८४ लाख
हन्दू धर्म को इस दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है I और इसके शास्त्रों और इसके सिध्धांतो ने इस दुनिया को बहुत कुछ दिया है I इसके तर्क और वितर्क ने जन्म से लेके मृत्यु तक की सभी संभावानाओ का निवारण किया है I मानव को कैसे जीना और कैसे मरना है उसका भी स्पष्टीकरण ये शाश्त्रो में किया हुआ है I हमारे शास्त्रों में इस सृष्टि की सभी गतिविधीयो का वृतांत पाया गया है I
हिन्दू धर्म, शास्त्रों के सिध्धांत को मानने वाला धर्म है, जिसमे अनगिनत रास्ते है, जीवन निर्वाह और निर्वाण करने के, इन सभी शास्त्रों में “श्रीमद् भागवत पुराण“ श्रेष्ठ है, जीसे भगवान का वांगमय स्वरुप कहा गया है I
ये श्रीमद् भागवत पुराण हमें क्या सीखाता है..?
क्या कीसीको मालुम है....?
जैसे श्री रामायण हमें कैसे जीवन जीना है वो सीखाती है I उसी तरह ये श्रीमद् भागवत पुराण हमें कैसे मरना है वो सीखाता है I तो ये श्रीमद् भागवत पुराण हमारे हिन्दू धर्म के १८ पुराणों में से एक है, जीसकी रचना महर्षि श्री वेदव्यास ने की है, जिसमे १२ स्कंध और १८००० श्लोक है और ऐसा कहा जाता है की श्रीमद् भागवत पुराण का श्रवण.करने से जीव को मुक्ति मिल जाती है I जैस महाराज परीक्षित को मुनी श्री शुकदेवजी महाराज ने इस श्रीमद् भागवत पुराण का रसपान कराकार मोक्ष दिलाया था I
तो ये मोक्ष क्या है.....?
हमारे शास्त्रों में कहा गया है की मोक्ष की अवस्था में जीव को ईश्वर के तीन गुण(सृष्टि कर्तव्य, लक्ष्मीपतित्व, और श्रीवत्स की प्राप्ति ) को छोड़ कर सब कुछ प्राप्त होता है I पाशुमत दर्शन में परमेश्वर बन जाना, शैव दर्शन में शिव हो जाना, और प्रत्यमिज्ञा में पूर्ण आत्मा की प्राप्ति को मोक्ष कहा गया है I
श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार इस पृथ्वी पर भगवान ने ८४ लाख जीवो का सर्जन किया है I
ये सुनकर हर कोई आश्चर्य में पड जाता है की इतने सारे जीव..?
क्या सही में ऐसा है..?
जी हा, यही सही है, और इन सभी जीवो को भगवान ने छे प्रकार में विभाजीत कीया है I
इन छे प्रकार इस तरह है
1) जलीय जीव-९ लाख
2) पेड़-पौधे-३० लाख
3) कीडे -२७ लाख
4) पक्षीयो-१४ लाख
5,6) देवता,मनुष्य,पशु -४ लाख
और ये सभी ८४ लाख जीवो को हम उसके भौतिक शरीर के साथ अपने आसपास की सृष्टि में देख रहे है, जीसके अन्दर आत्मा बिराजमान है I और इन सभी जीवो की आत्मा एक समान है I और ये सभी आत्मा उस परमात्मा का आंशिक अंश और हिस्सा है, जीसे हम सब भगवान कहेते है I और ये हर एक आत्मा को इन ८४ लाख शरीर धारण करने पड़ते है, तब जाके उसे अंत में मानव शरीर की प्राप्ती होती है I
जरा सोचिये....एक मानव शरीर को प्राप्त करने के लिए कीतने जन्म लेने पड़ते है...?
८४ लाख...
