Aaina sach nahi bolta - 30 in Hindi Fiction Stories by Neelima Sharma books and stories PDF | आइना सच नही बोलता - भाग ३०

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आइना सच नही बोलता - भाग ३०

आइना सच नहीं बोलता

कड़ी 30

लेखिका नीलिमा शर्मा निविया

सूत्रधार नीलिमा शर्मा निविया

छोटी छोटी खुशियाँ अब आँगन में आहट देने लगी थी | दिवित की किलकारियां और नित नए खेल घर भर में सकारात्मकता बनाये रखते थे | घर में इधर उधर खिलौने नजर आते थे | कार का शौकीन दिवित हर बार नए आकार प्रकार की कार लेने की जिद करता | चिराग ने जब दिवित को मारुती की चार खिलौना कारो का सेट दिखाया ,उसने झट से चिराग के पैर छूकर कार ले ली और मुँह से ज़ूऊऊऊऊऊऊओ की आवाज़ निकालता हुआ घर भर में दौड़ता रहा | सब उसकी शरारत देख कर जोर से हँस पड़े |

रमा और सुनीता के साथ अमिता चिराग के पास बैठकर उसके ऑफिस के किस्से सुन रही थी | नंदिनी भी चाय के साथ पकोड़े बनाने में व्यस्त थी लेकिन उसके कानो को सब के ठहाके सुनाई दे रहे थे | शहर की लडकियों के किस्से सुनते हुए कभी सबकी आँखे विस्मित होती तो कभी सबकी सब मुस्कुरा देती |

चाय पकोड़ो के बाद पुलाव के साथ गप्पो का दौर जो चला तो पूरी दोपहर वही बीत गयी | चिराग जल्द फिर आने की बात कहकर चला गया | नंदिनी ने उसे जाते देख एक गहरी साँस ली और सोचने लगी “ कितनी भाग्यशाली होगी ना वो लड़की जिसे चिराग जैसा पति मिल रहा हैं, “

खेल से थके दिवित की आँखे नींद से भारी हो रही थी | अमिता ने उसे गोद में उठाया और कमरे में सुलाने ले गयी | सोये हुए दिवित के कपडे बदलते हुए उन्हें दीपक का स्कूल का पहला दिन याद आ गया | दीपक भी तो कभी स्कूल जाते हुए तंग नही किया करता था |नीतू मीतू तो बहुत रोती थी स्कूल जाने के समय | पोते की हर बात में अमिता को बेटे का प्रतिबिम्ब अनजाने ही याद आजाता था |

नंदिनी भी अमिता और दिवित के साथ पलंग पर जाकर लेट गयी और उसका मन कभी कपड़ो के रंगों में उलझ रहा था तो कभी उन पर बनाये जाने वाले बेलबूटो पर | कल एक साडी पर उसे बनारसी बॉर्डर लगाकर बनाने का आर्डर मिला था | दो लडकियों ने अपने दहेज़ की सभी ड्रेस उसको ही बनाने के लिय आगढ़ किया | सरपंच जी की बिटिया ने अपनी होने वाली बहू के लिय पूरी बरी बनाने का काम नंदिनी को सूप दिया था कपड़ो में कढाई और सिलाई में नवीनतम प्रयोग करना अब नंदिनी को बहुत अच्छा लगने लगा था | और अब उसे अलग अलग तरह का काम करने वाले कारीगर खोजने थे , गाँव की महिलाए उतनी कुशल नही थी जो ऐसे कार्य कर सके |

उसने खोजबीन करके ऐसा एक सेण्टर तलाश किया था और सुनीता के साथ कसबे की दो लडकियों को २ माह की ट्रेनिंग के लिये दिल्ली भेजना तय किया था ताकि वह वहाँ से काम सीख कर आये और यहाँ कसबे में महिलाओं को उसका प्रशिक्षण दे सके |

तीन चार दिन से चिराग का कुछ अतापता ही नही था | आमोद जी भी कहते “ लड़का ना जाने दिन भर कहाँ व्यस्त रहता हैं , अब तो इसकी छुट्टी भी समाप्त हो रही हैं “

