Sur - 8 in Hindi Fiction Stories by Jhanvi chopda books and stories PDF | सूर - 8

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सूर - 8

"सुर"

CHAPTER-08

JHANVI CHOPDA

आगे आपने देखा,

शर्माजी तो अपना काम कर नहीं पाए, क्योंकि परवेज़ को मात दे पाना कोई खाने का खेल नहीं था। उसका शातिर दिमाग सामने वाले की चाल को पहले से जान लेता था। अब इन सबके बिच में बची पायल ! जो ना परवेज़ के दिमाग में बसी थी ना दिल में...वो तो जुडी थी उसकी रूह से ! लेकिन क्या ये बात परवेज़ समज़ पाएगा !? क्या उसकी माँ ने छोड़ी पहेली वो बुजा पाएगा ? इन सारे सवालों के जवाब अब आगे मिलेंगे.....

अब आगे,

परवेज़ अपने बिस्तर पर उसकी माँ की आखिरी निशानी लिए बैठा रहा। रात के ढाई बजने को आए थे...लेकिन परवेज़ के मुँह पे बारह बजे थे। उसे नहीं पता था कि, आगे उसे क्या करना था... कैसे करना था...क्यूँ करना था। बस उसे एक चीज़ मालूम थी और वो ये की, उसे पायल को कैसे भी करके ढूँढना था। सवालों के चक्रवात में वो ऐसा तो घूम गया कि, उसे पता ही नहीं चला कब जुबेर उसके सामने आकर बैठ गया। पहले तो जुबेर ने पूरे कमरे की हालत देखी। पहेली बार इतना साफ सुथरा ! उसने परवेज़ को ऊपर से नीचे तक देखा, सब ठीक तो है ना ! लेकिन परवेज़ का तो ध्यान ही नहीँ गया उस पर, फिर जुबेर ने अपना मौन तोडा_

'शर्मा को तो हराया तूने, लेकिन उस राका की माँ का साकी-नाका !!! और वो कलेक्टर भी चुप बैठने वालो में से नई है। तेरी बारात निकले या ना निकले, वो बैंड जरूर बज़ाएगा।'_जुबेर की जुबान लड़खड़ा रही थी।

'तूने पि रखी है, क्या ?'

'पि तो तूने रखा है और वो भी तेरी जान की आँखों का नशीला जाम। सॉरी...सॉरी, तेरी जान के सुरों का नशीला जाम !'

'वो मेरी जान...! कबसे और क्यों ?'

'क्योंकि जानवर बहोत लंबा हो जाएगा ना !'

'तुजे आराम की जरूरत है, जुबेर ! जा के सो जा। कल वैसे भी किसीको ढूंढने जाना है।'

'अब किसे ढूंढने जाएगा तू !? तू बस पूरी ज़िंदगी ढूंढता ही रह, तुजे मिलने वाला कुछ नहीँ।'

'पायल को ! और क्यों नहीं मिलेगी वो मुझे ?'

'क्योंकि खोया हुआ तू खुद है और ढूंढ किसी और को रहा है। पहले तो उस लड़की को धक्के मार के निकाला और अब उसे ढूंढने जाएगा। तेरे में अक्कल नाम की कोई चीज़ है या नहीं। भूल क्यों नहीं जाता उस लड़की को !'

'भूलने ही जा रहा था, उतने में अम्मी ने याद दिला दी।'

'ओह्ह, तो तेरी माँ सपने में आई थी ?'

'जुबेर ये मज़ाक का वख्त नहीं है, ये देख अम्मी ने क्या लिखा है...की इस घुँघरू का दूसरा हिस्सा जिसके पास मिलेगा, वही मेरा किनारा होगा। इसका मतलब की पायल किनारा है...!'_परवेज़ ने जुबेर को चिट्ठी पकड़ाते हुए कहा।

'तुजे तैरना आता है, या किनारे से धक्का मार दूँ ? और क्या लिखा है, खाला ने !?'

'और कुछ नहीं, बस ये पहेली छोड़ के चली गई।'

'तेरी अम्मी पहेलियां बनाती रहे और तू उसे सुलजाता रह...और कोई काम धंधा नहीं है, तुम दोनों को !'

