Deh ke dayre - 35 in Hindi Fiction Stories by Madhudeep books and stories PDF | देह के दायरे - 35

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देह के दायरे - 35

देह के दायरे

भाग - पैंतीस

तेज कदमों से लगभग भागती हुई पूजा अपने घर की ओर बढ़ी जा रही थी | उसकी साँस फूल रही थी | घर पहुँचते ही वह बिस्तर में गिरकर फूट-फूटकर रो उठी | इतना तो वह पहले कभी भी न रोई थी | उसका पति लौट आया था मगर वह पागलों की भाँती रोए जा रही थी |

करुणा रसोई में चाय बना रही थी | जब वह प्रातः सोकर उठी तो पूजा को नीचे वाले कमरे में न पाकर अपनी दिनचर्या में लग गयी थी | पूजा के रोने की आवाज उसके कानों में पहुँची तो वह चकित-सी भागकर कमरे में आयी | दरवाजे पर खड़ी होकर उसने देखा, पूजा बिस्तर में औंधी पड़ी बच्चों की भाँती रोए जा रही थी |

“भाभी, क्या हो गया?” उसने पुकारा मगर पूजा ने उसको कोई उत्तर नहीं दिया | करुणा आगे बढ़कर बिस्तर पर बैठ गयी और उसने पूजा का सिर अपनी गोद में रख लिया | उसके मुख को अपने हाथों में लेकर उसने कई बार पुकारा लेकिन पूजा उसके स्नेह का आलम्बन पाकर और अधिक जोर से रोने लगी |

करुणा समझ गयी थी कि ऐसी स्थिति में पूजा कुछ भी नहीं बता पाएगी | वह उसके इस तरह फूट-फूटकर रोने से चकित थी | वह इसका कारण जानना चाहती थी मगर पूजा इस स्थिति में नहीं थी कि कुछ बोल सके | करुणा देर तक उसे अपनी बाँहों में लिए बैठी रही |

पूजा के रोने की आवाज सुनकर पंकज भी नीचे उतर आया था | उसने भी पूजा से पूछना चाहा मगर सिसकियों के अलावा उसे भी कोई उत्तर न मिल सका | वह चुपचाप कोने में पड़ी कुर्सी पर बैठ गया |

“इतनी सुबह कहाँ गयी थीं भाभी?” पूजा कुछ स्वस्थ हुई तो करुणा ने पूछा |

“मन्दिर में |” पूजा सिर्फ इतना ही कह सकी |

“किसी ने कुछ कह दिया?”

मुँह से कुछ न कहकर पूजा ने इन्कार में गर्दन हिला दी |

“देव भईया की याद आ गयी क्या!” बहुत ही प्यार से करुणा ने पूछा | पूजा की आँखों से टपके दो आँसुओं ने उसकी बात का समर्थन कर दिया |

“भाभी, सपनों के सहारे स्वयं को कब तक छ्लोगी?”

“यह सपना सच्चा है करुणा |” पूजा कह उठी |

“क्या?” चौंककर करुणा ने कहा |

“मैंने उन्हें अपनी आँखों से देखा है |”

“कहाँ...?”

“मन्दिर में |”

“तुम्हें भ्रम हुआ होगा भाभी |”

“नहीं करुणा! तुम्हारे भईया लौट आए हैं | उन्हें पहचानने में मैंने देर अवश्य की लेकिन मैं धोखा नहीं खा सकती |”

“क्या यह सच है पूजा?” पंकज भी अविश्वास से कह उठा |

“तुम उन्हें घर क्यों नहीं लेकर आयीं भाभी?” करुणा अब भी विश्वास नहीं कर पा रही थी |

“मैंने तो उन्हें घर से नहीं निकाला था करुणा | वे स्वेच्छा से घर छोड़कर गए थे, अब उन्हें स्वयं ही घर आना होगा |”

“क्या कह रही हो भाभी! चार वर्ष बाद तुम्हें यह खुशी मिली है और तुम...|”

“हाँ करुणा, मैंने इन चार वार्षों में बहुत कुछ जाना है, बहुत कुछ समझा है |” पूजा अब शान्त हो गयी थी | आँसू बह जाने से उसका मन हल्का हो गया था |

करुणा प्रश्न-भरी दृष्टि से पूजा की ओर देखे जा रही थी |

“स्त्री का भी अपना स्वाभिमान होता है करुणा | उसकी रक्षा उसे स्वयं करनी होती है | ऐसा किए बिना वह कभी अपने पति का पूर्ण प्यार नहीं पा सकती |” पूजा ने प्रश्नभरी दृष्टि के उत्तर में कहा |

“तो क्या तुम उनके पास नहीं जाओगी?” पंकज ने कहा |

“मैं जिद नहीं करती पंकज, लेकिन जब तक मेरा स्वाभिमान इसके मध्य आता रहेगा, मैं कोशिश करके भी जा नहीं सकूँगी |”

“मैं जाकर उन्हें बुला लाता हूँ |” पंकज ने सुझाव रखा |

“इस कार्य में तुम स्वतन्त्र हो | मैं तुम्हें रोक नहीं सकती लेकिन मेरा एक आग्रह अवश्य है |

“क्या?”