नंदिनी भी सोच में थी चिराग ने किसी सरप्राइज देने की बात कही थी |लेकिन उसने ऐसा कुछ नही कहा या किया जो अप्रत्याशित हो |

गर्मी की उनीदी सी दोपहर में कूलर की ठंडी हवा भी नंदिनी को बैचैन कर रही थी | दहेज़ बरी के लिय कच्चे सामान की खरीद और नए फैशन के कपडे और डिजाइन कितना काम आ गया था |अचानक उसे घर के बाहर बाइक रुकने की आवाज़ आई ,उसने खिड़की से बाहर देखा तो चिराग एक अजनबी पुरुष के साथ उसके ऑफिस की तरफ चला आ रहा था | उसने अपने आप को सहज करते हुए साडी के पल्लू को समेटा | नंदिनी ने घंटी बजाकर पहले पानी और पांच मिनट बाद चाय भी ले आने का निर्देश दिया |

चिराग ने अन्दर आते ही मुस्कुराकर अभिवादन किया और साथ आये कर्मचारी का परिचय कराया जो जिला उद्योग कार्यालय से आये थे | उन्होंने अपने बैग से एक फॉर्म निकाल कर नंदिनी के सामने रख दिया | सरकार की तरफ से” युवा महिला उद्यमिता पुरूस्कार” के लिय चयन प्रक्रिया शुरू थी | हर वो महिला अपने व्यवसाय की सब सूचनाये भर कर जिला अधिकारी से प्रमाणित कराकर सम्बंधित विभाग को भेज सकती थी जिसने समाज के विभिन्न वर्गों को रोजगार के अवसर प्रदान किये हो और श्रम का पलायन रोका हो |

नंदिनी हैरानी से उस फॉर्म को देखती रही और यंत्रवत सी होकर सब जगह चिराग की सहायता से सूचनाये भरती चली गयी | पुरूस्कार की घोषणा में ९ से १० माह का समय लग सकता हैं कहकर चिराग उस सरकारी कर्मचारी के साथ ही लौट गया |

समय अपनी चाल से चल रहा था मौसम और महीने बदल रहे थे और नंदिनी का काम भी दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था | अब अनेक स्थान पर छोटे छोटे समूहों में स्त्रियाँ माल तैयार कर रही थी | कच्चे माल से लेकर पैकिंग तक की सारी जिम्मेदारी सुनीता ने सम्हाल ली थी | कई बार अकेले जाकर कपडे और धागे सितारे भी खरीद लाती थी | छोटे छोटे समूहों की जाकर निगरानी करना ,सफाई और करीने से माल बनवाना नए तरीके से काम करने का प्रशिक्षण देना और वितरक तक पहुंचाना सब सुनीता और रमा चाची सीख रही थी |

काम करने से गाँव की महिलाओं की आर्थिक स्तिथि में भी बदलाव आने लगा था | पत्नी और माँ बहन बेटी को सम्मानपूर्वक कमाते देख एक आम पुरुष सोच भी अब परिवर्तित होने लगी थी | सब नंदिनी की दिल से इज्ज़त करने लगे थे | अब सबके बच्चे भी आत्मनिर्भरता के लिये छोटी नौकरी करने की बजाय किसी खुद के काम को वरीयता देने लगे थे | नंदिनी के कार्य में तैयार माल को गंतव्य तक पहुंचाने से लेकर नए आर्डर लाने तक में अब कसबे के लड़के भी साथ जुड़ने लगे थे |

साक्षी की तो जैसी जिन्दगी ही बदल गयी थी | बहुत दिन से उसकी नंदिनी से बात ही नही हुयी थी, हमेशा सुनीता या रमा चाची से स्टॉक और कपड़ो के बारे में बात होती थी नंदिनी से कभी बात हुयी भी तो दो शब्दों में जरुरी बात | साक्षी ने पलंग के किनारे रखे फ़ोन पर नंदिनी का नम्बर मिलाया लेकिन कोई जवाब नही था दूसरी तरफ से ....