'सुलजाना तो पड़ेगा ही ना ! तेरे दिमाग में सवाल नहीं उठते, की आखिर पायल के पास ये घुँघरू आया कहाँ से...और अम्मी उसके बारे में पहेले से कैसे जानती थी ?

'पिद्दी सी लड़की के बारें में मैं इतना नहीं सोचता...कॉमन सेन्स भी तो यूज़ कर, ऐसी ही दूसरी डिज़ाइन नहीं बन सकती ? इत्तफ़ाक भी तो हो सकता है !'

'बेशक हो सकता है, लेकिन उसीके सुरों पे मेरी धड़कनों का रुक जाना, ये इत्तफ़ाक नहीं हो सकता। मैं कहिं ना कहीँ उससे जुड़ा हुआ हूँ...कोई तो राज़ जरूर है !' _परवेज़ बोले जा रहा था, उसने जुबेर की ओर देखा तो पता चला की, वो चद्दर की तरह फैल के सो गया था।

परवेज़ चिल्लाया, 'तू मुझे सुन भी रहा है ? कल हमें जल्दी जागना है, समजा ! पायल को ढूँढना ही होगा। तेरी मर्ज़ी हो या ना हो, तुजे उठा के लेके जाऊँगा !'

'जागने किलिये भी सोना पड़ता है, कमबख्त !' _जुबेर नींद में ही बड़बड़ाया।

परवेज़ ने थोड़ी देर अपने कमरे में चक्कर लगाए। सोने की कोसिस करी लेकिन नींद नहीं आई। वो दादू के कमरे में गया...वो सो रहे थे। धीरे से जाके बिस्तर के नीचे बैठ गया। और दादू के हाथ को चूमते हुए बोला_

'बहोत ज्यादा परेशान कर रहा हूँ ना, आज कल आपको ! आपको लगता होगा, की आपकी कोई बात मेरे पल्ले नहीं पड़ती। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है, आप मेरे लिए सबसे ऊपर रहोंगे। सच तो ये है, की मुझे भी नहीं पता, मैं कर क्या रहा हूँ ! खो गया हूँ कहिं, घूम गया हूँ...और जब भी में भटक जाऊ, आप ही तो हो, जो मुझे राह दिखाए। और इस बार तो आप भी मुझसे रूठे हो ! मैं क्या करूँ !?'

'मंज़िल पाने के लिए भटकना पड़ता है, परवेज़ ! ज़िन्दगी के रास्तों में GPS नहीं होता।' _दादू ने आधी खुली आँखों के साथ कहा। 'जा, जा के सोजा... थके हुए दिमाग से इरादे नहीं जीते जाते !'

*

सुबह हुई, जुबेर अंगड़ाई लेते हुए उठा।

'क्या चैन की नींद आई है, यार !' _वो बड़बड़ाया। उसने उठ कर देखा तो अपने आप को ज़िप में पाया...और उसकी एक साइड अमोल और दूसरी साइड अयान बैठे थे। उसके बिलकुल सामने परवेज़ हाथ में टूथपेस्ट लिए खड़ा था। जुबेर उसके सामने पलक जपकाए बिना तीन मिनट तक देखता रहा, फिर बोला_

'क्या !? क्या है, ये सब !? अब ज़िप में बाथरूम बनाने का इरादा है, क्या ?'

'पहले मुँह धो ले अपना, बदबू आ रही है।' _परवेज़ ने कहा।

'तो सुबह उठ के तेरे मुँह से कौनसी खुश्बु आती है, बे !'

'बकवास बंद कर अपनी, और टाइम वेस्ट मत कर, हमें जाना है जल्दी !'

'कहाँ ?'

'बोला तो था, कल ! पायल को ढूंढने।'

'मैं नई आता और वैसे भी मैं नहाए बिना कहिं नहीं जाता।'

परवेज़ ने अपने पैरों के पास रही पानी की बाल्दी उठाई और गिरा दी जुबेर पे !

'नाह लिया ना ! अब चुप चाप ये कपड़े बदल ले !' _परवेज़ ने जुबेर की तरफ कपड़े फेंकते हुए कहा।

'अबे, खुली जीप में कपडे बदलूँगा तो नंगा नहीं हो जाऊँगा !'