“मेरी ओर से तुम एक शब्द भी उनसे न कहना |”

“आओ करुणा, हम उनसे मिलकर आते हैं |” पंकज ने कहा |

“चलो |” करुणा उठकर उसके पीछे-पीछे चल दी | उस दोनों को वस्त्र बदलने की सुध भी नहीं थी | पंकज कुर्ते-पायजामे में और करुणा अधमैली धोती में ही मन्दिर की तरफ चल दी थी |

देव बाबू अभी तक उस पेड़ के चारों ओर बने चबूतरे पर गहरी चिन्ता में डूबे बैठा था | दूर से आते पंकज और करुणा को पहचानकर भी वह कुछ नहीं बोला |

पंकज ओर करुणा मन्दिर के चारों ओर देव बाबू को तलाश कर चुके थे |

“यहाँ तो देव बाबू दिखाई नहीं देते |” पंकज ने कहा |

“हमने पूजा से उनके विषय में कुछ अधिक पूछा भी तो नहीं | हो सकता है कि वे किसी और वेश में हों और हम उन्हें पहचान न पाएँ |” करुणा ने कहा |

“मगर वह तो हमें पहचान लेगा |” पंकज ने कहा और दोनों एक बार फिर तालाब की ओर चल दिए |

“पंकज...|” पेड़ के नीचे बैठे देव बाबू ने उन्हें पुकारा तो दोनों आश्चर्यचकित-से उसके समक्ष जाकर खड़े हो गए |

“यह करुणा है न!” देव बाबू ने कहा |

“हाँ बाबा, लेकिन आप हम दोनों को कैसे जानते हैं?” पंकज ने आश्चर्य से प्रश्न किया |

“मैं तुम्हारी उलझन जानता हूँ | देव बाबू की तलाश कर रहे हो?”

“बाबा, आप उन्हें जानते हैं?” हम उससे मिलने आए हैं |”

“सुना था कि कलाकार की दृष्टि बड़ी पैनी होती है | तुम देव बाबू को नहीं खोज पाए!”

“यहाँ तो वह कहीं नहीं है बाबा |”

“सामने बैठे मनुष्य को भी नहीं पहचानते?”

देव बाबू के कहने के साथ ही पंकज और करुणा दोनों ने ही तेज निगाहों से उसकी ओर देखा | एक पल बाद उनके मुँह से निकल पड़ा, “देव बाबू...!”

“हाँ पंकज, मैं ही तुम्हारा देव बाबू हूँ |”

“इतने दिनों तक कहाँ रहे भईया? तुम हमें छोड़कर कहाँ चले गए थे?” करुणा एक ही साँस में कह गयी |

“भाग्य की लकीरों को कोई नहीं मिटा सकता करुणा |”

“अब घर चलो भईया |”

“नहीं करुणा, अभी शायद अपयुक्त समय नहीं आया है |”

“चार वर्ष बाद भी?” पंकज ने कहा |

“हाँ पंकज, पूजा थोड़ी देर पहले ही यहाँ आयी थी | मुझे पहचानकर बिना एक पल रुके ही वह यहाँ से भाग गयी | लगता है, वह मुझसे रुष्ट है | बिना उसकी अनुमति के मैं घर कैसे जा सकता हूँ?”

“आप अनुमति की बात करते हैं देव बाबू, उसने तो इस चार वार्षों का एक-एक पल आपकी प्रतीक्षा में काटा है | वह आपसे नाराज नहीं है | अब आप घर चलिए |”

“नहीं पंकज, मैं यहीं रहकर उसकी प्रतीक्षा करूँगा |” देव बाबू के शब्दों की दृढ़ता उसके निर्णय का प्रतिक बन गयी थी |

काफी देर तक पंकज और करुणा उससे वापस घर चलने का आग्रह करते रहे परन्तु वे उसके निर्णय को नहीं बदल सके | अन्त में हार कर वे घर को वापस चल दिए |

जब वे लौटकर घर पहुँचे तो पूजा सामान्य होकर घर का कार्य कर रही थी | कुछ देर पहले के प्रलाप का कोई चिह्न उसके मुख पर शेष न था | ऐसा प्रतीत होता था जैसे आज उसके साथ कोई असामान्य घटना घटी ही न हो |

पंकज और करुणा के वापस आने पर पूजा ने उनसे देव बाबू के विषय में कोई चर्चा नहीं की और उसे दोनों के पास तो बताने को कुछ भी नहीं था | अपने-अपने ख्यालों में खोए तीनों कार्य करते रहे | दिन सामान्य गति से आगे बढ़ता रहा | तीनों ही असामान्य थे मगर स्वयं को सामान्य दर्शाने का प्रयास करते रहे |