Kabra ka rahasy in Hindi Fiction Stories by Shubhanand books and stories PDF | कब्र का रहस्य

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कब्र का रहस्य

पार्टी में सीबीआई

दूसरे दिन नारायण मूर्ति के बंगले पर बहुत बड़ी पार्टी थी. श्रीराम के पिता ने यह पार्टी अपने बेटे के वापस आने की खुशी में रखी थी. समाजशक्ति पार्टी के चुनिंदा नेता, नारायण मूर्ति और श्रीराम के कुछ खास दोस्त पार्टी में आमंत्रित थे. साथ ही कई सरकारी विभागों के प्रमुख अधिकारी भी उपस्थित थे. पार्टी में मेहमानों से ज्यादा खातिरदार दिखाई दे रहे थे.

पार्टी का आयोजन उनके बंगले के अंदर बगीचे में किया गया था. चारों तरफ वेटर और वेट्रेस अलग-अलग तरह की डिश और ड्रिंक्स लेकर घूम रहे थे.

एक आइसक्रीम काउंटर के पीछे दो खूबसूरत वेट्रेस चारों तरफ देखते हुए एक-दूसरे से बातें कर रही थीं. पार्टी में चूंकि बच्चे और महिलायें कम थे, इसलिए उनके काउंटर पर ज्यादा भीड़ भी नहीं थी.

“सलमा!” एक वेट्रेस बोली- “देवरजी! ने हमारी ड्यूटी तो यहाँ लगा दी, पर खुद कहाँ गायब हो गया?”

वेट्रेस के मेकअप में सलमा ने शोभा को जवाब दिया- “पता नहीं! वो क्या करना चाह रहा है मेरी कुछ समझ नहीं आ रहा. उसने कुछ बताया ही नहीं. राजन के गायब होने के बाद से उसका बर्ताव एकदम बदल गया है.”

“उसका मानना है कि राजन छिपकर काम कर रहा है.”

“हां! और मुझे भी यही लगता है. पर इक्को पर भूत सवार हो गया है कि वो राजन से पहले केस को सोल्व करेगा.”

“ऐसा कहा उसने?” शोभा ने मुस्कराकर पूछा.

“नहीं! पर उसकी हरकतों से लग रहा है.”

“जो भी हो.” शोभा ने गहरी सांस ली- “राजी! सुरक्षित हो. जब तक उसे देख नहीं लूंगी मुझे चैन नहीं आयेगा.”

“तुम चिंता मत करो. राजन आग का गोला है, किसी ने पकड़ने की कोशिश भी करी तो जलकर राख हो जायेगा.”

शोभा मुस्करा दी. फिर इधर-उधर देखते हुए बोली- “लेकिन सलमा- हमें करना क्या है? यहाँ खड़े-खड़े क्या पता चलेगा?”

“ठीक कह रही हो. ट्रे में आइसक्रीम रखकर इधर-उधर घूमते हैं, शायद कुछ काम की बात पता चल जाए.”

“गुड आइडिया!”

फिर वे दोनों ट्रे लेकर गार्डन में चारों तरफ घूमने लगीं. उनकी कोशिश थी कि नारायण और श्रीराम के आस-पास रहें. खैर, उनकी इधर-उधर की बातें सुनकर उन्हें कुछ खास पता नहीं चला.

अचानक शोभा की नज़र गार्डन के कोने में खड़े एक व्यक्ति पर गई. वह हट्टा-कट्टा था और उसकी कमर पर रिवाल्वर टंगा था. वह हाथ फोल्ड करके जिस तरह खड़ा था- उसी से मालूम पड़ रहा था कि वो एक अंगरक्षक यानि बॉडीगार्ड था.

पर शोभा का ध्यान विशेषकर उसके चेहरे पर गया था. कुछ देर के लिए वह स्तब्ध-सी रह गई. उसने उसके पास जाने के लिए सोचा पर फिर हिम्मत नहीं की. मेहमानों के बीच ट्रे लेकर वो घूमती रही.

