ़े बंदर से उसका परिचय पूछा। पता चला कि वह साधारण बंदर नहीं, बल्कि स्वयं महाबली हनुमान थे। भीम का खुद को ‘महाबली’ समझने का घमण्ड दूर करने के लिए उन्होंने यह नाटक रचा था।
बेटे! आगे आने वाला स्थान हनुमानचट्टी है।’’ दादा जी ने बताया, ‘‘कहते हैं कि यही वो जगह है जहाँ पर भीम को उनके बड़े भाई महाबली हनुमान ने दर्शन दिए थे। सड़क के किनारे यहाँ हनुमान जी का एक मन्दिर है। तीर्थयात्री उनका दर्शन करके ही बदरीधाम की ओर बढ़ते हैं।’’
‘‘हम हनुमानचट्टी आ पहुँचे दादा जी!’’ मणिका बाहर देखते हुए ही चिल्लाई, ‘‘हनुमान जी का मन्दिर वह रहा!’’
उसकी बात सुनकर अल्ताफ से कहकर दादा जी ने गाड़ी किनारे लगवायी और हनुमान बाबा का दर्शन करने के लिए सब के साथ लाइन में जा लगे।
‘‘आने वाले पन्द्रह-बीस मिनटों में हम बदरीधाम भी पहुँचने वाले हैं।’’ बजरंगबली के दर्शन से लौटकर दादा जी बोले।
‘‘इतनी जल्दी!’’ निक्की बोला।
‘‘हाँ बेटे! हनुमानचट्टी से बदरीधाम सिर्फ ग्यारह किलोमीटर दूर है।’’ दादा जी बोले, ‘‘आगे कंचन गंगा की धारा आएगी और उसके बाद थोड़ा-सा आगे चलते ही हमें बदरीधाम के दर्शन होने लगेंगे।’’
‘‘बदरीनाथ से आगे भी कोई शहर है दादा जी?’’ मणिका ने पूछा।
‘‘धरती का कोई नगर, कोई गाँव आखिरी नहीं है मणि बेटे। यह गोल है।’’
‘‘उससे आगे चीन है न दादा जी?’’ निक्की ने कहा।
‘‘उसके बाद चीन नहीं तिब्बत है निक्की बेटे...’’ दादा जी हँसकर बोले, ‘‘और तुम क्या पूछ रही थीं मणिका? बदरीनाथ से आगे भी कोई शहर है या नहीं? तो बदरीनाथ से आगे भारतीय सीमा का अन्तिम गाँव मणिभद्रपुरम् है जिसे आम बोलचाल में माणा कहते हैं। यह राजपूत जाति के मारछा लोगों का गाँव है। आम बोलचाल में इन्हें ‘भोटिया’ कहा जाता है।’’
जयकारा
‘‘बोल भगवान बदरी विशाल की ...जय!’’ उनके आगे-पीछे चल रही बसों के भीतर से अचानक जयकारा सुनाई दिया तो दादा जी ने अपनी बातें बन्द कर दीं।
‘‘दादा जी! हम बदरीधाम पहुँच गए दादा जी!!’’ इन आवाज़ों को सुनते ही मणिका दादा जी से लिपट गई। इतनी लम्बी, थकाऊ और भयावह यात्रा को सफलता के साथ तय कर लेने पर अल्ताफ भी कम खुश नहीं था। दादा जी ने भी अपनी खुशी और श्रद्धा को ‘जय बाबा बदरी विशाल’ कहकर व्यक्त किया।
‘‘बर्फ का वह पहाड़ देख रहे हो?’’ टैक्सी रुकी तो नीचे उतरते ही दादा जी ने हरे-भरे विशाल पर्वतों के पीछे दू...ऽ...र किसी बहादुर बुजुर्ग की तरह सिर उठाए खड़े एक पहाड़ की ओर संकेत करके बच्चों से पूछा। फिर बताया, ‘‘यह नीलकण्ठ पर्वत है। अब, सबसे पहले हम अपने ठहरने की व्यवस्था करेंगे। उसके बाद मैं तुमको आसपास की कुछ महत्त्वपूर्ण जगहों पर घुमाने ले चलूँगा। ठीक है?’’