तीसरी बारी घंटी बजने पर नंदिनी ने फ़ोन उठाया और साक्षी ने उसे संबोधित करते हुए मजाकिया लहजे में कहा

“ नंदिनी जी ! क्या आप जानती हैं आप को एक प्यारा सा समाचार मिलने वाला हैं जिसके लिए आप हमसे नेग भी मांग सकती हैं “

“क्या हुआ भाभी ? पहेलियाँ ना बुझाओ.. क्या अमर भैया को नया ठेका मिल गया या उन्होंने अपनी मनपसंद सूमो खरीद ली ? “

व्यस्त नंदिनी ने थोड़ी रुखी आवाज़ में भाभी से कहा लेकिन आज तो भाभी बहुत अच्छे मूड में थी

“नही !!आप बूझिये तो ननद रानी ! अगर आपने सही बूझ लिया तो आपको सोने के कंगन मिलेंगे “

अब नंदिनी भी सोच में पड़ गयी ऐसा क्या हुआ होगा जो इतना महँगा तोहफा ......उसे अचानक याद आया जब भतीजा आर्यवीर जन्मा था वो अविवाहित थी तब उसे भैया ने सोने की अँगूठी नेग में दिलाई थी | उसने जब जडाऊ कंगन दिलाने को कहा था तो अमर भैया के साथ माँ और पिता जी ने यह कहकर चुप करा दिया था कि दूसरें भतीजे के होने पर कंगन दिलाएंगे तब तक सम्हालने लायक तो जाओ इतने बड़े गहने ….

“तो क्या मैं बुआ बनने वाली हूँ फिर से !!!” ख्याल मन में कौंधते ही नंदिनी ख़ुशी से उछल पड़ी

“हाँ ! नंदिनी जी आप बुआ बनने वाली हो फिर से , अब जल्दी से मायके चक्कर लगाने आइये आपकी आने वाली भतीजी आपको बुला रही हैं , माँ भी आपको बहुत याद करती हैं “ कहकर साक्षी चिहुंकी

साक्षी को चहकता देखकर नंदिनी को याद आये भैया और भाभी के मतभेद | अब साक्षी बदल चुकी थी | उसका नजरिया विस्तृत हो चुका था | छोटी छोटी बातो पर भावुक होकर झगडा करना या प्रतिक्रिया देना अब उसको नही भाता था | पापा के नियम अब उसे बोझ नही लगते थे | महावीर चौधरी भी अब उदार हो रहे थे | माँ सुमित्रा की रंगत /सेहत भी घर में अच्छा वातावरण पाकर बदल रही थी |

छोटे बेटे के घर जमाई बनकर विदेश चले जाने से सुमित्रा देवी उदास रहने लगी थी | अमर भी अब माँ बाबा के प्रति जिम्मेदार बन गया था | नंदिनी की भावनाओं का सम्मान करना, उसकी छोटी छोटी इच्छाओं को पूरा करना आदतों में शुमार हो गया था | अहसानमंद था अमर अपनी छोटी बहन का जिसने उसे समाज में रुसवा नही होने दिया था और साक्षी को अपने घर लेजाकर उनके दाम्पत्य जीवन को बिखरने से बचा लिया था यही नही अब माँ बाबा से अलग रहकर बसाया घर फिर से एक हो गया था |

नंदिनी बहुत खुश थी और उसने साक्षी से अब काम से ज्यादा अपने पर ध्यान केन्द्रित करने को कहा | भाभी साक्षी और माँ सुमित्रा देवी ने भी अपने कसबे में ही सामूहिक कार्य करने वाली कुशल /अकुशल कारीगर महिलाओं के कई समूह बना लिए थे ,जहाँ बुटीक का कुछ माल तैयार होता था | विपणन का सब कार्य नंदिनी ही देखती थी |

नंदिनी ने अब साड़ियो और सूट्स को “ नंदिनी क्रिएशन “ नाम से बेचना शुरू कर दिया था | बाजार में अब उसका बनाया माल नाम के साथ बिकने लगा था | बड़े बड़े स्टोर्स में अब उसकी बनी साड़ियाँ और सूट बिकने लगे थे | बाजार की मांग के अनुसार सामान तैयार करना उनकी विशेषता बन चुकी थी | अब लोगो की मांग पर विशेष रूप से कपडे भी तैयार करा कर दिए जाते थे |

