कहानी--असली गहने
बात उस समय की है जब कल्लू मामा क्वारे(अनमेरिड) थे| एक दिन उनकी शादी वाले आये, उस दिन कल्लू मामा की ख़ुशी का ठिकाना न रहा| उनके पैर उस दिन हवा में चलते थे, अपने घर वालों के बताये हर काम को ऐसे करते मानो ये काम उनकी रूचि का है, या यो कहें कि कल्लू मामा जैसे उसी काम के लिए ही जन्मे हो|
भैंसों को चारा डाला, सारा गोबर साफ किया और नहा धो कर नये कपड़े पहन लिए| पेंट की पिछली जेब में छोटा कंघा लगाया, पडोस के लडके से थोडा इत्र मांग कर लगाया और आराम से इस इन्तजार में बैठ गये कि कब लडकी वाले उन्हें देखने के लिए बुलाये|
थोड़ी देर बाद कल्लू मामा जी के पिताजी की अंदर से प्यार भरी नर्म आवाज आई, “बेटा कल्लू सींग|” कल्लू मामा को अपने पिताजी से आज अपना सही नाम पहली बार सुनने को मिला था वो भी ‘सींग’ के साथ| जबकि उनके पिताजी हमेशा उन्हें 'कलुआ' कहकर बुलाते थे|
कल्लू मामा उठकर खड़े हुए और बालों में एक बार फिर से कंघी की, फिर शरमाते इठलाते अंदर गये| अंदर लडकी वालों ने जब कल्लू मामा को देखा तो उन्हें ये पसंद आय गये, और जवानी में कल्लू मामा थे भी सुंदर| इसमें कोई दो राय नही है|
उसके बाद कल्लू मामा बाहर आ गये और बाद में उन्हें मालूम पड़ा कि उनकी शादी पक्की हो गयी है| फिर तो उनका घमंड सातवे आसमान पर जा टिका, दोस्तों से इतराके बात करते| घर वालों पर भी रौब छाड़ने में पीछे न रहते|
आखिरकार वो दिन भी आ गया जब कल्लू मामा की बारात जानी थी| उस रात कल्लू मामा को नींद नहीं आई थी, सारी रात मामी के सपने आते रहे| सुबह हुई तो उन्होंने अपने को सजाना सवारना शुरू कर दिया, दो दिन पहले कहीं से गोरे होने का क्रीम पाउडर ले आये थे| आज उन्होंने उस सामान को निकाला और लगाना शुरू कर दिया|
बालों में खुसबू के तेल की मालिश की, लेकिन एक आफत आ लटकी| जो क्रीम पाउडर कल्लू मामा लाये थे वो ठीक नही निकला, उसने रंग को गोरे की जगह और ज्यादा काला कर दिया| कल्लू मामा यह देखकर बहुत मायूस हुए| एक बार को उनका मन हुआ कि पहले उस क्रीम पाउडर बेचने वाले दुकानदार का भूत उतारकर आयें, जिसने उन्हें ये सामान देते हुए कहा था कि अगर गोरे न हो जाओ तो मेरी आधी मूँछ काट देना|
फिर सोचा चलो शादी से लौटकर कमबख्त की मूँछे साफ़ करूँगा| क्योंकि शादी से पहले कल्लू मामा कोई अनावश्यक जोखिम नही लेना चाहते थे, और ये ही तो असली शादी के खिलाडी की पहचान होती है|
बारात का टाइम हुआ, बस आ चुकी थी| एक बस में कल्लू मामा और बाकी के परिवार वाले बैठे, दूसरी में सारे गाँव के लोग| बस चल पड़ीं और सीधी जाकर कल्लू मामा की ससुराल में जाकर रुकीं| शादी की तैयारियां शुरू हुई, कल्लू मामा को पल पल भरी पड़ रहा था| उनका मन तो होता था कि मामी जी को उठा कर सीधे घर ले जाएँ, लेकिन समाज के आगे बेचारे कल्लू मामा असहाय थे|
अब शादी में रुकावट थी तो बस एक चीज की, वो थे बधू के चढ़ावे वाले गहने| शादी की जल्दी में वावले हुए कल्लू मामा ने अपने पिताजी को बुलाकर पूछा, “पिताजी अब क्या रट्टा है, गहने दे क्यों नही देते, जल्दी शादी हो छुट्टी हो|”
उनके पिताजी डपटते हुए बोले, “ज्यादा उतावला न हो, तुझे बहुत जल्दी पड़ी है शादी की| अभी तुझे उठाकर घर भेज दूंगा और तेरे छोटे भाई की शादी करा ले जाऊँगा|” कल्लू मामा सकपका गये बोले, “पिताजी में तो बस यूं ही...|” पिताजी उसी अंदाज़ में बोले, “हाँ हाँ ठीक है अब अपना मुंह बंद करके चुपचाप देखता जा|” कल्लू मामा बेचारे चुपचाप बैठ गये, क्या करते पिताजी से कुछ अंट शंट बोलते तो शादी फेल होने का डर था|