करीब पांच मिनट बाद उसे बॉडीगार्ड एक तरफ जाता दिखा. शोभा ने मौका देखा और उसकी तरफ बढ़ गई.

वह वाटर कूलर पर पहुंचकर पानी पी रहा था. शोभा भी ग्लास में पानी भरते हुए धीरे से बुदबुदाई- “कैसे हो?”

बॉडीगार्ड ने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया. वैसे भी उसने जानबूझकर बेहद धीमे स्वर में कहा था, जो शायद ही उसके कान में पड़ा हो.

शोभा ने भी प्लास्टिक के ग्लास में पानी भरा और इस बार उसके सामने आकर बोली-

“तुम जगत हो न?”

“एक्सक्यूज़ मी?” उसने शोभा पर उलझन भरी द्रष्टि डाली. “आपको कुछ गलतफहमी हुई है. आई एम रिज़वान!”

“ओह! आय एम सॉरी!” शोभा ने कहा फिर दोनों अलग-अलग दिशाओं में बढ़ गए.

शोभा तेजी-से सलमा को ढूढते हुए वापस पहुंची.

उसे उत्साहित देखकर सलमा ने पूछा- “क्या हो गया?”

“पार्टी में सीबीआई अफसर जगत मौजूद है.” शोभा सरगोशी के लहजे में बोली.

“क्या कह रही हो?”

“ठीक कह रही हूँ. उस बॉडीगार्ड को देखना कोने में.”

सलमा ने आँखों के कोनों से उस तरफ नज़र डाली.

“हां! कुछ-कुछ लग तो रहा है.”

“वहीं है! मैंने उससे पूछ भी लिया पर वो माना नहीं.”

“तुम भी तो मेकअप में हो, डियर! वो तुम्हें कैसे पहचानता?”

“ओह हां!” शोभा ने जीभ निकाली. “मै तो भूल ही गई थी. पर जो भी हो. इसका मतलब सीबीआई इस केस पर काम कर रही है. राजी भी कहीं न कहीं लगा होगा.”

“ठीक कह रही हो! केस बहुत सेंसिटिव है इसलिए ये लोग हमें भी कुछ नहीं बता रहे हैं.”

शोभा चारों तरफ देखने लगी, जैसे कि राजन को खोज रही हो.

जनहित पार्टी

रामास्वामी जनहित पार्टी के ऑफिस में बैठा था. उसके साथ पार्टी के चार वरिष्ठ नेता बैठक में थे, जिनमे पटवर्धन और मुस्लिम नेता अल्ताफ शेख भी थे. रामास्वामी गहन सोच में डूबा हुआ था.

“सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था, पता नहीं ये कहाँ से प्रकट हो गया.” चंद्रा नामक एक नेता त्रस्त होकर बोला.

“हमारी पार्टी सबसे आगे चल रही थी. जनता से हमें ही बहुमत मिलने की आशा थी.” पटवर्धन बेहद परेशान था- “पर अब सभी का ध्यान समाजशक्ति और श्रीराम मूर्ति की तरफ है.”

“टीवी चैनल वाले यही बोल रहें है कि अब श्रीराम मूर्ति का सीएम बनना तय है.” चंद्रा मेज पर घूँसा मारकर उठ खड़ा हुआ- “चुनाव होने से पहले ही ये साले नतीजा निकाल देते हैं. आखिर...”

“चंद्रा!” रामास्वामी ने हाथ दिखाकर उसे शांत होने का इशारा किया. चंद्रा भुनभुनाता हुआ वापस बैठ गया.

“शेख साब!” रामास्वामी अल्ताफ की तरफ पलटा- “आपका क्या कहना है?”

“सभी मुस्लिम वोट अभी-भी हमारे हैं.” अल्ताफ ने आश्वासन दिया.

“यानि करीब 45 सीटें. पर बाकी की जो 90 सीटें हम जीतने के सपने देख रहे थे अब उनमे से कितनी मिलने के आसार हैं?”