इसका तात्पर्य यह हुआ की एक मानव शरीर प्राप्त करने के लिए जीव को ८४ लाख जन्म लेना पड़ता है I
तो ये ८४ लाख जीवो में सबसे दुर्लभ है मानव देह प्राप्त करना I
ऐसा कहा जाता है की....
पुनःवितम् पुनःमित्रम् पुनःभार्या पुनःसमही
एतत्सर्व पुनःलविय न शरीरम् पुनः पुनः
अर्थात...नष्ट हुआ धन फिर से मिल जाता है, रूठे हुए या बिछड़े हुए मित्रो भी फिर से मिल जाते है या नए मित्र बन जाते है, त्याग या देहांत हो जाने पर दूसरी पत्नी भी मिल जाती है, मिल जाते है जमीन जायदात, देश और राज्य भी फिर से मिल जाते है, और ये सब कुछ बार बार प्राप्त हो सकता है लेकिन सिर्फ मानव शरीर ही बार बार प्राप्त नहीं होता I
क्योकि....
हमारे शाश्त्रो में कहा गया है की....
नरत्वंम् दुर्लभंम् लोके ..... यानी की इस लोक में मानव देह को प्राप्त करना बहुत ही दुर्लभ है I
तो क्यों होता है ये मानव जीवन मिलना इतना दुर्लभ ...?
और ये दुर्लभ मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है...?
तो शास्त्रों में बताया गया है की मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है मोक्ष प्राप्त करना, यानी की मुक्ति पाना I इस ८४ लाख जीवन चक्र से मुक्ति पाना, किन्तु किसीने सोचा की ये होगा कैसे...?, हम सब भगवान की भक्ति सेवा करने मे मानते है I और भगवानने हमें दूसरे जीवो से अलग एक चीज़ दी है , और वो चीज़ है बुध्धि I
तो क्यों ये बुध्धि भगवानने हमें ही दी है...?
अन्य कीसी जीव को क्यों नहीं दी...?
इसका क्या कारण है...?
तो हमारे शास्त्रों के अनुसार भगवान ने मानव को बुध्धि इसीलिए दी है की, ये मानव जीवन अंतिम चरण है मोक्ष प्राप्ति करने का, यदि इस में मोक्ष नहीं पा सकते तो फिर से ८४ लाख जीवन का चक्कर लगाना पड़ता है I इसीलिए इस मानव जीवन में यदि मनुष्य अपनी बुध्धि से मोक्ष को प्राप्त कर सके तो फिर से उन्हें दूसरे जन्म नहीं लेने पड़ते इसी कारण भगवान ने मानव को बुध्धि शक्ति प्रदान की है I
किन्तु आज हम सब ये बुध्धि शक्ति को संरक्षण, खाना, सोना और जातीय सुख की प्राप्ति जैसे चार कार्यो में लगा रहे है, फिर भी हम इन चारो गतिविधियों में जानवरों की तुलनामे कहीं पिछे हैं I
क्या हम ये मानते है की भगवान ने हमें आज एक अच्छा मानव जीवन दिया है I तो क्यों न हम उसकी हर एक चीज़ को परखे और सभी चीज़ का आनंद ले...?, किन्तु हम ऐसा करने के लिए कुछ नहीं कर रहे है I
भगवान ने हमें बुध्धि दी है ताकि हम हर एक चीज़ को देख सके और फिर ये तय कर सके की क्या सही है और क्या गलत...?, क्या अच्छा है और क्या बुरा ...? और फिर ये सब तय करने के बाद में हमें जो अच्छा और सही लगे उसको करने का निर्णय कर सके I
हम कल्पना करते है की यदि हमारी बुध्धि शक्ति का उपयोग हम उस परमं सत्य परमात्मा को समजने में और मोक्ष के लिए रास्ता खोजने में करे तो क्या हो सकता है...?