'पैदा भी तो नंगा ही हुआ था।' _परवेज़ ने गाड़ी स्टार्ट करते हुए कहा।

'लेकिन जाना कहाँ है, भाई ?' _अमोल ने पूछा।

'जहाँ रास्ता ले जाए !' _परवेज़ ने कहा।

'हाँ, ये रास्ता सीधा कब्रिस्तान जाता है, वही पे ले जा...तुजे ज़िंदा गाड़ दूँ, साले !' _जुबेर शर्ट पहनते हुए बोला।

'अपनी बदबू वाली बातें बंद कर और ये सोच की पायल मिलेगी कहाँ पे ?' _परवेज़ बोला।

'तेरी अम्मीजान को सब पता होता था, वो कुछ लिख के नहीं गई ?!'

'भाई, हम पनवेल जाते है। क्या पता वो वहीं पे मिल जाए, जहाँ उसे पहेली बार पाया था।' _अयान ने कहा।

'इतने बड़े पनवेल में वो क्या चने बेच रही होगी, जो मिल जाएगी।' _जुबेर अयान की बात काटते हुए बोला।

'जुबेर, तू चुप रहेगा या नास्ते में बड़ी वाली गाली दूँ !?' _परवेज़ इतरा कर बोला।

परवेज़ की ज़िप सीधा जाके पनवेल रुकी। तब तक कोई कुछ नहीं बोला।

सब ज़िप से नीचे उतरे...चारों और ढूंढने लगे। जुबेर बहोत धीरे से चल रहा था।

'ये पैर चौड़े करके क्यूँ चल रहा है ? मक्खी ने गलत जगह काँटा है, क्या ?' _परवेज़ इतराया।

'अबे, अंडरवेयर अभी तक नहीं सूखा !'

'क्या...! गीली चड्डी पहन के घूम रहा है, तू !? ...या अल्ला !' _परवेज़ हँसने लगा।

'तू हँस मत कमीने, ये सब तेरी वजह से ! अगर तेरी वो पायल मिली ना आज, तो उसकी तो मैं छन-छन कर दूँगा !'

'अब चल, चलते चलते सुख जाएगा। नहीं तो ड्रायर ले के आऊँगा !' _परवेज़ ने हँसते हँसते कहा।

पूरा एक घण्टा होने को आया था। धुप सर पे थी...सब थके हुए थे। एक जगह से दूसरी जगह ढूंढते रहे सब, लेकिन पायल का कोई अता पता नहीं था...एक से तीन घण्टे हो गए। परवेज़ और उसके साथी ज़िप मैं बैठे। थकान सबके चहरे पे थी लेकिन परवेज़ के चहरे पे इंतज़ार ! उसने पानी की बोटल ली और अपने गर्म हुए सर पे डाली...पानी की ठंडी बुँदे, टप टप गिर रही थी। उसने एक लंबी साँस ली... उसे पायल का चेहरा नज़र आया। उसने सब कुछ पहले से याद किया...जहाँ से उसने वो सुर सुने वहाँ से लेकर पायल को घर से निकालने तक !

'एक मिनट, लेकिन इन सबकी जड़ तो एक ही थी, "तारा" ! उसे जरूर पायल के बारें में कुछ न कुछ पता होगा ।'_परवेज़ ने सोचा।

उसने जपट से उठ कर गाडी स्टार्ट करी।

'अब कहाँ, भाई ?' _थका हुआ अमोल बोला।

'किसी अच्छे से रेस्टोरेन्ट में। भूख लगी है, ना तुजे !?' _जुबेर बिच में टपका।

सब अपनी अपनी बातें कर रहे थे। लेकिन गाडी रुकी सीधे जाके तारा के कॉलेज के गेट पर !

