देह के दायरे
भाग - तेंतीस
देव बाबू सारी रात सो न सका | रात्रि-भर जागकर वह सुबह की प्रतीक्षा करता रहा | प्रातः चार बजे ही जप पूरा कर उसने अपने मौन समाप्त कर दिया |
प्रातः सात बजे से ही भक्तों की भीड़ वहाँ आने लगी | देव बाबू रात-भर न सो सकने के कारण स्वयं में दुर्बलता-सी अनुभव कर रहा था | इस समय उसकी इच्छा भीड़ के समक्ष जाने की न थी | उसने एक सेवक को आदेश दिया कि बाहर उपस्थित भक्तों में से एक-एक को ही अन्दर आने दिया जाए |
दोपहर ढलने को थी मगर पूजा अभी तक नहीं आयी थी | देव बाबू ने कल उसे जो पुर्जा लिखकर दिया था उसके कारण उसे विश्वास था कि वह आज अवश्य ही आएगी |
जब पूजा वहाँ पहुँची तो शाम के चार बज रहे थे | ज्यों ही उसने कल वाली पर्ची सेवकों को दिखलायी तो उन्होंने उसे बिना नम्बर के विशेष तौर पर अन्दर भेज दिया |
पूजा ने अन्दर प्रवेश करके तपस्वी के चरण छुए | कल की भाँती आज वह उसे देखकर अधिक विचलित नहीं हुआ |
“प्रसन्न रहो |” आज हाथ उठाकर उसने उसे आशीर्वाद भी दिया | पूजा भी उसके सामने ही पृथ्वी पर बैठ गयी |
“मुझपर कृपा करो बाबा |” पूजा ने कहा |
“तुम्हारी शादी हो गयी?” देव बाबू उसके मुख की ओर देखने का साहस नहीं कर पा रहा था | उसे भय था कि कहीं वह उसे पहचान न ले | एक पति अपनी पत्नी की दृष्टि से कठिनाई से ही छुप पाता है |
“हाँ बाबा |” पूजा ने उत्तर दिया | सुनकर देव बाबू की आघात-सा लगा |
“देव बाबू तुम्हारा पति था?” उसने पूछा |
“हाँ बाबा, वे मुझे छोड़कर चले गए |”
“हम जानते हैं मगर वह तो तुमसे घृणा करता था | इसका कारण जानती हो?”
“नहीं जानती बाबा |”
“शादी से पहले तो उसने तुम्हें बहुत प्यार किया था?”
“हाँ बाबा! शादी के बाद भी वे मुझे बहुत चाहते थे मग...|”
“हम जानते हैं, लेकिन कुछ दिन बाद वह तुमसे घृणा करने लगा |”
“ऐसा क्यों हुआ बाबा?” पूजा ने तपस्वी के अन्तर्ज्ञान से प्रभावित होते हुए कहा |
“इसका कारण तो तुम जानती हो मगर शायद हमारी परीक्षा लेने के लिए तुम हमारे मुँह से ही सुनना चाहती हो | सुनो, वह एक दुर्घटना में अपुरुष हो गया था | वह अपूर्ण हो गया था, फिर भी वह तुम्हें बहुत चाहता था | इसी कारण से वह अपनी अपूर्णता को तुम्हारे जीवन में नहीं लाना चाहता था | और इसीसे वह बात-बात पर तुम्हें अपमानित करता था कि तुम उससे घृणा करके मुक्ति पा लो | तुम शायद नहीं जानतीं कि ऐसा करते हुए उसका ह्रदय रोता था मगर फिर भी वह ऐसा करता था |”
“बाबा...|” पूजा आश्चर्य से सुन रही थी |
“हाँ...और सुनो | इसी मध्य तुम्हारे जीवन में एक और व्यक्ति ने प्रवेश किया | वह तुम्हें पहले से ही चाहता था | तुम्हारा पति तुम्हें उसके हाथों में सौंपकर अज्ञातवास को चला गया |”
“उन्होंने बड़ा अनर्थ किया बाबा | वे नारी-स्वभाव को कभी नहीं समझ सके | यदि वे अपूर्ण हो गए थे तो इसमें उनका क्या दोष था | काश, वे जाने से पहले मुझे सब कुछ बता देते!”
“क्या तुम उसके साथ अपना जीवन काट देतीं!”
“नारी केवल वासना के लिए ही तो पति को ग्रहण नहीं करती बाबा | यह तो शादी का केवल एक भाग होता है |”
“तुम्हारे पति ऐसा सम्भव नहीं मानते थे |”
“उन्होंने यही तो भूल की बाबा |” पूजा कह उठी |
“सन्ध्या का समय हो गया गुरुदेव!” एक सेवक ने आकर सुचना दी | पूजा ने आगे बढ़कर एक बार फिर उसके चरणों की धुल ली और वापस चल दी |
देव बाबू का ह्रदय पूजा के समक्ष सब कुछ स्पष्ट कर देना चाहता था मगर वह किसी तरह स्वयं पर नियन्त्रण रख, सेवकों के साथ ‘सन्ध्या’ के लिए चल दिया |