“आधी मिलना भी मुश्किल हैं.” बोलने वाले नेता का नाम महेश था- “आकडों के हिसाब से इनमें से आधी से ज्यादा कोंस्टीटूएंसी में श्रीराम और उसकी पार्टी का दबदबा बनने वाला है. मान भी लें कि हम किसी तरह से आधी सीट जीत जांए तो हमारे पास 45+45 यानि 90 सीटें ही होंगी यानि मेजोरिटी से 23 सीटें कम. शेख साब, बुरा न माने तो एक बात कहूँ?”

““बोलिए!””

“मुझे नहीं लगता कि अब हम मुस्लिम कोंस्टीटूएंसी वाली सारी सीटें भी जीत सकेंगे. आपका नाम ज़रूर सबसे आगे है, पर मुस्लिमो में भी श्रीराम के कई कद्रदान हैं. इसलिए वहां भी सभी 45 सीटें जीतने के सपने हमें छोड़ देने चाहिए.”

“नहीं! मुझे नहीं लगता ऐसा कुछ है.” अल्ताफ ने विद्रोह किया.

“आपके लगने से क्या होगा? न्यूज़ देखिये- मुस्लिम टोलियों को भी श्रीराम के नाम की जय-जयकार करते हुए पाएंगे.”

“वो सब सिर्फ फ्री की बिरयानी के लिए नारे लगाने आते हैं. पर चुनाव के वक्त वोट हमें ही मिलेंगे.”

“मुझे नहीं लगता...”

“एक मिनट!” रामास्वामी ने ऊँगली उठाई- “आप लोग ये सोचिये कि हम जो सीट हारने वाले है उन्हें कैसे रोका जाए.”

सभी एकदम से चुप हो गए. किसी से कुछ बोलते नहीं बना. कुछ देर बाद पटवर्धन बोला-

“सुना है- कल समाजशक्ति वालों की महासभा होने वाली है और उसमे श्रीराम भाषण देने वाला है. अपने एक्सपर्ट्स से उसकी रिपोर्ट बनवाएंगे और फिर हमारी पार्टी वाले भी एक सभा रखकर श्रीराम के भाषण और इमेज की धज्जियाँ उडायेंगे. हम ऐसे भाषण छोटे-छोटे स्केल पर प्रदेश में कई जगह रखेंगे.”

“हम्म!” रामास्वामी बोला- “इससे ज्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला, उसकी इमेज गिराना इतना आसान नहीं होगा. खैर, देखते हैं- कल क्या होने वाला है.”

मेध का खेत

इक़बाल प्रकाश के साथ मेध में पूछताछ कर रहा था. भले ही श्रीराम की किडनैपिंग कई महीने पहले हुई थी, पर इस अपराध की जानकारी अभी हासिल हुई थी इसलिए इन्वेस्टिगेशन जीरो से शुरू हुई थी. मामला अब वहां के थाने में भी दर्ज करा दिया गया था, इसलिए वहां की पुलिस भी उनका साथ दे रही थी.

इस वक्त वे लोग उस खेत में खड़े थे जहाँ से कथित रूप से श्रीराम का किडनैप हुआ था.

“इतने दिनों के बाद यहां से कोई सबूत तो मिलने से रहा.” प्रकाश ने कहा.

“सबूत के पांव होते है क्या जो चला गया होगा?” इक़बाल ने चारों तरफ देखते हुए कहा.

प्रकाश मुस्कराया.

“इतने महीनो से यहां बारिश-आंधी, खेत की सिचाई-कटाई और न जाने क्या-क्या हो चुका होगा. आपको लगता है कोई सबूत मिलेगा?”

“हो सकता है कोई वाटरप्रूफ सबूत बच गया हो?” इक़बाल उल्लुओं की भांति पलकें झपकाकर बोला. फिर वह खेत में झुककर शिनाख्त करने लगा.

प्रकाश उसकी जिद्द देखकर मुस्करा दिया और उसके पीछे-पीछे चलने लगा.