‘‘जी दादा जी।’’ दोनों बच्चे एक-साथ बोले।
कुली को बुलाने की जरूरत नहीं पड़ी। कई स्थानीय नौजवान टैक्सी को देखते ही सामान उठाकर ले चलने के लिए उसके निकट आ खड़े हुए। दादा जी ने सामान को किसी अच्छी और साफ-सुथरी धर्मशाला में ले चलने को कहा।
‘‘अल्ताफ, इस इलाके में ठंड ज्यादा रहती है, इसलिए एक कमरा तुम्हारे लिए भी धर्मशाला में ही ले देंगे।’’ दादा जी ने अल्ताफ से कहा, ‘‘गाड़ी को कहीं पर सड़क किनारे खड़ी करने से अच्छा है कि इसे पार्किंग में खड़ी कर आओ। हम यहीं पर तुम्हारे आने का इंतजार करते हैं।’’
‘‘जी, सर जी।’’ कहकर अल्ताफ वहाँ से चला गया और गाड़ी को पार्किंग में खड़ी करके जल्दी ही लौट आया। धर्मशाला में पहुँचकर एक बड़ा कमरा दादा जी ने अपने परिवार के लिए और एक छोटा कमरा अल्ताफ के लिए लेकर अपने कमरे में सामान को रखवाया। अल्ताफ ने भी अपना सामान अपने कमरे में रख दिया। उसके बाद अपने-अपने कमरे में बाहर से ताला लगाकर वे लोग घूमने के लिए निकल पड़े।
‘‘सुनो, दिन अभी आधा बाकी है।’’ सड़क पर खड़े होकर दादा जी बोले, ‘‘मन्दिर के कपाट तो इस समय बन्द होंगे। आप लोगों को मैं आसपास की मुख्य-मुख्य जगहों पर घुमा लाता हूँ। ज्यादा दूर की जगहों के बारे में वैसे ही बता देंगे।’’
पर्यावरण की रक्षा
यों तय करके, अभी वे दो ही कदम आगे बढ़े थे कि सड़क पर पानी की एक खाली बोतल और आलू के चिप्स की एक खाली पन्नी पड़ी दिखाई दे गयी। दादा जी झुके और दोनों चीजों को उठाकर कूड़ेदान की तलाश करने लगे।
‘‘पहाड़ पर पॉलिथीन और प्लास्टिक की चीजें इधर फेंक देना कितने बड़े खतरे को बुलावा दे सकता है, लोग नहीं जानते।’’ वे जैसे अपने-आप से बोले।
‘‘पहाड़ पर ही क्यों बाबू जी, ’’ उनकी बात सुनकर सुधाकर बोल उठा, ‘‘इन चीजों को इधर-उधर फेंक देना तो मैदानी इलाकों में भी बराबर का खतरनाक है। आपको पता है कि 2005 में मुम्बई में आई बाढ़ का बड़ा कारण ये प्लास्टिक और पॉलिथीन ही थीं। पानी को शहर से बाहर निकालने वाली नालियों में इनके फँस जाने की वजह से बारिश का सारा पानी शहर में ही रुक गया और बाढ़ आ गई।’’
‘‘सर, 2013 में केदारनाथ वगैरा में जो तबाही आई थी, क्या वो भी...?’’ सुधाकर की बात सुनकर अल्ताफ ने संकोच के साथ पूछा।
‘‘उसके तो इनके अलावा और भी कई कारण थे अल्ताफ।’’ सुधाकर ने कहा, ‘‘एक बात तो तुम यह समझ लो कि ये प्लास्टिक और पॉलिथीन फेंकी तो जमीन पर जाती हैं, लेकिन असर आसमान पर डालती हैं।’’
‘‘यह कैसे हो सकता है डैड!’’ उसकी यह बात सुनकर मणिका ने टोका।
‘‘बेटे, हमारे जीवन की हर घटना पर्यावरण को प्रभावित करने वाली होती है।’’ सुधाकर ने चलते-चलते बताया, ‘‘विज्ञान जितनी भी प्रगति करता है, उस सबका अच्छा या बुरा असर पर्यावरण पर जरूर पड़ता है। जितना अधिक हम प्रदूषण फैलाते हैं, उतना ही अधिक पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे होते हैं।’’
‘‘लेकिन, केदारनाथ में तबाही तो ऊपर के हिस्सों से आने वाली नदी का जल-स्तर बढ़ जाने और बादल फटने से आई थी!’’ इस बार ममता ने अपनी शंका पेश की।
‘‘यही...यही समझाने की कोशिश तो मैं कर रहा हूँ भाई, ’’ सुधाकर ने कहा, ‘‘कि प्रदूषण जमीन पर फैलाया जाता है और असर आसमान पर पड़ता है। अपने रहन-सहन में सुधार के लिए हम बस, रेल, हवाई जहाज, सारे के सारे इलैक्ट्रॉनिक सामान...मतलब कि जितनी भी चीजें बनाते हैं वे सब की सब प्राकृतिक पर्यावरण को असंतुलित करती हैं। अब, पर्यावरण असंतुलित होगा तो जलवायु में भी बदलाव जरूर आएगा। जलवायु में बदलाव आएगा तो मौसम का मिजाज बदलेगा। वह बहुत ज्यादा गर्म या बहुत ज्यादा ठंडा रहना शुरू कर देगा। कहीं पर बारिश बिल्कुल नहीं होगी तो कहीं पर इतनी ज्यादा हो जाएगी कि...सब-कुछ तबाह करके रख दे।’’
‘‘सर जी, ये प्लास्टिक अगर इतनी ज्यादा नुकसानदेह और खतरनाक है तो सरकार इसके प्रोडक्शन पर रोक क्यों नहीं लगा देती है।’’ अल्ताफ ने पूछा।
‘‘प्लास्टिक आज जीवन का हिस्सा बन चुकी है अल्ताफ।’’ सुधाकर बताने लगा, ‘‘इसके नुकसान और खतरे जान जाने के बावजूद न तो इसको बनाना रोका जा सकता है और न ही इसको इस्तेमाल करना रुक सकता है। हाँ, दो सावधानियाँ जरूर बरती जा सकती हैं।’’
‘‘क्या?’’
खण्ड-16 में जारी……(2026)