गहनों का मसला ऐसा था कि गाँव के प्रबुद्ध लोगों ने राय दी कि तुम पूरब में बारात ले कर जा रहे हो तो असली गहने मत चढ़ाना| क्योंकि बहां के लोग गहने लौटाए या न लौटाएं कोई पता नही| इस कारण पिताजी ने कल्लू मामा के बड़े भाई को नकली गहने लाने के लिए भेजा था जो अभी तक लौट कर नही आ पाए थे|
सारा डर इस बात का था कि पूरब साइड में बदमाशों और चोर डकेतों का डर ज्यादा था| काफी मशहूर इनामी डकेतों का बोलवाला था इस इलाके में| पिताजी को कल्लू मामा के बड़े भाई का डर था कि कहीं कोई डकैत नकली गहने उनसे न छुड़ा ले तो उन्हें फिर असली गहने चढ़ाने पड़ेंगे|
थोड़ी देर बाद थोडा हंगामा सा हुआ| कल्लू मामा शादी में कोई विघ्न न चाहते थे, लेकिन इस हंगामे ने कल्लू मामा को विचलित कर दिया| उन्होंने आव देखा न ताव जनमासे(बरातियों के ठहरने का कमरा) से निकल सीधे हंगामे वाली जगह पर पहुंचे और फिर जो देखा तो उनके होश उड़ गये|
कल्लू मामा के बड़े भाई की हालत किसी भिखारी जैसी लग रही थी| सारे कपड़े फटे हुए थे, कल्लू मामा के होश तो पहले ही उड़ चुके थे, अब अक्ल भी उड़ गयी| उन्होंने भाई का हाल चाल पूछने की जगह उनसे पूछा, “अरे बड़े भईया गहने तो बच गये या वो भी लुट गये|”
पिताजी को कल्लू मामा के इस सवाल ने बहुत उत्तेजित कर दिया, वे गुस्से में बोले, “लड़का जान बचाकर आया है तुझे गहनों की पड़ी है, चल भाड में जाय तेरी शादी, अब नही करता में तेरी शादी| चलो भाई सब लोग बारात बापस ले चलो|”
कल्लू मामा पिताजी के पैरों में पड़ गये, बोले, “पिताजी मुझे माफ़ करना ये मेरे मुंह से निकल गया, लेकिन मुझे तो बड़े भईया की ज्यादा चिंता है| आप मुझे माफ़ कर दो, आगे ऐसा नही बोलूँगा|” बाकी के सब लोगों ने भी पिताजी को समझाया कि लड़का नादान है आप इसकी बात का बुरा मत मानो और शादी की रस्मे शुरू होने दो| पिताजी का गुस्सा थोडा ठंडा पड़ा उन्होंने शादी की मंजूरी दे दी|
मंडप सज चुका था, पिताजी ने असली गहने चढ़ा दिए लेकिन भारी मन से| कल्लू मामा को उतावली का दौरा फिर शुरू हो चुका था| उन्होंने गाँव के पंडित के कान में कहा, “पंडित जी अगर किसी तरह आधे घंटे में शादी निपटा दो तो आपको इनाम दूंगा|” पंडित उनके कान में बोला, “अगर आपने मुंह न बंद किया तो में आप के पिताजी से बोल दूंगा, फिर तो हो गयी आपकी शादी|” कल्लू मामा पंडित की बात सुन सिटपिटा गये और चुप होकर बैठ गये|
फिर कल्लू मामा के सामने पंडित ने मामी का नाम बोला, “फलाने की पुत्री इलायची देवी की शादी...|” कल्लू मामा को आज पहली बार मामी का नाम सुनने को मिला था| उन्हें इलायची मामी का नाम सुन इलायची जैसी महक आने लगी और सीना गर्व से चौड़ा हो गया| सोचते थे गाँव जाकर सब लोग नाम सुनेंगे तो मेरी तारीफें होंगी|
फिर जैसे तैसे शादी निपटी| बारात घर को लौटने लगी, इलायची मामी कल्लू मामा के बगल में बैठी थी, कल्लू मामा को ऐसा आनंद आ रहा था मानो वे इन्द्र सभा में बैठे हो और कोई स्वप्न सुन्दरी उनकी बगल में बैठी हो|
इधर पिताजी की नजर बहू के असली गहनों पर थी कि कोई गहना इधर से उधर न हो जाय| लेकिन कल्लू मामा को इन गहनों से ज्यादा अपनी जीवन संगिनी इलायची मामी की फिकर ज्यादा थी, उनका बस चलता तो वे रास्ते की ठंडी हवा को मोड़कर मामी की तरफ कर देते, लेकिन वो कल्लू मामा थे कोई देवता इंद्र नही|
[समाप्त]