यदि हमने मोक्ष का मार्ग खोज लीया हो तो फिर हमें जन्म, मरण, वृध्धावस्था और रोगों से छुटाकारा मिल जाएगा I हम अपने सभी दु:खो से सदा सदा के लिए विरक्त हो जायेंगे और एक परम आनंद का अनुभव करेंगे I फिर हमें बार बार जन्म लेने की कोई आवश्यकता ही नहीं रहेगी. हम परम सुख के भागी हो जायेंगे I
किन्तु....ये तो मात्र हमारी कल्पना है..की यदि मोक्ष मिला तो ऐसा होगा..
पर मोक्ष मिलेगा कैसे...?
इसका भी उपाय हमारे शास्त्रों ने बताया है. हमारे शाश्त्रो में मोक्ष प्राप्त करने के दस साधन बताये है I
1) मौन अर्थात इन्द्रियजीत होकर वाणी का संयम कर ले. वाणी का प्रयोग सभी सांसारिक कार्यो में ना करे I
2) ब्रह्मचर्य व्रत अर्थात ब्रह्मचर्य का विधिवत् पालन करे. श्रुति कहती है की केवल ब्रह्मचर्य व्रत से ही जीव की मुक्ति हो जाती है I
3) शास्त्र श्रवण निरंतर करते रहे और उसके पश्चात् उसका सतत मनन और निदिध्यासन चलता रहे तो भी मुकरी का मार्ग प्रशस्त होता है I
4) तप अर्थात तपस्या से अहं मिटता है, तपस्या की उत्तरोत्तर वृध्धि से ब्राह्मी स्थिति को जिव प्राप्त होता है और ब्रह्म में लीन हो जाता है I
5) अध्ययन अर्थात बुध्धि का व्यायाम निरंतर शास्त्र अध्ययन और तद्नुसार उसका चिंतन मनन जिव को ब्रह्मावगामिनी बनाता है, श्रीमद भगवद्गीता के अनुसार बुध्धि के समीप ही तो ब्रह्म है I
6) स्वधर्म पालन अर्थात अपने धर्म का पालन करते रहे यह भी मोक्ष का मार्ग है I
7) शास्त्रों की व्याख्या अर्थात शास्त्रों की प्रबल युक्तियो द्वारा युक्तियुक्त व्याख्या करे, यह भी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है. व्याख्या करते समय बुध्धि अत्यंत सूक्ष्म हो जाती है और ब्रह्म तो सूक्ष्माती सूक्ष्म है, स्थूल बुध्धि वाले तो स्थूल शरीर ही पा सकते है I
8) एकांतवास अर्थात संसारी कोलाहल और चकाचौंध से दूर I
9) जप अर्थात निरंतर नाम मन्त्र, जप करनेवाला भी मोक्ष को प्राप्त करता है I
10) समाधि भी मुक्ति का एक निमित्त बताया गया है. षडंगयोग (आसन, प्राणायाम,प्रत्याहार,ध्यान, सहारण, समाधि ) से मोक्ष की अवस्था प्राप्त होती है I
इन सबका सार निकाला जाए तो हम हमारे जीवन के परम लक्ष्य मोक्ष को तभी प्राप्त कर सकते है, की जब हम किसी भी कार्य को कार्यफल की आशा रखे बिना निरंतर निस्वार्थ भावसे करे और सतत परमात्मा का ही चिंतन करे, सतत उसकी चेतना मे ही लीन रहे, तभी मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है I
और यदि मानव के शरीर की आत्मा इस मोक्ष को प्राप्त करने मे सफल नहीं हुयी तो फिर से उन्हें ८४ लाख जीवो से गुजरना पड़ेगा I
तो क्या आप मोक्ष को प्राप्त करना चाहोगे या ये ८४ लाख जीवो का चक्कर लगाना चाहोगे...?
ये सब आपके वाणी, विचार, वर्तन, और कर्म पर आधारित है I तो आइये आज से हम अपने जीवन को उसके परम लक्ष्य की प्राप्ति के लिये सज्ज करे I
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