Sur - 10 in Hindi Fiction Stories by Jhanvi chopda books and stories PDF | सुर - 10

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सुर - 10

"सुर"

CHAPTER-10

JHANVI CHOPDA

आगे आपने देखा,

पायल को कोमा में पाकर परवेज़ अपने एक हिस्से को खोया हुआ पाता है। अपने सवालों के जवाब ढूंढने गया था, लेकिन बहोत सारे सवाल अपने संग ले आता है। खुदा में मानना तो उसने छोड़ दिया था, लेकिन कहीँ ना कहीं उसकी रेहमत की आश उसके दिल के किसी कोने में जल रही थी। पायल के बचने की उम्मीद तो सबने छोड़ दी है, अब देखते है आगे की कहानी क्या मोड़ लेती है !

अब आगे,

परवेज़ ICU में जाता है। अपनी बेजान पड़ी जान को देखकर उसकी धड़कने बढ़ जाती है। पायल के एक हाथ से वेंटिलेटर की लाइन जुडी थी...दूसरे हाथ में खून चढ़ रहा था। ऑक्सीजन पंप से उसकी साँसे चल रही थी। नलियों के बीच में घिरा उसका शरीर कोई हरकत नहीं कर रहा था। परवेज़ पायल के सामने कुर्सी पर बैठा। उसकी उँगलियों को धीरे से सहलाया...उसे दो मिनट तक निहारता रहा...और फिर बोला,

'ये सब कुछ मेरी वजह से हुआ है, ना ! मैंने आज तक अपने दादू के अलावा किसीसे सॉरी नहीं बोला, लेकिन आज तुमसे बोलता हूँ, सॉरी यार !' _अपने दोनों कान पकड़ कर उसने कहा।

'मेरी ज़िद ने आज तुम्हारी ये हालत करि है। हाँ, मैं ज़िद्दी हूँ...किसीकि नहीं सुनता...लेकिन तुम मेरी सुन लेती ! कितने सारे सवाल लेकर आया था, मैं तुम्हारे पास ! अम्मी ने कहा था, की किनारा हो तुम मेरा ! तो किनारा अपने पानी को ऐसे छोड़ के कैसे जा सकता है ! एक तुम ही तो हो जहाँ पर में थम जाता हूँ, जिसे मिलके सुकून पाता हूँ...जिसकी बकबक सुनना भी अच्छा लगता है। कुछ नहीं तो मुझे गालियां देने भी आ जाओ, पर प्लीज् आ जाओ, वापिस !'

परवेज़ को खुद ही नहीं पता था, कि वो बोल क्या रहा था। उसने अपने पॉकेट से वो घुँघरू निकाला,

'याद है तुम्हें, जब तुम दूसरी बार मेरे घर आई थी, इस घुँघरू को देख के तुमने कहा था कि, मैंने ये चोरी कर लिया है। ये तो मेरी अम्मी का था, लेकिन अगर तुम्हे ये चाहिए तो ये आज से तुम्हारा !' _उसने पायल के दूसरे पैर में वो पहनाते हुए कहा।

'अब तो उठ जाओ, पायल ! मैं तुमसे कभी बद्तमीज़ी नहीं करूँगा... तुम्हें कभी अपने घर में आने से नहीं रोकूंगा...अब कोई जबरदस्ती नहीं...पर प्लीज् उठ जाओ !'

जुबेर दरवाज़े पर खड़ा रह कर सब सुन रहा था। उससे ये सब कुछ देखा न गया। उसने देखा की, परवेज़ की आँखे अब टपकने ही वाली थी, वो भाग कर अंदर गया...परवेज़ को खड़ा किया...अपने दोनों हाथ उसके कंधे पे रख कर उसे पूरा हिला डाला,

'तुजे पता भी है, तू क्या बोले जा रहा है !!! होश में आ परवेज़...तू वो है जो किसीके सामने नहीं जूकता !'

'अकड़ में रहकर क्या करूँ, जुबेर ! मेरी साँसे रोक कर वो सोई हुई है !'

'तेरे इश्क की आग में दादू का पूरा साम्राज्य जल के राख हो जाएगा !' _जुबेर चिल्लाया।

'आग तो कब की लग चुकी थी, अभी तो धुंआ उठा है...और इस धुंए की धुंधलाई में तुम अपने परवेज़ को देख ही नहीं पा रहे !' _परवेज़ ने कहा।

जुबेर इससे आगे बोलता भी क्या ! उसकी हालत तो कुछ ऐसी थी, की इसका दोस्त डूबने जा रहा था और उसे धक्का देना था। सबकी चिंता करने से क्या होने वाला था, ऊपर वाले के दरबार में दावें या मुकदमे नहीं चलते...वहाँ सिर्फ फैसले होते है।