खेत के बीचोंबीच जाकर इकबाल खड़ा हो गया और चारों तरफ गर्दन घुमा-घुमाकर देखने लगा. उसके जूते खेत की गीली मिट्टी से सने हुए थे. पैंट गन्दी हो गई थी.

“मिल गया वाटरप्रूफ सबूत?” प्रकाश ने उसकी पैंट की तरफ इशारा करते हुए कहा.

इक़बाल ने उसके मजाक पर ध्यान दिए बगैर कहा- “यहां आस-पास छिपने की जगह क्या हो सकती है?”

“छिपने की?”

“कोई तो जगह होगी? झोपड़ा-झोपड़ी?”

“हाँ! उस तरफ एक दिख तो रहा है. पर...?”

“अरे भाई! जब श्रीराम को उन लोगों ने बेहोश किया होगा तो कही छिपाया भी होगा न, कुछ देर के लिए वरना कोई देख न लेता?”

“ज़रूरी तो नहीं है. मुंह ढककर किसी गाडी में बैठा दिया होगा.”

“खेत में? यहाँ कौन-सी गाडी आएगी? अगर ऐसा हुआ भी होता तो किसी न किसी ने देख लिया होता, उस दिन तो यहां बहुत भीड़-भाड़ थी.”

“हूँ! तो चलो उस झोपड़े को भी देख लेते हैं.”

वे लोग खेत के अंत में एक झोपड़े के पास पहुंचे.

“कम से कम यहाँ तक तो गाड़ी आ सकती है न?” इक़बाल झोपड़े के पास जाते कच्चे रास्ते को देखते हुए बोला. फिर वह कुछ देर तक सोचता रहा. प्रकाश बेचैन होकर कुछ बोलने ही वाला था कि इक़बाल ने चुटकी बजाते हुए कहा-

“उस दिन यहां कई टीवी चैनल वाले रहे होंगे श्रीराम की विज़िट को कवर करने के लिए. मुझे उनसे उस दिन के सभी फोटो और वीडियो चाहिए.”

प्रकाश कुछ देर उसे घूरता रहा फिर उसे प्रसंशा के साथ देखते हुए बोला- “मान गए सर आपको.”

“अपुन का नाम इक़बाल दी ग्रेट ऐसे ही थोड़ी न पड़ गया है.” इक़बाल ने कॉलर खड़े करके कहा.

शाम तक काफी फोटो और वीडियो का इंतजाम हो गया था. प्रकाश, इक़बाल और अन्य पुलिस वाले, सभी उनमे किसी संदिग्ध हरकत को तलाशने लगे.

अंततः एक वीडियो को देखते हुए इक़बाल बोला- “वो मारा पापड़वाले को.”

उस वीडियो में रिपोर्टर बोल रहा था और पीछे वहीं झोपड़ा दिखाई दे रहा था. झोपड़े के पास एक कार दिखाई दी, फिर खेत की तरफ से चार लोग उसमे घुसते हुए दिखाई दिए. उनमे से एक के सिर से कपड़ा पड़ा हुआ था. जिस तरह से वो उसे घसीट-धकेलकर कार में बैठा रहे थे उससे लग रहा था कि वो व्यक्ति बेहोश है.

“शर्तिया वो श्रीराम और उसके किडनैपर हैं.” एक पुलिस इंस्पेक्टर बोला.

“हां! पर इस वीडियो में उनकी शक्ल नहीं दिख रही. न ही कार का नंबर पता चल रहा है.”

कुछ देर और ढूढने के बाद एक फोटो में उस कार की नंबर प्लेट भी दिख गई. फिर क्या था कुछ ही मिनटों में कार के मालिक का पता चल गया और वे लोग उसके घर पहुंच गए.

दरवाजा खुला. खोलने वाला एक तीस साल का आदमी था. पुलिस को देखते ही वो हकबका गया.

“सोमेश्वर?” इंस्पेक्टर ने कड़क आवाज में पूछा.