दिवित का स्कूल ,नंदिनी का ऑफिस ,अमिता का घर और सुनीता और रमा चाची का वर्कशॉप में व्यस्त रहना एक रूटीन बन गया था | विशेष ग्राहकों को सामान पहुंचाने कई बार नंदिनी खुद ही चली जाती थी |

बदलते मौसम में बुखार से तपती नंदिनी सुबह सवेरे ही एम् एल ए साहेब की कोठी पर उनकी बिटिया के विवाह का लहंगा और दहेज़ की साड़ियाँ देने गयी हुयी थी | ऑफिस खुलते ही डाकिया नंदिनी के नाम एक सरकारी रजिस्टर्ड ख़त लेकर आगया | अमिता को सरकारी ख़त देखकर बैचैनी होने लगी और उसने ना चाहकर भी ख़त को खोल कर पढ़ ही लिया और अचानक आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी से उसने रमा को गले लगा लिया | वर्कशॉप में काम करती स्त्रियाँ और सुनीता हैरानी से उसे देखने लगे | सुनीता ने जब ख़त देखा तो उसमे नंदिनी को “ युवा महिला उद्यमी “ का पुरूस्कार देने की सूचना थी |

सबकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे | सबने एक दुसरे को गले लगा लिया | साक्षी को फ़ोन पर सूचना दी गयी जो फ़ौरन ही महावीर चौधरी सुमित्रा देवी और अमर चौधरी के साथ आर्यवीर को लिए आगयी | नीतू मीतू को भी खबर दी गयी |

थकी मंदी शहर से लौटती नंदिनी बहुत खिन्न थी| एम् एल ए की पत्नी पेमेंट के मामले में बहुत कंजूस थी | बेवज़ह कपड़ो में नुक्स निकाल कर वो लागत मूल्य पर ही पेमेंट करना चाहती थी | शायद उनको मौल भाव या उपहार में लेने की आदत थी लेकिन नंदिनी कुछ साड़ियाँ वापिस उठा लायी थी कि इस मूल्य से कम में देना मुनासिब ही नही था | फिर रास्ते में कार के पंक्चर होने की वज़ह से उसे सड़क किनारे के एक ढाबे में रुकना पढ़ा था | दो घंटे बाद जब ड्राईवर कार का पंक्चर लगवा कर लौटा तब थकी बुखार पीढित नंदिनी ने “जल्दी चले अब भैया” कहकर तेज कार चलाने को कहा

आज घर लौटने में देर हो गयी थी और दिवित कहीं उस के बिना परेशान ना हो रहा हो | माँ को तंग ना कर रहा हो | स्कूल का काम करने में सुनीता को परेशान ना कर रहा हो ....जैसी सोचे उसे परेशान कर रही थी |

आहाते में कार रुकते ही उसने सरपंच जी की कार देखी और उसने घर भर में दिए और मोमबत्ती को जलते देखा तो हैरान रह गयी } “

“आज तो दीवाली भी नही ?? “

“सब ठीक तो हैं न “

और पिछले आँगन से हलचल की आवाज़े और पक्का खाना बनने की खुशबुए उसे याद दिलाने लगी उसने उन ढाबो पर रुकने पर भी सिर्फ दो बार चाय पी थी खाया कुछ भी नही था “

लेकिन हुआ क्या? इतनी हलचल पकवान किस ख़ुशी में आज ?

सोचते हुए उसने जल्दी से अन्दर की तरफ कदम बढ़ाया “ बधाई हो मुबारक हो “ कहते हुए अचानक पूरे घर की सूनी दीवारे ख़ुशी से सरोबार हो गयी ......... आखिर ऐसा क्या हुआ जो सब इतने खुश, उत्सव का सा माहौल .............

लेखिका _ नीलिमा शर्मा निविया (9411547430)