'ये कौनसा रेस्टोरेन्ट है ?' _जुबेर चिल्लाया।

लेकिन परवेज़ अनसुना कर के वहाँ से भागा कॉलेज के अंदर ! चारों तरफ छान मारा, लेकिन उसे तारा भी नहीं मिली। गुस्से में लाल हुई उसकी आँखे अब बंद होना चाहती थी। अपने बाल पकड़ कर वो पीछे जाने लगा...अचानक वो किसीसे टकराया।

'देख के नहीं चल......!' _वो मुड के अपनी भड़ास निकाल पाए उसके पहले ही उसका इंतज़ार पूरा हुआ। क्योंकि उसके सामने पायल खड़ी थी। भरे बादलों को भी बरसने ना दे ऐसी कातिल नज़रे...गोरे गालों पे अपनी लालिमा बिखेर रहा वो गुस्सा...गाली देंने जाने वाले वो गुलाबी होंठ...हवाओं में शरारत करने वाले नीले जुमखे...दाए हाथ में किसीकि दुवाओं का निशान बन कर बसा हुआ वो काला धागा...और ये सब कुछ सजा हुआ सफ़ेद सूट पर...! एक पल के लिए परवेज़ को महसूस हुआ की, कफ़न में भी कितने रंग होते है !!!

'तुम ! यहाँ !!! तुमने ही...'

'श्श्श्श्श...! आज सारें सवाल में करूँगा, ठीक है।' _पायल कुछ बोल पाए उसके पहले ही परवेज़ ने उसके होंठो पे अपना हाथ रख दिया।

'पहले चलो यहाँ से...।' _परवेज़ ने पायल का हाथ पकड़ा और ज्यादा कुछ बोले बिना उसे कॉलेज से बहार ले जाने लगा।

'क्या कर रहे हो तुम, छोडो मेरा हाथ !' _पायल गुस्सा होकर बोली।

'तुम थोड़ी देर प्लीज, चुप रहोगी !'

'नहीं, तुम पहेले मेरा हाथ छोड़ो, मेरी यहाँ कोई इज़्ज़त है...तुम्हारी तरह नहीं ! और कैसे बेशर्म हो तुम, एक तो मुझे अपने घर से निकाला...फिर भी मुँह उठा के चले आए !'

पायल अपनी बात करे उसके पहले ही परवेज़ ने उसे कॉलेज से बहार खड़ी ज़िप में बिठा दिया और ज़िप स्टार्ट की...उस ओर अमोल, अयान और जुबेर गेट पर गुस्फुसा रहे थे। उन्होंने गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज सुनते ही उसकी ओर देखा।

'हमे छोड़ कर कहाँ जा रहे हो, भाई !?' _अमोल चिल्लाया।

'अबे, रुक...तेरी तो ! गद्दार साला...!' _जुबेर ने गुस्से में पत्थर उठाया और ज़िप की तरफ मारा।

'तुम्हारे दोस्त भी तुम्हे पत्थर मार रहे है, कितने अड़ियल हो तुम !' _पायल शुरू रही। '...और तुम कॉलेज तक कैसे आ गए, किसीने रोका नहीं तुम्हे !?'

'मुझे रोकने वाला अभी तक पैदा नहीं हुआ ।'

'ओ, प्लीज ! ये डाइलोग बाजी किसी और के सामने कर लेना। पहले गाड़ी रोको और मुझे नीचे उतारो !'

'बहोत सारें सवाल है, जिसके जवाब सिर्फ तुम्हारें पास है, वो लिए बिना तुम्हे कहिं नहीं जाने दूँगा।'

'मुझे तुम्हारे किसी भी सवाल का कोई जवाब नहीं देना, मुझे तो तुम्हारी शक्ल तक नहीं देखनी !'

'ठीक है, फिर शक्ल देखे बिना ही जवाब दे देना।' _परवेज़ ने कहा।

'तुम गाड़ी रोको वरना में कूद जाऊंगी !'

'अच्छा...! कूदना आता है या डेमो दिखाऊ ?'

'मैं मज़ाक बिलकुल भी नहीं कर रही, मैं सच में कूद जाऊंगी !'

'एक बार ट्रायल मार के तो दिखाओ !' _परवेज़ पायल को बहोत लाइटली ले रहा था।

पायल खड़ी हुई, ज़िप का दरवाज़ा खोला...और बोली, 'मैं सच में कूद रही हूँ !'

'मज़ाक ज्यादा हो गई, दरवाज़ा बन्ध कर के बैठ जा !' _परवेज़ ने कहा।

पायल दरवाज़ा बंद करने ही जा रही थी उसका पैर फिसला, और..........

To be continued...

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