“जी?”

“11 जुलाई को तुम्हारी कार कहाँ थी?”

“ग...ग्यारह?”

“ठीक सुना, प्यारे.” इक़बाल बोला- “कहाँ थी आपकी कार उस दिन? आपके पास या किसी और के...”

“मुझे याद नहीं.” इस बार वो कुछ कड़क स्वर में बोला.

“याद दिलाओ यार, इन्हें.”

प्रकाश ने उसको गिरेबान से पकड़ा और खूंखार स्वर में बोला- “किडनैपर है न तू? कार में लोगों को उठाकर लाता है न. जल्दी बता वरना सारी हेकड़ी निकाल दूंगा.”

“ये कोई साजिश है.” वो चीखा.

अंदर से उसके बीवी बच्चे भी भागे-भागे बाहर आ गए.

कुछ देर की गरमा-गर्मी के बाद उसने सच उगलना शुरू किया.

“उ...उस दिन मेरी कार चिंतन ले गया था.”

“कौन चिंतन?” प्रकाश गुर्राया.

“चि...चिंतन कालिया.”

“ये कौन है?” इक़बाल ने पूछा.

“अरे! ये तो जाना-माना गुंडा है.” वहां का लोकल इंस्पेक्टर उस नाम से भली-भांति परिचित था.

“हां! पर वो सजा काटकर वापस आ गया था. अब वो कोई गलत काम नहीं करता.” सोमेश्वर भोले अंदाज में बोला.

“ऐसे लोग कभी सुधरते हैं, भला.” इंस्पेक्टर खिल्ली उड़ाते हुए बोला- “खुद तो फंसा ही, अब तू भी फंसेगा अपने दोस्त के चक्कर में.”

“नहीं-नहीं!” वह गिडगिडाया- “मैंने कुछ नहीं करा. उसने तो मुझसे एक दिन के लिए कार ली थी, उसके किसी दोस्त की शादी थी.”

“मैंने तो पहले ही कहा था, ऐसे दोस्तों से दूर रहो. पर तुम मेरी सुनोगे तो न...” उसकी बीवी उसे कोसते हुए बोली.

बहरहाल पुलिस ने उसे शक की बिनाह पर गिरफ्तार कर लिया.

थाने में उससे पूछताछ की जाने लगी. इक़बाल एक कोने में बैठकर चुइंग गम चबा रहा था. प्रकाश बोला-

“चिंतन के घर पर कोई नहीं है. रिपोर्ट मिली है कि वह जुलाई से ही गायब है.”

“होना ही था. ऐसे काम करने के बाद अक्सर ही लोग गायब हो जाते हैं. खैर, उसके चेले चपाटों को ढूढो. इन सोमेश्वर भाईसाब से तो कुछ पता नहीं चलने वाला.”

प्रकाश ने सिर हिलाया और तेजी-से बाहर निकाल गया.

कर्नल विनोद गायब

शोभा और सलमा डिनर के बाद टीवी देख रही थीं. तभी शोभा का फोन बजने लगने लगा. कॉल करने वाले का नाम देखकर वह थोड़ा संभल गई, फिर फोन उठाकर सम्मान के साथ बोली-

“आंटी नमस्ते!”

“जीते रहो, बेटा. कैसी हो तुम?” दूसरी तरफ सरोज यानि राजन की मम्मी थी.

“म...मैं ठीक हूँ आंटी.” शोभा थोड़ा-सा नर्वस हो गई. आखिर अपनी होने वाली सास से बात जो कर रही थी.

“राजन कहाँ है? उसका फोन बंद क्यों है?” सरोज की आवाज में छुपी परेशानी को शोभा ने तुरंत महसूस किया.

“वो यहां कर्णाटक में एक केस पर निकला है. फोन जानबूझकर बंद किया है.” शोभा उसे ज्यादा परेशान नहीं करना चाहती थी.

“ओह!” कहकर सरोज चुप हो गई. उनकी चुप्पी शोभा को खली.