जुबेर तो चला गया। परवेज़ पायल से बात करता रहा...'मुझे तो कभी ये बात समझ में नहीं आई की मैं मुसलमान हूँ और तुम हिन्दू ! फिर इस दिल ने तुम्हारी आहट् पे हरकत कैसे करि !! हलाकि महोब्बत मज़हब की मोहताज़ नहीं होती ! बातें करते करते उसकी आँख लग गई...ये नींद नहीं पूरे दिन की थकान थी। उसे सपने में वही सूर सुनाई दिए जो की वो आज तक सुनता आया था। वो पलक जपक कर जाग गया। उसने पायल की ओर देखा, उसकी हालत पहले जैसी ही थी। वो रूम से बाहर जाने लगा...पीछे से फिरसे उसे वही सूर सुनाई दिए। उसे लगा की, उसके कान बज़ रहे है। वो जैसे ही रूम से बाहर निकला फिर से वही हुआ...वो तुरंत अंदर गया। पायल तो वैसी ही थी, लेकिन पैरो ने थिरकना शुरू किया ! ये देखकर परवेज़ के चेहरे पर रौनक आ गई। उसने डॉक्टर को बुलाया...डॉक्टर ने पहले तो सब को रूम से बाहर भेजा। करीब 10 मिनट तक चेक उप चला फिर वो बाहर आए, अपने सामने सबके चेहरे पर क्वेश्चन मार्क पाकर उन्होंने थम्बस् अप का साइन दिया और कहा, 'she can be recovered !'.

ये सुन कर सब की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहा। लेकिन परवेज़ तो सबसे पहले भगवान की मूर्ति के पास गया, दो मिनट तक घूरने के बाद बोला, 'अपने आप पे इतना घुरूर ना कर...तेरे चमत्कार की कोई जरुरत नहीं पड़ी, मुझे ! मेरे सूरों ने कमाल कर दिखाया !'

उस वख्त तो भगवान को भी मन किया होगा की, साले को ठोक के आऊ ! अगर सच में वो लाइव हो पाते तो यही कहते की, 'मुझे भी कभी कभी अपने आप पे डाउट होता है, तुजे नीचे भेज कर कोई गलती तो नहीं करी ! किस इंशान से पाला पड़ा है मेरा, इसका बस चले तो इसकी शक्ल बनाने का क्रेडिट भी यही ले, ले !'

भगवान से बहस करके वो सीधा गया डॉक्टर के केबिन में।

'क्या, अब हम पायल को घर ले जा सकते है ?' _परवेज़ ने टेबल पर अपना हाथ ठोकते हुए कहा।

'बड़ी जल्दी है, आपको ! ये कोई किडनेपिंग करने का धंधा नहीं है, जो सुपारी मिली नहीं की उठाया ! हॉस्पिटल है ये, जिसके अपने कुछ नियम होते है और पेसेन्ट कि हालत घर ले जा सको उतनी अच्छी नहीं है।' _डॉक्टर ने कहा।

'देखिये डॉक्टर साहब, वो जाग गई है उतना ही मेरे लिए काफी है। बाकी हालत तो मेरे साथ रहकर सुधर ही जाएंगी ! आप बस, उसके जाने का इंतज़ाम कीजिये।'

'आपको हिंदी समज में नहीं आई या फिर इंग्लिश में समजाऊ !?' _डॉक्टर ने साफ साफ मना कर दिया।

***

तीन दिन हो चुके थे। पायल की हालत में काफी सुधार था। उसे बोलना मना था और चलने जितनी ठीक वो हुई नहीं थी। अभी तक तो पायल का खाना पीना और ड्रेसिंग नर्स ने संभाला था, लेकिब अब परवेज़ की बारी थी, उसकी सेवा करने की ! क्योंकि तीन दिन के बाद पायल के मुँह से कुछ निकला तो वो ये की, "परवेज़...यहाँ मेरा दम घूँटता है, प्लीज ले चलो मुझे यहाँ से !"

फिर तो हमारे परवेज़ को कौन रोक सकता था। डॉक्टर का मुँह तो उसने पैसो से भर रखा था, बिना कोई फॉर्मेलिटीज किये वो चला पायल को लेकर ! इस बार परवेज़ ने ज़िप वाला रिस्क नहीं लिया...या फिर उसने ठान रखी थी, की ज़िंदगी भर पायल को ज़िप में नहीं बैठने देंगा। जुबेर, परवेज़ और पायल एम्बुलेन्स में बैठे थे। अपनी चुप्पी तोड़ते हुए पायल ने पूछा,

'लेकिन हम जा कहाँ रहे है ?'

'मेरे घर...और कहाँ ???'_परवेज़ ने कहा।

'तुम्हारे घर ! सीरियसली !? हॉस्पिटल में तो सिर्फ मेरा दम घूंट रहा था, वहाँ पे तो पक्का मर जाऊंगी !'

'जब देखो चपड़-चपड़ शुरु ! तुम्हे बोलना मना है, ना ! तो चुप रहो।'_परवेज़ मुँह टेढ़ा कर के बोला।

'नहीं, मैं उस बंजर जमीन में मर्दो के साथ नहीं रह सकती की जहाँ एक भी लड़की नहीँ है।'

'भाई, तू इसे जंगल के बीचों बीच उतार दे, वहाँ बहोत हरियाली होगी !' _जुबेर ने कहा।

'...और तुजे क्या लगता है, दादू तुम दोनों को साथ में देखकर स्वागत करेंगे क्या ? घर में तक नहीं घुसने देंगे...आए बड़े घर जाने वाले !' _जुबेर परवेज़ के सामने देखकर बोला।

'हाँ यार, ये तो सोचा ही नहीं...अब, कहाँ जाएंगे ?'