“सब ठीक तो है, आंटी?”

“क...क्या बताऊँ बेटा. मैं बहुत परेशान हूँ. राजन के पापा कई दिन से गायब हैं.”

“क...क्या?”

“हां! अपने किसी दोस्त से मिलने निकले थे, उसके बाद से कुछ खबर ही नहीं. दो दिन के लिए कहकर गए थे, पर अबतक वापस नहीं आये.”

“ओह!” शोभा को समझ नहीं आया कि आखिर कर्नल विनोद अचानक कहाँ गायब हो गए. इधर पहले ही वो राजन के गायब होने से परेशान थी. उसे समझ नहीं आया वो सरोज को क्या बोले. उसने दो पल सोचने में गंवाए, फिर कहा- “मैं पवन को मुरादाबाद भेजती हूँ. वो उनका पता लगायेगा.”

“ठीक है!”

“आंटी! घबराइए नहीं, अंकल ठीक होंगे. मिल जायेंगे.”

“पता नहीं! मुझे तो बहुत घबराहट हो रही है. रिटायर होने के बाद से वो ज्यादा इधर-उधर जाते ही नहीं थे. पता नहीं...”

“अंकल ज़रूर किसी आवश्यक काम से कहीं रुक गए होंगे.”

“अरे, फोन तो कर सकते थे न. एक तो मोबाइल नहीं रखते हैं.”

“अंकल को हमेशा से जुर्म के खिलाफ लड़ने का जूनून रहा है, ज़रूर कुछ काम निकल आया होगा. अब आप चिंता मत करिये. पवन कल सुबह ही आ जायेगा. आगे का काम उस पर छोड़ दीजिए.”

सरोज कुछ आश्वस्त हुई, फिर शोभा ने मोबाईल एक तरफ रखा.

सलमा उनकी बातें ध्यान से सुन रही थी. वह तुरंत बोली-

“कर्नल अंकल भी गायब?”

“हां! मैंने उन्हें बताया नही कि राजन भी गायब है, वरना और परेशान हो जातीं. उफ़! अब पता लग रहा है कि राजन में ये आदत कहाँ से आई. जब देखो बिना बताये गायब.”

सलमा मुस्करा दी. वह कुछ कहने वाली थी कि उसका फोन बज उठा. इक़बाल की कॉल थी.

“इक्को! कैसे हो?” उसने जवाब दिया.

“अपनी बागड़बिल्ली के बगैर कैसा हो सकता हूँ? तुम्हारी बहुत याद आ रही है.”

“अच्छा! एक दिन में ही इतनी याद आने लगी?”

“तुमसे जुदा होते ही, तुम्हारी याद आती है.

याद करते हुए, दिल की कोयल ये गीत गाती है.

तुम्हारे बिना ऐ हमदम जीना है मुश्किल.

तुमको जो दे दिया है अपना ये दिल-विल.”

“हम्म!” सलमा के होठों पर शर्मीली मुस्कान आ गई- “आज तुम्हारी झख में शायरी कैसे निकल रही है?”

“वक्त-वक्त की बात है, सल्लो. और शोभा भाभी क्या कर रही हैं?”

“अरे! सरोज आंटी का फोन आया था. कर्नल अंकल गायब हो गए हैं.”

“क्या बोल रही हो?”

शोभा ने फोन लिया और सारी बात बताई. सुनने के बाद इक़बाल गंभीर हो गया.

“ये चक्कर क्या है! बाप-बेटे दोनों गायब. पर राजन यहां और अंकल मुरादाबाद से. कुछ समझ नहीं आ रहा. देखते हैं मिस्टर पवन क्या पता लगाते हैं? खैर, आप दोनों कल श्रीराम की रैली में ज़रूर जाना और आँख-कान दोनों खुले रखना.”

“तुम मेध से कब वापस आओगे?”

“जल्द ही.” इक़बाल ने बस इतना ही कहा और फोन काट दिया.